फिदेल कास्त्रो: छोटे देश का एक वैश्विक नेता

आज फिदेल कास्त्रो की पुण्यतिथि है। 25 नवंबर 2016 को उनका निधन हवाना, क्यूबा में हो गया था। सैनिक वर्दी में आम प्रदर्शनों की अगुवाई करते हुए कास्त्रो की छवि हमेशा एक सर्वकालिक क्रांतिकारी की रही है। वे ज्यादातर सैनिक पोशाक में देखे जाते रहे हैं। कास्त्रो को अक्सर ‘कमांडेंट’ के रूप में उल्लेखित किया गया है, साथ में उन्हें, उपनाम ‘एल काबल्लो’, जिसका अर्थ है ‘हार्स’ यानि घोड़ा कहकर भी पुकारा जाता रहा है। इस उपनाम से प्रभावित कास्त्रो जब अपने लोगों के साथ रात में हवाना की सड़कों पर घूमते, तब जोर से चिल्लाते कि ‘लो आ गया घोड़ा’। क्रांतिकारी अभियान के दौरान कास्त्रो के बागी साथी उन्हें ‘द जाइंट’ के नाम से बुलाते थे। आम तौर पर घंटों चलने वाले कास्त्रो के जोशीले भाषण को सुनने के लिए लोगों का बड़ा हुजूम इकट्ठा हो जाता। सर्वशक्तिमान अमेरिका के इतने निकट रहते हुए भी क्यूबा के इस कालजयी क्रांतिकारी की हत्या करने की हर चंद कोशिश अमेरिका की सीआईए ने की थी, लेकिन वह सफल न हो सकी। भारत के संबंध क्यूबा से बहुत घनिष्ठ रहे हैं।

जनसंख्या और क्षेत्रफल में, एक छोटे देश के राष्ट्रपति होने के बावजूद, फिदेल एक वैश्विक नेता थे। वे गुटनिरपेक्ष देशों के प्रमुख और तीसरी दुनिया, जो अब इतिहास बन गई है, की एक मजबूत आवाज़ थे। आज के वैश्विक परिदृश्य के बारे में फिदेल कास्त्रो का यह संस्मरण बेहद रोचक और दुनिया की सियासत में उनके स्थान को रेखांकित करता है।

■ दुनिया का दौरा करके हम अभी लौट रहे हैं। इस दौरे में हमें एक क्षण का भी आराम नहीं मिला। यह दौरा जरूरी था। ईराक में युद्ध के लगभग निश्चित खतरे तथा अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संकट के गहराने के बीच 24 और 25 फरवरी को क्वालालंपुर, मलेशिया में महत्वपूर्ण शिखर बैठक थी। शिखर बैठक से पहले और बाद में वियतनाम और चीन में बहुत सारे नजदीकी दोस्तों से मिलना था। जापान से भी बहुत से महत्वपूर्ण और मूल्यवान मित्रों से निमंत्रण मिला था, इसलिए वहां रुकना भी जरूरी था। इन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पांच मार्च को राष्ट्रीय एसेंबली का गठन, एसेंबली और काउंसिल ऑफ स्टेट के नेतृत्व और उनके अध्यक्षों तथा उपाध्यक्षों का चुनाव होना था।

मौसम की वजह से हम 3 मार्च को हिरोशिमा से नहीं निकल पाए। इस विलंब को देखते हुए हमने क्यूबा में अपने कॉमरेडों से कहा कि वे बैठक को 6 मार्च तक के लिए स्थगित कर दें।

मुझे हवाई जहाज से लौटते हुए ये पंक्तियां लिखनी पड़ीं। इन दिनों दुनिया की यात्रा आसान नहीं है। यह यात्रा समझदारी से करना, फ्लाइट योजनाओं के बारे में बताना और आवश्यक प्राधिकरण आदि के लिए इंतजार करना और भी मुश्किल है। आई एल-62 जहाजों की उम्र, उनके फ्लाइट उपकरणों, उनके ईंधन उपभोग तथा शोर के कारण उनमें यात्रा और भी जटिल हो जाती है। जब वे हवाई पट्टी पर उतरते हैं या उड़ने के लिए पट्टी पर दौड़ते हैं तो बहुत शोर करते हैं, लेकिन वे उड़ते जरूर हैं और जब उड़ते हैं तो उतरते भी अवश्य हैं।

