जनरल अशोक के. मेहता ने साफ तौर पर कहा है कि गलवान में हुई दर्दनाक झड़प के लिए सेना और सरकार की तरफ से बड़ी गलतियाँ की गईं हैं। अंग्रेजी न्यूज़पोर्टल वायर में लिखे एक लेख में उन्होंने ने कहा कि “जिस तरह से घटनाएँ घटती चली गईं उससे यह साफ़ मालूम हो जाता है कि (भारत से) बड़ी गलती हुई है”।
अपने लेख में जनरल मेहता ने अप्रैल के मध्य से जून मध्य तक की घटनाओं की ‘क्रोनोलॉजी’ पेश की है और यह दिखाने की कोशिश की है कि भारत एक के बाद एक गलती करता रहा और सीमा पर वह चीन की सैनिक कार्रवाई को भापने में नाकाम रहा है।
जनरल मेहता ने कहा कि ख़ुफ़िया जानकारी के मुताबिक अप्रैल के मध्य से ही लद्दाख के उस पार असामान्य तौर से बड़ी संख्या में सैनिक गतिविधियां चल रही थीं। यह सब कुछ चीनी सेना पीएलए के ग्रीष्मकालीन अभ्यास के वक़्त चल रहा था। इसके बाद बड़े-बड़े टैंक और तोपें दौलत बेग ओल्डी से चुशूल में तैनात कर दिए गए। मगर गलवान और पेंगॉन्ग त्सो में इन का जमावड़ा था।
फिर 5 मई के रोज़ चीनी सैनिक पीएलए ने एल.ओ.सी. को पार कर इन इलाकों में घुसपैठ की और गलवान नदी घाटी और हॉट स्प्रिंग में अपने कैम्प स्थापित कर दिए। 9 मई को गैर-विवादित सीमा के पार, पेंगॉन्ग त्सो और सिक्किम के नाकु ला में दरनदाज़ी की गई।
मेहता ने कहा है कि 15 मई के रोज़ भारतीय सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने चीनी अतिक्रमण को एक स्थानीय पीएलए कमांडर की कारस्तानी बताया। मगर उनसे यह चूक हुई वह सिक्किम समेत कई जगहों पर हुई घुसपैठ की घटना के पीछे चल रही चीनी मंशा को समझ नहीं सके। हालाँकि बाद में सेना के आला अफसरान ने घुसपैठ की गंभीरता को पढ़ तो लिया, मगर वे पीएलए के सामरिक प्रयोजन को नहीं समझ सकें। सेना को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए था कि वर्तमान चीनी करवाई माजी में हुई डेपसंग, चुमार और डोकलाम की घुसपैठ से अलग थी। हालाँकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 2 जून को यह कहते हुए घुसपैठ के ‘स्केल’ को साफ कर दिया था कि चीनी सैनिक अच्छी ख़ासी संख्या में पूर्वी लद्दाख की सीमा के अन्दर आ चुके हैं।
मेहता ने अफ़सोस ज़ाहिर किया कि 6 जून के सैनिक वार्ता को भी गलत तरीके से समझा गया। फिर 9 जून के रोज़ भारतीय सेना के एक सूत्र के हवाले से एक खबर ‘लीक’ हुई कि दोनों देशों के बीच ‘डी-एस्कलेशन’ (पीछे हटने या बिखरने की प्रक्रिया) की प्रक्रिया जारी है और सेना 2 से 3 किलोमीटर पीछे हट गयी है। दूसरी तरफ, चीन ने सिर्फ इतना कहा कि सैन्य कमांडर के बीच हुई बातचीत की मदद से तनाव को कम किया जा रहा है।
मेहता ने कहा कि जो कुछ भी उस वक्त चल रहा था वह पीएलए की मंशा को समझने में नाकाम था। पीएलए की कोशिश यह थी कि विभिन्न जगहों पर चल रही घुसपैठ को मज़बूत किया जाये, खासकर इसे गलवान नदी घाटी में बढ़ाई जाये। इसके अलावा दरबुक-श्योक-डीबीओ की बीच भारत के सामरिक हाईवे सड़क को रोका जाना उसकी मंशा का अहम हिस्सा था।
मेहता ने कहा कि हमें नहीं भूलना चाहिए कि 2010 से इस सड़क का काम शुरू है मगर चीन ने पहले कभी इस का विरोध नहीं किया था।
जनरल मेहता ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन भारत तिब्बत सीमा पुलिस की इस नाकामी की तरह अंगुली उठाई और कहा कि उसने अलार्म की घंटी नहीं बजायी। यह चूक कुछ बुनियादी सवाल खड़ा करता है। उन्होंने ने राष्ट्रीय सुरक्षा महकमा की आलोचना करते हुए कहा कि जब खतरे के निशान साफ दिख रहे थे तो उसने सेना को गलवान घाटी में उतारने पर विचार क्यों नहीं किया और सुरक्षा की सारी ज़िम्मेदारी भारत तिब्बत सीमा पुलिस पर क्यों छोड़ी।
फिर मेहता ने कहा कि 15/16 जून की रात की गलवान झड़प की घटना हालात को नहीं पढ़ने का नतीजा मालूम होता है। न ही स्थिति को अच्छी तरह से संभाला गया। भारतीय सैनिक कैसे मारे गये?—इस पर मेहता ने कहा कि वे इस बात का पता लगाने के लिए निकले थी कि पीएलए पीपी14 से पीछे हटी या नहीं। मगर अफ़सोस कि वे पीएलए के बर्बरतापूर्ण घात का शिकार हो गये।
मेहता के मुताबिक यह सब भारत की सामरिक कमियों को उजागर करता है। इससे यह भी बात खुल कर सामने आती है कि सामरिक संचार की प्रणाली भी नाकाम रही।
आखरी में अशोक के मेहता ने भारतीय मीडिया से भी अपील की कि वे उरी और बालाकोट से अपना ध्यान हटाएं और वुहान समेलन के समझौते और सामरिक दिशा-निदेश के उल्लंघन के लिए चीन को कटघरे में डालें।
(अभय कुमार जेएनयू से पीएचडी हैं। आप अपनी राय इन्हें debatingissues@gmail.com पर भेज सकते हैं।)