कैसे गाजा की प्राकृतिक गैस एक अंतर्राष्ट्रीय सत्ता संघर्ष का बन गयी केंद्र?

(यह लेख 26 फरवरी, 2015 को एक अंग्रेजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। मगर यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। यह लेख संसाधनों के औपनिवेशिक दावेदारी और उससे उपजने वाले युद्ध को दर्शाता है। अमूमन इस विषय पर अधिकांश लेख पश्चिमी मूल्यों की अपर्याप्तता को चिन्हित करते हैं और इसलिए ये मूल्य फिर से बहस का विषय हैं। इसका कारण यह है कि इन मूल्यों के आधार पर ही इजराइल अपनी कार्रवाई को वैधता प्रदान करने की कोशिश करता है। इस वजह से ऐसे लेखों का अपना महत्व है मगर इसकी अपनी एक सीमा है। यह उन वैचारिक प्रतिमानों की आलोचना तो करता है जिससे औपनिवेशिक ताकतों को बल मिलता है, लेकिन औपनिवेशिक संरचनाओं का विश्लेषण नजर से ओझल हो जाता है। यह लेख इस लिए औपनिवेशिक अधिरचना की जगह फिर से औपनिवेशिक संरचना को केंद्र में ले आता है। इस लेख का दूसरा मुख्य सरोकार पर्यावरणीय संकटों की ओर ध्यान खींचना है।-अनुवादक)

क्या आपको इस बात का अंदाज़ा है कि पश्चिम एशिया में जंग, विद्रोह और कई दूसरे कलह एक ही धागे से जुड़े हुए हैं, जो एक नए खतरे की आहट भी हैं? ये संघर्ष जीवाश्म ईंधन को खोजने, उन्हें निकालने और बाजार तक उन्हें ले आने की बढ़ती हुई जुनूनी प्रतिस्पर्धा का हिस्सा हैं, और जिनकी खपत विनाशकारी पर्यावरणीय संकटों की गारंटी है।

जीवाश्म-ईंधन को लेकर इस क्षेत्र में कई संघर्ष चल रहे हैं, इनमें से एक के केंद्र में इजराइल है जिसे काफी हद तक नजरंदाज किया गया है, जो कई छोटे और बड़े खतरों से लबरेज है। इसकी शुरुआत के लिए हम पीछे 1990 के दशक के प्रारम्भ में जा सकते हैं जब इजराइल और फिलिस्तीनी नेताओं ने गाजा के तट से दूर भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस के भण्डार होने की अफवाह पर चर्चा शुरू कर दी थी। आने वाले दशकों में, यह कई मोर्चों वाले संघर्ष में तबदील हो गया, जिसमें कई सेनाएं और तीन नौ सेनाएं शामिल हैं। यह प्रक्रिया पहले ही हजारों फ़िलिस्तीनियों के भयावह दुख की वजह रही है, और यह सीरिया, लेबनान और साइप्रस के लोगों के लिए भी भविष्य में आने वाले नए दुख की आशंकाओं से जुड़ा हुआ है। आख़िरकार, यह इज़रायलियों को लिए भी दुखद हो सकता है।

बेशक, संसाधनों के लिए युद्ध कोई नई बात नहीं है। दरअसल पश्चिमी उपनिवेशवाद और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का वैश्वीकरण का पूरा इतिहास औद्योगिक पूंजीवाद के निर्माण या रखरखाव के लिए आवश्यक कच्चे माल और बाजार को खोजने के प्रयासों से प्रेरित रहा है। फ़िलिस्तीनी भूमि पर इज़राइल का विस्तार और कब्ज़ा भी इसकी एक मिसाल है। लेकिन इजराइल-फिलिस्तीनी संबंधों में जीवाश्म ईंधन का मुद्दा सिर्फ 1990 के दशक में केंद्र में आया, और शुरुआती दौर का यह सीमित संघर्ष 2010 के बाद सीरिया, लेबनान, साइप्रस, तुर्की और रूस तक फैल गया।