32 साल पहले जब मैं चिली के राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे से मिलने गया तो ऐसे ही जहाज में बैठा था। तब से मैं इन जहाजों में बैठ रहा हूं। ये पुराने सोवियत ट्रैक्टरों की तरह मजबूत हैं, जिन्हें मानो क्यूबाई चालकों की परीक्षा के लिए ही इनके पायलट ओलंपिक चैंपियन हैं। इनकी मरम्मत करने वाले टेक्नीशियन और मैकेनिक दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं। हम पूरी दुनिया में दूसरी बार इस जहाज में घूमे हैं। मैं पूरी गंभीरता के साथ पूर्व सोवियत संघ की इन मशीनों की तारीफ करता हूं। मैं उनका आभारी हूं और साथी क्यूबावासियों और पर्यटकों से आग्रह करता हूं कि इन जहाजों में यात्रा करें। ये दुनिया के सर्वाधिक सुरक्षित जहाज हैं। मैं इसका जीता जागता प्रमाण हूं।

इस दुनिया में आज आप किसी चीज को बहुत गंभीरता से नहीं ले सकते। यदि आपने ऐसा किया तो दिल के दौरे या दिमाग की नस फटने का खतरा पैदा हो जाएगा। आवश्यक यात्रा रिपोर्ट, हमारा शिष्टमंडल 19 फरवरी को आधी रात से थोड़ा पहले रवाना हुआ। रास्ते में हम केवल पेरिस में ही रुक सकते थे। वहां हम थोड़ी देर के लिए रुके। हमें शहर में एक होटल में थोड़ी देर के लिए विश्राम करना था। जगह बेकार थी। मैं सो नहीं सका। मैंने एक ऊंची मंजिल पर जाकर इस सुंदर और प्रसिद्ध शहर के कुछ हिस्सों को देखा। मैंने तीन से छह मंजिली इमारतों की छतों को देखा। उनमें कलाकारी की गई लगती थी। मैं यह जानना चाहता था कि 150 साल पहले उन्हें किस चीज से बनाया होगा।

मैंने हवाना और उसकी समस्याओं को याद किया। ये इमारतें सफेद भूरे रंग की थीं। किसी ने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। कुछ किलोमीटर दूर एक जबरदस्त भवन समूह था, जिसने सौंदर्य भंग कर दिया था। दाईं ओर दफ्तर तथा रहने के लिए बनाई गई ऊंची इमारतों ने नजारा खराब कर दिया था। मुझे क्रांति से कुछ महीने पहले एक समय सरकार के उपनिवेशी महल रहे भवन के पीछे बनाए गए हेलिपार्ट की याद आ गई। मुझे पहली बार हर किसी के प्रशंसा पात्र एफिल टावर और लार्क द त्रिंफे बेइज्जत और बौनी चीजें लगीं। मुझे अचानक लगा कि मैं कुंठित शहर नियोजक हूं। पेरिस में मैंने न किसी को बुलाया और न किसी से बात की। जब मैं वहां से चला तो फ्रांस की शानदार क्रांति और उनका शौर्यपूर्ण इतिहास, जिसके बारे में मैंने युवावस्था में पढ़ा था, मेरे जहन में मौजूद था। अमरीकी सरकार के अपमानकारी एकतरफा आधिपत्य के खिलाफ उसके वीरतापूर्ण रुख की मैंने मन ही मन प्रशंसा की।

हम चीन के सुदूर पश्चिम क्षेत्र में उरुमुकी में रुके। वास्तुकला की दृष्टि से यह बहुत सुंदर हवाई अड्डा था। दोस्ताना मेहमाननवाजी। परिष्कृत संस्कृति। दस घंटे उपरांत सूर्यास्त के बाद हम अपने प्रिय तथा वीर वियतनाम की राजधानी हनोई पहुंचे। पिछली बार आठ साल पहले 1995 में जब मैं यहां आया था, उसके बाद यह शहर काफी बदल गया था। गलियों में चहल-पहल और भरपूर रोशनी थी। पैरों से चलने वाली एक भी साइकल नजर नहीं आई। उनकी जगह मोटरसाइकलों ने ले ली थी। गलियों में कारे ही कारें थीं। इसके भविष्य, ईंधन, प्रदूषण और अन्य विपत्तियों के बारे सोचकर मुझे थोड़ी तकलीफ हुई।

