ग्राउंड से चुनाव: गहलोत-पायलट विवाद के चलते कांग्रेस को 40 सीटों पर भारी पड़ रही गुर्जरों की नाराजगी

दौसा। सिकराय विधानसभा सीट दौसा जिले की पांच सीटों में से एक है। गहलोत सरकार में बाल एवं महिला विकास मंत्री ममता भूपेश यहां से फिर से मैदान में हैं। भरतपुर-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर कांग्रेस का चुनाव कार्यालय है, जो प्रमुख पदाधिकारी कार्यालय में मिले वो गुर्जर समुदाय के हैं। यह सीट अनुसूचित जाति की आरक्षित सीट है।

इस बार किसका जोर है यानी जो वोट 2018 में कांग्रेस को मिला था क्या वही इस बार होने वाला है? तो एक कांग्रेस कार्यकर्ता तपाक से बोल पड़े, ‘मैं गुर्जर समाज से हूं लेकिन इस बार पूरा गुर्जर समाज कांग्रेस को वोट नहीं देगा’। सवाल हुआ, आप तो कांग्रेस कार्यकर्ता हैं, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? कार्यकर्ता का जवाब था, ‘मेरे परिवार व मेरा वोट कांग्रेस को जाएगा लेकिन सचिन पायलट के साथ हुई नाइंसाफी के कारण पूरे राजस्थान में समूचा गुर्जर समाज इस बार कांग्रेस से मुंह मोड़ चुके हैं’।

विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने भले ही अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सुलह करवाकर सार्वजनिक बयानबाजी पर विराम लगा दिया है। लेकिन ज़्यादातर होर्डिंग और बैनरों में सचिन पायलट की फोटो गायब है। इससे आम गुर्जर वोटर्स और पायलट समर्थक मान बैठे हैं कि इस बार भी गहलोत खुद ही मुख्यमंत्री बनेंगे तो ऐसी कांग्रेस को सत्ता में लाने को गुर्जर मतदाता तैयार नहीं है।

आकलन यह है कि राज्य के करीब 7 जिलों की 40 सीटों पर गुर्जर वोटर की नाराजगी कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ कर देगी। ये जिले हैं- दौसा, जयपुर ग्रामीण, अलवर, भरतपुर, करौली, सवाई माधोपुर, तुनक और झालावाड़। इन जिलों की 40 सीटों पर करीब 20 से 40 हजार गुर्जर वोटर हैं। इसके अलावा धौलपुर और अजमेर तक कुछ और विधानसभा सीटों पर गुर्जर मतदाताओं की नाराजगी छिटपुट संख्या में ही सही, कड़े मुकाबले की सीटों पर कांग्रेस की जीत को हार में बदल सकती है।

कांग्रेस ने इस बार सचिन पायलट समेत सात गुर्जर उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। लेकिन गुर्जर मतदाता कांग्रेस को केवल गुर्जर उम्मीदवार वाली सीटों पर वोट डालेंगे और बाकी जगह भाजपा को वोट देंगे। दौसा जिले में पिछले विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की खातिर सर्व समाज ने गुर्जर मतदाताओं के साथ खुलकर कांग्रेस को वोट दिया था। इसी वजह से कांग्रेस की ममता भूपेश 50 हजार वोटों से चुनाव जीती थीं। लेकिन इस बार खुद कांग्रेस कार्यकर्ता ही मान रहे हैं कि उनकी जीत जितने वोटों से हुई थी उतने ही वोटों से उनकी करारी हार होना तय है।

सिकराय व दौसा के साथ लालसोट, बांदीकुई और महुआ में पांचों सीटों पर कांग्रेस को गुर्जर समुदाय की नाराजगी के अलावा गहलोत सरकार में पेपर लीक से लेकर टेंडरों की बंदरबांट में भारी घपले-घोटाले यहां आम आदमी की जबान पर हैं। दौसा जिले की पांचों सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की नाजुक हालत के लिए सचिन पायलट के समर्थकों और गूर्जर मतदाताओं की गहरी नाराजगी के अलावा पेपर लीक कांड जिम्मेदार बन रहा है।

दौसा में यह मानने वालों की कमी नहीं, जो साफ़ मानते हैं कि अगर गुर्जर समाज पूरी तरह से कांग्रेस के साथ भी आ जाए तो भी कांग्रेस गहलोत सरकार में हुए 14 पेपर लीक कांडों में इतनी बदनाम हो चुकी है कि जिन हजारों लाखों नौजवानों का भविष्य भ्रष्टाचार के कारण तबाह हो गया, वे सभी और उनके माता पिता और नाते-रिश्तेदार गहलोत सरकार को दोबारा सत्ता में कैसे बर्दाश्त कर सकेंगे। पेपर लीक से सबसे ज्यादा प्रभावित पढ़े-लिखे नौजवानों का गुस्सा सर चढ़कर बोल रहा है।

पेपर लीक के चलते करीब 1 करोड़ वोट का खामियाजा कांग्रेस को इसलिए भी भुगतना पड़ेगा, क्योंकि बड़ी तादाद में गहलोत सरकार के करीबी लोगों और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सिंह डांटासारा के परिवारजनों को राज्य सिविल सेवा परीक्षा में सामान अंकों के साथ नौकरी मिल गयी। पुलिस-दरोगा भर्ती समेत सभी नौकरियों के पेपर लीक हुए। एक-एक पेपर तीन-तीन बार लीक हुए।

दौसा गांव के कन्हैया लाल गुर्जर (50 वर्ष) यहां ट्रैक्टर शोरूम में काम करते हैं। वे भले ही दौसा में मुरारीलाल मीणा की जीत के प्रति आश्वस्त हैं लेकिन उनका मानना है कि इस बार बाकी सीटों पर सचिन पायलट फैक्टर के कारण मुख्यमंत्री गहलोत से गुर्जर वोटर बहुत नाराज हैं।

क्या सचिन पायलट और अशोक गहलोत अगर यहां दौसा में साझा जनसभा करने आए तो कांग्रेस उम्मीदवारों की हालत सुधर सकती है? तो इस पर स्थानीय युवक नायाब सिंह गुर्जर कहते हैं, “सचिन पायलट के साथ कांग्रेस आलाकमान ने धोखा किया है। उनका अपमान गुर्जर कौम ने अपना खुद का अपमान माना है।”

ईस्टर्न कैनाल जल परियोजना से निराश मतदाताओं और विपक्षी भाजपा का आरोप है कि गहलोत सरकार साढ़े चार साल तक निष्क्रिय बनी रही। कई अंचलों और ग्रामीण क्षेत्रों में 7 से 10 दिन तक लोगों को पीने का पानी नसीब नहीं हो पता। कोई ऐसा दिन नहीं जब 2 से 3 बार बिजली कटौती नहीं होती।

वहीं डीज़ल-पेट्रोल पर राजस्थान सरकार द्वारा पड़ोसी यूपी के मुकाबले ज़्यादा वैट वसूली से आम लोगों की तकलीफें कई गुना बढ़ी हैं। महंगे ईंधन का सीधा दुष्प्रभाव महंगाई पर पड़ा है। भले ही लोग डीजल-पेट्रोल के दामों के लिए केंद्र की मोदी सरकार को भी ज़िम्मेदार मानते हैं, लेकिन बाकी मुद्दों के साथ महंगाई के सवाल पर भी गहलोत सरकार मतदाताओं के निशाने पर है।

(वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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