फिल्म निर्माताओं ने पत्र लिख कर सरकार से बिमल जुल्का समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की

फिल्म प्रभाग (FD) और भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (NFAI) सहित कई कई सार्वजनिक वित्त पोषित फिल्म संस्थानों के विलय/बंद होने की एमआईबी की घोषणा के जवाब में फिल्म निर्माताओं के एक समूह ने सरकार से अधिक पारदर्शिता की मांग करते हुए एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है।

फिल्म निर्माताओं की प्रमुख मांगों में से एक बिमल जुल्का समिति की रिपोर्ट तक पहुंच है जिसको आधार बनाते हुए मौजूदा दौर के पुनर्गठन के काम को संचालित किया जा रहा है।  जैसा कि पत्र में कहा गया है, जनवरी 2021 में एक आरटीआई आवेदन के बावजूद,एमआईबी ने रिपोर्ट को आम लोगों की पहुंच से छुपाकर रखा है।

अपनी शिकायतों को सूचीबद्ध करते हुए, फिल्म निर्माताओं ने बड़ी फिल्म बिरादरी के साथ एमआईबी के विचार-विमर्श में कमी पर निराशा जाहिर की है। सवालों के घेरे में आए दो संस्थान, विशेष रूप से, FD और NFAI के अभिलेखागार हैं जो भारत में बनी काल्पनिक कथाओं पर आधारित महानतम सिनेमा के भंडार हैं। स्वतंत्रता से पहले और बाद के न्यूज़रील और वृत्तचित्र अवधि जहां महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं और आंकड़ों का दस्तावेजीकरण किया गया था। सब कुछ यहां सुरक्षित है।

फिल्म निर्माताओं का कहना है कि भारतीय फिल्म इतिहास और विरासत के संरक्षण के नाम पर इन अभिलेखागारों को बंद करना एक तबाही होगी। फिल्म समूह ने सरकार से तत्काल इन संस्थानों के भविष्य में निजीकरण/बिक्री  संबंधी अटकलों को स्पष्ट करने की मांग की है। इसके साथ ही उसने इन निकायों को स्वायत्त बनाने, सार्वजनिक धन में वृद्धि करने और देश की राष्ट्रीय फिल्म विरासत की रक्षा आदि के बारे में अपनी बचनबद्धता को फिर से दोहराने के लिए कहा है।

फिल्मकारों की मुख्य मांगें निम्न प्रकार बिंदुवत हैं-

1. बिमल जुल्का की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट तुरंत जारी की जाए।

2. FD, NFAI और CFSI जैसे सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थानों का एनएफडीसी जैसे निगमों में विलय नहीं किया जाना चाहिए।

3. पारदर्शी और खुले तरीके से विभिन्न

फिल्म निर्माताओं और कर्मचारियों सहित हितधारक के साथ इन संस्थानों के बारे में परामर्श किया जाना चाहिए कि वे इन संस्थाओं को कैसे देखना चाहते हैं  – पूर्ण स्वायत्तता के साथ, राज्य के वित्त पोषण में वृद्धि के साथ या फिर उनके मूल रूप में जनादेश की प्रतिबद्धता के साथ।

4. सरकार को FD, NFAI, CFSI जैसे अभिलेखागार को राष्ट्रीय विरासत घोषित करना चाहिए जो कि जनता द्वारा वित्त पोषित और आम जनता से संबंधित हैं। इसे अभिलेखागार की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। और सरकार संसद में लिखित आश्वासन दे कि उन्हें अभी या भविष्य न तो बेचा जाएगा और न ही नीलाम किया जाएगा।

5. इन सार्वजनिक संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों की चिंताएं और फिक्र होनी चाहिए और उन्हें जल्द से जल्द हल किया जाना चाहिए ।

पत्र में इन सार्वजनिक संस्थानों के पुनर्गठन की मौजूदा प्रक्रिया को स्थगित करने की मांग की गई है जब तक कि पारदर्शिता और सार्वजनिक परामर्श के लंबित मुद्दों को संबोधित नहीं किया जाता है ।

सर्कुलेशन के 24 घंटों के भीतर पत्र को क़रीब 900 फिल्म निर्माताओं, शोधकर्ताओं, शिक्षकों, थिएटर चिकित्सकों, छात्रों, वकीलों के विभिन्न वर्गों और पूर्व सरकारी अधिकारियों के साथ-साथ सामान्य नागरिक समाज के सदस्यों का समर्थन मिला है।

पत्र में हस्ताक्षर करने वाले कुछ प्रमुख नाम हैं – बीना पॉल, नसीरुद्दीन शाह, निष्ठा जैन, बतुल मुख्तियार, सुरभि शर्मा, जबीन मर्चेंट, गीतांजलि राव, नंदिता दास, रमानी आरवी, अनुपमा श्रीनिवासन, रामचंद्रन पीएन, आनंद पटवर्धन, वरुण ग्रोवर, पुष्पेंद्र सिंह, सनल कुमार शशिधरन, पायल कपाड़िया, अनामिका हक्सर, समीरा जैन, सुबाश्री कृष्णन, क्रिस्टोफर रेगो, वाणी सुब्रमण्यम, रफीक इलियास, सुरेश राजमणि, सौरव सारंगी, मैथिली राव, हेमंती सरकार, अर्जुन गौरीसारिया, करण बाली, प्रिया सेन, नंदन सक्सेना, गार्गी सेन, हाओबम पवन कुमार, अंजलि मोंटेरो, के पी जयशंकर, सुनंदा भट, संजय काक, शिल्पी गुलाटी, प्रतीक वत्स, प्रिया थुवास्सेरी, अमृत गंगरी आदि।

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