दहशत में हैं बिहार के डॉक्टर

कोरोना वायरस के संक्रमण के अंदेशे में बिहार के डॉक्टर डरे हुए हैं। उन्हें कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज निजी सुरक्षा के लिए जरूरी उपकरणों के बिना करना पड़ रहा है। वैसे करीब 12 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में केवल दो जांच केन्द्र हैं जहां कोरोना का परीक्षण हो सकता है और केवल एक अस्पताल है जिसमें इसके इलाज की सुविधा प्रदान की गई है। इस अस्पताल नालंदा मेडिकल कालेज एवं अस्पताल, पटना (एनएमसीएच) के जूनियर डॉक्टर संक्रमण से अपनी सुरक्षा को लेकर इतने चिंतिंत हो गए हैं कि 15 दिनों के लिए अलगाव (कोरेंटाइन) में जाना चाहते हैं। उन्होंने सरकार को पत्र लिखा है और अस्पताल प्रशासन के साथ उनकी झड़प भी हो चुकी है। इधर कोरोना पॉजिटिव के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। 

नालंदा मेडिकल कालेज अस्पताल को कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए विशेष अस्पताल घोषित किया गया है। उस अस्पताल में पहले से भर्ती दूसरे मरीजों के पीएमसीएच और अन्य अस्पतालों में भेजा जा रहा है। अगमकुंआ स्थित राजेन्द्र मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में कोरोना की जांच के लिए निर्दिष्ट प्रयोगशाला है। आईजीआईएमएस में दूसरी जांच-प्रयोगशाला बनाई गई है। स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने बताया कि जांच के लिए आवश्यक किट नेशनल वायरोलॉजी लैब, पुणे से आ गए हैं। उन्होंने बताया कि तीसरी जांच प्रयोगशाला दरभंगा (डीएमसीएच) में बनाया जा रहा है। 

अभी अगमकुंआ का आरएमआरआई में ही राज्य के विभिन्न इलाकों से संदिग्ध मरीजों के रक्त का नमूना भेजा जा रहा है। अस्पताल सूत्रों के अनुसार कोरोना के संदिग्ध मरीजों की संख्या 1228 हो गई है। गोपालगंज और सिवान जिलों में सर्वाधिक संदिग्ध मरीज मिले हैं। मालूम हो कि इन जिलों के बहुत सारे लोग खाड़ी देशों में काम करते हैं। वे होली के आस-पास अपने गांव आए थे। अभी तक बिहार में कोरोना के दो मरीजों की मृत्यु की पुष्टि हो गई है।

इधर, कोरोना के इलाज के लिए निर्दिष्ट एनएमसीएच के जूनियर डॉक्टरों ने कहा है कि वे अस्पताल में कोरोना पॉजिटिव के एक मरीज के संपर्क में आ गए हैं और उनके कई साथियों में कोरोना के लक्षण दिखने लगे हैं। इसलिए उन सबको 15 दिनों के लिए अलगाव में जाना आवश्यक हो गया है। उन्होंने चिकित्साकर्मियों के लिए जरूरी सुरक्षा उपकरणों के अभाव का उल्लेख किया है और इनकी अविलंब उपलब्ध कराने की मांग की है। जरूरी सुरक्षा उपकरणों की मांग लेकर दरभंगा मेडिकल कालेज अस्पताल के जूनियर डॉक्टरों ने भी सोमवार को दोपहर तक काम बंद रखा। उस वक्त अस्पताल के सामने देश के विभिन्न इलाकों से आए प्रवासी मजदूरों की भीड़ जरूरी जांच के लिए खड़ी थी। बिहार में कोरोना से एक व्यक्ति की मृत्यु जिस पटना एम्स में हुई है, उसके एक डॉक्टर और नर्स को अलगाव में भेजा गया है। 

एनएमसीएच के 83 जूनियर डॉक्टरों ने 23 मार्च को ही पत्र लिखकर जरूरी उपकरण उपलब्ध कराने की मांग की थी और 15 दिनों के लिए अलगाव में जाने की जरूरत बताई थी। अस्पताल अधीक्षक ने वह पत्र स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को भेज दिया। जूनियर डॉक्टरों को अलगाव में जाने की अनुमति नहीं मिली है।  कोरोना संक्रमण के लिए सुरक्षित माने जाने वाले एन-95 मास्क तो दुर्लभ ही हो गये हैं। डॉक्टरों के टू लेयर और थ्री लेयर वाले सामान्य मास्क से काम चलाना पड़ रहा है। वे कई दिनों से एन-95 मास्क और पीपीई किट की मांग कर रहे हैं, मगर उन्हें ये उपलब्ध नहीं कराये जा सके हैं। अस्पताल के अधीक्षक भी कई दफा इस मांग को बीएमएसआईसीएल (बिहार मेडिकल सर्विस एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड) को भेज चुके हैं, मगर वहां से आपूर्ति नहीं हो रही। इन दो बड़े अस्पतालों के अलावा राजधानी पटना के आईजीआईएमएस अस्पताल में भी जूनियर डॉक्टर दो दफा एन-95 मास्क और पीपीई के लिए सामूहिक प्रतिरोध कर चुके हैं। पीपीई कभी कभार बहुत कम मात्रा में आता है और कुछ लोगों को मिलता है, कुछ ऐसे ही रह जाते हैं।