गाजा के प्राकृतिक गैस का विषैला इतिहास

1993 में, जब इज़राइल और पैलेस्टिनियन अथॉरिटी (पीए) ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे थे, जिसमें यह माना गाया था कि इसका मकसद गाजा और वेस्ट बैंक पर इजराइल के कब्जे का खात्मा और एक संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना है, तब गाजा का समुद्र तट उनके ख्याल में नहीं था। इसका अंजाम यह हुआ कि, इज़राइल ने इस बात पर अपनी रजामंदी जाहिर की कि नव निर्मित पीए अपने क्षेत्रीय जल को पूरी तरह से नियंत्रित करेगा, हालांकि इज़राइली नौसेना अभी भी इस क्षेत्र में गश्त लगा रही थी। इस अफवाह से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा कि वहां प्राकृतिक गैस का भंडार है, क्योंकि तब कीमतें काफी कम और आपूर्ति बहुत ज्यादा थी। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फिलिस्तीनियों ने वैश्विक प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी – ब्रिटिश गैस (बीजी) को इस मामले की जाँच पर बुलाने में कोई हड़बड़ी नहीं दिखाई और उन्हें आराम से बुलाया गया – ताकि यह पता लगाया जा सके कि वास्तव में वहां क्या था। तब जा कर कहीं साल 2000 में दोनों पक्षों ने उस समय तक जिन क्षेत्रों की पुष्टि हो चुकी थी उन क्षेत्रों को विकसित करने के लिए एक मामूली अनुबंध पर हस्ताक्षर किया।

बीजी ने 90% राजस्व की हिस्सेदारी के बदले में उनके विकास को वित्त पोषित करने, उसका रख-रखाव करने और सभी लागतों को वहन करने का वादा किया। यह एक शोषणकारी मगर “लाभ के बंटवारा” के खास प्रचलन के तहत किया गया समझौता था। मिस्र जिसके पास पहले से ही कार्यरत प्राकृतिक गैस उद्योग मौजूद थे, गैस के लिए तट पर एक हब और पारगमन बिंदु (ऐसी जगह जहाँ से सारी पाइप लाइन गुजरेंगी) बनने के लिए सहमत हुआ। सौदे के मुताबिक फ़िलिस्तीनियों को राजस्व का 10% (कुल अनुमान के मुताबिक लगभग एक अरब डॉलर) दिया जाना था और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें पर्याप्त गैस देने की गारंटी की गयी थी।

अगर यह प्रक्रिया थोड़ी तेजी से आगे बढ़ी होती, तो अनुबंध, जैसा वह लिखित रूप में था, साकार हो गया होता। हालाँकि, 2000 में, एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में, जीवाश्म ईंधन की कमी और अपने तेल-समृद्ध पड़ोसियों के साथ खराब संबंधों के कारण इज़राइल ने खुद को एक पुरानी समस्या, ऊर्जा-संसाधनों की तंगी, से जूझता हुआ पाया। ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों को विकसित करने के आक्रामक लेकिन व्यवहारिक प्रयास के माध्यम से इस समस्या का समाधान करने के बजाय, प्रधानमंत्री एहुद बराक ने एक ऐसा रास्ता चुना जिसने पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन के लिए संघर्ष के एक नए युग की शुरुआत की। उन्होंने गाजा के तटीय जल पर इज़राइली नौसेना का नियंत्रण कायम किया और बीजी के साथ समझौता रद्द कर दिया। इसके बजाय, उन्होंने मांग की कि इजराइल, न कि मिस्र, गाजा के गैस का हिस्सेदार रहेगा और वह फिलिस्तीनियों के लिए तय सभी राजस्व को भी नियंत्रित करेगा – ताकि इस पैसे से “आतंकवाद को वित्त पोषित करने” के किसी भी कोशिश को नाकाम किया जा सके।

इसके साथ ही ओस्लो समझौता आधिकारिक तौर पर ख़त्म हो गया। गैस के राजस्व पर फ़िलिस्तीनी नियंत्रण को नामंजूर करके, पूर्ण संप्रभुता तो दूर की बात थी इज़रायली सरकार ने खुद को इस बात के लिए प्रतिबद्ध कर लिया कि वह फ़िलिस्तीनी बजटीय स्वायत्तता के सबसे सीमित रूप को भी मानने से इंकार करेगा। चूँकि अब यह तय था कि कोई भी फ़िलिस्तीनी सरकार या संगठन इस पर सहमत नहीं होगा, इसलिए भविष्य में सशस्त्र संघर्ष सुनिश्चित था।

