यूपी: चकिया में वन विभाग और प्रशासन ने छीनी आदिवासियों की 80 हेक्टेयर जमीन, 10 अप्रैल को आक्रोश सभा

चकिया, चंदौली। चंदौली के चकिया तहसील क्षेत्र में पीढ़ियों से खेती करते आ रहे आदिवासियों-वनवासियों व मेहनतकश किसानों की खड़ी फसल को वन विभाग द्वारा पुलिस फोर्स के दम पर नष्ट कर उनकी जमीन छीनने और पुलिस फोर्स का इस्तेमाल कर वनवासियों व मेहनतकश किसानों के अंदर दहशत पैदा करने के मंसूबों के खिलाफ ‘मेहनतकश मुक्ति मोर्चा’ ने 10 अप्रैल को आक्रोश मार्च, धरना एवं सभा का आयोजन किया है। मोर्चा के सदस्य गत एक हफ्ते से वन विभाग की कार्रवाई से पीड़ित व उजाड़े गए आदिवासी, वनवासी, किसान और मजदूरों से मिलकर आक्रोश मार्च और सभा में शामिल होने के लिए पर्चे का वितरण कर रहे हैं। पर्चे पर खुले तौर पर वन विभाग की कार्रवाई का विरोध और प्रशासन के दमनात्मक रैवये के खिलाफ लंबी लड़ाई का ऐलान किया गया है। पर्चे पर छापे गए संदेश को कुछ यूं पढ़ा जा सकता है-

वन विभाग मुर्दाबाद! जल-जंगल-जमीन की लड़ाई ज़िंदाबाद!!

चकिया चलो! चकिया चलो!! चकिया चलो !!!

‘गत 29 जनवरी 2023 को चकिया तहसील से मात्र 15 किलोमीटर दूर वन क्षेत्र के आसपास के गांवों रामपुर, मुसाहीपुर, भभौरा, पीतपुर, केवलखाण कोठी, बहेलियापुर के गरीब व मेहनतकश किसानों की लगभग 80 हेक्टेयर कृषि योग्य उपजाऊ जमीन को वन विभाग द्वारा अपना बताते हुए जब्त कर लिया गया। वन विभाग ने बिना कोई नोटिस दिए अचानक से भारी पुलिस का इस्तेमाल करते हुए लोगों के अंदर दहशत पैदा कर सरसो, चना, अरहर, मसूर, गेहूं आदि की उनकी खड़ी फसल को नष्ट कर दिया और उनके खेतों में खाई खोदनी शुरू कर दी थी। वनवासी किसानों ने पीढ़ियों से उस जमीन को जोतने व खेती करने का वन विभाग से दावा किया, कुछ ने अपने पट्टे भी दिखाए। लेकिन ताकत के मद में चूर वन विभाग व सरकारी नुमाइंदों ने उनकी एक न सुनी। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ये तो अभी टेलर है, पूरी पिक्चर अभी बाकी है।

अडानी-अंबानी-मित्तल-वेदांता को सौंपे जा रहे जंगल और पहाड़

पूरे मुसाखाड़, चकिया, नौगढ़ के वन क्षेत्र के गरीब व मेहनतकश जनता के ऊपर वन विभाग, सिंचाई विभाग व सरकार का अत्याचार बढ़ता जा रहा है। सरकार ने गरीब व मेहनतकश किसानों के जमीन के पट्टे निरस्त करने शुरू कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर, नेपाल बॉर्डर के तमाम जिलों, बुंदेलखंड, बिहार के कैमूर व रोहतास जिले और देश के तमाम राज्यों में सरकार व वन विभाग का आतंक आदिवासी व गैर आदिवासी, वनवासी जनता पर बढ़ता जा रहा है। कहीं बाघ अभ्यारण्य, कहीं गाछी व पेड़ लगाने के नाम पर तो कहीं, खनन के लिए गांव के गांव उजाड़े जा रहे हैं।

10 अप्रैल के आक्रोश मार्च और धरने में शामिल होने की अपील करते कार्यकर्ता

दरसल जंगल तो बहाना है वास्तव में जंगल की सारी जमीन, पहाड़ आदि को खनन के लिए सरकार देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करना चाहती है। झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सरकार विदेशी कंपनियों और अडानी-अम्बानी-मित्तल-वेदांता जैसी कंपनियों को पूरे जंगल-पहाड़ को खनन के लिए सौंप चुकी है या सौंप रही है। जिससे देश के इन राज्यों में आदिवासी किसानों और राज्यसत्ता के बीच एक भीषण युद्ध छिड़ा हुआ है।