हर जगह सुख-साधन संपन्न होटल बन गए थे। कारखानों की तादात बहुत बढ़ गई

थी। उनके विदेशी मालिक प्रबंधन के कड़े पूंजीवादी नियमों का पालन करते हैं, लेकिन यह कम्युनिस्ट देश है जो कर वसूल करता है, आय वितरित करता है, नौकरियां पैदा करता है, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधा का विकास करता है तथा साथ ही अपनी शान और परंपराओं की दृढ़ता के साथ रक्षा करता है। तेल, कोयला से बिजली बनाने वाले संयंत्र, पनबिजली संयंत्र तथा अन्य बुनियादी उद्योग सरकार के हाथों में हैं। उत्कृष्ट मानव क्रांति। जो क्रांति के सृजक रहे हैं उनको बहुत सम्मान दिया जाता है। हो चि मिन्ह बहुत बुलंद मिसाल हैं और रहेंगे।

मैंने मेधावी रणनीतिज्ञ गुएन गियाप के साथ विस्तार से बात की। उनकी याददाश्त उत्कृष्ट है। मैंने उदासी तथा अनुराग के साथ महान व्यक्तियों को याद किया, जैसे कि फाम वान डोंग तथा अन्य जो गुजर चुके हैं, लेकिन लोगों के अनंत स्नेह के पात्र हैं। पुराने और नए नेताओं में असीम प्यार और दोस्ती है। सभी क्षेत्रों में हमारे संबंध प्रगाढ़ और विस्तृत हुए हैं।

हम दोनों देशों की स्थितियों में अंतर विचार योग्य है। हम ऐसे पड़ोसियों से घिरे हैं, जिनके पास हमें देने के लिए कुछ भी नहीं हैं। विशेष रूप से एक पड़ोसी, दुनिया का सबसे अमीर राष्ट्र हमारे खिलाफ जबरदस्त नाकाबंदी किए हुए है, लेकिन हमारा भी दृढ़ इरादा है कि हम अपने देश के धन और लाभों का अधिकतम हिस्सा वर्तमान तथा भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखेंगे, लेकिन ये मतभेद हमारी सुंदर और शाश्वत मित्रता का किसी भी रूप में अतिक्रमण नहीं करते।

वियतनाम से हम मलेशिया गए। यह अद्भुत देश है। इसके विशाल प्राकृतिक संसाधन और असाधारण रूप से प्रतिभा संपन्न नेता, जिसने बेलगाम पूंजीवाद के विकास से स्वयं को दूर रखा, इसकी प्रगति के कारण हैं। उन्होंने तीन मुख्य प्रजाति समूहों अर्थात मलयों, भारतीयों और चीनियों में एकता कायम की। औद्योगिक देश जापान तथा दुनिया के दूसरे देशों ने आकर्षित होकर यहां निवेश किया। कड़े नियम और विनिमय लागू किए गए। धन का यथासंभव न्यायपूर्ण वितरण हुआ। देश ने 30 वर्षों में बड़ी तेजी के साथ विकास किया। शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधा की ओर ध्यान दिया जाता है। देश में शांति रही। वियतनाम, जापान, लाओस और कंबोडिया की तरह उस पर पहले उपनिवेशवाद और फिर साम्राज्यवाद का हमला नहीं हुआ।

दक्षिण पूर्वी एशिया में आए प्रलयंकारी संकट ने जब मलेशिया पर आघात किया तो उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक तथा ऐसे ही अन्य संगठनों की बात मानने से इनकार कर दिया तथा मुद्रा विनिमय नियंत्रण लागू किए और पूंजी पलायन को रोक कर देश और उसकी दौलत को बचाया। यह हमारे गोलार्ध में लंबे समय से दु:ख उठा रही दुनिया से अलग दुनिया है। मलेशिया ने वास्तविक राष्ट्रीय पूंजीवाद का विकास किया है, जिसने आय में व्यापक विषमता के बावजूद लोगों का कल्याण किया है। देश का बहुत सम्मान है। पश्चिम तथा नई आर्थिक व्यवस्था के लिए वह सिर दर्द और गलत मिसाल बन गया है।