इजरायली वीटो की वजह से ब्रिटिश प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर को हस्तक्षेप करना पड़ा, जिन्होंने दोनों पक्षों के बीच एक ऐसा समझौता कराने का प्रयास किया जिससे इजरायली सरकार और पैलेस्टीनियन अथॉरिटी दोनों को सहमत किया जा सके। इसका नतीजा: 2007 में एक ऐसे प्रस्ताव की शक्ल में सामने आया जिसके अनुसार बाजार से कम कीमतों पर गैस मिस्र को नहीं बल्कि इजराइल को दी जाएगी, और आखिरकार राजस्व का 10% पीए के हिस्से में जायेगा। हालांकि, भविष्य में वितरण के लिए उन फंडों को पहले न्यूयॉर्क के फेडरल रिजर्व बैंक को दिया जाना था, ताकि इसे सुनिश्चित किया जा सके कि उनका उपयोग इज़राइल पर हमलों के लिए नहीं किया जाएगा।

इजरायली अब भी इस फैसले से संतुष्ट नहीं थे, उन्होंने हाल ही में हुए गाजा के चुनावों में उग्रवादी हमास पार्टी की जीत का हवाला देकर इसे डील-ब्रेकर पहल बताया। हालांकि हमास ने फेडरल रिजर्व द्वारा सभी खर्चों की निगरानी पर अपनी सहमति व्यक्त की थी, लेकिन अब एहुद ओलमर्ट के नेतृत्व वाली इजरायली सरकार ने जोर देकर कहा कि “फिलिस्तीनियों को कोई रॉयल्टी नहीं दी जाएगी।” इसके बजाय, इज़राइली सरकार “वस्तुओं और सेवाओं के रूप में” उन राशियों का भुगतान करेगी।

इस प्रस्ताव को फ़िलिस्तीनी सरकार ने अस्वीकार कर दिया। इसके तुरंत बाद, ओलमर्ट ने गाजा पर कठोर नाकाबंदी लगा दी, इज़राइल के रक्षा मंत्री के अनुसार यह “‘आर्थिक युद्ध” का ही एक रूप था, जिसका मकसद एक राजनीतिक संकट को पैदा करना था, जिससे हमास के खिलाफ एक लोकप्रिय विद्रोह हो सके। मिस्र के सहयोग से, इज़राइल ने गाजा के अंदर और बाहर सभी प्रकार के वाणिज्य पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया, यहां तक ​​कि उसने खाद्य पदार्थों के आयात पर भी गंभीर रूप से पाबंदी लगा दी और उनके मतस्य उद्योग को समाप्त कर दिया। ओलमर्ट के सलाहकार डोव वीसग्लास ने इस एजेंडे को संक्षेप में बताया, जिसके मुताबिक इजरायली सरकार फिलिस्तीनियों को “अल्पाहार” के लिए मजबूर कर रही थी (जो, रेड क्रॉस के अनुसार, जल्द ही “स्थायी कुपोषण” में तब्दील हो रहा था, खासकर गाजा के बच्चों के बीच यह तेजी से फैल रहा था)।

इस पर भी जब फ़िलिस्तीनियों ने इज़राइल की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया, तब ओलमर्ट सरकार ने यह फैसला किया कि वह अपनी एकतरफा कार्रवाई के आधार पर गैस निकालेंगे,  मगर उनका मानना ​​था कि ऐसा तभी मुमकिन है जबकि वह हमास को या तो विस्थापित या निरस्त्र कर दें। जैसा कि पूर्व इज़राइली रक्षा बल के कमांडर और वर्तमान विदेश मंत्री मोशे या’लोन ने समझाते हुए कहा, “हमास ने… इज़राइल के रणनीतिक गैस और बिजली प्रतिष्ठानों पर बमबारी करने की अपनी क्षमता की पुष्टि की है….यह स्पष्ट है कि, एक सैन्य अभियान के तहत गाजा पर हमास के नियंत्रण को समाप्त करने से पहले कोई भी यहां कट्टरपंथी इस्लामी आंदोलन की सहमति के बिना ड्रिलिंग का काम नहीं कर सकता।“

