देश के किसान 26-27 नवंबर को करेंगे राजधानी दिल्ली पर चढ़ाई!

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने कृषि विरोधी तीनों कानूनों के खिलाफ आंदोलन जारी रखने का एलान किया है। यह आंदोलन क्रमिक तौर से चलाए जाएंगे। संगठन ने 2 अक्टूबर से देश भर में किसानों के बड़े विरोध अभियानों की घोषणा की है। यह अभियान 26-27 नवंबर को ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन से संपन्न होंगे। संगठन ने कहा कि किसानों ने केंद्र सरकार के इन तीन काले कानूनों को नकार दिया है। पिछले दिनों बीस राज्यों में डेढ़ करोड़ किसान, आंदोलन के दौरान सड़कों पर उतरे।

दिल्ली प्रेस क्लब में मीडिया से बात करते हुए एआईकेएससीसी के संयोजक वीएम सिंह ने विरोध अभियानों की रूपरेखा बताई। उन्होंने कहा कि 2 अक्टूबर को देश भर के किसान उन पार्टियों और जनप्रतिनिधियों के बहिष्कार का संकल्प लेंगे, जिन्होंने इन किसान विरोधी कानूनों का विरोध नहीं किया। पंजाब के किसान संगठनों द्वारा रेल रोको आंदोलन का आह्वान किया गया है। इसके साथ ही अगले महीने 6 अक्टूबर को हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला के घर के सामने धरना और उनके इस्तीफे की मांग की जाएगी। कर्नाटक के किसान संगठनों द्वारा केंद्र और राज्य सरकार के किसान विरोधी कानूनों की रोक की अपील भी की जाएगी। उन्होंने बताया कि ये राज्य स्तरीय स्थानीय विरोध अन्य केंद्रीय कार्यक्रमों के साथ आयोजित होंगे।

वीएम सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार के किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ गांव सभा में प्रस्ताव भी लाए जाएंगे। 14 अक्टूबर को देश के किसान एमएसपी अधिकार दिवस के रूप में मनाएंगे और सरकार के इस झूठ का खुलासा करेंगे कि किसानों को स्वामीनाथन आयोग के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल रहा है। इसके बाद देश भर के किसान राष्ट्रीय विरोध के रूप में 26 और 27 नवंबर को दिल्ली में संगठित होंगे।

उन्होंने भारत के सभी किसानों से ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया, ताकि केंद्र सरकार किसानों के भविष्य और जीविका पर किए जा रहे अमानवीय हमले को वापस लेने के लिए मजबूर हो सके। उन्होंने कहा कि एआईकेएससीसी ने संकल्प लिया है कि जब तक देश के किसान नहीं जीत जाते तब तक संघर्ष जारी रहेगा।

स्वराज अभियान के संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा कि जब तक ये तीनों कानून वापस नहीं लिए जाते, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा, क्योंकि केंद्र सरकार इन तीनों किसान विरोधी कानूनों को आगे बढ़ा रही है और एमएसपी/सरकारी खरीद पर गलत जानकारियां दे रही है। एआईकेएससीसी किसानों के संकल्प को आगे बढ़ाते हुए इन कानूनों का अमल नहीं होने देगी। एआईकेएससीसी केंद्र सरकार से अपील करती है कि वह किसानों की मांगों का सम्मान करे और इन्हें अमल होने से रोक दे। वह राज्य सरकारों और उन विपक्षी दलों से, जिन्होंने किसानों के पक्ष का समर्थन किया है, अपील करती है कि वे राज्यों द्वारा इन कानूनों के अमल न होने देने के कानूनी तरीके ढूंढ निकालें।

एआईकेएससीसी के हन्ना मुल्ला और पुरुषोत्तम शर्मा ने राज्य विधानसभाओं से अपील की कि वे प्रस्ताव पारित कर घोषित करें, क्योंकि यह देश के संघीय ढांचे पर और किसानों के अधिकारों पर गंभीर हमला है, इसलिए वे इसे अमल नहीं करेंगी।

उन्होंने कहा कि इन तीन किसान विरोधी काले कानूनों के खिलाफ एआईकेएससीसी अपने संघर्ष को और तेज करेगी। एआईकेएससीसी की बहुत सारी राज्य इकाइयों ने गांव से ब्लाक स्तर तथा मंडियों में विरोध सभाएं सम्मेलन आयोजित कर केंद्र सरकार द्वारा किसानों पर किए जा रहे हमले पर शिक्षित करने, सरकार के धोखे को उजागर करने, क्रमिक और नियमित भूख हड़तालें चलाने आदि का निर्णय लिया है।

उन्होंने बताया कि एआईकेएससीसी अपनी राज्य इकाइयों और विभिन्न संगठनों के साथ समन्वय करते हुए पंजाब, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, कर्नाटका, तमिलनाडु, तेलंगाना के आंदोलनों के साथ भी समन्वय करते हुए आंदोलन के आगे के कदमों की घोषणा करेगी और इस बीच वह सभी राज्य स्तर पर तय कार्यक्रमों और आंदोलनों का समर्थन और घोषणा करना चाहती है।

वीएम सिंह ने देश भर के किसानों, कृषि मजदूरों और आमजनों को 25 सितंबर के ऐतिहासिक भारत बंद और प्रतिरोध कार्यक्रमों की सफलता के लिए बधाई दी। उन्होंने केंद्र सरकार के किसान विरोधी और जन-विरोधी कानून और नीति के विरूद्ध प्रतिरोध का समन्वय करने के लिए सभी संगठनों की सराहना की है। उन्होंने कहा कि इतिहास में पहली बार देश भर के किसानों ने केंद्रीय कानून पारित होने के पांच दिन के अंदर ऐसा विरोध आयोजित किया है। यह तत्कालिक विरोध किसानों के जीवन और जीविका पर हो रहे आघात के विरूद्ध, किसानों के गुस्से की झलक 20 राज्यों में प्रदर्शित हुई। एआईकेएससीसी से सबंद्ध संगठनों ने ‘चक्का जाम’ धरना तथा कानून की प्रतियां जलाकर 10 हजार से ज्यादा स्थानों पर करीब 1.5 करोड़ किसानों की भागीदारी कराई।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार एक गलत धारणा प्रस्तुत कर इस विरोध को केवल उत्तर भारत में केंद्रित दर्शाने के प्रयास में है, इस बंद और विरोध के अखिल भारतीय चरित्र का असर दक्षिणतम प्रांत तमिलनाडु में भी दिखा, जिसमें 300 से अधिक स्थानों पर 35 हजार से ज्यादा किसान सड़कों पर उतरे और राज्य की भाजपा की मित्र सरकार ने 11,000 से ज्यादा को गिरफ्तार किया। अन्य कई संगठनों और असंगठित किसानों द्वारा भी बंद में भाग लेने की खबर है। इस बंद ने स्पष्ट रूप से दिखा दिया कि देश के किसानों ने केन्द्र सरकार के इन तीन काले कानूनों को नकार दिया है।

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