हेलंग ने जगा दिया उत्तराखंडियों का जमीर

उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के सिरहाने पर बसे हेलंग गांव के लोग आजकल अपने जंगल और चारागाह को बचाने के लिए संघर्षशील हैं। इसकी वजह यह है कि उनके चारागाह का इस्तेमाल इस क्षेत्र में निर्माणाधीन पीपलकोटी विष्णु गाड जल विद्युत परियोजना से निकल रहे मलवा के डंपिंग जोन के रूप में किया जा रहा है।

इस बांध को बनाने वाली कंपनी टीएचडीसी और इसकी सहयोगी अन्य निर्माण कंपनियों के द्वारा इस चारागाह के अंदर के सभी पेड़ों को धीरे-धीरे काटा जा रहा है। इसकी स्वीकृति निश्चित ही वन विभाग से मिली है। राज्य सरकार उनकी मदद कर रही है। लेकिन हेलंग गांव के लोगों का पशुपालन यहां की चारा पत्ती पर निर्भर है। गांव के लोगों ने अपनी पारंपरिक व्यवस्था के आधार पर इस चारागाह का संरक्षण किया है लेकिन उनको पूछे बगैर आज इस चारागाह पर मलवा डाला जा रहा है। 

उसके कुछ हिस्सों में बची हुई घास को महिलाएं रोज काट कर ले जाती हैं। जब 15 जुलाई को यहां की महिलाएं मंदोदरी देवी, लीला देवी, विमला देवी, संगीता आदि इस चारागाह से घास काट कर ले जा रही थीं तो केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के लोगों ने उनसे घास छीनना शुरू कर दिया। और उन्हें दूर जोशीमठ थाने में ले जाकर  6 घंटे तक बिठा कर रखा। महिलाएं अपने चारागाह और घास को बचाने के लिए बहुत चिल्लायीं लेकिन सुरक्षा बल के जवानों ने इसकी कोई परवाह नहीं की। उन्हें इतना अपमानित किया कि उन पर जुर्माना भी काट दिया गया। अब किसी के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि उत्तराखंड के लोग कैसे गांव में रहेंगे? क्योंकि गांव में रहने वाले पशुपालन का काम करते हैं और पशुपालन के लिए उन्हें चारागाह चाहिए ही चाहिए।

उत्तराखंड में कई स्थानों पर चारागाह या तो चौड़ी सड़कों के निर्माण के मलवे का डंपिंग यार्ड बन गया है या इसी तरह बांधों से निकल रहे मलवे के उपयोग में आ रहे हैं ।और भी कई कारणों से चारागाह संकट में है। 

चमोली जिले का यह सीमांत क्षेत्र चिपको आंदोलन की धरती रही है। यहां से गौरा देवी ने दुनिया के लोगों के सामने जंगल बचाने की मिसाल कायम की है। आज भी कई गांव में महिलाएं अपने जंगल व चारागाह बचाने के लिए संघर्षशील हैं। गौरा देवी का काम अभी भी गांव-गांव में चल रहा है। लेकिन अभी की परिस्थिति ऐसी है कि कोई सुन नहीं रहा। ऐसा लगता है कि राज -समाज के बीच में 36 का आंकड़ा आ गया है।

उत्तराखंड के लोगों की जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा और इसके संतुलित दोहन के लिए क्या-क्या उपाय हो सकते हैं, कई बार इस संबंध में राज्य सरकार को लोग ज्ञापन सौंप चुके हैं।  

इसके बावजूद भी न तो कोई मंत्री न कोई विधायक या अन्य प्रतिनिधि इस पर बात करने के लिए तैयार है। इस घटना के बाद इस सूचना को प्रेषित करने तक हेलग गांव की इन महिलाओं को मिलने के लिए शासन -प्रशासन का कोई व्यक्ति वहां नहीं पहुंचा है।

यह बहुत चिंता का विषय है। इससे निश्चित ही लोग आंदोलित होंगे और एक न एक दिन चिपको, रक्षा सूत्र, छीना झपटो, जंगल बचाओ जैसे आंदोलन फिर से शुरू हो सकते हैं। और इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। प्रदेश स्तरीय प्रदर्शन के बाद अब 24 जुलाई को हेलंग चलो का आह्वान किया गया है।

(गोपाल लुधियाल एक्टिविस्ट हैं और आजकल उत्तराखंड में रहते हैं।)

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