इस तर्क का अनुसरण करते हुए, 2008 की सर्दियों में ऑपरेशन कास्ट लीड शुरू किया गया था। उप रक्षा मंत्री मटन विल्नाई के अनुसार, इसका उद्देश्य गाजा को “शोह” (होलोकास्ट या आपदा के लिए हिब्रू शब्द) के हवाले करना था। ऑपरेशन के कमांडिंग जनरल योव गैलेंट ने कहा कि इसे “गाजा को दशकों पीछे ले जाने” के लिए डिज़ाइन किया गया था। और जैसा कि इजराइली सांसद तजाची हानेग्बी ने समझाया था कि इस सैन्य कार्रवाई का खास मकसद “हमास के आतंकवादी शासन को उखाड़ फेंकना और उन सभी क्षेत्रों पर कब्जा करना था जहां से इजराइल पर रॉकेट दागे जाते हैं।”

ऑपरेशन कास्ट लीड सचमुच में “गाजा को दशकों पीछे ले गया था।” एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक इन 22 दिनों के हमले में 1,400 फ़िलिस्तीनियों की मौत हो गई, “जिनमें लगभग 300 बच्चे और अन्य सैकड़ों निहत्थे नागरिक शामिल थे, और गाजा के बड़े-बड़े इलाकों को नष्ट कर दिया गया था, जिससे कई हज़ार लोग बेघर हो गए और पहले से ही खराब अर्थव्यवस्था अब बर्बाद हो गई थी।” मगर एकमात्र समस्या यह थी कि: ऑपरेशन कास्ट लीड के जरिये ” इज़राइल गैस के क्षेत्र में संप्रभुता पाने” के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया

गैस की जितनी प्रचुरता होगी संसाधनों के लिए उतने ही युद्ध होंगे 

2009 में, प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की नवनिर्वाचित सरकार को दो चीजें विरासत में मिलीं, गाजा के गैस भंडार के मसले पर चला आ रहा गतिरोध और इजरायली ऊर्जा संकट। जिसमें उर्जा संकट की समस्या ने तब और अधिक गंभीर रूप ले लिया जब मिस्र में अरब स्प्रिंग ने पहले गैस आपूर्ति को बाधित किया और फिर देश की 40% आपूर्ति को रोक दिया। ऊर्जा की बढ़ती कीमतों ने जल्द ही इजरायली यहूदी द्वारा दशकों में किये गए सबसे बड़े विरोध-प्रदर्शन में अपना योगदान दिया।

हालांकि, नेतन्याहू सरकार को समस्या का संभावित स्थायी समाधान भी विरासत में ही मिला। सस्ती दरों पर निकालने योग्य प्राकृतिक गैस का एक विशाल क्षेत्र लेवेंटाइन बेसिन में खोजा गया था, जो मुख्य रूप से पूर्वी भूमध्य सागर के नीचे मगर समुद्र तट से दूर स्थित है। इज़रायली अधिकारियों ने तुरंत ही यह दावा किया कि जिस नए गैस भंडार की पुष्टि की गई है उसका “अधिकांश” “इज़राइली क्षेत्र के भीतर” है। ऐसा करते हुए, उन्होंने इस विशाल भंडार पर लेबनान, सीरिया, साइप्रस और फिलिस्तीनियों के दावों को नजरअंदाज कर दिया।

किसी अन्य दुनिया में, इस विशाल गैस क्षेत्र के पांच दावेदारों द्वारा मिलकर प्रभावी ढंग से दोहन किया गया होता, और भविष्य में 130 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस का ग्रह के वायुमंडल पर पड़ने वाले पर्यावरणीय कुप्रभाव से निपटने के लिए उत्पादन की एक योजना भी बनाई गई होती। हालांकि, जैसा कि तेल उद्योग से जुड़ी हुई पत्रिका पेट्रोस्ट्रैटेजीज़ के संपादक पियरे टेर्ज़ियन ने देखा, “खतरे के सभी तत्व मौजूद हैं….यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां हिंसक कार्रवाई का सहारा लेना कोई असामान्य बात नहीं है।”

