चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा-ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं, वीवीपैट सत्यापन की मांग ‘प्रतिगामी’

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का बचाव किया है। आयोग ने ईवीएम को ‘छेड़छाड़ रहित’ बताया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में आयोग ने कहा है- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में तकनीकी उपायों के कारण और ईसीआई की ओर से निर्धारित सख्त प्रशासनिक और सुरक्षा प्रक्रियाओं के कारण छेड़छाड़ संभव नहीं हैं…। इसलिए, ये किसी भी छेड़छाड़ या हेरफेर से सुरक्षित हैं..। चुनाव आयोग ने हलफनामे में ईवीएम डेटा के पूर्ण सत्यापन वीवीपीएटी रिकॉर्ड के जरिए करने का विरोध किया और कहा यह ‘अस्पष्ट और निराधार’ आधार पर ईवीएम और वीवीपैट की कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा करने का प्रयास है।

चुनाव आयोग ने ये हलफनामा गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में दायर किया है, जिस पर वर्तमान में जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही है। अपने जवाब में, चुनाव आयोग ने तर्क दिया है कि सभी वीवीपीएटी पेपर पर्चियों को मैन्युअल रूप से गिनना, जैसा कि सुझाव दिया गया है, न केवल श्रम और समय की मांग वाला होगा, बल्कि ‘मानवीय त्रुटि’ और ‘शरारत’ का भी खतरा होगा। आयोग ने कहा कि यह दरअसल बैलेट पेपर जैसा प्रतिगामी होगा।

मामले में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और कॉमन कॉज ने 2019 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और उसी साल हुए 17वें लोकसभा चुनावों में कथित विसंगतियों की जांच की मांग की थी। इस याचिका में ईवीएम की गिनती को रजिस्टर के रिकॉर्ड के साथ मिलान करने की प्रार्थना की गई थी, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से दायर हालिया याचिका में वीवीपैट रिकॉर्ड के खिलाफ ईवीएम डेटा के सत्यापन की मांग की गई थी।

अदालत ने 2019 की याचिका में नोटिस जारी किया था और इसे तृणमूल कांग्रेस विधायक महुआ मोइत्रा की ओर से दायर एक समान याचिका के साथ टैग करने का निर्देश दिया था, जिसमें 2019 के चुनावों में मतदाता मतदान और अंतिम वोटों की गिनती से संबंधित विवरण प्रकाशित करने की मांग की गई थी।

इसके पहले  2019 लोकसभा चुनाव में ईवीएम वोटों की गिनती में गड़बड़ी को लेकर सुप्रीम में एडीआर ने याचिका दायर की है,जो अभी भी लंबित है। 31 मई, 2019 को प्रकाशित द क्विंट के लेख “370+ सीटों पर ईवीएम वोटों की गिनती बेमेल और चुनाव आयोग ने समझाने से इनकार किया” के आधार पर, एसोसिएशन ने 2019 के लोकसभा चुनावों में डाले गए वोटों और गिने गए वोटों की संख्या के बीच विसंगतियों का हवाला दिया था। फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने 15 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें मांग की गई कि किसी भी चुनाव का अंतिम परिणाम की घोषणा से पहले भारत के चुनाव आयोग (ईसी) को (वोट) डेटा का वास्तविक और सटीक मिलान करने का निर्देश देने वाला एक अदालती आदेश दिया जाए। याचिकाकर्ता ने 2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों से संबंधित आंकड़ों में सामने आई ऐसी सभी विसंगतियों की जांच की भी मांग की है।

चुनाव आयोग द्वारा आयोजित चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर चिंता जताते हुए याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग द्वारा प्रमाणित चुनाव डेटा जारी होने से पहले ही चुनाव परिणाम घोषित करना, चुनाव कराने की मौजूदा प्रणाली में कमज़ोरियां कहीं अधिक गंभीर और चिंताजनक प्रवृत्ति है और इसलिए, इसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस तरह के प्रोटोकॉल से संदेह, भ्रम, संघर्ष और बहुत बदनाम चुनावी प्रक्रिया पैदा होने की संभावना है। सभी रिटर्निंग अधिकारियों से वास्तविक डेटा प्राप्त करने और उसके समाधान से पहले प्रतिवादी नंबर 1 (ईसी) द्वारा परिणामों की घोषणा की जाती है। व्यवस्थित और पारदर्शी तरीके से असंवैधानिक, अवैध,  मनमाना और अन्यायपूर्ण है।

