समिति गठित करने के सुप्रीम कोर्ट के प्रस्ताव को किसान संगठनों ने ठुकराया

संयुक्त किसान मोर्चा ने उच्चतम न्यायालय द्वारा कृषि कानूनों पर विवाद को सुलझाने के लिए समिति गठित करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है जिससे तीन नए कृषि कानूनों पर सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच जारी संघर्ष को खत्म करने के उच्चतम न्यायालय की कोशिश को बड़ा झटका लगा है। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा जारी बयान में साफ कहा है कि उसे कृषि कानूनों को वापस लेने से कम की कोई शर्त मंजूर नहीं है और इसलिए कानूनों की वापसी से पहले उसे किसी से कोई बातचीत में दिलचस्पी नहीं है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित की जाने वाली समिति से खुद को दूर रखने का फैसला किया है। मोर्चा ने सोमवार देर शाम एक बयान जारी कर कहा कि किसी भी आंदोलन में शामिल एक भी किसान संगठन इस समिति से बात नहीं करेगा।

संयुक्त किसान मोर्चा के डॉ. दर्शन पाल द्वारा जारी प्रेस नोट में कहा गया है कि किसान कानूनों के खिलाफ लड़ाई की अगुवाई करने वाले सभी किसान संगठन अपने इस फैसले पर एकमत हैं कि कानूनों को तत्काल रद्द किया जाना चाहिए। हालांकि सभी संगठन माननीय उच्चतम न्यायालय के लिए बहुत सम्मान व्यक्त करते हैं, क्योंकि उन्हें  समस्या की समझ है और आज सुनवाई के दौरान कोर्ट द्वारा किसानों के प्रति व्यक्त किए गए शब्द सुखद है।

हालांकि सभी संगठन माननीय उच्चतम न्यायालय के कृषि कानूनों के कार्यान्वयन को स्टे करने के सुझावों का स्वागत करते हैं लेकिन वे सामूहिक रूप से और व्यक्तिगत रूप से माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त की जाने वाली समिति के समक्ष किसी भी कार्यवाही में भाग लेने के इच्छुक नहीं हैं।

विशेषकर सरकार के रवैये और दृष्टिकोण को देखते हुए जिसने आज उच्चतम न्यायालय के सामने बार बार यह स्पष्ट किया कि वे समिति के समक्ष तीनों कानूनों के निरस्तीकरण की चर्चा के लिए सहमत नहीं होंगे।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष हमारे वकीलों द्वारा आज बार बार अनुरोध किया गया कि उनके पास संगठन से परामर्श के बिना समिति के लिए सहमत होने का कोई निर्देश नहीं है।, हमने कल शाम अपने वकीलों से मुलाकात की और अभियोजन पक्ष के सुझावों पर विचार-विमर्श किया। हमने उन्हें बताया कि हम सर्वसम्मति से किसी भी समिति के समक्ष जाने के लिए सहमत नहीं हैं। सरकार के अड़ियल रवैये के बावजूद कल माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समिति का गठन किया जा सकता है।

हमारे वकीलों, श्री हरीश साल्वे सहित अन्य वकीलों ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया था कि कल फिर से सुनवाई हो ताकि वे संगठनों से परामर्श कर सकें और माननीय न्यायालय के सुझाव के लिए उनकी सहमति ले सकें। हमें बताया गया है कि कल के लिए 9:00 बजे तक प्रकाशित होने वाली कॉजलिस्ट  के अनुसार कल के लिए कोई सुनवाई नहीं रखी की गई है और माननीय न्यायालय द्वारा केवल आदेशों के लिए मामलों को सूचीबद्ध किया गया है। इन घटनाओं ने हमें, हमारे वकीलों और बड़े पैमाने पर किसानों को भी निराश किया है। इसलिए इस प्रेस बयान को जारी करने का निर्णय लिया गया है, ताकि दुनिया को इस मामले में अपना पक्ष पता चल सके।

