मुरादाबाद में एक सरकारी यूनिवर्सिटी बनाने का वादा, जो सबने तोड़ा

आज के दौर में शिक्षा का महत्व बताने वाली पुरानी कहावत है, “जरूरी नहीं रौशनी चिरागों से हो,शिक्षा से भी घर रौशन होते हैं।”

इसे मुरादाबाद का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि दुनियाभर में पीतलनगरी के नाम से मशहूर इल्म के शहर मुरादाबाद को 47 साल बाद भी कोई सरकारी यूनिवर्सिटी नहीं मिल सकी। वायदों के दौर को यदि देखा जाए तो लब्बोलुआब में आकर राज्य सरकार ने पहली बार साल 2017 में सत्ता में आने पर मुरादाबाद में एक सरकारी यूनिवर्सिटी और मेडिकल कालेज बनाने की सौगात दी थी लेकिन सरकारी वायदों में वज़न ही कितना होता है। अन्य वादों की तरह इसे भी सरकार ने भुला दिया।

वायदों में खो गया संकल्प

22 अक्टूबर, 2017 को मुरादाबाद के मंगूपुरा में एक विद्यालय के उद्घाटन के लिए आए डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने कहा था कि मुरादाबाद में विश्वविद्यालय का निर्माण होगा। यह सरकार की घोषणा नहीं बल्कि संकल्प है और यह होकर रहेगा। इस दौरान उन्होंने कहा कि मुरादाबाद की नगरी भामाशाह की नगरी है। यहां विकास की असीमित संभावनाएं हैं। गौर करने वाली बात है कि इस बयान के कुछ समय बाद जब उपमुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा ने स्पष्ट किया कि “मुरादाबाद में सरकारी विश्वविद्यालय सरकार के एजेंडे में नहीं है”। पूर्व में उनके द्वारा की गई घोषणा की याद दिलाए जाने पर डिप्टी सीएम ने कहा कि कुछ निजी क्षेत्र के लोगों ने मुरादाबाद में निजी विश्वविद्यालय खोलने की पहल की थी। वार्ता चल रही है, यदि वह मुरादाबाद में इच्छुक होंगे तो सरकार सहयोग करेगी। डिप्टी सीएम ने यह भी कहा कि सरकारी और निजी विश्वविद्यालय में कोई फर्क नहीं होता।

प्रदेश में इतनी बड़ी जिम्मेदारी सम्भाल रहे नेता का ऐसा ब्यान क्षोभ भरा था। मुरादाबाद मंडल में करीब ढाई सौ राजकीय, अशासकीय और निजी महाविद्यालयों में लगभग ढाई लाख विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, लेकिन कोई सरकारी विश्वविद्यालय नहीं होने की वजह से सभी विद्यार्थियों को समस्या के समाधान के लिए बरेली स्थित महात्मा ज्योतिबा रुहेलखंड विश्वविद्यालय(एमजेपीआरयू) के चक्कर लगाने पड़ते हैं।

आज़म अंसारी कई बार उठा चुके हैं विश्वविद्यालय की मांग

मुरादाबाद में पीतल उद्योग के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए लगातार आवाज बुलंद कर रहे मुरादाबाद ब्रास कारखाना दार एसोसिएशन के चेयरमैन आज़म अंसारी कहते हैं कि “बड़ी ग्लानि की बात है करीब 45 वर्षों से मुरादाबाद में राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग उठती रही है लेकिन फाइलों तक ही सिमटकर रह जाती है।” उनका कहना है कि प्रदेश में जिसकी भी सरकार रही लगातार यहां के जनप्रतिनिधियों ने यूनिवर्सिटी बनाने की मांग उठाई है लेकिन इसके बावजूद भी एक सरकारी यूनिवर्सिटी नहीं बन सकी। आज़म अंसारी ने सरकारी यूनिवर्सिटी बनाने के लिए जितना प्रयास किया शायद ही किसी प्रतिनिधि ने किया हो। उन्होंने इसके लिए कई बार शिक्षा मंत्रालय को भी पत्र लिखकर सूचित किया कि ऐतिहासिक शहर मुरादाबाद में एक सरकारी यूनिवर्सिटी बननी चाहिए।

एक पत्र में आज़म अंसारी ने सरकार को लिखा -“विश्वविख्यात पीतल नगरी, मुरादाबाद सम्पूर्ण विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है। इस जनपद से बड़े स्तर पर निर्यात होता है और 5 लाख से अधिक हस्तशिल्पी अपनी कला एवं कलाकृतियों के माध्यम से भारत सरकार व राज्य सरकार को राजस्व के रूप में करोड़ों रुपया कमाकर देते हैं।

नामचीन हस्तियों में मुरादाबाद जनपद को सूफी अम्बा प्रसाद, नवाच मज्जू अली खॉ, जिगर मुरादाबादी, पीयूष चावला आदि विश्व प्रसिद्ध हस्तियों ने इस धरती पर जन्म लिया है, परन्तु इस हस्तशिल्पी बाहुल्य क्षेत्र को सरकारों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा वंचित रखा गया है। मुरादाबाद मण्डल जिसमें अमरोहा, बिजनौर, रामपुर, सम्भल जैसे औद्योगिक जिले आते हैं। इसके बावजूद भी इस मण्डल में विश्वविद्यालय का न होना सरकार की उदासीनता को दर्शाता है।”