आईजीआईएमएस के एक डॉक्टर ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि आईजीआईएमएस में 300 डॉक्टर और स्टाफ आईसीयू में रेगुलर ड्यूटी करते हैं और कुल 1500 स्टाफ हैं। अगर आईसीयू के स्टाफ के लिए ही तीन शिफ्ट के हिसाब से एन-95 मास्क और पीपीई किट मांगा जाए तो रोज 900 यूनिट की जरूरत है।

भागलपुर के एक एनेस्थेसिस्ट जिन्हें इन दिनों पुलिस बल की सेवा में भेजा गया है, कहते हैं मास्क का संकट वाकई बहुत गंभीर है। बाजार में ही उपलब्ध नहीं है, कोई करे तो क्या करे। दिक्कत सिर्फ डॉक्टरों की नहीं, नर्सों, वार्ड ब्वाय, अटेंडेंट और दूसरे हजारों हेल्थ वर्करों की है, उनकी फिक्र सबसे आखिर में की जाती है, मगर सच यही है कि खतरों से सबसे अधिक जूझना उन्हें ही पड़ता है। पटना की एक नर्स ने कहा कि शुरुआत में कुछ लोगों ने भयवश बाजार से खुद मास्क खरीदना शुरू किया था, मगर अब वह भी अनुपलब्ध है।

बिहार में जन स्वास्थ्य अभियान से जुड़े डॉ शकील कहते हैं, कल मैंने भी अपने साथियों के लिए मास्क और पीपीई ड्रेस खरीदने की कोशिश की, मगर पटना की सबसे बड़ी मेडिकल मंडी में भी वह अनुपलब्ध था। सरकार को इस बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए। वे कहते हैं कि असुरक्षित माहौल में काम करने की वजह से स्वास्थ्य कर्मी मानसिक रूप से भी परेशान रहते हैं। बिहार सरकार ने राज्य के सभी स्वास्थ्य कर्मियों के लिए एक माह के मूल वेतन के बराबर प्रोत्साहन देने की घोषणा की, मगर स्वास्थ्य कर्मी इससे संतुष्ट नहीं हैं, उनकी प्राथमिकता स्वास्थ्य है, पैसा नहीं।

डॉ शकील कहते हैं कि स्थिति ऐसी हो गयी है कि कई पारा मेडिकल स्टाफ खुद भी डर से घर नहीं जा रहे, कई लोगों को उनके मकान मालिक घर नहीं आने दे रहे। क्योंकि उन्हें संक्रमण का डर है। इस बात की पुष्टि आइजीआइएमएस के डॉक्टर और पारा मेडिकल स्टाफ भी करते हैं। कुछ पारा मेडिकल स्टाफ जो बैचलर रह कर काम कर रहे हैं, लॉक डॉउन के बाद खाने-पीने के संकट का सामना कर रहे है, क्योंकि पटना के सभी भोजनालय बंद हो गये हैं। इन परिस्थितियों में कोरोना संक्रमण की विषम परिस्थितियों से जूझना मुश्किल हो रहा है।

बिहार में एन 95 मास्क और पीपीई की उपलब्धता के बारे में जब हमने बीएमएसआईसीएल के प्रबंध निदेशक संजय कुमार सिंह से बात करने की कोशिश की तो उनके दफ्तर से हमें बताया गया कि वे मीटिंग में व्यस्त हैं और अभी बात करने में सक्षम नहीं हैं। राज्य स्वास्थ्य समिति की सर्विलांस ऑफिसर रागिनी मिश्रा ने कहा कि हमने केंद्र से ज्यादा से ज्यादा एन 95 मास्क और पीपीई उपलब्ध कराने का अनुरोध किया है, बिहार मेडिकल सप्लाई एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन लिमिटेड भी इसकी खरीदारी का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि यह शिकायत सही है कि राज्य के स्वास्थ्य कर्मियों को घर आने से मकान मालिक रोक रहे हैं।

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल पटना में रहते हैं।)

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