BBC के बाद मोदी सरकार पर दूसरी मार, यूरोपीय सांसद ने मानवाधिकार पर उठाए सवाल

लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ग्रह नक्षत्र अच्छे नहीं चल रहे हैं। ध्वस्त अर्थव्यवस्था, भीषण मंहगाई, सुरसा की तरह बढती बेरोजगारी, उद्योग धंधों पर मंदी की मार के साथ गुजरात दंगों के जिन्न का विदेशी धरती से एक बार फिर बाहर निकलना, न्यायपालिका से तकरार, भाजपा में आंतरिक कलह और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से बढती तल्खी के साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिल रहे भारी जनसमर्थन से 2024 में मोदी सरकार की फिर से सत्ता में वापसी की उम्मीदें धूमिल होती जा रही हैं।

ऐसे में पहले बीबीसी डाक्यूमेंनट और उसके बाद प्रधानमन्त्री के चहेते कॉरपोरेट गौतम अडानी समूह के खिलाफ अमेरिकी संगठन हिंडनबर्ग की धोखाधड़ी, जालसाजी की रिपोर्ट के धक्के से मोदी सरकार अभी संभल भी नहीं पायी थी कि फ़िनिश ग्रीन लीग की राजनीतिज्ञ और यूरोपीय संसद की सदस्य अल्विना अलामेत्सा ने भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन का मामला उठाकर मोदी सरकार को शर्मसार कर दिया है। 

यूरोपीय संसद की सदस्य अल्विना अलामेत्सा ने कहा कि संविधान का लागू होना भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण है, लेकिन इस दिन के उत्सवों पर देश में वर्तमान में मानवाधिकारों के उल्लंघन का साया छाया हुआ है। अलामेत्सा ने कहा कि उन्होंने हाल ही में पहली बार भारत का दौरा किया, जहां उन्होंने भारत के लोकतंत्र और मानवाधिकारों की स्थिति पर चर्चा करने के लिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, अधिकारियों, पत्रकारों और विद्वानों से मुलाकात की।

उन्होंने कहा कि मैंने भारत में यात्रा के दौरान इन मानवाधिकारों के उल्लंघन को देखा। जब मैं इन मानवाधिकार रक्षकों से मिली, तो मैं हैरान रह गई कि उनमें से कितने बहुत ही प्रतिबंधित परिस्थितियों में, अप्रत्याशित और जोखिम भरे माहौल में काम करते हैं। उनके कार्यालय बंद कर दिए गए हैं; उनके फंड फ्रीज कर दिए गए हैं।

मैं सम्मानित और मेहनती गैर-सरकारी संगठनों से मिली, जिन्हें अब पूरी तरह से अंडरग्राउंड होकर काम करना पड़ता है। कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। कई कार्यकर्ताओं को बिना उचित प्रक्रिया के हिरासत में लिया गया और जो लोग बोलने की हिम्मत करते हैं उनको चुप करा दिया गया।

अलमेत्सा को 26 जनवरी को मनाए जाने वाले भारतीय गणतंत्र दिवस से पहले ‘भारत में संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा का जायज़ा लेना’ विषय पर एक संसदीय ब्रीफिंग में अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। यह एक वर्चुअल इवेंट था। इसमें सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर और सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण और शाहरुख आलम उपस्थित थे। अलमेत्सा ने भारत में कार्यकर्ताओं को कैद किए जाने, अल्पसंख्यकों पर हमला किए जाने और मीडिया के दमन की बढ़ती प्रवृत्ति पर गहरी चिंता व्यक्त की।

उन्होंने कहा कि ये मानव अधिकारों और स्वतंत्रता के क्षरण के संकेतक हैं। पुलिस दुर्व्यवहार और हत्याएं न केवल बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हैं, बल्कि आलोचनात्मक आवाजों को नियंत्रित करने के लिए कार्रवाई का हिस्सा हैं। सत्तावादी ताकतों के उभरने के खिलाफ चेतावनी देते हुए अलमेत्सा कहा कि एक सच्चे लोकतंत्र होने के लिए, भारत सत्तावादी शासन में नहीं पड़ सकता है। भारत में लोगों को अपनी सरकार, न्याय प्रणाली और पूरे समाज से अपने संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा की आवश्यकता है।”

मानव अधिकारों के क्षेत्र में यूरोपीय संघ- भारत सहयोग के बारे में बोलते हुए अलमेत्सा ने कहा कि मानव अधिकारों की रक्षा करना यूरोपीय संघ- भारत साझेदारी के मूल में होना चाहिए। जब किसी देश के भीतर भाषण की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक विरोध खतरे में हो, तो उनके अंतरराष्ट्रीय भागीदारों को सहयोग करना चाहिए और एक-दूसरे को जवाबदेह ठहराना चाहिए।

उन्होंने यूरोपीय संघ और भारत के ‘लंबे विराम’ के बाद ‘मानवाधिकार संवाद की साझा प्रक्रिया’ पर लौटने के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उनके अनुसार, इसके लिए अधिक ठोस सामान्य लक्ष्यों और मील के पत्थरों को तैयार करने की आवश्यकता होगी, साथ ही प्रगति करने के लिए प्रत्येक पार्टी द्वारा किए जाने वाले कार्यों के बारे में अधिक स्पष्टता की आवश्यकता होगी।

उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ और भारत दोनों को एक दूसरे को प्रोत्साहित करने और समर्थन करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मानव अधिकारों को व्यवहार में लाया जा सके। यह भारत और यूरोप में हमारे लोगों के प्रति हमारा कर्तव्य है।

अलमेत्सा का कहना है कि भारत में स्थिति तेजी से बिगड़ रही है फिर भी उम्मीद बनी हुई है। एक्टिविस्ट लड़ते रहते हैं, संगठन काम करते रहते हैं और फ्री मीडिया रिपोर्टिंग करता रहता है। यह सारा काम अल्पसंख्यकों, गरीबों और उन लोगों के लिए है जिन्हें भुला दिया गया है और उनके साथ भेदभाव किया गया है।

फ़िनिश राजनेता ने यह भी कहा कि इस साल मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की पचहत्तरवीं वर्षगांठ है। इसी तरह के घटनाक्रम वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के उत्सव को छायांकित करते हैं, जैसा कि वे इस गणतंत्र दिवस पर भारत में करते हैं। यही कारण है कि दुनिया के लोकतंत्रों के लिए दुनिया के सबसे बड़े आधिकारिक लोकतंत्र के रूप में मिलकर काम करना और भी महत्वपूर्ण हो गया है। भारत इस सहयोग के केंद्र में है। लोकतांत्रिक दुनिया को भारत की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है।

(जे.पी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रयागराज में रहते हैं)

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