किसान और हम उनके प्रतिनिधि के रूप में एक बार फिर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रति आभार व्यक्त करते हैं लेकिन उनके सुझावों को स्वीकार करने में असमर्थता पर खेद व्यक्त करते हैं। चूँकि हमारा संघर्ष देश भर के करोड़ों किसानों के कल्याण के लिए है, और यह बड़े जनहित में है, जबकि सरकार ने यह गलत प्रचार किया कि आंदोलन केवल पंजाब के किसानों, हरियाणा, यूपी, उतराखंड, राजस्थान के हजारों किसानों तक ही सीमित है। मप्र, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों को दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठा किया जाता है, जबकि हजारों लोग इस समय विभिन्न राज्यों के विभिन्न स्थानों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

वकीलों से सलाह लेने वाले प्रतिनिधिमंडल में एस बलवीर एस राजेवाल, डॉ दर्शन पाल, प्रेम एस भंगू, राजिंदर सिंह दीप सिंह वाला और जगमोहन सिंह शामिल थे। वकीलों की टीम में सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे,  प्रशांत भूषण, कॉलिन गोंसाल्वेस और एच एस फूलका शामिल हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा ने जारी बयान में साफ कहा है कि उसे कृषि कानूनों को वापस लेने से कम की कोई शर्त मंजूर नहीं है और इसलिए कानूनों की वापसी से पहले उसे किसी से कोई बातचीत में दिलचस्पी नहीं है। बयान में दो टूक कहा गया है कि हम उच्चतम न्यायालय से नियुक्त होने वाली कमेटी की किसी कार्यवाही में शामिल होना नहीं चाहते। पहले कानूनों को निरस्त कीजिए, फिर हम बात करेंगे।

दरअसल, किसानों ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में हुई सुनवाई के बाद शाम में अपने वकीलों से राय-मशविरा किया। इस बातचीत में कमेटी के साथ बातचीत के संभावित नफा-नुकसान की पर गहन मंथन हुआ और फिर इस बात पर सहमति बनी कि कमेटी के साथ बातचीत नहीं करना ही बेहतर होगा। बयान में कहा गया है कि इस फैसले से उच्चतम न्यायालय को अवगत करा दिया जाएगा।

इसके पहले उच्चतम न्यायालय ने सोमवार की सुनवाई में सरकार के रवैये पर कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि अब वो एक कमेटी बनाएगा जो किसानों की समस्याएं सुनकर अपनी रिपोर्ट देगी। कोर्ट ने कहा कि वो कमेटी की रिपोर्ट पर तीनों कृषि कानूनों पर रोक भी लगा सकता है। इस मामले पर मंगलवार को फिर से सुनवाई होगी। किसान संगठनों के ताजा फैसले से संभवतः मंगलवार को ही सुप्रीम कोर्ट को अवगत करवा दिया जाएगा।

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को किसानों के वकीलों को जिम्मेदारी दी थी कि वह किसान नेताओं से बात कर कोर्ट को भरोसा दिलाएं की अगर कृषि कानून पर रोक लगा दी जाती है तो प्रदर्शन को कहीं और शिफ्ट किया जाएगा। दिल्ली की घेराबंदी और रोड ब्लॉकेज ख़त्म किया जायगा। औरतों और बुजुर्गों को भी प्रदर्शन से दूर रखा जाएगा।

उच्चतम न्यायालय ने साफ किया की प्रदर्शन साथ-साथ चल सकते हैं लेकिन रास्ता साफ करना होगा। आम लोगों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। मंगलवार को किसानों के वकील कोर्ट को बताएंगे कि किसान कोर्ट के इस पेशकश पर क्या सोचते हैं। उच्चतम न्यायालय एक कमेटी का गठन करना चाहता है, जिसके लिए दोनों पक्षों से नाम मांगा गया है। कमेटी दोनों पक्षों से बात कर सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट देगी की इस मसले का क्या हल हो सकता है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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