पंजाब: ‘कबूतरबाजी’ के जरिए यूपी-बिहार लौट रहे हैं प्रवासी मजदूर

पंजाब में लॉकडाउन और कर्फ्यू के दोहरे संकट में बदहाली झेल रहे प्रवासी मजदूरों को अब ‘कबूतरबाजी’ के जरिए उनके मूल राज्यों में छोड़कर आने का गैरकानूनी धंधा शुरू हो गया है। ‘कबूतरबाजी’ मानव तस्करी के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कूट शब्द है। कायदे-कानूनों की अवहेलना करके विदेश जाने वाले पंजाबी नौजवानों के संदर्भ में पहले-पहल इस शब्द का प्रचलन हुआ था। अवैध तौर पर विदेश जाने वालों को ‘कबूतर’ कहा जाता था और उन्हें भेजने वाले एजेंटों को ‘कबूतरबाज’ तथा सारे गोरखधंधे को ‘कबूतरबाजी!’ कोरोना वायरस की मानवीय त्रासदियों ने अब अंतरराज्यीय कबूतरबाजी का खेल शुरू कर दिया है।

पंजाब में बिहार-यूपी के फंसे बदहाल मजदूर, जो किसी भी तरह अपने घर-गांव या परिजनों के बीच चले जाना चाहते हैं, कोरोना-काल के नए कबूतर हैं तो बेईमान-लालची ट्रांसपोर्टर तथा कुछ डॉक्टर कबूतरबाज। पंजाब में कबूतरबाजी का यह नया चेहरा है। राज्य पुलिस द्वारा की गईं कुछ हालिया गिरफ्तारियों से इसका पर्दाफाश हुआ है। गिरफ्तारियों से पहले यह निहायत गैरकानूनी धंधा कई दिनों से चल रहा था और अब भी जारी है।                          

24 अप्रैल को राज्य पुलिस ने दो अलग-अलग जगहों से ऐसे गिरोह गिरफ्तार किए जो जाली कर्फ्यू पास बनाकर प्रवासी मजदूरों के समूहों को बिहार व उत्तर प्रदेश छोड़ने जाते थे। डीजीपी दिनकर गुप्ता ने खुद इसकी पुष्टि की है। होशियारपुर के टांडा-उड़मुड़ और जालंधर के शाहकोट व लोहिया कस्बों में ये गिरफ्तारियां हुई हैं। इससे पहले 23 अप्रैल को जिला फतेहगढ़ साहिब के मंडी गोबिंदगढ़ में ऐसा मामला पकड़ा गया था। तमाम पकड़े गए आरोपी कर्फ्यू के दौरान एसडीएम तथा अन्य उच्चाधिकारियों के नाम पर जारी जाली कर्फ्यू पास बनाकर फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को हजारों रुपए वसूल कर उनके मूल राज्यों तक पहुंचाने का काम अवैध रूप से कर रहे थे।                                                  

पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता बताते हैं, “कुछ फर्जी/अवैध कर्फ्यू पास पंजाब से हरियाणा और यूपी सरहद पार करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे। राजपुरा के शंभू बैरियर पर ड्यूटी कर रहे अधिकारी को शक होने पर उसने प्रवासियों को ले जाने वाले वाहनों में से एक को टांडा वापस जाने को कहा। टांडा वापस लौटने पर मजदूर, आरोपियों से अपने पैसे वापस मांगने लगे और यह बात पुलिस तक पहुंच गई। कुछ पास बटाला एसडीएम की तरफ से आईजीआई एयरपोर्ट, दिल्ली के लिए एक टैक्सी चालक को जारी किए गए थे। उसी के जरिए एक अन्य वाहन चालक ने नकली पास तैयार कर लिए। बाकायदा गिरोह बना।

कुछ ही दिनों में इस गिरोह ने 71 मजदूर बिहार और यूपी ले जाकर छोड़ दिए। इससे उन्होंने 3 लाख 5 हजार रुपए कमाए।”  होशियारपुर पुलिस के मुताबिक अंतरराज्यीय कबूतरबाजी के इस धंधे में 10 लोग संलिप्त हैं। सूत्रों के मुताबिक अकेले इसी जिले में एक से ज्यादा गिरोह सक्रिय हैं और सदस्यों की संख्या एक सौ से ज्यादा है। टांडा में गिरफ्तार लोग एसडीएम की मोहर के अंतर्गत प्रवासी मजदूरों के नाम के जाली कर्फ्यू पास तैयार करते थे। प्रति मजदूर 5 से 7 हजार रुपए लेकर उन्हें बिहार व यूपी बॉर्डर तक छोड़ आते थे। इसके लिए कुछ टेंपो ट्रैवलर और  इनोवा गाड़ियां इस्तेमाल की जा रही थीं। आरोपियों से पुलिस ने वाहन, कंप्यूटर, सीपीयू, प्रिंटर और कई जाली कर्फ्यू पास बरामद किए हैं।                                       

