कोश्यारी के इस्तीफे की चर्चाओं से उत्तराखण्ड में राजनीतिक हलचल शुरू

महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी किसी भी समय अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं। उन्होंने पद छोड़ने की इच्छा सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से की है। हालांकि उन्होंने काफी पहले स्वयं को राज्यपाल के तौर पर असहज महसूस करने की बात कर दी थी। दूसरी ओर महाराष्ट्र में उनके विवादित बयानों के कारण स्वयं भाजपा नेतृत्व भी असहज हो रहा था। इसलिये उनकी राज्यपाल पद से विरक्ति का एक कारण महाराष्ट्र में उनके बयानों से उत्पन्न विवाद के कारण भाजपा नेतृत्व की नाराजगी भी माना जा रहा है। उनके इस्तीफे की अटकलों के साथ ही उत्तराखण्ड की राजनीति में हलचल शुरू हो गयी है।

ताजा जानकारी के अनुसार भगतसिंह कोश्यारी ने महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से इस्तीफे का मन बना लिया है। वह मीडिया से भी पद छोड़ने की बात कर चुके हैं। मीडिया को उन्होंने यहां तक कहा कि अब वह पढ़ना-लिखना चाहते हैं और अपने मन की बात सीधे प्रधानमंत्री मोदी से कर चुके हैं।

इधर महाराष्ट्र की राजनीति के जानकारों के अनुसार कोश्यारी अपने बयानों के कारण प्रदेश में काफी अलोकप्रिय हो चुके हैं। उनके कुछ बयानों पर नजर डालें तो पता चलता है कि उनसे जुड़े हर विवाद ने सत्ता गंवाने वाले उद्धव ठाकरे को आक्रामक होने का मौका दिया है तो दूसरी तरफ राज्य में सरकार बनाने वाले एकनाथ शिंदे को सवालों में ला दिया है। सबसे पहले सावित्री बाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी में हुए एक कार्यक्रम में कोश्यारी ने महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले के बाल विवाह को लेकर एक विवादित बयान दिया था। उस विवाद के ठंडा पड़ने से पहले औरंगाबाद में उन्होंने छत्रपति शिवाजी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। उनका विवादों का सिलसिला यही नहीं थमा। उन्होंने गुजराती और मराठी समुदाय को लेकर कुछ ऐसा कह दिया कि मराठी मानुष फिर चिढ़ गया। उनका कहना था कि अगर ये दो समुदाय मुंबई छोड़ दें तो मायानगरी आर्थिक शक्ति नहीं रहेगी। उनके हर विवादित बयान के लिये भाजपा को जिम्मेदार ठहराया जाना स्वाभाविक ही है। इसलिये उनका पद छोड़ना लगभग तय माना जा रहा है। कोश्यारी ने 5 सितम्बर 2019 को महाराष्ट्र के राज्यपाल का पद संभाला था।

कोश्यारी के इस्तीफे की चर्चाओं के साथ ही उत्तराखण्ड की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आने की संभावना बलवती हो गयी है। प्रदेश की राजनीति में इस समय कांग्रेस से हरीश रावत और भाजपा से भगतसिंह कोश्यारी ही शीर्ष नेता हैं। इन दोनों का ही गढ़वाल और कुमाऊं में व्यापक जनाधार है। इसलिये इतना बड़ा राजनीतिज्ञ राजनीति को भूल कर पहाड़ों पर जा कर अध्ययन या तपस्या करे, ऐसा विश्वास करना जानकारों के लिये बहुत कठिन है। इसलिये यह भी चर्चा है कि कोश्यारी के सम्मानजनक पुनर्वास के लिये उनके राजनीतिक चेले या उनके राजनीतिक मानस पुत्र पुष्कर सिंह धामी से प्रदेश की बागडोर वापस लेकर कोश्यारी को थमा दी जाय। ऐसे कयास 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुये भी लग रहे हैं। अक्टूबर 2001 में जब कोश्यारी उत्तराँचल के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपने सबसे विश्वासपात्र पुष्कर सिंह धामी को अपना ओएसडी बनाया था। कोश्यारी के वरदहस्त से धामी को विधानसभा चुनाव में टिकट मिला और कोश्यारी के आशीर्वाद से धामी राजनीती की सीढ़ियां चढ़ते गए और प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन गए।

अगर उनको मुम्बई से हटाया जाता है तो उत्तराखण्ड में या राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें समायोजित करना होगा। उत्तराखण्ड में उन्हें संगठन की जिम्मेदारी इसलिये दिये जाने की संभावना नहीं है क्योंकि सरकार और संगठन दोनों को गुरु चेले के हवाले करना व्यवहारिक नहीं है। दोनों ही ठाकुर और दोनों ही कुमाऊं से है। इसलिये अध्यक्ष पद दिये जाने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती। वैसे भी चर्चा रहती है कि भले ही प्रदेश की बागडोर धामी के हाथ में हो मगर परोक्ष रूप से डोर सुदूर मुम्बई में बैठे कोश्यारी के हाथ में ही होती है। महाराष्ट्र के पत्रकारों का कहना है कि वहां राजभवन में महाराष्ट्र से ज्यादा उत्तराखण्ड के लोग नजर आते हैं। कई लोग फरियाद लेकर धामी के पास जाने के बजाय सीधे कोश्यारी के पास चले जाते हैं। जहां तक कोश्यारी की उम्र का सवाल है तो वह 81 साल के हो गये हैं और कर्नाटक में भी भाजपा 80 साल पार कर चुके येदुरप्पा को मुख्यमंत्री बना चुकी है। भाजपा की शीर्ष संस्था संसदीय बोर्ड में भी अस्सी की उम्र पार कर चुके नेता बैठे हुये हैं। वैसे भी कोश्यारी का उपयोग करना भाजपा की जरूरत है। अगले साल लोकसभा चुनाव को देखते हुये भी कोश्यारी और रमेश पोखरियाल निशंक जैसे व्यापक जनाधार और राजनीतिक सूझबूझ वाले नेताओं की जरूरत भाजपा होगी। उत्तराखण्ड की राजनीति का ऊंट किस करबट बैठेगा, यह इस्तीफा दे कर कोश्यारी के वापस उत्तराखण्ड लौटने पर ही पता चलेगा।

कोश्यारी ने उत्तराखंड के 2002 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी के हार जाने के बाद कोश्यारी ने 2002 से 2007 तक विधानसभा में नेता विपक्ष की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद उन्होंने 2007 से 2009 तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली, इसी दौरान 2007 में बीजेपी की उत्तराखंड की सत्ता में वापसी हुई। लेकिन पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया। इसके बाद पार्टी वह 2008 से 2014 तक उत्तराखंड से राज्यसभा के सदस्य चुने गए थे। 2014 में बीजेपी ने नैनीताल संसदीय सीट से उन्हें मैदान में उतारा और वह जीतकर पहली बार लोकसभा सदस्य चुने गए, लेकिन 2019 में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। आरएसएस से भगत सिंह कोश्यारी की काफी नजदीकी होने के चलते मोदी सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र के राज्यपाल की जिम्मेदारी सौंपी है।

(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं और देहरादून में रहते हैं।)

जयसिंह रावत
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