‘ईंट भट्ठे पर इसलिए काम कर रही हूं, ताकि फुटबॉल की प्रैक्टिस कर सकूं’

(हमारे देश में ढेर सारे ऐसे युवा-युवती हैं जिनमें कई तरह की प्रतिभाएं हैं, कई इन प्रतिभाओं के सहारे तरक्की के कदम चूम लेते हैं और कई जीवन के कई तरह के अभावों के कारण प्रतिभा रहते हुए भी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। ऐसी ही कहानी है धनबाद के टुंडी विधानसभा क्षेत्र की संगीता कुमारी सोरेन की जो एक अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉलर हैं। इन दिनों संगीता राष्ट्रीय खबरों का हिस्सा बनी हुई हैं। उनका खबरों में बने रहने का सबसे बड़ा कारण है उनके घर की आर्थिक स्थिति। किसी वक्त अपने पैरों से किक मारकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थान पाने वाली संगीता आज अपना जीवनयापन करने के लिए उन्हीं पैरों के सहारे ईंट भट्ठे पर जाती हैं। संगीता के माता पिता दोनों मज़दूरी करते हैं। उनके पिता की आंखें खराब हो जाने के कारण वह अब काम नहीं कर पाते। इसलिए घर की सारी जिम्मेदारी संगीता के कंधों पर आ गई है। संगीता की इस स्थिति पर हमने उनसे फोन पर संपर्क कर बात की। आपको भी बताते हैं क्या कहा संगीता ने अपनी इस स्थिति के बारे में: पूनम मसीह)

प्रश्न: आपने ईंट भट्ठे पर ही काम करना क्यों चुना?

संगीता सोरेन: देखिए, काम कोई भी किया जा सकता है। लॉकडाउन के कारण बहुत सारे काम बंद भी हैं। इसके अलावा अगर मैं कोई दूसरा काम करती तो सारा समय वहीं देना पड़ता। इस ईंट भट्ठे पर मुझे ज्यादा समय नहीं देना पड़ता है। इससे मुझे दो फायदे होते हैं। एक तो मैं यहां काम करके पैसा कमा लेती हूं जिससे मेरे घर को आर्थिक सहायता मिल जाती है और दूसरा यहां आने से पहले मेरे पास समय होता है जिसमें मैं फुटबॉल की प्रैक्टिस कर लेती हूं। इस तरह से मैं फुटबॉल से भी जुड़ी रहती हूं।

प्रश्न: आप यहां से कितने पैसे कमा लेती हैं?

संगीता सोरेन: देखिए, मैं आपको पहले ही बता चुकी हूं कि मेरी पहली प्राथमिकता फुटबॉल है। बाकी चीजें बाद में, ईंट भट्ठे का नियम है। आप जितने ईंट को बना सकते हैं उतने पैसे मिल जाते हैं। क्योंकि मैं यहां देर से आती हूं तो मैं जितनी देर काम करती हूं उससे मुझे 150 रुपए मिल जाते हैं। इससे घर को कुछ आर्थिक मदद मिल जाती है। इससे हमारी दाल रोटी चल रही है।

प्रश्न: सरकार की तरफ से मदद का आश्वासन दिया जा रहा है, इस बारे में आपका क्या कहना है?

संगीता सोरेन: हां, सुना तो मैंने भी है कि मेरी स्थिति पर सरकार ने संज्ञान लिया है। लेकिन देखते हैं कब तक यह सब पूरा होता है। पिछली बार भी सीएम हेमंत सोरेन ने मेरी स्थिति के बारे में संज्ञान लेते हुए सरकारी नौकरी देने का आश्वासन दिया था। लेकिन अब तक कुछ हुआ नहीं। मुझे लगा एक बार राज्य सरकार ने कह दिया है, तो हो जाएगा। मैंने इस बारे में बहुत ज्यादा इंक्वायरी भी नहीं की थी। उसके बाद लॉकडाउन लग गया। अब स्थिति आपके सामने है।

प्रश्न: फुटबॉल के दौरान आप अपनी पढ़ाई को कैसे बैलेंस करती थीं, और आपके माता-पिता क्या करते हैं?

संगीता सोरेन: फुटबॉल और पढ़ाई के दौरान दोनों चीजों में बैलेंस करने में दिक्कत होती थी। यह स्थिति तो लगभग हर खिलाड़ी के साथ होती है। मेरे साथ भी है। लेकिन मैंने 12 तक पढ़ाई की है। उसके बाद मैं खेलने में मसरुफ हो गई। मेरे माता-पिता दोनों मजदूर हैं। लेकिन अब मेरे पापा की आंखें खराब हो गई हैं। जिसके कारण हम लोग अब उन्हें काम करने से मना करते हैं।

प्रश्न: फुटबॉल खेलने में आपकी रुचि कैसे आई?

संगीता सोरेन: शुरुआती दिनों में गांव के ही कुछ भैय्या लोगों को देखकर मेरे अंदर खेलने की इच्छा जगी। उस वक्त मुझे किक मारना बहुत अच्छा लगता था, इसलिए मैंने सोचा मुझे भी फुटबॉल खेलना चाहिए। हमारे यहां के दो भैय्या लोगों ने गांव में एक गर्ल्स टीम बनाई जो लगभग दो महीने तक चली। बाद में वह टूट गई। इसके बाद मैं पास के ही एक गांव में खेलने चली गई। वहां मैंने संजय सर से बात की, उन्होंने खेलने की अनुमति दी। साथ ही साल 2016 में क्लब को भी ज्वाइन करवा दिया। इसके बाद अभिजीत गांगुली से मिली, वही मेरे कोच भी हैं। उन्होंने मुझे बिरसा मुंडा स्टेडियम में प्रैक्टिस करवाई। यह स्टेडियम मेरे घर से 8 से 9 किलोमीटर दूर था। मेरे घर की स्थिति तब भी अच्छी नहीं थी। मैं कभी साइकिल से जाती थी तो कभी पैदल, लेकिन मैंने खेलना नहीं छोड़ा। उस वक्त भी मेरे कोच ही मेरी आर्थिक सहायता करते थे।

प्रश्न: आखिरी सवाल, पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर आप कब खेंली?

संगीता सोरेन: साल 2017 में मैंने पहला नेशनल गेम उड़ीसा में खेला, यह मेरी जिंदगी का पहले नेशनल गेम था। अंडर18 में मैं भूटान में खेलने गई। साल 2019 में सिंगल नेशनल खेला है।

पूनम मसीह
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