मोदी राज में डीजल पर 820 प्रतिशत और पेट्रोल पर 258 फीसद बढ़ी एक्साइज ड्यूटी

जब से केंद्र में मोदी सरकार ने सत्ता संभाली है, तब से अब तक लगभग पिछले साढ़े छह साल में डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 820 फीसद और पेट्रोल पर 258 प्रतिशत बढ़ाई गई है। सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से 21 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा इकट्ठा किए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों को लेकर चिंता जताते हुए यह बात कही है।

सोनिया गांधी ने कहा कि डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 820 फीसद बढ़ाई गई है, और पेट्रोल पर 258 प्रतिशत। सोनिया गांधी ने लिखा कि यही वजह है कि पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं। कई जगहों पर पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा बिक रहा है।

कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने पत्र में लिखा है कि कीमतें ऐतिहासिक एवं अव्यावहारिक हैं। सोनिया गांधी ने कहा कि जिस तरह जीडीपी गोता खा रही है और ईंधन के दाम बेतरतीब बढ़ रहे हैं, सरकार अपने आर्थिक कुप्रबंधन का ठीकरा पिछली सरकारों पर फोड़ने में लगी है। कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार लोगों की तकलीफों को बढ़ाकर मुनाफाखोरी कर रही है। डीजल के निरंतर बढ़ते दामों ने करोड़ों किसानों की परेशानियों को और अधिक बढ़ा दिया है। यह बढ़ोतरी ऐसे समय पर की जा रही है, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें मध्यम स्तर पर ही हैं। सही बात तो यह है कि कच्चे तेल की ये कीमतें यूपीए सरकार के कार्यकाल से लगभग आधी हैं।

पेट्रोल और डीज़ल को डिरेगुलेटेड कर दिया गया है, यानी इसके दामों पर सरकार का नियंत्रण खत्म कर दिया गया है। इसके पीछे तर्क था कि सरकार तेल पर सब्सिडी जारी रखे हुए थी, भले ही वैश्विक बाजार में कच्चे तेल के दाम आसमान छू जाएं, इस तरह सरकारी तेल कंपनियों को घाटा उठाना पड़ता था, लेकिन सरकार ने उपभोक्ता का ध्यान रखा था। अब इसका उलटा हो रहा है। कच्चा तेल चाहे जितना कम हो जाए केंद्र और राज्य सरकारें अपना राजस्व सुरक्षित रखने के लिए उस पर टैक्स का स्लैब बढ़ा दे रही हैं। अगर कच्चे तेल का दाम गिरता है, तो उपभोक्ता तक इसका लाभ नहीं पहुंचता और दाम बढ़ता है तो भी सरकार बढ़ा टैक्स स्लैब कम नहीं करती है। नतीजतन पेट्रोल और डीज़ल का खुदरा भाव लगातार बढ़ता जाता है और केंद्र और राज्य सरकारों की मुआफखोरी बढ़ती जाती है।

दरअसल पिछले 36 महीनों से अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट हुई है, जो कि जनवरी 2018 के आठ फीसदी से गिरकर जनवरी 2020 में तीन फीसदी पर पहुंच गई और इस अवधि के बाद तो पहली बार अर्थव्यवस्था ने ऐसा गोता खाया है कि वह माइनस में पहुंच गई। ऐसे में हाल-फिलहाल में अर्थव्यवस्था में सुधार के आसार नहीं हैं, और सरकार पैसे के लिए दूसरे रास्ते तलाश रही है और सबसे आसान रास्ता तेल पर टैक्स बढ़ाना ही उसे नजर आया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सरकार का खर्च ही पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स से चल रहा है।

लगभग 10 साल पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर चली गई थी। अप्रैल 2020 में ऐसा भी समय आया जब यह 20 डॉलर से भी नीचे आ गई। आज कच्चा तेल करीब 52 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर बिक रहा है।

लगभग 10 साल पहले ही सरकार ने पेट्रोल से सब्सिडी खत्म की थी। यानी उसकी कीमत बाजार के हवाले कर दी गई थी। उस दौरान जब कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर मिल रहा था तो भारत में पेट्रोल 60 रुपये प्रति लीटर के आसपास मिल रहा था। इस प्रकार पिछले साल जब कच्चा तेल 20 डालर से भी नीचे आया तो पेट्रोल की कीमत तब से काफी कम हो जानी चाहिए थी, लेकिन यह 60 रुपये प्रति लीटर के करीब ही घूम रही थी, क्योंकि सरकारी घाटे की भरपाई के लिए इस पर सरकार लगातार टैक्स बढ़ाती गई। 2014 में सब्सिडी के दायरे से बाहर निकले डीजल के मामले में भी कहानी कमोबेश ऐसी ही है।

यह दावा कि पेट्रोल-डीजल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव के हिसाब से तय होती है, पूरी तरह भ्रामक है। ये काफी हद तक केंद्र और राज्य सरकारों की मर्जी के हिसाब से तय होती हैं। इस मर्जी के पीछे आर्थिक और राजनीतिक, दोनों तरह के समीकरण होते हैं।

पिछले साल जब कच्चे तेल की कीमतें धड़ाम हो रही थीं तो केंद्र ने पेट्रोल की कीमतों पर एक्साइज ड्यूटी में जबर्दस्त बढ़ोतरी कर दी। मार्च और मई में हुई इस बढ़ोतरी के जरिए इस टैक्स को 19.98 से बढ़ाकर 32.98 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया। इसी तरह डीजल पर भी एक्साइज ड्यूटी 15.83 से बढ़ाकर 31.83 रुपये प्रति लीटर कर दी गई। इसी दौरान राज्य सरकारों ने भी इन दोनों ईंधनों पर लगने वाला शुल्क यानी वैट को बढ़ा दिया। नतीजा यह हुआ कि कच्चे तेल के भाव में इतनी गिरावट के बावजूद पेट्रोल-डीजल की कीमतें उतनी ही रहीं। जब कच्चे तेल की कीमत कम हुई थी तब पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों को कम न करके इन पर एक्साइज और वैट बढ़ा दिए गए थे, लेकिन अब जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत बढ़ रही है तो पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले टैक्स को स्थिर रखा जा रहा है।

2014 में जब मोदी सरकार केंद्र की सत्ता में आई थी तो पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी क्रमश: 9.48 और 3.56 रुपये प्रति लीटर हुआ करती थी। आज यह आंकड़ा 32.98 और 31.83 हो चुका है।

वित्‍त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट में डीजल और पेट्रोल पर कृषि सेस लगाने का एलान किया। पेट्रोल पर ढाई रुपये और डीजल पर चार रुपये प्रति लीटर कृषि सेस लगाने का निर्णय लिया गया है। हालांकि निर्मला सीतारमण ने कहा कि इसकी वजह से उपभोक्ता की जेब पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा, क्योंकि दोनों ईंधनों पर एक्साइज ड्यूटी में नए सेस के बराबर ही कटौती कर दी जाएगी। दरअसल पेट्रोल और डीजल के हर लीटर पर एक्साइज ड्यूटी से साढ़े छह रुपये की रकम को बाहर करने के पीछे केंद्र की एक सोची-समझी रणनीति है। टैक्स की आय को उसे राज्यों के साथ साझा करना पड़ता है, जबकि सेस के मामले में ऐसा कोई बंधन नहीं होता।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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