चीन। वहां हम दोपहर को पहुंचे। वियतनाम की तरह ही क्यूबाई शिष्टमंडल को इतना ध्यान और सम्मान कहीं नहीं दिया गया। 26 फरवरी को सरकारी स्वागत, रात्रि भोज। पार्टी और सरकार के पूर्व और वर्तमान नेताओं, जिनमें से कुछ अभी भी शासन में हैं, जियांग जेमिन, हु जिंताओ, लि पेंग, झू रोंग जी, वेन जिआबाओ और उनके सहायकों से भेंट। एक के बाद एक, यह सिलसिला 27 तारीख तक चलता रहा। 28 फरवरी की सुबह बीजिंग टेक्नोलॉजी पार्क का दौरा। इसके बाद पांडा टेलीविजन फैक्टरी देखने के लिए राष्ट्रपति जियांग जेमिन के साथ ननजिंग का दौरा। अपने जीवन में पहली बार जंबो जैट में बैठा। जियांगसु प्रांत के पार्टी प्रधान सचिव के साथ बैठक। शंघाई के लिए प्रस्थान। विदाई।

वियतनाम और चीन में क्यूबाई शिष्टमंडल का आतिथ्य सत्कार क्रांति के पूरे इतिहास में अभूतपूर्व है। यह वास्तव में विशिष्ट अतिथियों, व्यक्तियों, सच्चे मित्रों के साथ विस्तार से और गहराई के साथ बात करने का अवसर था। इससे हमारे देशों के बीच दोस्ती और मजबूत हुई। क्यूबाई क्रांति के जिन दिनों उसके टिक पाने में किसी का भी विश्वास नहीं था, उन बहुत मुश्किल दिनों में चीन और वियतनाम हमारे बहुत अच्छे दोस्त थे। आज उनकी अवाम और उनकी सरकारें इस छोटे से देश को आदर देते हैं तथा उसकी प्रशंसा करते हैं जो अपनी जबरदस्त शक्ति से पूरी दुनिया पर आधिपत्य कायम कर लेने वाली एकमात्र महाशक्ति के निकट स्थित होने के बावजूद दृढ़ता के साथ खड़ा है।

हममें से कोई एक व्यक्ति इस आदर का हकदार नहीं है। यह उन बहादुर और यशस्वी लोगों को मिलना चाहिए जिन्होंने पूरी गरिमा के साथ अपना कर्तव्य पूरा किया।

हमारी बातचीत द्विपक्षीय हित के मुद्दों और हमारे आर्थिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संबंधों में नवीनतम बदलाव तक ही सीमित नहीं थी। हमने आज के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर पूरी दिलचस्पी, बेबाकी और आपसी समझ के साथ बात की।

चीन से हम जापान गए। वहां हमारा आतिथ्य सत्कार और सम्मान किया गया। हम वहां कुछ देर के लिए रुके थे, लेकिन पुराने और सच्चे दोस्तों ने हमारा स्वागत किया। हमने तोमोयोशी कोंडो, अध्यक्ष, क्यूबा जापान आर्थिक कॉनफ्रेंस; श्री वातानुकी, अध्यक्ष, नेशनल डाइट ऑफ जापान; श्री मिशूजूका, अध्यक्ष, संसदीय मित्रता लीग से लंबी बात की। शिष्टाचार के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री रियूतारो हाशीमोतो और प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइजुमी के साथ बैठक भी हुई। जापानियों की पहल पर हमने कोरियाई प्रायद्वीप में तनावपूर्ण स्थिति, जो सभी के लिए चिंता का विषय है, से जुड़े मामलों पर भी चर्चा की। इस बातचीत के बारे में विस्तृत सूचना हम उत्तरी कोरिया की सरकार को देंगे। क्रांति की जीत के दिनों से ही उनके साथ हमारे दोस्तीपूर्ण कूटनीतिक संबंध रहे हैं।

2 मार्च को हम हिरोशिमा गए। हम हिरोशिमा पीस मेमोरियल म्यूजियम भी गए। हिरोशिमा प्रांत के गवर्नर के साथ हमने प्राइवेट लंच किया। हिरोशिमा के नागरिकों का जो नरसंहार हुआ था उसे देखकर हम कितने विह्वल हुए उसे बताने के लिए शब्द और समय मेरे पास नहीं हैं। जो कुछ वहां हुआ था उसे समझने में मानव कल्पना समर्थ नहीं हो सकती है।

