वर्धा विश्वविद्यालय: पहले गोरख पांडेय छात्रावास का नाम बदला गया, फिर उनकी प्रतिमा गायब कर दी गई

वर्धा। दलित शोधार्थी रजनीश कुमार अम्बेडकर अपनी पीएचडी सबमिशन के लिए धरने पर हैं। 31 मार्च की रात्रि में दलित शोधार्थी के आंदोलन को समाप्त करवाने की नीयत से विश्वविद्यालय प्रशासन के सह पर ABVP छात्र संगठन के गुर्गों द्वारा दलित शोधार्थी रजनीश कुमार अम्बेडकर व अन्य छात्रों पर जानलेवा हमला किया जाता है। जिसमें अंतस सर्वानंद और विवेक को गंभीर चोंटे आती हैं। अभी भी दोनों लोग वर्धा स्थित सावंगी मेघे मेडिकल यूनिवर्सिटी में एडमिट हैं। वही विश्वविद्यालय हमलावर गुण्डों पर करवाई करने की बजाय घायल छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी कर रहा है। प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से विश्वविद्यालय व जिला प्रशासन ABVP के गुंडों का साथ दे रहा है।

31 मार्च की रात्रि लगभग 12 बजे जब आंदोलनकारी छात्रों पर हमला किया गया। उसी दौरान गोरख पांडे छात्रावास जिसका वर्तमान नाम शम्भा जी छात्रावास कर दिया गया है। छात्रावास में स्थापित जनकवि गोरख पांडे की प्रतिमा को गायब कर दिया जाता है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अभी तक इसपर कोई भी कार्यवाही नही की गई है न ही प्रतिमा गायब करने वाले लोगों की शिनाख़्त की गई है। जबकि छात्रावास में प्रतिमा स्थल के सामने सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ। लेकिन इसके बावजूद भी विश्वविद्यालय प्रशासन मौन साधे हुए है।

अप्रैल 2022 में ABVP के द्वारा विश्वविद्यालय प्रशासन को ज्ञापन दिया जाता है कि गोरख पांडेय वामपंथी विचारधारा व राजनीति से जुड़े हुए थे। इन्होंने आत्महत्या कर ली थी। इसलिए इस गोरख पांडेय छात्रावास का नाम बदलकर शम्भा जी के नाम पर कर देना चाहिए। आम छात्रों की समस्यायों पर मूकदर्शक बनने वाला विश्वविद्यालय प्रशासन ABVP के पत्र को आधार बनाकर आम छात्रों की राय लिए बिना गोरख पांडेय छात्रावास का नाम बदलकर शम्भा जी के नाम पर कर देता है। तभी से ABVP और विश्वविद्यालय प्रसाशन की नजरों में गोरख पांडेय की प्रतिमा आंखों की किरकिरी बनी हुई थी।

रामनवमी के मौके का लाभ उठाकर 31 मार्च की रात्रि को आंदोलनकारी, दलित, पिछड़े व प्रगतिशील छात्र संगठन के छात्रों पर सोची-समझी रणनीति के साथ जानलेवा हमला किया जाता है। जनकवि गोरख पाडेय की प्रतिमा को गायब किया जाता है। घायल व आंदोलनकारी छात्रों पर आस्था भड़काने का आरोप लगाते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से नोटिस भेजी जाती है। पुलिस प्रशासन द्वारा घायल छात्रों की FIR तक नही लिखी जाती है। अभी भी दलित व आंदोलकारी छात्रों को खुलेआम धमकियां दी जा रही है कि यह तो रामनवमी का प्रसाद था, अभी हनुमान जयंती का भंडारा बाक़ी है।

(वर्धा से शोध छात्र रामचंद्र की रिपोर्ट।)

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