हर मोर्चे पर फेल प्रधानमंत्री के 4 एल

भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी परसों देश से मुखातिब हुए और चार “L”का महत्व जनता को समझाया।

1.Land

2.Labour

3.Law

4.Liquidity

मुझे नहीं पता कि प्रधानमंत्री जी की क्या मंशा है और क्या करना चाहते हैं मगर इन चारों पैरामीटर के हिसाब से जो दृश्य देश मे उपलब्ध है उसको ठीक से समझना चाहिए।

1.Land-

भूमि अधिग्रण कानून को लेकर विवाद पूरे देश में पहले से ही है। भारत माला परियोजना के तहत अमृतसर से लेकर जामनगर तक एक्सप्रेस वे का टेंडर पास हो चुका है और जमीन न देने के लिए जालोर से लेकर बीकानेर तक के किसान आंदोलित है। पिछले भाषण में मोदी जी ने कहा कि गांवों की मैपिंग करवाएंगे!कोरोना संकट से यह तो साफ हो गया कि पूंजीवादी मॉडल तकरीबन जमीन पर आ चुका है और जमीन ही वापस खड़ा कर सकती है। भारत सरकार के पास पूँजी के तौर पर अब जमीन ही बची है और पूंजीवादी मॉडल को दुबारा खड़ा करने के लिए विदेशी कंपनियों को कौड़ियों के दाम जमीनें उपलब्ध करवानी पड़ेगी। साफ तौर से जाहिर हो रहा है कि सरकार की नजर जमीन पर है।

2.Labour-

   भारत की गरीबी सस्ते मजदूर उपलब्ध करवाने की फैक्ट्री है।जहां जितनी गरीबी ज्यादा होती है वहां मजदूरों का शोषण ज्यादा होता है। भारत मे तकरीबन 43 करोड़ मजदूर हैं जिसमें से 4 करोड़ संगठित व 39 करोड़ असंगठित क्षेत्रों से हैं!मतलब श्रम कानून असंगठित मजदूरों के लिए पूर्णतया लागू करवाना सिस्टम के लिए संभव नहीं है। करोड़ों मजदूर गृहक्षेत्र से पलायन किये हुए होते हैं जिसका नजारा अभी घर वापसी को लेकर देश के सामने आया है। अब जमीन के साथ मजदूर ही पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को कंधा दे सकते हैं इसलिए 8 घंटे के बजाय 12 घंटे मजदूरों को काम लिया जाएगा। श्रम कानूनों को पिछले कई सालों से कमजोर किया जा रहा था और इसी गति से आगे बढ़ते रहे तो मजदूरों की जिंदगी अंग्रेजों के समय के गुलामों की तरह बनती नजर आएगी।

3.Law-

मजदूरों को लेकर तो कानून कमजोर किये ही जा रहे हैं उनके नागरिक अधिकारों को भी कमजोर किया जाने लगा है। हड़तालों को सख्ती से तोड़ा जा रहा है, ट्रेड यूनियन के नेताओं को मुकदमों की धमकियों से डराया जाता है! जो भी कानून पूंजीवादी मॉडल को दोबारा खड़ा करने में अड़चन बनेगा उसको संशोधित किया जाएगा या बदला जाएगा। देशहित में बताकर नागरिक अधिकारों का हनन करने वाली बंदिशें थोपी जाएंगी!

4.Liquidity-

  वैसे तो अर्थव्यस्था को लेकर मौद्रिक तरलता की निगरानी व विश्लेषण का कार्य भारतीय रिज़र्व बैंक है जो स्वतंत्र निकाय है मगर मोदी जी ने जोर दिया है तो समझ लीजिए अब निर्णय उसी के अनुरूप होंगे। वैसे एक बात यह भी है कि जितनी भी केंद्र सरकार की तरफ से राहत पैकेज की घोषणा की गई है उसका ज्यादातर हिस्सा उद्योगपतियों के हवाले ही होगा क्योंकि पूरे सिस्टम की आंखों पर पट्टी बांधकर यह सलाह देने वाले बुद्धिजीवी इनके पास हैं कि देश की अर्थव्यवस्था को सिर्फ उद्योगपति ही चांद पर ले जा सकते हैं। बाकी यह साफ है कि जनता के हाथ में जब तक पैसे नहीं आएंगे अर्थात जनता की क्रय शक्ति बढ़ाये बिना औद्योगिक उत्पादन का महत्व उतना ही है जितना एक माँ द्वारा एक बेटे के लिए सौ रोटियां बनाकर रखना। जब बेटा 2 रोटी ही खा पायेगा और 98 यूँ ही पड़ी रहेंगी तो माँ अपने पति से राइट ऑफ के लिए अर्थात आटा खराब होने के कारण जो पैसे बर्बाद हुए हैं वो माफ करने को कह देगी।

सरकारों की वित्तीय जवाबदेही को लेकर मोदी जी से प्रेरणा लेते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने “मुख्यमंत्री कोरोना रिलीफ फण्ड”का डेटा जनता के सामने रख दिया है और उम्मीद की जानी चाहिए प्रधानमंत्री का निवेदन मानते हुए “पीएम रिलीफ केअर फण्ड”के सदस्यों से लेकर हर राज्य के मुख्यमंत्री इस दिशा में जवाबदेही प्रस्तुत करेंगे!

(मदन कोथुनियां स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल जयपुर में रहते हैं।)

मदन कोथुनियां
Published by
मदन कोथुनियां