लखीमपुर में भी निशाने पर आदिवासी और किसान

हाल ही में उत्तरप्रदेश के लखीमपुर में पीढ़ियों से रहते व खेती करते आ रहे 54 गांवों को अवैध बताकर उनको गांव व खेती की जमीन से बेदखल करने का आदेश जारी हो चुका है। कैमूर-रोहतास में बाघ अभ्यारण्य (टाइगर रिजर्व) के नाम पर आदिवासी व गैर आदिवासी जनता को उसकी जीविका के परम्परागत साधनों महुआ, पियार, लकड़ी आदि से वंचित किया जा रहा है। उनके ऊपर अत्याचार व दमन किया जा रहा है ताकि वो जंगल-पहाड़ और अपना गांव छोड़कर चले जाएं। इससे शासक वर्ग को दोहरा फायदा होगा। एक तो उन्हें अपनी लूट के लिए प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इलाके मिल जाएंगे, दूसरे इन इलाकों से हजारों गांवों के विस्थापित होने के बाद शहरों में उनको सस्ते मजदूर मिलेंगे। जो बेरोजगारी के कारण केवल दो टाइम भोजन पर भी काम करने को तैयार होंगे।

केंद्र व राज्य की सरकारें खासकर मोदी-योगी की डबल इंजन की मनुवादी-फासीवादी सरकार अमेरिकी साम्राज्यवादियों के निर्देश पर जिस विकास मॉडल को देश की जनता पर थोप रही है वो विकास का नहीं विनाश का मॉडल है। यह मॉडल देश को कृषि प्रधान देश से कटोरा प्रधान देश बना देगी। यह विकास मॉडल विदेशी साम्राज्यवादियों, बड़े पूंजीपतियों और सामंती जमींदारों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। मेहनतकश जनता को जातीय गोलबंदी की ओर धकेल कर जातियों और धर्मों में बांटकर, अलग-अलग जातियों के नेताओं को खरीदकर मेहनतकश जनता की एकता को खंड-खंड किया जा रहा है।

पूंजीपति क्रेसर व लकड़ी कटाई का प्लांट लगाकर उजाड़ रहे जंगल-पहाड़

साम्राज्यवादी देशों व देश के दलाल शासक वर्गों के फायदे के लिए हमारे जल-जंगल-जमीन व श्रम को कौड़ियों के भाव नीलाम किया जा रहा है। तथाकथित विकास के नाम पर 1951 से लेकर आज तक 6.5 करोड़ लोगों को विस्थापित कर 4 करोड़ एकड़ जमीन केंद्र व राज्य की सरकारों द्वारा जनता से जबरदस्ती छीना गया है। उनमें से 10% लोगों का भी पुनर्वास नहीं हुआ। आज़मगढ़ में पिछले 6 महीनों से अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने के विरोध में आंदोलन चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के नाम पर 8 गावों को उजाड़ा जा रहा है।

वन विभाग की कार्रवाई से पीड़ित चकिया के आदिवासी

जंगल व पहाड़ को कौन नष्ट कर रहा है यह जनता से छुपा नहीं है। अहरौरा, नौगढ़, सोनभद्र, बुंदेलखंड के हरे भरे पहाड़ व जंगल उजाड़ हो गए। क्या इन पहाड़ों व जंगलों को जनता काट ले गई? नहीं वहां वन विभाग व सरकार की सहमति से क्रेसर प्लांट व लकड़ी कटाई का प्लांट लगाकर पूंजीपतियों व ठेकेदारों ने जंगल-पहाड़ को उजाड़ दिया। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के घने जंगलों को आदिवासी जनता के तमाम विरोध के बावजूद अडानी के प्रस्तावित खनन के लिए काटा जा रहा है। यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है।

