मनरेगा: भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान स्थापित करती रोजगार गारन्टी योजना!

आर्थिक विशेषज्ञों का मानें तो महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना (मनरेगा) दुनिया के स्तर पर सबसे बड़ा रोजगार गारन्टी कानून है। जिसमें श्रमिकों को साल में 100 दिन काम देने की गारन्टी की गई है। देश में 16 करोड़ से अधिक अकुशल मजदूर परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराने वाले मनरेगा को लागू हुए 17 साल पूरे हो गए हैं।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में जब पूरी दुनिया में आर्थिक सुनामी से अन्य देशों की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही थी, तब भारत पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा था। क्योंकि ग्रामीणों के पास मनरेगा जैसी योजना के कारण क्रय शक्ति प्रभावित नहीं हुई। ठीक यही परिदृश्य 2020-21 के लॉकडाउन के दौरान भी देखी गई। जब देश में लॉकडाउन के सारी आर्थिक गतिविधियां बन्द थीं, तब ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों के लिए रोजगार का एकमात्र साधन मनरेगा ही था।

तकनीकी जटिलताओं से सशंकित श्रमिक

केंद्र सरकार मनरेगा में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार रोकने के नाम पर विगत एक दशक से निरंतर नित नए तकनीकी प्रयोग करती रही है। अप्रैल 2013 से ई-मस्टर रोल को अनिवार्य किया गया। जिसके तहत मस्टर रोल, वेज लिस्ट, वेज स्लिप, एफटीओ समेत सारे दस्तावेज कंप्यूटराईज्ड किये गए। फिर सारे मजदूरों के आधार कार्ड फ्रीज किये गए। सभी तरह की योजनाओं में जिओ टैग अनिवार्य किया गया। इन सभी तकनीकी प्रयोगों से एक तरफ पारदर्शिता संकुचित हुई, वहीं दूसरी तरफ मनरेगा योजनाओं में भ्रष्टाचार नियंत्रण से बाहर होता चला गया।

पिछले वर्ष मई 2022 से लागू नई तकनीक ‘नेशनल मोबाईल मॉनिटरिंग सिस्टम’ को 20 से अधिक मजदूर कार्य करने वाली योजनाओं में अनिवार्य बना दिया गया। इस नए तकनीकी प्रयोग के प्रभावों के आकलन के बिना ही अब जनवरी 2023 से सभी तरह की योजनाओं में ‘नेशनल मोबाईल मॉनिटरिंग सिस्टम’ को अनिवार्य बना दिया गया है।

इस प्रणाली से बड़े पैमाने पर मनरेगा मजदूर रोजगार और मजदूरी से वंचित होने का खतरा महसूस करने लगे हैं। क्योंकि झारखण्ड में विभागीय आदेशानुसार सिर्फ महिलाओं को ही मनरेगा मेट बनाया गया है। लेकिन एसटी, एससी, आदिम जनजाति महिलाओं तक स्मार्टफोन की उपलब्धता नहीं के बराबर है। जिनके पास है भी, उनमें तकनीकी ज्ञान का अभाव है। दूसरी तरफ इन्हें कोई समुचित प्रशिक्षण भी नहीं दिया जा रहा है।

वहीं सर्वर त्रुटि और इंटरनेट ब्लैकआउट की समस्या सुदूर इलाकों में हमेशा बनी रहती है। हाजिरी दर्ज करने में किसी तरह की त्रुटि होने पर उसका निराकरण सिर्फ जिला मुख्यालय के जिला कार्यक्रम समन्वयक (डीपीसी) के पास है और कुछ मामलों में मनरेगा कमिश्नर कार्यालय को ही लॉगिन-इन पासवर्ड की सुविधा दी गई है।

मनरेगा मजदूर

ऐप की भाषा सिर्फ अंग्रेजी में ही नहीं बल्कि कई ऐसी भाषाओं में भी आती है, जो अंग्रेजी जानने वालों की भी समझ से परे होती है। ऐसे में पूरी सम्भावना है कि मनरेगा के मानव दिवस में गिरावट आएगी और केंद्र सरकार को मनरेगा बजट आकार को घटाने का बहाना मिल जाएगा।

कानूनी प्रावधानों की अनदेखी

मनरेगा अधिनियम में योजनाओं के क्रियान्वयन पर कड़ी निगरानी, प्रत्येक 6 महीने में ग्राम सभाओं के माध्यम से सामाजिक संपरीक्षा, समवर्ती सामाजिक संपरीक्षा, ससमय मजदूरों का मजदूरी भुगतान, आम जनों तथा मजदूरों की शिकायतों पर समयबद्ध कार्रवाई जैसे प्रावधानों के बाद भी राज्य सरकार व केंद्र सरकार दोनों अपनी संवैधानिक जवाबदेही निभाने में विफल होती रही हैं।

बता दें कि राज्य में सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) की प्रक्रिया अप्रैल 2022 से ही सरकार की निष्क्रियता से ठप्प पड़ी है। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भी झारखण्ड सामाजिक अंकेक्षण ईकाई को आखिरी बार मार्च 2022 में आवंटन जारी किया था। आज भी सामाजिक अंकेक्षण मद में राज्य सरकार का केंद्र सरकार पर करीब 7.00 करोड़ रूपये का आवंटन लंबित है।