प्राइवेट यूनिवर्सिटियां करती हैं मनमानी

वहीं नगर के पुराने प्रतिष्ठित पुस्तक विक्रेता रामा बुक डिपो के मालिक कहते हैं कि इस बात से नजरें नहीं चुराई जा सकतीं कि यूनिवर्सिटी बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं है लेकिन यदि सरकार अपनी पूरी मंशा से पूरे विश्वास के साथ इस प्रोजेक्ट पर काम करे तो यह जरूर पूरा हो जाएगा। आज मंडल में सरकारी यूनिवर्सिटी न होने से शहर के युवाओं को प्राइवेट यूनिवर्सिटी का रुख करना पड़ रहा है। निजी विश्वविद्यालयों की फीस वसूली का जिक्र करते हुए एक कर्मचारी बताते हैं, टीएमयू, आईएफटीएम जैसी यूनिवर्सिटी एमबीबीएस और इंजीनियरिंग के नाम पर करोड़ों रुपए बटोर रही हैं लेकिन सरकार की ओर से इन पर कोई लगाम नहीं लग रही है। जिसका खामियाजा लोकल युवाओं के ग़रीब माता-पिता को उठाना पड़ रहा है।

लालफीताशाही के चलते नहीं बन सकी सरकारी यूनिवर्सिटी

यह तो कहना बेबुनियाद होगा कि यूनिवर्सिटी के लिए किसी सरकार ने कोई प्रयास नहीं किया। प्रयास तो किए गए लेकिन सफल नहीं हो पाए। दरअसल सरकारी यूनिवर्सिटी बनाने की मांग सबसे पहले मुरादाबाद में ही उठी थी लेकिन 1975 में मुरादाबाद में न बनकर यह यूनिवर्सिटी रूहेलखंड, बरेली में चली गई। इसके बाद भी लगातार यूनिवर्सिटी बनाने के लिए जनप्रतिनिधियों ने चुनाव के दौरान मांग उठाई। उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने भी सत्ता में आने पर यूनिवर्सिटी बनाने का वादा किया लेकिन ऐन वक्त पर मुकरने से यह यूनिवर्सिटी भी सहारनपुर में चली गई। नगर के वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश बताते हैं कि “सरकारों की लालफीताशाही के चलते आज तक मुरादाबाद में सरकारी यूनिवर्सिटी नहीं बन पाई। उनका कहना है कि स्थानीय भू माफियाओं के चलते यूनिवर्सिटी बनने की जगह कई बार तय होती रही लेकिन मोटी दलाली और मलाई मारने से फुर्सत मिले तब ना। मुरादाबाद में बनने वाली यूनिवर्सिटी अन्य जिलों में मंजूर हो गईं।”

सीएम योगी ने नवंबर 2021 में प्रस्ताव भेजने के लिए कहा था

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 24 नवंबर 2021 को मुरादाबाद में अपने भ्रमण के दौरान इसका प्रस्ताव तैयार करने को कहा था। इसके बाद तत्कालीन कमिश्नर यशवंत राव और जिलाधिकारी राकेश कुमार सिंह सक्रिय हुए। नगर विधायक रितेश गुप्ता ने भी इसके लिए पैरवी की थी। पहले उच्च शिक्षाधिकारी बरेली ने अपनी आख्या दी। इसके बाद जमीनी प्रस्ताव के लिए तत्कालीन एसडीएम सदर श्रद्धा शांडिल्यान ने नक्शा तैयार करवाया। भूमि की पैमाइश के बाद यह निकल कर सामने आया था राजकीय पॉलीटेक्निक में 40.87 एकड़ जमीन है इससे 20.95 एकड़ जमीन पर सरकारी यूनिवर्सिटी का निर्माण किया जा सकता है। जिलाधिकारी ने अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा को यह प्रस्ताव भेजा था। दिसंबर 2020 में मुरादाबाद में विश्व विद्यालय के लिए राजकीय पॉलीटेक्निक में स्थित जमीन का प्रस्ताव बना कर शासन को पिछले साल ही भेज दिया गया था।

छात्रों को मिलेगी बड़ी राहत

यदि यह प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो ढाई लाख छात्रों को बड़ी राहत मिल सकती है। मुरादाबाद मंडल में मुरादाबाद के अलावा रामपुर, अमरोहा, संभल और बिजनौर जनपद के 334 महाविद्यालयों में लगभग ढाई लाख विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। अच्छी-खासी संख्या में प्राइवेट यूनिवर्सिटी होने के बावजूद भी सरकारी विश्वविद्यालय की कमी विद्यार्थियों को अखरती है। छोटी से छोटी समस्या के लिए भी रूहेलखंड यूनिवर्सिटी के चक्कर लगाने पड़ते हैं। हिन्दू कॉलेज के प्राचार्य डॉ सत्यव्रत सिंह रावत का कहना है कि “नगर में सरकारी यूनिवर्सिटी नहीं होने से विद्यार्थियों को परेशानी तो होती ही है इसके साथ-साथ शिक्षा सम्बन्धी कार्यों में देरी भी होती है।”

 (प्रत्यक्ष मिश्रा स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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