स्पेशल स्टोरी: गर्भ में ही लाडो को मार दिया जा रहा है बिहार में

“मेरी बहन रंजू को तीन बेटी पहले से था। इसलिए जब चौथी बार गर्भवती हुई तो घर वालों ने जांच कराया। गर्भ में बेटी पल रही थी इसलिए गर्भपात कराने का निर्णय लिया। 2020 के अगस्त महीने में ही गर्भपात के दौरान ही मेरी बहन और उसकी बेटी मर गई। गांव की ही आशा कर्मी की मदद से गर्भपात कराया जा रहा था। गांव के जिस नर्सिंग होम में गर्भपात कराया जा रहा था। वहां के डॉक्टर अब जेल से भी निकल चुके हैं। नर्सिंग होम फिर से चालू है। फिर से किसी बेटी को घर में मारा जा रहा है। मेरे जीजाजी और उनके घर वाले भी आजाद घूम रहे है।” लखीसराय के सत्यम बताते हैं। लखीसराय जिला मुख्यालय में सीएस कार्यालय से महज 100 कदम दूरी पर स्थित निजी नर्सिंग होम में यह घटना हुई थी।

बिहार में ऐसे कई सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और नर्सिंग होम में गर्भवती महिला का गर्भपात धड़ल्ले से किया जा रहा है।

तभी तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के कुल 38 जिलों में से 18 में नवजात शिशुओं का लिंगानुपात एक हजार के मुकाबले 900 से कम है।

मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, सारण, बक्सर भोजपुर, औरंगाबाद गया, अरवल, शेखपुरा, भागलपुर, समस्तीपुर, कटिहार, लखीसराय नवादा, अररिया, सुपौल मधुबनी और दरभंगा जैसे 18 जिलों में नवजात शिशुओं का लिंगानुपात बहुत कम हैं। 11 जिले की स्थिति संतोषजनक और 8 जिले की स्थिति बेहतर है। एक आंकड़े के अनुसार बिहार में प्रत्येक साल 52000 बेटियां गर्भ में मार दी जाती हैं।

ओ पगली, लड़कियां हवा, धूप, मिट्टी होती हैं

‘ओ पगली, लड़कियां हवा, धूप, मिट्टी होती हैं।’ यह पंक्तियां मशहूर लेखिका अनामिका का लिखा हुआ है। जिन्हें 2020 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला की अनामिका जहां साहित्य अकादमी पुरस्कार जीत रही हैं वहीं उनके शहर मुजफ्फरपुर में भारत में सबसे ज्यादा गर्भपात होता है। यह मैं नहीं बल्कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट कह रही है। जिसके अनुसार मुजफ्फरपुर जिला में पिछले पांच साल में एक हजार बालकों के मुकाबले 685 बालिकाओं ने ही जन्म लिया है। यानी नवजात शिशुओं के लिंगानुपात के मामले में मुजफ्फरपुर देश का सबसे पिछड़ा जिला है।

सीएम नीतीश कुमार और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी स्त्री सशक्तिकरण के लिए मानव श्रृंखला के दौरान

मुजफ्फरपुर के स्थानीय पत्रकार संदीप के अनुसार औद्योगिक शहर मुजफ्फरपुर में बड़े पैमाने पर अवैध लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या का कारोबार फल-फूल रहा है।

शहर के जूरन छपरा मोहल्ला में छोटी-छोटी गलियों में बने डॉक्टरों, दवा-दुकानों और जांच घरों के साइनबोर्ड काफी संख्या में मिलते हैं। जहां अस्पताल खोलने के लिए किसी भी लाइसेंस की जरूरत नहीं पड़ रही है। प्रशासन खामोश है, शायद इसलिए यह गली चिकित्सकीय व्यवसाय की गलत प्रैक्टिस के लिए भी बदनाम है। गौरतलब है कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड को लेकर बहुत बदनाम हुआ था। जिस जगह ऑपरेशन थिएटर में लड़कियों को जबरन गर्भपात कराया जाता था।

सरकार जिम्मेदार है

गैर लाभकारी संस्था ग्राम विकास परिषद की हेमलता पांडे मानव तस्करी, बाल श्रम और बाल विवाह के विरोध में किए अपने बेहतरीन कार्य के लिए जानी जाती हैं। वो बताती हैं कि, ” हमें इसकी जड़ को समझना पड़ेगा। बिहार में मजबूती से खड़ा बेरोजगारी, बेकारी और गरीबी का आंकड़ा लड़कियों को गर्भपात में मारने और बेचने को विवश करता है। कोसी और सीमांचल क्षेत्र में लड़कियों को हरियाणा और पंजाब में बेचा जा रहा है। इससे तो बेहतर है कि पेट में ही मार दिया जाए। गरीबी और अज्ञानता की वजह से बाहर जाकर कमाने वाला बिहारी गरीबी से मरने को इतना मजबूर है कि वो रुढ़िवादी परम्पराओं और कुरीतियों के खिलाफ लड़ ही नहीं पा रहा है। सरकार कानून के बल पर इसको खत्म नहीं कर सकती है। इसलिए जिस इलाके में जितनी गरीबी है वहां लड़कियों की स्थिति उतनी ही बद से बदतर है।”

गर्भस्थ शिशुओं के लिंग परीक्षण को प्रतिबंधित करने के लिए 1994 में देश में पीसी-पीएनडीटी ऐक्ट बना हुआ है। जिस एक्ट के तहत कड़ी सजा का प्रावधान है, अल्ट्रासाउंड सेंटरों के लिए कई तरह के नियम निर्धारित किए गए हैं और केंद्र, राज्य और जिले में इनकी नियमित निगरानी के लिए कमेटियां भी गठित हुई हैं।

बेटा जरूरी है

गरीबी और भुखमरी की वजह से बेटियों का गर्भपात तो समझ में आता है। लेकिन सुपौल के बीना पंचायत के रहने वाले सत्यनारायण मिश्रा(बदला हुआ नाम) 6 बेटी होने के बाद बेटा के इंतजार में है। समृद्ध परिवार से संबंध रखते हैं सत्यनारायण बताते हैं कि, “खानदान बेटा से बढ़ता है बेटी से नहीं। अगर बेटा नहीं हुआ तो आप कभी भविष्य में याद भी नहीं किए जाएंगे। साथ ही धर्म ग्रंथ के अनुसार बेटे के हाथ से मुखाग्नि के बाद ही आत्मा को शांति मिलेगी। आपका बेटा होना बहुत जरूरी है।” गरीबी और भुखमरी के साथ-साथ ऐसी सोच को ख़त्म करके ही स्त्री सशक्तिकरण संभव है।

डीडी किसान पर प्रसारित हुआ सीरियल ‘सौ बहनों की लाडली’ बिहार के भ्रूण हत्या पर बनी थी। इस धारावाहिक के प्रोड्यूसर ‘आजाद झा’ बिहार में तेजी से फैल रहे भ्रूण हत्या पर बताते हैं कि, “जानकर आश्चर्य होगा कि इस तरह की घटनाएं गांव के अलावा शहरों में भी देखने को मिलती हैं। शिक्षित और समृद्ध परिवारों में कन्या भ्रूण हत्या होती है। इसके पीछे धार्मिक आर्थिक सामाजिक के अलावा भावनात्मक कारण भी होते हैं। सामाजिक जागरूकता करके ही इस पाप को खत्म किया जा सकता है।”

(बिहार से राहुल की रिपोर्ट।)

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