जेएनयू के बाद इलाहाबाद भी हुआ गर्म, युवाओं ने कहा- रोजगार न मिला तो बजेगी ईंट से ईंट

आज देश में रोजगार संकट सबसे ज्वलंत मुद्दा है। बेरोजगारी की दर आठ फीसदी से ज्यादा पहुंच चुकी है। यह 1971 के बाद सर्वाधिक है। दरअसल रोजगार का संकट इतना गंभीर है कि प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थाओं से पढ़ाई के बाद भी रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है। बेरोजगारी के खिलाफ देश भर में छात्र-युवा मुखर हो रहे हैं और जगह-जगह स्वतःस्फूर्त आंदोलन भी चल रहे हैं।

मोदी सरकार द्वारा कारपोरेट घरानों को लाखों करोड़ रुपये की बैंकिंग पूंजी की लूट से लेकर अन्य तरीकों से लूट और मुनाफाखोरी की खुली छूट से पहले से जारी रोजगार संकट और ज्यादा गंभीर हो गया है। इन्हीं वजहों से मोदी सरकार की मेक इन इंडिया, स्टार्टअप, स्किल इंडिया, कौशल मिशन जैसी बहुप्रचारित योजनायें बुरी तरह फ्लाप हुई हैं। इसी तरह शिक्षा का बजट घटाया जा रहा है और नयी शिक्षा नीति तो पूरी तरह से शिक्षा को बाजार के हवाले करने की नीति है।

इसमें स्कूल, कालेज और तकनीकी संस्थानों का पीपीपी मॉडल के तहत संचालित करने की योजना है। उत्तर प्रदेश के 58 राजकीय और अनुदानित पॉलीटेक्निक का पीपीपी मॉडल के तहत संचालित करने का प्रस्ताव योगी सरकार ने तैयार किया है। इसके अलावा स्कूल और कालजों में भी इसी मॉडल को लागू किया जाना है। इसके प्रथम चरण में आईआईटी, आईआईएम और मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थानों को चयनित किया गया है। एक दशक में इन संस्थानों में 20-50 गुना तक फीस बढ़ोतरी की जा चुकी है।

अमूमन इन संस्थानों के छात्रों का ऐसी नीतियों के खिलाफ न तो आंदोलन चलाने का इतिहास है और न ही इन संस्थानों में राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियां ही होती हैं। बावजूद इसके यहां के छात्र भी आंदोलित हैं। शिक्षा को बाजार के हवाले करने के इसी क्रम में जेएनयू में भी भारी फीस बढ़ोतर की गई है। इसके खिलाफ जेएनयू छात्रों के अभूतपूर्व प्रदर्शन ने इस सवाल को राष्ट्रीय विमर्श बना दिया है। ऐसे माहौल में शिक्षा और रोजगार के सवाल पर विराट आंदोलन की संभवनायें भी बनी हैं।

इसी परिप्रेक्ष्य में 24 नवंबर को इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ भवन में विचार विमर्श के लिए बैठक भी रखी गई है। उत्तर प्रदेश खासकर इलाहाबाद में युवा मंच रोजगार के सवाल पर छात्रों को संगठित करने और राष्ट्रीय मुद्दा बनाने के लिए प्रयासरत है। इलाहाबाद में बालसन चैराहे से कलेक्ट्रेट तक सैकड़ों छात्रों ने युवा मंच के बैनर तले रोजगार अधिकार मार्च निकाला और प्रदर्शन किया। रोजगार के सवाल पर हुए इस प्रदर्शन में जेएनयू छात्रों के आंदोलन का समर्थन करते हुए उनके शांतिपूर्ण संसद मार्च पर दमनात्मक कार्रवाई की तीखी निंदा की गई।