24 अप्रैल को ही जालंधर की शाहकोट और लोहियां पुलिस ने भी ऐसा ही एक मामला पकड़ा। इस मामले में चार लोगों की गिरफ्तारी हुई है। 23 अप्रैल को मंडी गोविंदगढ़ पुलिस ने प्रवासी मजदूरों से भरा एक ट्रक पकड़ा था। सब जगह मजदूरों से हजारों रुपए वसूले गए थे कि उन्हें उनके मूल राज्यों की सीमा तक पहुंचा दिया जाएगा। अब तक पकड़े गए किसी भी मामले में पुलिस ने किसी प्रवासी मजदूर पर किसी किस्म का कोई मामला दर्ज नहीं किया है। एक आला पुलिस अधिकारी के मुताबिक उन्हें मजबूर और पीड़ित पक्ष मानकर चला जा रहा है। उन्हें गवाह जरूर बनाया जाएगा।       

गौरतलब है कि ट्रक, टेंपो और छोटी-बड़ी मोटर गाड़ियां ही इस कबूतरबाजी में इस्तेमाल नहीं की जा रहीं बल्कि मौजूदा वक्त में चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे को भी इस काले कारोबार का हथियार बनाया जा रहा है। लुधियाना में एक मामला सामने आया है। एक निजी अस्पताल का मालिक डॉक्टर अंतरराज्यीय कबूतरबाजों की मिलीभगत से पहले वापस लौटने के ख्वाहिशमंद मजबूर श्रमिकों को फर्जी रूप से मरीज बनाता है, अपने यहां दाखिल दिखाता है, फिर बीमारी की फर्जी हिस्ट्री की फाइल बनाकर एंबुलेंस के माध्यम से घर भेजने का इंतजाम करता है।

इस सब के बदले मोटी रकम वसूली जा रही है। मीडिया के स्ट्रिंग ऑपरेशन में इस डॉक्टर ने खुद माना कि वह फर्जी टेस्ट रिपोर्ट से लेकर एक्स-रे तक सब बनाकर दे देता है। ‌ इस तरह वह अब तक कई लोगों को दूसरे प्रदेशों में पहुंचा चुका है। कथित मरीज को उसके मूल राज्य लौटने की सलाह लिख दी जाती है। 18 रुपए किलोमीटर के हिसाब से एंबुलेंस का किराया वसूला जाता है यानी दोगुना। खैर, लुधियाना के पुलिस कमिश्नर राकेश अग्रवाल और सिविल सर्जन डॉ. राकेश बग्गा के अनुसार इस फर्जीवाड़े के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।                                             

पंजाब के विभिन्न जिलों के संपर्क-सूत्रों से हासिल जानकारी से पता चलता है कि राज्य में प्रवासी मजदूरों की कबूतरबाजी का यह धंधा गुपचुप ढंग से खूब चल रहा है और मजदूरों को जमकर लूटा जा रहा है। ‘चोर रास्तों’ से भी वाहनों में ठूंस कर मजदूरों को सूबे से बाहर निकाला जा रहा है। सख्त कर्फ्यू और सीमाएं सील होने के बावजूद ऐसा हो रहा है। सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां भी कानून के साथ-साथ बेखौफ उड़ाई जा रही हैं।               

जिक्रेखास है कि फैक्ट्रियां तथा औद्योगिक इकाइयां बंद होने के बाद लाखों प्रवासी मजदूर बेरोजगार हो गए हैं और अब इनमें से अधिकतर किसी भी सूरत में अपने-अपने मूल राज्यों को लौट जाना चाहते हैं। उनकी मजबूरियों ने पंजाब में कबूतरबाजी का यह नया चेहरा फाश किया है। तो कोरोना-काल का एक क्रूर यथार्थ यह भी है! 

(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल जालंधर में रहते हैं।)

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