एडीआर द्वारा दायर याचिका में सवाल उठाया गया है कि क्या चुनाव आयोग जनता को इस बात पर गुमराह कर रहा है कि ईवीएम में डाले गए वोटों का डेटा कैसे संकलित किया जाता है? याचिकाकर्ता ने ईसी डेटा में विसंगतियों का आरोप लगाया। कई मौकों पर, चुनाव आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित करने के बाद अपनी वेबसाइट के साथ-साथ ‘माई वोटर्स टर्नआउट ऐप’ नाम के ऐप पर डाले गए वोटों के डेटा को बदल दिया था। याचिका में चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि डेटा में कई बदलाव विसंगतियों को छिपाने का प्रयास हो सकते हैं।

याचिका में कहा गया है कि डाले गए वोटों की वास्तविक संख्या बताने की पद्धति मनमाने ढंग से और बिना किसी स्पष्टीकरण के बदल दी गई… किसी भी बूथ/निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए वोटों की वास्तविक संख्या का प्रकाशन बंद कर दिया गया और सातवें नंबर पर अचानक प्रतिशत का आंकड़ा डाल दिया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में दर्ज की जा रही बड़ी संख्या में अस्पष्ट विसंगतियों को छुपाने के लिए चुनाव का चरण पूरा किया गया था।

विशेषज्ञों की एक टीम ने याचिकाकर्ता के साथ विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में डाले गए वोटों की संख्या और गिने गए वोटों की संख्या के बीच विसंगतियों पर शोध किया। यह शोध चुनाव आयोग की वेबसाइट के साथ-साथ दो दिनों – 28 मई और 30 जून 2019 को ‘माई वोटर्स टर्नआउट ऐप’ पर उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित था।

सुप्रीम कोर्ट की याचिका में उल्लिखित दो आंकड़ों पर याचिकाकर्ता के निष्कर्ष यहां दिए गए हैं:542 निर्वाचन क्षेत्रों में से 347 सीटों पर डाले गए और गिने गए वोटों में विसंगतियां थीं। विसंगतियां 1 वोट से लेकर 1,01,323 वोट तक हैं। 6 सीटें ऐसी हैं जहां वोटों का अंतर जीत के अंतर से ज्यादा है। विसंगतियों की कुल मात्रा कुल मिलाकर 7,39,104 वोटों की है।

मतदान समाप्ति पर पीठासीन अधिकारी फॉर्म 17सी में दर्ज वोटों का लेखा-जोखा तैयार करेगा और इसे एक अलग लिफाफे में ‘रिकॉर्ड किए गए वोटों का खाता’ शब्दों के साथ संलग्न करेगा। पीठासीन अधिकारी मतदान समाप्ति पर उपस्थित प्रत्येक मतदान एजेंट को, उक्त मतदान एजेंट से रसीद प्राप्त करने के बाद फॉर्म 17सी में की गई प्रविष्टियों की एक सच्ची प्रतिलिपि प्रस्तुत करेगा, और इसलिए इसे एक सच्ची प्रति के रूप में सत्यापित करेगा।

चूंकि फॉर्म 17सी मतदान के दिन मतदान समाप्त होने के बाद पीठासीन अधिकारी द्वारा तैयार और हस्ताक्षरित किया जाता है, इसलिए इसे डाले गए वोटों की संख्या से संबंधित सबसे प्रामाणिक दस्तावेज माना जाता है।

याचिकाकर्ता ने उल्लेख किया है कि एडीआर ने आरटीआई आवेदन के तहत फॉर्म 17सी के लिए अनुरोध किया था जो उसे अभी तक नहीं मिला है। इसके अलावा, एडीआर के एक सदस्य को चुनाव आयोग द्वारा मौखिक रूप से सूचित किया गया था कि फॉर्म 17सी को “मतगणना (23 मई 2019) के बाद ईवीएम के साथ सील कर दिया गया है, और इस प्रकार, साझा नहीं किया जा सकता है”।

लेकिन सवाल यह है:मतगणना समाप्त होने के बाद ईवीएम के साथ फॉर्म 17सी को सील क्यों किया जाता है? इससे कौन सा उद्देश्य पूरा होगा?इसके अलावा, यदि फॉर्म 17 सी चुनाव आयोग के पास उपलब्ध नहीं है, तो उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव का अंतिम परिणाम अक्टूबर में कैसे प्रकाशित किया?