खोज के बाद के तीन वर्षों में, टेर्ज़ियन की चेतावनी और भी अधिक वैज्ञानिक प्रतीत हुई। लेबनान पहला हॉट स्पॉट बना। 2011 की शुरुआत में, इजरायली सरकार ने दो क्षेत्रों की, जो इजरायल-लेबनानी सीमा के पास समुद्र तट से दूर एक विवादित क्षेत्र लेवेंटाइन बेसिन में था, बिना किसी की सहमति के इसके एकतरफा विकास की घोषणा की, यह गैस का लगभग 10% था। इस पर लेबनान के ऊर्जा मंत्री गेब्रान बासिल ने तुरंत सैन्य टकराव की धमकी देते हुए बयान दिया कि उनका देश “इजराइल या इजरायली हितों के लिए काम करने वाली किसी भी कंपनी को हमारे क्षेत्र में पड़ने वाले गैस भंडार से किसी भी मात्रा में गैस लेने की अनुमति नहीं देगा।” लेबनान के सबसे आक्रामक राजनीतिक गुट हिजबुल्लाह ने वादा किया कि अगर विवादित क्षेत्रों से “एक मीटर” प्राकृतिक गैस भी निकला गया तो वे इजराइल पर रॉकेट से हमला करेगा।

इज़राइल के संसाधन मंत्री ने चुनौती को स्वीकार करते हुए दावा किया कि “ये क्षेत्र इज़राइल के आर्थिक जलक्षेत्र के भीतर हैं….हम न केवल कानून के शासन के लिए बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून की हिफ़ाज़त के लिए भी अपनी ताकत और क्षमता का उपयोग करने में कोई संकोच नहीं करेंगे।”

तेल उद्योग के पत्रकार टेरज़ियन ने इन टकराव की हकीकतों का इस रूप में विश्लेषण प्रस्तुत किया:

“व्यवहारिक रूप से….विवादित जल क्षेत्र में कोई भी लेबनान के लिए निवेश करने को तैयार नहीं था। वहां ऐसी कोई लेबनानी कंपनी नहीं है जो ड्रिलिंग करने में सक्षम हों, और ना ही कोई सैन्य सुरक्षा की गारंटी दी जा सकती है। लेकिन दूसरी तरफ चीजें अलग हैं। आपके पास इज़रायली कंपनियां हैं जो समुद्र तट से दूर क्षेत्रों में काम करने की क्षमता रखती हैं, और वे इज़रायली सेना के संरक्षण में जोखिम उठा सकती हैं।

निश्चित रूप से, इज़राइल ने दो विवादित क्षेत्रों में अपनी खोज और ड्रिलिंग जारी रखी और साजो-सामान की सुरक्षा के लिए उसने ड्रोन तैनात किए। इस बीच, नेतन्याहू सरकार ने इस क्षेत्र में भविष्य में होने वाले संभावित सैन्य टकराव की तैयारी के लिए संसाधनों पर व्यापक निवेश किया। भारी अमेरिकी फंडिंग के साथ, एक मकसद से उसने “आयरन डोम” एंटी-मिसाइल रक्षा प्रणाली को विकसित किया, जिसे आंशिक तौर पर हिजबुल्लाह और हमास के रॉकेटों के खतरे से इजरायली ऊर्जा सुविधाओं को बचाये रखने के लिए डिज़ाइन किया गया था। इसने समुद्र तट से दूर ऊर्जा सुविधाओं को खतरों से बचाने या उसे दूर रखने के लिए इजरायली नौसेना की क्षमता पर जोर देते हुए, इसका विस्तार भी किया। आखिरकार, 2011 की शुरुआत में इसने सीरिया पर हवाई हमले शुरू किए, अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार जिसका मकसद , “उन्नत… विमान भेदी, सतह से सतह पर मार करने वाली और तट से जहाज तक मार करने वाली मिसाइलों को हिजबुल्लाह के हाथों में सौंपने के किसी भी प्रयास को रोकना था “।

