कश्मीरी पत्रकार आसिफ सुल्तान की रिहाई के लिए लेखकों, पत्रकारों और अकादमीशियनों ने पीएम को लिखा खत

(लोकतंत्र तो पूरे देश में नाजुक हालत में है लेकिन कश्मीर की घाटी में यह मृत प्राय हो चुका है। आम नागरिक की बात तो दूर पत्रकारों और समाज के प्रतिष्ठित हिस्से तक को न्यूनतम नागरिक अधिकार मयस्सर नहीं हैं। संगीनों के साये में जीने को अभिशप्त पूरी घाटी के लोगों की शेष भारत से दूरी बढ़ती जा रही है। कदम-कदम पर मानवाधिकारों को कुचला जा रहा है। और सूबे की पूरी न्यायिक प्रणाली ठप है। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में हैवियस कार्पस केसों की फाइलों का ढेर लग गया है। लेकिन जजों को उनको सुनने की फुर्सत नहीं है। इसी तरह का एक मामला पत्रकार आसिफ सुल्तान का है। उन्हें सुरक्षा बलों ने अगस्त, 2018 में गिरफ्तार किया था। इस बीच उनके मुकदमे की सुनवाई तो शुरू हुई लेकिन चाल उसकी कच्छप की है। और उन्हें जमानत भी नहीं दी जा रही है। इस मामले को लेकर तमाम पत्रकारों, लेखकों और बुद्धिजीवियों ने पीएम ने नाम खुला पत्र जारी किया है। पेश है पूरा पत्र-संपादक) 

प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

हम स्वतंत्र लेखक, पत्रकार, अकादमीशियन, स्वतंत्र पत्रकारिता की आवाज और नागरिक समाज के सदस्य हैं जो मिलकर आपसे अनुरोध करते हैं कि पत्रकार आसिफ सुल्तान को तुरंत रिहा किया जाए। इस पत्रकार को दो साल से अभी तक जेल में रखा गया है।

सुल्तान कश्मीर नैरेटर के लिए राजनीति और मानवाधिकारों पर लिखते थे। उन्हें 27 अगस्त, 2018 को अन्यायपूर्ण तरीके से गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर ‘‘ज्ञात आतंकवादी को शरण’’ देने के कथित अपराध में यूएपीए एक्ट के तहत जेल में डाल दिया गया।

लेकिन कथित मिलिटेंट का साक्षात्कार लेना या ऐसी सामग्री रखना जिसमें सरकार की आलोचना हो, पत्रकार के काम के दायरे में आता है और इसकी वजह से उसे अपराधी नहीं बताया जा सकता। ये बातें कश्मीर में जनहित में हैं, और उन पर लिखना वह जन के हित में है। यह आपराधिक कार्य नहीं है।

सुल्तान पर मुकदमा जून, 2019 में शुरू हुआ। यह धीरे धीरे चल रहा है। उन्हें बार-बार जमानत से मना कर दिया जा रहा है। पुलिस ने उनसे उनके लिखत के बारे में पूछताछ किया है और उनसे उन लेखों के स्रोत के बारे में बताने के लिए कहा।

पत्रकारों को उनकी रिपोर्टिंग के कारण जुल्म नहीं झेलना चाहिए। लोकतंत्र के लिए प्रेस की आज़ादी अनिवार्य पक्ष है। और, यह भारतीय इतिहास का गौरवशाली पक्ष रहा है। हम आपसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 की प्रेस की आज़ादी के प्रति भारत की प्रतिज्ञा को आप मान्यता दें और उसे कायम करें।

पूरी दुनिया में सरकार की गिरफ्तारी में कोविड-19 से संक्रमित होने की वजह से हाल में पत्रकारों की मौत को हमने देखा। जम्मू और कश्मीर की जेलों में बंद लोगों को कोविड-19 का संक्रमण फैला है। ऐसे में सुल्तान के जीवन पर खतरा ध्यान योग्य है।

हम आपस से अनुरोध करते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के उन निर्देशों का पालन करें जो 23 मार्च को जारी हुआ था जिसमें कोविड-19 आपदा में कैदियों को पैरोल पर रिहा करना था। आसिफ सुल्तान को तुरंत और बिना शर्त रिहा किया जाए।

उम्मीदों के साथ-

एन. राम, द हिंदू

प्रो. पार्था चटर्जी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी

प्रो. अमित भादुरी

विनोद के जोस, द कारवां

नरेश फर्नांडीस, स्क्राॅल.इन

संजय हजारिका

डा. राॅस हाॅल्डर, पीईएन इंटरनेशनल

सलिल त्रिपाठी

अभिनंदन सेखरी, न्यूजलाॅंड्री

हर्ष मंदर

पाराॅजय गुहा ठाकुराता

संजय काक

निखिल वागले

सागरिका घोष

डेक्सटर फिकीन्स, न्यू यार्कर

राना अयूब

समित बसु 

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