लम्बे समय से अंकेक्षण में लगे कर्मियों का बकाया रहने से उनका मनोबल गिरता जाएगा। राज्य सरकार को भी इस दिशा में जरूरी पहल करनी चाहिए अन्यथा सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया के रोके जाने से केंद्र को राज्य का फण्ड रोकने का अतिरिक्त बहाना मिल जाएगा।

झारखंड मनरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज कहते हैं कि झारखण्ड जैसे आर्थिक रूप से कमजोर राज्य के लिए मनरेगा जैसी महत्त्वकांक्षी योजना वरदान साबित हो सकती है। आज मनरेगा में राज्य के 69.23 लाख परिवार पंजीकृत हैं, जिसमें 108.81 लाख मजदूर शामिल हैं। वर्त्तमान वित्तीय वर्ष 2022-23 में अब तक कुल 713.6 लाख मानव दिवस सृजित किये जा चुके हैं, जिसके जरिये 1,74,238.33 लाख रूपये मजदूर परिवारों को मजदूरी के रूप में मिले।

साथ ही अर्धकुशल व कुशल मजदूर और सामग्री मद के रूप में 21,258.8 लाख खर्च किये जा चुके हैंl इस प्रकार राज्य में मनरेगा के जरिये कुल 20 अरब 18 करोड़ 38 लाख 33 हजार रूपये खर्च किये जा चुके हैं, जो राज्य की आर्थिक सेहत के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।

मनरेगा मजदूर

जेम्स हेरेंज आगे कहते हैं कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने सत्ता की बागडोर संभालते ही मनरेगा मजदूरों के प्रति राज्य की संवैधानिक जवाबदेही निभाने की कोशिश की है। इसके दो- तीन उदाहरण स्पष्ट हैं- पहला उन्होंने वर्ष 2021-22 से 2022-23 तक लगातार अपने राज्य बजट में राशि आवंटित कर मजदूरों को मनरेगा के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी 198 रूपये में 27 रूपये राज्यांश देकर 225 रूपये दैनिक मजदूरी भुगतान की।

यह राज्यांश आवंटन 2022-23 में भी जारी रखा गया, जिसकी वजह से अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी 210 रूपये के स्थान पर राज्य सरकार के 27 रूपये अंशदान के साथ मनरेगा मजदूरों को 237 रूपये दैनिक मजदूरी दी जा रही है।

दूसरा 2020 में लॉकडाउन के दरम्यान श्रमिकों को अधिक से अधिक रोजगार के अवसर मुहैया हो सकें, इसके लिए नीलाम्बर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना, बिरसा हरित ग्राम योजना, वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना, दीदी बाड़ी, दीदी बगिया जैसी जन उपयोगी योजनाओं को मनरेगा के अनुमेय योजनाओं में शामिल किया गया है।

अभी हाल ही में मनरेगा श्रमिकों के आकस्मिक मृत्यु, सामान्य मृत्यु, आंशिक विकलांगता जैसी घटनाओं, दुर्घटनाओं में सहायता अनुग्रह राशि में सम्मानजनक वृद्धि कर मजदूर परिवारों को सौगात प्रदान की गई है।

भ्रष्टाचार रोकना बड़ी चुनौती

झारखंड में मनरेगा योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान स्थापित किये जा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 जुलाई-अगस्त में किये गए समवर्ती सामाजिक अंकेक्षण रिपोर्ट के अनुसार कुल 1,59,608 मजदूरों के नाम से मास्टर रोल (हाजरी शीट) निकाले गए थे, उनमें से सिर्फ 40,629 वास्तविक मजदूर (25%) ही कार्यरत पाए गए। शेष सारे फर्जी मजदूरों के नाम से मस्टर रोल सृजित गए थे।

मनरेगा मजदूर

साहेबगंज में संपन्न सामाजिक अंकेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 19 योजनाओं में बगैर कार्य के 22.48 लाख रुपये की हेराफेरी कर ली गई। धनबाद के तोपचांची में वगैर सामग्री आपूर्ति के ही 16 योजनाओं में वेंडर के खाते में भुगतान किया गया। पलामू जिले के सिर्फ पाटन प्रखण्ड में 2020-21 की शेड निर्माण योजनाओं में बिना कार्य के निकासी कर ली गई।

जिसके परिणाम स्वरूप जिले के उप विकास आयुक्त ने सभी सम्बंधित कर्मियों पर कठोर कार्रवाई करते हुए 12 फीसदी ब्याज के साथ जिला नजारत में राशि जमा करने का सख्त आदेश दिया है।

मनरेगा राशि में गड़बड़ी के ये महज चंद नमूने हैं। यदि कायदे से नियमित जांच और ग्राम सभाओं के जरिये नियमित सोशल ऑडिट हो तो सरकारी राशि के लूट की पूरी पोल खुल जाएगी। सरकार को चाहिए कि राज्य के मजदूरों के हित में ठोस निगरानी एवं कारगर शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करे।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
Published by
विशद कुमार