बहरहाल, हिज़्बुल्लाह ने इज़रायली सुविधाओं को ध्वस्त करने में सक्षम रॉकेटों का जखीरा बनाना जारी रखा। और 2013 में, लेबनान ने अपनी चाल चलते हुए रूस के साथ बातचीत शुरू की। इसका मकसद रूस की गैस कंपनियों को लेबनानी समुद्र तट से दूर के गैस भंडारों पर लेबनान की दावेदारी को मजबूत करने के लिए प्रेरित करना था, और बदले में शक्तिशाली रूसी नौसेना “इजराइल के साथ लंबे समय से चल रहे क्षेत्रीय विवाद” में इसकी मदद करेगी

2015 की शुरुआत तक, आपसी झगड़े के हालात कायम होते नजर आ रहे थे। हालांकि इज़राइल उन दो क्षेत्रों में से, जिन्हें उसने विकसित करने की योजना बनाई थी, छोटे क्षेत्र की ड्रिलिंग को लाइन पर लाने में सफल रहा था लेकिन बड़े क्षेत्र में ड्रिलिंग को “सुरक्षा के मद्देनज़र” अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया था। इजरायलियों द्वारा नियुक्त अमेरिकी ठेका कंपनी नोबल एनर्जी, उन सुविधाओं पर  $6 बिलियन का आवश्यक निवेश करने के लिए राजी नहीं था जिस पर हिजबुल्लाह के हमले का साया मंडरा रहा था, और यहां तक कि संभावित रूप से यह रूसी नौसेना के बंदूक के निशाने पर भी था। बहरहाल लेबनान की ओर से, इस क्षेत्र में रूसी नौसैनिकों की बढ़ती उपस्थिति के बावजूद, कोई काम शुरू नहीं किया गया था।

इस बीच, सीरिया में, जहां पहले से हिंसा मौजूद थी और पूरा देश सशस्त्र संघर्षों के कारण डूबने के कगार पर था, एक अन्य प्रकार का गतिरोध प्रभावी हो गया। बशर अल-असद का शासन, जिहादियों के विभिन्न समूहों से एक क्रूर खतरे का सामना कर रहा था,  आंशिक तौर पर लेवेंटाइन गैस क्षेत्र में सीरिया की दावेदारी विकसित करने के लिए रूस को 25 साल का ठेका दिया गया और उसके बदले में उसने रूस से बड़े पैमाने पर सैन्य समर्थन का करार किया, जिसकी बदौलत वह खुद को बचाने में कामयाब रहा। इस सौदे के मुताबिक रूस को टार्टस शहर के बंदरगाह पर अपने नौसैनिक अड्डे को व्यापक तौर पर विकसित करना था, इसने लेवेंटाइन बेसिन में रूसी नौसैनिक की व्यापक मौजूदगी को मुकम्मल बना दिया।

जबकि रूसियों की मौजूदगी ने साफ तौर पर इजरायलियों को किसी भी ऐसी कोशिश पर पानी फेर दिया था जिनके मुताबिक वे उन गैस भंडारों को विकसित करने की योजना बना रहे थे जिस पर सीरिया ने अपना दावा किया था, मगर सीरिया में रूस की मौजूदगी कुछ खास नहीं थी। इसका फायदा उठाकर  इज़राइल ने 1967 से अपने कब्जे वाले सीरियाई क्षेत्र गोलान हाइट्स में तेल क्षेत्रों का पता लगाने और विकसित करने के लिए अमेरिका स्थित जिनी एनर्जी कॉर्पोरेशन के साथ करार कर लिया। ऐसा करते हुए नेतन्याहू सरकार ने अंतरराष्ट्रीय कानून के संभावित उल्लंघन का खतरा उठाते हुए एक इज़रायली अदालत के फैसले को लागू किया, जो उसकी इस कार्रवाई का आधार बना, जिसके अनुसार अब कब्जे वाले क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कानूनी तौर पर वैध था। साथ ही, सीरियाई गृहयुद्ध में विजयी गुट से होने वाली अनिवार्य लड़ाई की तैयारी के लिए, इजराइल ने गोलान हाइट्स में अपनी सैन्य मौजूदगी को बढ़ाना शुरू कर दिया।