कलेक्ट्रेट पर हुए प्रदर्शन के दौरान छात्रों को संबोधित करते हुए रोजगार अधिकार मार्च का नेतृत्व कर रहे युवा मंच के संयोजक राजेश सचान ने कहा कि देश में अभूतपूर्व रोजगार संकट है। हालात इतने खराब हैं कि कोर सेक्टर में निगेटिव ग्रोथ हो रही है। आईटी सेक्टर में हजारों इंजीनियर और तकनीशियन की छंटनी की नौबत है। मोदी सरकार की नीतियों से सर्वाधिक रोजगार देने वाले पब्लिक सेक्टर बर्बाद हो रहे हैं। किस तरह जियो को प्रमोट करने के लिए बीएसएनएल को चौपट कर दिया गया। अब रेलवे में इसी फार्मूले के तहत तेजस का संचालन किया जा रहा है। इन्हीं नीतियों का परिणाम है कि वादा तो हर साल दो करोड़ रोजगार देने का किया था, लेकिन करोड़ों रोजगार खत्म हो गए। देश में अरसे से 24 लाख सरकारी पद खाली चल रहे हैं, लेकिन बेरोजगारी के भयावह संकट के बावजूद इन्हें भरा नहीं जा रहा है।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में तो हालत बेहद खराब हैं। प्रदेश में चार लाख शिक्षक पद खाली हैं। तकरीबन तीन साल सरकार का कार्यकाल बीत चुका है, लेकिन शिक्षक भर्ती का एक भी नया विज्ञापन नहीं आया और नई शिक्षा नीति के प्रभावी होने के बाद अगले एक-दो साल तक शायद ही शिक्षक भर्ती का किसी भी विज्ञापन का आना संभव हो पाए। हालत यह है कि पिछली सरकार में जिन भर्तियों को शुरू किया गया है, वह भी भ्रष्टाचार अथवा चयन प्रक्रिया की विसंगतियों की भेंट चढ़ गई हैं। प्रदेश में एक लाख से ज्यादा प्राइमरी के प्रधानाचार्य और चतुर्थ और तृतीय श्रेणी के लाखों पदों को खत्म कर दिया गया। नई शिक्षा नीति के लागू होने से हजारों स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए जाएंगे या उन्हें पीपीपी मॉडल से संचालित किया जाएगा। यही वजह है कि अशासकीय माध्यमिक स्कूलों के लिए 40 हजार पदों के लिए अधियाचन आने के बाद उन्हें भी खत्म करने की कोशिश की जा रही है।

सचान ने कहा कि पीएम को पत्र भेजकर मांग की गई है कि अगर वह युवाओं की समस्याओं का निराकरण कराना चाहते हैं तो मौजूदा संसद सत्र में रोजगार को मौलिक अधिकारों में शामिल करने और 24 लाख खाली पदों को भरने के लिए कानून बने और हर नौजवान को गरिमामय रोजगार की गारंटी सुनिश्चित की जाए। उन्होंने कहा कि जेएनयू आंदोलन के बाद शिक्षा और रोजगार पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा होने की प्रबल संभावना बनी है। मोदी सरकार की नीतियों से खेती-किसानी, उद्योग, पब्लिक सेक्टर सब कुछ चैपट हो रहा है। इसके खिलाफ बढ़ रहे जनविक्षोभ और जनांदोलनों पर बर्बर दमन किया जा रहा है और सरकार अधियानकवादी राज्य की ओर बढ़ रही है। हमें लोकतंत्र की हिफाजत के लिए आगे आना होगा और इन जनविरोधी नीतियों को बदलने के लिए लड़ना होगा। तभी रोजगार का अधिकार हासिल हो सकता है।

रोजगार अधिकार मार्च और प्रदर्शन में युवा मंच के संयोजक राजेश सचान, अनिल सिंह, विनोवर शर्मा, एलके चैधरी, इंदू भान तिवारी, रमेश रंजन, अरविंद मौर्या, अतुल तिवारी, विनय सिंह, पवन गुप्ता, सुनील यादव, शैलेष कुमार मौर्य, अरविंद कुमार मौर्य, रवि प्रकाश, लालजी द्विवेदी, ध्रव चंद चैधरी, उपकार सिंह कुशवाहा समेत सैकड़ों छात्र मौजूद रहे। 

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