हिरोशिमा पर हुआ हमला एकदम अनावश्यक था और उसे कभी भी नैतिक दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। सैनिक तौर पर जापान पहले ही हार चुका था। ओसिनिया, दक्षिण पूर्व एशिया तथा जापानी प्रभुसत्ता वाले इलाके फिर से वापस लिए जा चुके थे। मनचूरिया में लाल सेना लगातार आगे बढ़ रही थी। एक भी अमरीकी जान गंवाए बगैर यह युद्ध कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाता। केवल अल्टीमेटम देने, या हद से हद लड़ाई के क्षेत्र या जापान के एक दो सैनिक ठिकानों पर इस हथियार के प्रयोग से युद्ध समाप्त हो जाता, भले ही अतिवादी जापानी नेता कितना ही दबाव देते या हठधर्मी दिखाते रहते।

हालांकि पर्ल हार्बर पर अनुचित और अचानक हमला करके जापान ने युद्ध शुरू किया, लेकिन इससे बच्चों, स्त्रियों, वृद्धों तथा हर उम्र के बेकसूर लोगों की भयंकर हत्या का औचित्य नहीं बन जाता। जापान के महान और उदार लोगों ने यह अपराध करने वाले लोगों के खिलाफ घृणा का एक भी शब्द नहीं कहा। इसके विपरीत उन्होंने शांति स्मारक बनवाया है, ताकि फिर कभी ऐसा न हो। लाखों लोगों को वहां जाना चाहिए जिससे यह पता चल सके कि वहां क्या हुआ।

वहां चे (ग्वेरा) का चित्र देखकर मैं भाव विह्वल हो गया। यह मानवता के खिलाफ निकृष्टतम अपराध की इस अमर यादगार पर फूल चढ़ाते हुए खींचा गया चित्र था।

हमारी जाति की इस पीढ़ी का दुर्भाग्य है कि उसे अभूतपूर्व तथा अवांछनीय स्थितियों में रहना पड़ रहा है। हमें विश्वास है कि मानव जाति उन पर काबू पा लेगी। हमारे युग से पहले ऐसा लगता था कि मनुष्यों का घटनाओं पर नियंत्रण है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि घटनाओं का मनुष्यों पर नियंत्रण है।

हमारे इस दौरे के साथ-साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने चारों ओर अनिश्चितता और असुरक्षा के बीज बो दिए हैं। प्रभुसत्ता और स्वतंत्रता काल्पनिक बातें हो गई हैं। सत्य और नैतिकता मनुष्यों का प्रथम अधिकार या विशेषताएं होनी चाहिए, लेकिन उनकी जगह लगातार कम हो रही है। तार के जरिए विवरण, अखबार, रेडियो, टेलीविजन, सेलफोन, इंटरनेट दुनिया के हर कोने से हर दिन हर मिनट खबरों का अंबार लगा रहे हैं। घटनाओं से तारतम्य बनाए रखना बहुत मुश्किल है।

समाचारों के इस सागर में मानव बुद्धि अपनी दिशा खो सकती है, लेकिन अस्तित्व की चिंता उससे प्रतिक्रिया कराती है। दुनिया के राष्ट्रों ने पहले कभी खुद को इस कदर एक महाशक्ति का नेतृत्व करने वाले लोगों की शक्ति और स्वेच्छा के सामने झुका हुआ नहीं पाया था। उनके पास निरंकुश शक्ति है। उनके दर्शन, उनके राजनीतिक विचारों, नैतिकता संबंधी उनकी धारणाओं के बारे में किसी को जरा सा भी भान नहीं है। उनके निर्णयों के बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती और न ही उनको चुनौती दी जा सकती है। उनके हर बयान में नष्ट कर देने या मार देने की उनकी ताकत और क्षमता का अहसास मिल जाता है। इसकी वजह से बहुत से देशों के नेताओं में भय और बेचैनी है, क्योंकि महाशक्ति के ये नेता न सुनने के आदी नहीं हैं। उनके पास जबरदस्त सैनिक, राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी शक्ति है।

दुनिया पर नियमों के शासन तथा विभिन्न देशों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले किसी संगठन का सपना चूर-चूर हो रहा है।