रही बात साइप्रस की, तो वह  लेवेंटाइन का एकमात्र दावेदार था जो इज़राइल के साथ किसी युद्ध में शामिल नहीं था। दरअसल ग्रीक साइप्रस तुर्की साइप्रस के बीच लंबे समय से संघर्ष चल रहा था।  इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि लेवेंटाइन प्राकृतिक गैस की खोज के साथ ही इस मुद्दे पर आगे की पहलकदमी पर विचार करने के लिए द्वीप पर बात-चीत शुरू हुई। मगर इस पर तीन साल तक गतिरोध बना रहा। 2014 में, ग्रीक साइप्रस ने इस क्षेत्र में प्राकृतिक गैस की खोज के लिए नोबल एनर्जी, इज़राइल के साथ करार में शामिल एक मुख्य कंपनी, के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किया। जबकि, तुर्की साइप्रस ने “मिस्र के जलक्षेत्र तक” गैस की खोज और उस पर अपनी दावेदारी के लिए तुर्की के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करके अपनी पहलकदमी को सफल बनाया। इज़राइल और रूस की देखा-देखी, तुर्की सरकार ने अन्य दावेदारों के किसी भी हस्तक्षेप को वहां उस क्षेत्र में भौतिक रूप से रोकने के लिए तुरंत अपने तीन नौसैनिक जहाजों को भेज दिया। 

नतीज़तन, इस नए खोजे गए लेवेंटाइन बेसिन भंडार के आस-पास चार साल में बहुत कम मात्र में ही ऊर्जा निकल सकी, लेकिन कई नए और शक्तिशाली दावेदार सामने आये। इस क्षेत्र में सैनिक तैयारियां शुरू हुई, और तनाव बेहद बढ़ गया।

गाजा बार-बार-और फिर से

क्या आपको आयरन डोम प्रणाली याद है, जिसे आंशिक रूप से इज़राइल के उत्तरी गैस क्षेत्रों की ओर निशाना साधने के लिए तैयार हिजबुल्लाह के रॉकेटों को रोकने के लिए विकसित किया गया था? समय बीतने के साथ, इसे हमास के रॉकेटों से बचने के लिए गाजा से सटी सीमा पर लगाया गया था। हमास को घुटने टेकने पर मजबूर करने और रणनीतिक तौर से अहम “इसरायली गैस और बिजली प्रतिष्ठानों पर फिलिस्तीनी बमबारी की किसी भी आशंका” को खत्म करने के लिए ऑपरेशन रिटर्निंग इको, चौथा इजरायली सैन्य प्रयास, चलाया गया। इस ऑपरेशन के दौरान आयरन डोम का परीक्षण किया गया था।

मार्च 2012 में इसे शुरू किया गया, इसने छोटे पैमाने पर ऑपरेशन कास्ट लीड की तबाही को दोहराया, जबकि हमास के रॉकेटों के खिलाफ आयरन डोम ने 90% की “मारकता-दर” हासिल की। हालांकि, यह इज़रायली नागरिकों की सुरक्षा की दृष्टि से बनाई गई विशाल आश्रय प्रणाली के लिए उपयोगी था, लेकिन देश की ज्ञात तेल सुविधाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने में नाकाफी था। केवल एक सीधा हमला ऐसी नाजुक और ज्वलनशील संरचनाओं को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है या उसे नेस्तनाबूद कर सकता है।

ऑपरेशन रिटर्निंग इको के जरिये किसी भी मकसद को पाने की नाकामयाबी ने वार्ता के एक और दौर का आगाज किया, जो गाजा और वेस्ट बैंक के लिए तय सभी ईंधन और राजस्व को अपने नियंत्रण में रखने की इजराइल की मांग और फिलिस्तीनी द्वारा इसे ठुकराए जाने से एक बार फिर रुक गयी। पैलेस्टीनियन अथॉरिटी ने तब लेबनानी, सीरियाई और तुर्की साइप्रस के नेतृत्व का अनुसरण करते हुए साल  2013 के अंत में रूस के प्राकृतिक गैस की इजारेदार कंपनी गज़प्रोम के साथ “गैस की खोज के लीये रियायत” पर हस्ताक्षर किया। लेबनान और सीरिया की तरह ही  रूसी नौसेना इज़रायली हस्तक्षेप के सामने एक संभावित ढाल के रूप में सामने आई।

