ग्राउंड रिपोर्ट: बस्तर में ईसाई आदिवासियों पर संघ से जुड़े संगठनों के बढ़ते हमले, नहीं करने दिया जा रहा मनरेगा में काम

बस्तर। छत्तीसगढ़ का नारायणपुर जिला पिछले साल से खबरों की सुर्खियों में बना हुआ है। इसी साल दो जनवरी को धर्मांतरण के मामले में ईसाई मिशनरी स्कूल में हमला करके जो तोड़फोड़ की गई, उस घटना ने पूरे देश का ध्यान नारायणपुर की ओर खींचा।

अब इस घटना को हुए लगभग चार महीने से ज्यादा का समय हो गया है। लेकिन ईसाइयों पर हो रहे अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। सामाजिक बहिष्कार के बाद अब गांव में रह रहे ईसाइयों को रोजी-रोटी कमाने से भी रोका जा रहा है।

मनरेगा में मजदूरी भी नहीं करने दिया जा रहा है, ईसाई परिवारों को

जनचौक की टीम ने इन परिवारों से मिलकर इनकी आप बीती सुनी। नारायणपुर के गढ़बेंगाल पंचायत में रहने वाली डारव मंडावी पहाड़ी की छोर पर अपनी तीन बेटियों के साथ रहती हैं। बेटियां मजदूरी करती हैं तो घर का खर्चा चलता है।

डारव को हिंदी न समझ आती है और न ही वह बोल पाती हैं। वह सिर्फ स्थानीय भाषा गोंडी ही समझ और बोल पाती हैं। दोपहर के समय मैं उनके घर पहुंची। डारव उस वक्त अपने घर में अकेली ही थीं। बेटियां 35 किलोमीटर दूर मजदूरी करने गई थीं।

आदिवासी घरों की तरह डारव का घर भी सीमेंट की दीवारों के साथ बना हुआ था। जिसे मिट्टी से अच्छी तरह से पोंछा गया था, जैसा सामान्य रूप से आदिवासी घर प्राकृतिक रूप से सजाए होते हैं। दो कमरों के एक घर में एक कच्चा किचन था लेकिन बाथरूम नहीं था। हिंदी समझने में कमजोर होने के बाद भी डारव ने मुझसे हंसते हुए बात की।

अपने घर के अंदर डारव मंडावी

मैंने उनसे पूछा- “अभी क्या करती हैं? हंसते हुए बोलीं हमें तो कोई काम करने नहीं दे रहा है इसलिए खा पीकर सो रही हूं”।

डारव बताती हैं कि 13 अप्रैल को रोजगार गारंटी योजना का काम शुरू हुआ था। वह भी वहां काम करने के लिए गई थीं। लेकिन बाकी लोगों की तरह उन्हें भी वहां से भगा दिया गया।

वह कहती हैं कि “मैं इस पर नहीं रुकी क्योंकि मुझे काम की जरूरत थी। इस घटना के बाद मैं दो बार और काम मांगने के लिए गई लेकिन किसी ने मेरी एक नहीं सुनी, उल्टे भगा दिया।”

वह बताती हैं कि “मैं दोबारा काम मांगने गई तो बोला गया कि पहले ही बताया गया है कि चर्च जाने वालों को काम नहीं दिया जाएगा। मैंने उनसे कहा कि मैं नहीं, मेरी बेटी चर्च जाती है। उसकी सजा मुझे क्यों दे रहे हो? अगर आप लोग कहेंगे तो मैं अपनी बेटी से अलग हो जाऊंगी लेकिन काम करने दो”।

वह कहती हैं कि इतनी बात होने पर भी वह लोग नहीं माने, उल्टा गांव का जैन्यु कचलाम (वॉर्ड पंचायत) कहता है कि तुम्हारी बेटी तुम्हारे ही साथ रहती है। इसलिए तुम्हें काम करने नहीं दिया जाएगा।

डारव मंडावी

डारव के पति का देहांत हो गया है। खेती बाड़ी के नाम पर उसके पास कुछ नहीं है। सिर्फ एक घर है। वह कहती हैं कि “बेटियां मजदूरी करती हैं तो घर का नून तेल चलता है। अगर वह भी न मिले तो हमारा रहना मुश्किल हो जाएगा। अब धीरे-धीरे हमारी आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है।”