धरती से मीटरों ऊपर हवा में मैंने तार के जरिए यह वृत्तांत पढ़ा, “अपने साप्ताहिक रेडियो संबोधन में राष्ट्रपति बुश ने संयुक्त राष्ट्र महासंघ के प्रति अपना अनादर व्यक्त किया और बताया कि वह ‘अपने मित्रों और साथियों के प्रति दायित्व’ के कारण ही इस संगठन से परामर्श करते हैं, इसलिए नहीं कि वहां के विचार-विमर्श का उनके लिए कोई मोल है।”

पूरी दुनिया के लोग भारी संख्या में सार्वभौमिक जुल्म के भूमंडलीकरण के खिलाफ बोल रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र ऐसा संगठन है जो लाखों युवा अमरीकियों सहित पांच करोड़ लोगों की जान ले लेने वाले युद्ध के बाद अस्तित्व में आया। इसलिए दुनिया के सभी देशों और सरकारों की नजरों में उसका महत्व होना चाहिए। इसमें बहुत कमियां हैं और कई मामलों में यह पुराना पड़ गया है। दुनिया के सभी देशों का प्रतिनिधित्व करने वाली इसकी महासभा केवल विचार-विमर्श का मंच है। उसके पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं है, वह केवल राय जाहिर कर सकती है। सुरक्षा परिषद कथित रूप में कार्यपालक निकाय है जहां केवल पांच विशिष्ट देशों का मत चलता है। इनमें से भी केवल एक देश वीटो के जरिए बाकी सब के मत को रद्द कर सकता है। ऐसे ही एक सर्वाधिक शक्ति संपन्न देश ने अपने उद्देश्यों के लिए अनेक बार इस शक्ति का प्रयोग किया। हमारे पास फिर भी वही एक संगठन है।

इसको खत्म करने से इतिहास का वही युग लौट आएगा जो नाजीवाद के उदय से पहले था। इसकी परिणति भयंकर महाविपत्ति में होगी। 20वीं शताब्दी के आखिरी दो तिहाई हिस्से में जो हुआ, यह हममें से कुछ ने देखा है। हमने नए किस्म के साम्राज्य का जन्म और तेजी से विकास होते हुए देखा है जो कि संपूर्ण और सर्वग्रासी है। यह प्रसिद्ध रोमन साम्राज्य से हजार गुना शक्तिशाली है तथा अपने मौजूदा परम मित्र, जिसकी छाया किसी समय ब्रिटिश साम्राज्य हुआ करता था, से सौ गुना अधिक शक्तिशाली है। केवल डर, अंधेपन और अज्ञान के कारण स्पष्ट चीज दिखाई नहीं दे रही है।

यह समस्या का केवल निराशावादी पक्ष है। वास्तविकता इससे अलग हो सकती है। इससे पहले इतनी कम अवधि में पूरी दुनिया में ऐसे जबरदस्त प्रदर्शन नहीं हुए जैसे कि ईराक के खिलाफ युद्ध की घोषणा के बाद हुए।

अमरीकी सरकार के दो महत्वपूर्ण साथी इंग्लैंड और स्पेन संकट में फंस गए हैं। दोनों देशों में भारी संख्या में जनमत युद्ध के खिलाफ है। यह सही है कि ईराक ने दो बहुत गंभीर और अनुचित कार्य किए। ईरान पर हमला और कुवैत पर कब्जा। यह भी सही है कि इस देश से जबरदस्त प्रतिशोध लिए गए हैं। इसके लाखों बच्चे भूख और बीमारी से मर गए हैं। इसके लोगों ने वर्षों तक लगातार बमबारी झेली है। उसमें बिलकुल भी सैनिक क्षमता नहीं है जो अमरीका तथा इस क्षेत्र में उसके मित्रों के लिए खतरा बन सके। यह घिनौने उद्देश्य वाला अनावश्यक युद्ध होगा। यदि यह युद्ध संयुक्त राष्ट्र के अनुमोदन के बगैर हुआ तो अमरीकी अवाम के एक महत्वपूर्ण तबके सहित पूरी दुनिया के लोग इसका विरोध करेंगे। (शेष भाग कल पढ़िए।)

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

विजय शंकर सिंह
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विजय शंकर सिंह