लूट से मिली दलाली का हिस्सा कर रहा गुमराह

मुग़लसराय-पचफेडवा से कलकत्ता तक माल ढुलाई के लिए 610 किलोमीटर का एक्सप्रेसवे बनाया जा रहा है जिस पर आप अपना वाहन भी नहीं चढ़ा सकते। इस एक्सप्रेसवे पर टोल टैक्स देकर केवल लंबी दूरी की गाड़ियां चढ़ेंगी। सैकड़ों गांव व लाखों एकड़ बहुफसली जमीन देशी-विदेशी लुटेरी कंपनियों के भेंट चढ़ जाएगी। इस देश की शांति पसंद जनता को युद्ध की आग में झोंका जा रहा है। यह सैकड़ों सिक्स लेन सड़कें, फ्रेड कॉरिडोर, हवाई अड्डे, बंदरगाह जनता की सुविधा के लिए नहीं बल्कि जंगलों-पहाड़ों से खनिज संपदा को लूटकर ट्रकों, ट्रेनों, जहाजों व जल मार्गों से जापान, अमेरिका व यूरोपीय देशों के पूंजीपतियों तक पहुंचाने के लिए बनाए जा रहे हैं। लूट से मिली दलाली का एक हिस्सा तमाम जातियों के नेताओं, धर्मगुरुओं, मीडिया संस्थानों, पार्टियों को देकर उन्हें अपनी ओर मिला लिया गया है। ताकि वो असली मुद्दों पर बात न करें और जनता को जाति-धर्म के मुद्दों पर गुमराह करें व जातीय और धार्मिक उन्माद को तेज करें।

पीड़ितों और चकिया क्षेत्र के लोगों से मेहनतकश मुक्ति मोर्चा की अपील

जिन्हें इंसानों से प्यार नहीं है कि उनके बच्चों को शिक्षा मिल रही है या नहीं, बीमार होने पर उनका इलाज हो पा रहा है कि नहीं, उन्हें सम्मानजनक रोजगार, गुणवत्तापूर्ण भोजन मिल पा रहा है या नहीं, उनको इज्जत के साथ जीने का अधिकार मिल पा रहा है या नहीं, उन्हें भला बाघों, वन्य जीवों और जंगलों की कितनी चिंता होगी? वक़्त आ गया है कि इस अन्याय व अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाएं।

चकिया तहसील के वन क्षेत्रों की जनता से मेहनतकश मुक्ति मोर्चा (MMM) यह कहना है कि आज जो लूट, अत्याचार व जबरदस्ती वन विभाग व सरकार द्वारा मुसाहीपुर, रामपुर, भभौरा, पीतपुर आदि के गांवों की जनता के साथ किया जा रहा है वो बहुत जल्द ही और बहुत तेज गति से आप के साथ भी होने वाला है। आज अगर आप चुप रहे तो कल आपके पक्ष में भी कोई बोलने वाला नहीं होगा। आज़ादी और अधिकार भीख मांगने से नहीं मिलते और न ही 5 वर्ष पर EVM मशीन पर ठप्पा लगाने से मिलते हैं। उसके लिए संघर्ष करना पड़ता है। पिछले 75 सालों से बहुत सी पार्टियां आयीं और गयीं लेकिन मेहनतकश जनता की ज़िंदगी में कोई भी उल्लेखनीय बदलाव नहीं हुआ।

10 अप्रैल के कार्यक्रम का पोस्टर

अब तो मोदी-योगी की सरकार ने चुनाव आयोग, न्यायपालिका, सेना, सीबीआई, मीडिया जैसी सारी संस्थाओं पर कब्जा जमा लिया है। सड़क पर उतरकर लड़ाकू संघर्ष छेड़ने के अलावा जनता के पास और कोई चारा नहीं बचा है। मेहनतकश मुक्ति मोर्चा (MMM) का वन क्षेत्र व मैदानी इलाकों की जनता, छात्रों-नौजवानों, दुकानदारों, बुद्धिजीवियों आदि से यह अपील है कि 10 अप्रैल को 11 बजे काली माता मंदिर (चकिया) से चकिया तहसील तक होने वाले आक्रोश मार्च, धरना व सभा में भारी संख्या में शामिल हों।

मेहनतकश मुक्ति मोर्चा (MMM) के सदस्य राकेश विद्यार्थी ने जनचौक को बताया कि 10 अप्रैल को चकिया तहसील में आक्रोश मार्च, धरना व जनसभा का आयोजन कर हम मांग करेंगे कि रामपुर, मुसाहीपुर, भभौरा, पीतपुर, केवलखाण कोठी, बहेलियापुर आदि गांवों की जनता से छीनी गई कृषि योग्य उपजाऊ जमीन को वन विभाग व सरकार द्वारा तत्काल वापस करे। चकिया व नौगढ़ तहसील के वन क्षेत्र में खेती कर रहे वनवासी, आदिवासी व मेहनतकश किसानों के आवासीय और खेती की जमीन का स्थायी पट्टा और खतौनी दी जाए, और वन विभाग, सिंचाई विभाग, जिला प्रशासन व सरकार वनवासी व गरीब-मेहनतकश किसान जनता को पुलिस बल का इस्तेमाल कर डराना-धमकाना बंद करे।

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(चंदौली के चकिया से पवन कुमार मौर्य रिपोर्ट)

पवन कुमार मौर्य
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