याचिका में यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, पेरू, ब्राजील जैसे देशों का उदाहरण भी दिया गया है जहां चुनाव परिणाम सक्षम प्राधिकारी द्वारा सत्यापित किए जाने के बाद घोषित किए जाते हैं।याचिका में ईवीएम-वीवीपैट में हेरफेर की आशंका का जिक्र किया गया है।साथ ही, ईवीएम-वीवीपीएटी में हेरफेर की आशंका पर द क्विंट के एक अन्य लेख का हवाला दिया गया है।

याचिका में ईवीएम-वीवीपैट में हेरफेर की आशंका का जिक्र किया गया है। याचिका में पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन द्वारा लिखे गए पत्र के साथ-साथ ईवीएम-वीवीपीएटी में हेरफेर की आशंका पर द क्विंट के एक अन्य लेख का हवाला दिया गया है, जिन्होंने वीवीपैट के बारे में इसी तरह की चिंता जताई थी।

याचिका में कहा गया है:केवल यह पर्याप्त नहीं है कि चुनाव परिणाम सटीक हों, जनता को भी पता होना चाहिए कि परिणाम सटीक हैं। अगर किसी स्पष्ट घोटाले के अभाव में भी चुनाव विश्वसनीय नहीं हैं तो पूरी चुनावी प्रक्रिया क्षतिग्रस्त हो जाती है। याचिका में आगे बताया गया है कि “इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें (ईवीएम) विशेष रूप से डिजाइनरों, प्रोग्रामर, निर्माताओं, रखरखाव तकनीशियनों आदि जैसे अंदरूनी सूत्रों द्वारा किए गए दुर्भावनापूर्ण परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील हैं।

याचिका में ‘सत्यापित वोटिंग फाउंडेशन’ के ईवीएम पर अंतरराष्ट्रीय तकनीकी विशेषज्ञों का हवाला देते हुए कहा गया है कि मतदाता यह नहीं जान सकता कि अंततः रिपोर्ट किया गया वोट डाले गए वोट के समान है, न ही उम्मीदवार या अन्य लोग मतदान और मतगणना प्रक्रियाओं को देखकर चुनाव की सटीकता में विश्वास हासिल कर सकते हैं। इन मशीनों के साथ वोटों की रिकॉर्डिंग में त्रुटियों या जानबूझकर चुनाव में धांधली का पता लगाने का कोई विश्वसनीय तरीका नहीं है। इसलिए, इन मशीनों का उपयोग करके किए गए किसी भी चुनाव के नतीजे सवालों के घेरे में हैं।

याचिका निम्नलिखित महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाती है और सुप्रीम कोर्ट से उन्हें संबोधित करने का आग्रह करती है:क्या विसंगति डेटा को साफ करने में ईसी के कार्य, इसे उद्देश्यपूर्ण और संतोषजनक तरीके से हल नहीं करना और इसे सार्वजनिक डोमेन में साझा करने से इनकार करना, मनमाना है और संविधान और संबंधित क़ानून के जनादेश और सार्वजनिक नीति के विपरीत है। चुनाव आयोग को किस आधार पर नतीजे घोषित करने चाहिए? वास्तविक या अनुमानित?क्या चुनाव आयोग कर्तव्य से बंधा हुआ है और उसके लिए यह आवश्यक है कि वह अपने द्वारा कराए गए चुनाव में दर्ज विसंगतियों के संबंध में जनता के बीच संदेह दूर करे।क्या चुनाव आयोग चुनाव प्रक्रिया के दौरान फॉर्म 17 सी (मतदान) और फॉर्म 20 (मतदान गिने गए) के तहत वैधानिक डेटा को जनता के साथ साझा करने से इनकार कर सकता है?

द क्विंट की रिपोर्ट में कहा गया था कि द क्विंट ने चुनाव आयोग के दो सेट आंकड़ों का अध्ययन किया। पहला सेट था वोटर टर्न आउट या ईवीएम  में दर्ज की गई वोटिंग और दूसरा सेट था चुनाव 2019 के बाद ईवीएम  में की गई वोटों की गिनती। पहले से चौथे चरण के चुनाव में हमने 373 सीटें ऐसी पाईं, जहां आंकड़ों के दोनों सेट में फर्क नजर आया। आयोग के आंकड़े कहते हैं कि तमिलनाडु की कांचीपुरम सीट पर 12,14,086 वोट पड़े। लेकिन जब सभी ईवीएम  की गिनती हुई तो 12,32,417 वोट निकले।यानी जितने वोट पड़े, गिनती में उससे 18,331 वोट ज्यादा निकले, कैसे? निर्वाचन आयोग के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं।

निर्वाचन आयोग के मुताबिक, तमिलनाडु की ही दूसरी सीट धर्मपुरी पर 11,94,440 वोटरों ने मतदान किया। लेकिन जब गिनती हुई, तो वोटों की संख्या में 17,871 का इजाफा हुआ और कुल गिनती 12,12,311 वोटों की हुई। ईवीएम  ने ये जादू कैसे किया, आयोग  को नहीं मालूम।