बहरहाल इस बीच, साल  2013 में,  ऊर्जा ब्लैकआउट का एक नया दौर सामने आया जिससे सारे इज़राइल में “अराजकता” फैल गई और बिजली की कीमतों में 47% का भारी इजाफा हुआ। इस समस्या के समाधान में नेतन्याहू सरकार ने घरेलू शेल तेल निकलने के प्रस्ताव पर विचार किया, लेकिन जल संसाधनों के प्रदूषण की आशंका के कारण इसका काफी विरोध हुआ, जिसने इस प्रयास को विफल कर दिया। स्टार्ट-अप हाई-टेक फर्मों से भरे इस देश में अभी भी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के दोहन पर गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है। इसके बजाय, सरकार ने एक बार फिर गाजा का रुख किया।

फ़िलिस्तीनी दावे के अंतर्गत आने वाले गैस भंडारों को विकसित करने की दिशा में गज़प्रोम की पहलकदमी को देखते हुए इज़रायलियों ने फ़िलिस्तीनी सहमति को बलपूर्वक पाने के लिए ऑपरेशन प्रोटेक्टिव एज मतलब अपना पांचवां सैन्य प्रयास शुरू किया। हाइड्रोकार्बन से संबंधित इसके दो अहम मकसद थे: फ़िलिस्तीनी-रूसी योजनाओं को रोकना और अंतिम तौर पर गाजा के रॉकेट सिस्टम को ख़त्म करना। पहला मकसद साफ तौर पर तब पूरा हुआ जब गज़प्रोम ने अपने समझौते के तहत विकास कार्यक्रम को (शायद स्थायी रूप से) स्थगित कर दिया। हालांकि, अपने दूसरे मंसूबे में वह नाकाम रहा, यह तब नाकाम हुआ जब दो-तरफा जमीनी और हवाई हमले तथा गाजा में अभूतपूर्व तबाही के बावजूद ना तो वह हमास के रॉकेट भंडार या इसकी सुरंग-आधारित असेंबली प्रणाली को नष्ट कर पाया; ना ही वह आयरन डोम के जरिए प्रस्तावित ऊर्जा प्रतिष्ठानों की पूरी हिफाज़त कर पाया, इसके लिए यह ज़रूरी था कि आयरन डोम की मारक-दर करीब-करीब शत-प्रतिशत हो।

अब तक कोई नतीजा नहीं निकला 

25 वर्षों और पांच असफल इजरायली सैन्य प्रयासों के बावजूद, गाजा की प्राकृतिक गैस अभी भी पानी के नीचे है और, चार वर्षों के बाद, लगभग सभी लेवेंटाइन गैस की यही नियति है। लेकिन चीजें वैसी नहीं हैं। ऊर्जा के मामले में, इज़राइल आज और भी अधिक हताश है, भले ही वह अपनी नौसेना सहित अपनी सेना तैयारी पर वह बड़ी गंभीरता से जोड़ दे रहा है। उधर दूसरी और, अन्य दावेदारों को भी बड़े और अधिक शक्तिशाली साझेदार मिल गए हैं जो उनकी आर्थिक और सैन्य दावेदारी को मजबूती दे सकते हैं। बेशक इन सबका मतलब है कि इस सदी के पहली एक चौथाई पूर्वी भूमध्यसागरीय प्राकृतिक गैस पर संकट एक प्रस्तावना के अलावा और कुछ नहीं है। आगे गैस के लिए बड़े युद्धों की संभावना है और उनके द्वारा मचने वाली तबाही की भी पूरी संभावना है।

(माइकेल स्वार्ट्ज के इस लेख का हिंदी अनुवाद कुंदन ने किया है।)

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