निर्वाचन आयोग के ही आंकड़े के मुताबिक, तमिलनाडु की तीसरी संसदीय सीट श्रीपेरुम्बुदुर के ईवीएम  में 13,88,666 वोट पड़े. लेकिन जब गिनती हुई तो वोटों की संख्या 14,512 बढ़ गई और 14,03,178 पर पहुंच गई। इस चमत्कार का भी आयोग  के पास कोई जवाब नहीं।

आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की मथुरा सीट के ईवीएम  में कुल 10,88,206 वोट पड़े, लेकिन 10,98,112 वोटों की गिनती हुई। यानी यहां भी वोटों में 9,906 की बढ़ोत्तरी, कैसे? आयोग अब भी चुप है।

पहले चार चरण में 373 सीटों के लिए वोट पड़े। वोटों की गिनती के बाद इनमें 220 से ज्यादा सीटों पर मतदान से ज्यादा वोट काउंट दर्ज किये गए। बाकी सीटों पर वोटों की संख्या में कमी पाई गई। द क्विंट ने पूछा तो चुनाव आयोग ने वोटिंग के सारे आंकड़े हटा लिए। द क्विंट ने सिर्फ पहले चार चरणों में वोटिंग में असमानता के बारे में पूछा था। इनके बारे में निर्वाचन आयोग की वेबसाइट में साफ-साफ लिखा था – “Final Voter turnout of Phase 1,2,3 and 4 of the Lok Sabha Elections 2019”।

27 मई  को द क्विंट ने मेल कर निर्वाचन आयोग से आंकड़ों में फर्क के बारे में पूछा। निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने द क्विंट से सम्पर्क भी किया और कहा कि जल्द हमें जवाब मिल जाएगा। उसी दिन हमने पाया कि निर्वाचन आयोग की आधिकारिक वेबसाइट eciresult.nic.in से “final voter turnout” का टिकर अचानक गायब हो गया। जब हमने निर्वाचन आयोग से पूछा कि वेबसाइट के टिकर से आंकड़े क्यों हटाए गए, तो आयोग ने कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा।

सवाल है, और बड़ी आश्चर्यजनक बात है कि नतीजों के ऐलान के चार दिन बाद भी (27 मई को) आयोग, द क्विंट से कहता है कि अभी वोटिंग के आंकड़े अधूरे हैं? कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक, पोलिंग बूथ के प्रेसाइडिंग अफसर को हर दो घंटे पर अपने सीनियर अधिकारी को वोटिंग का आंकड़ा बताना होता है। तर्कों की बात करें, तो इस हालत में वोटिंग की जानकारी अपलोड करने में ज्यादा से ज्यादा कुछ दिन ही लगने चाहिए।

चार राज्य हैं तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश जहां गिनती किये गए वोटों की संख्या, वोटिंग की संख्या से ज्यादा है जहां गिनती किये गए वोटों की संख्या, वोटिंग की संख्या से ज्यादा है। मथुरा सीट से बीजेपी की हेमा मालिनी विजयी रहीं। ईवीएम ने उनके पक्ष में 6,67,342 वोट दिखलाए, जबकि दूसरे नम्बर पर आए राष्ट्रीय लोक दल के उम्मीदवार नरेन्द्र सिंह को 3,77,319 वोट मिले। औरंगाबाग सीट से बीजेपी के विजयी उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह के पक्ष में ईवीएम में 4,29,936 वोट पड़े, जबकि हारे हुए उम्मीदवार हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के उपेन्द्र प्रसाद के खाते में 3,58,611 वोट आए। पूर्व गृह राज्य मंत्री और बीजेपी नेता किरेन रिजिजू को अरुणाचल प्रदेश संसदीय सीट से 63.02% वोट शेयर के साथ जीत हासिल हुई। जबकि कांग्रेस उम्मीदवार नाबम तुकी के खाते में महज 14.22% वोट शेयर थे।

इससे पहले द क्विंट ने नवंबर 2018 में मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव के दौरान भी वोटों में ऐसी ही असमानता के बारे में खबर दी थी। राज्य के 230 विधानसभा सीटों में 204 सीटों पर वोटिंग की संख्या और वोट काउंट की संख्या में अंतर पाया गया था।

दरअसल ईवीएम में एक भी वोट का फर्क नहीं होना चाहिए। और अगर ऐसा होता है तो निर्वाचन आयोग के अधिकारी को फौरन इसके बारे में अपने सीनियर अधिकारी को सूचना देनी चाहिए। ये बेहद गंभीर मसला है और आयोग को जनहित में जल्द से जल्द अपनी सफाई देनी चाहिए, ताकि चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और अखंडता बनी रहे।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार एवं कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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