इस मामले में हमने जैन्यु कचलाम से मिलने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं मिले।

अप्रैल के महीने में मनरेगा का काम शुरू हुआ था। स्थानीय निवासियों के अनुसार 13 अप्रैल के दिन ज्यादातर लोग जिनके पास रोजगार कार्ड था। वह काम पर गए थे। इनकी संख्य़ा लगभग 100 के आसपास थी। जिसमें लगभग 20 ईसाइयों में 16 महिलाएं थीं।

आधा गड्ढा खोदने के बाद भगा दिया गया

सुकुयारी नेताम (50) ने उस दिन की घटना के बारे में हमें विस्तारपूर्वक बताया। वह बताती हैं कि “उस दिन काफी लोग काम पर गए थे। हम लोगों ने भी जाकर गड्ढा खोदना शुरू कर दिया। लगभग आधे गड्ढे की खुदाई हो जाने के बाद हमें काम करने से रोक दिया गया।”

सुकुयारी के अनुसार “गांव के ही रूप सिंह मंडावी और सुकालु कचलाम ने उन्हें आकर बोला- ‘मत करो काम, जो लोग चर्च जाते हैं उन्हें काम नहीं करने दिया जाएगा’। इस घटना के बाद मैं और मेरे बाकी साथी भी अपने घर वापस आ गए। हमने आकर इसकी शिकायत सरपंच जगोन्नती मंडावी से की। यहां तक कि हमारे चर्च के मुखिया भी उनसे बात करने के लिए गए।

सरपंच ने हमें सांत्वना देते हुए कहा, “मैं एक दो दिन में उनसे बात करके आप लोगों को फोन करती हूं। लेकिन आज तक सरपंच का कोई फोन नहीं आया है”।

सुकुयारी नेताम

सुकुरी के परिवार में सात लोग हैं। इनका मुख्य पेशा खेती-बाड़ी और मजदूरी है। सुकुयारी की सबसे बड़ी चिंता अब यह है कि अगर ऐसे ही आगे भी काम नहीं करने दिया गया तो उनकी आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो जाएगी।

रोजगार गारंटी कार्ड बनवाया, लेकिन काम नहीं मिला

इसी गांव के सोमनाथ उकई के घर के लोग खेती-बाड़ी के साथ मजदूरी भी करते हैं। 13 अप्रैल के दिन सोमनाथ के परिवार से चार लोग काम पर गए थे। सोमनाथ उसकी मां और भाई।

एक कुर्सी में बैठे सोमनाथ मुझसे बात करते हुए कहते हैं कि “खेती बाड़ी की अगर मैं बात करूं तो परिवार धान की खेती करता है, फिलहाल उसका सीजन नहीं है तो मजदूरी करते हैं। इसलिए मेरे परिवार के लोगों ने रोजगार गारंटी कार्ड बनवाया है।”

फिलहाल जब से उन्हें काम से निकाला गया, 15 दिन तक कोई काम नहीं किया। वह इसी आस में थे कि कहीं काम मिल जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

मैंने उनसे पूछा आपका घर कैसे चल रहा है जब चार लोग कमा नहीं रहे हैं? इसका जवाब देते हुए सोमनाथ ने कहा कि “पहले की जो जमा पूंजी थी फिलहाल उससे घर चल रहा है, आगे का कुछ पता नहीं क्या होगा? अगर काम नहीं मिला तो हमारी स्थिति और खराब हो जाएगी।

13 अप्रैल के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं कि “मेरे परिवार से चार लोग गए थे। वहां जाने के बाद सुकालु कचलाम ने हमें वहां काम न करने की हिदायत दी। उनसे कहा कि चर्च जाने वाले के लिए यहां कोई काम नहीं है। सुकालु के साथ इसी गांव की एक महिला ने हमें काम करने से रोका।”

गांव ने बहिष्कार का लिया निर्णय

मैंने इस बारे में सुकालु कचलाम, जन्यु कचलाम, बत्ती मंडावी से बात करने की कोशिश की। इनका मोहल्ला दूसरी ओर था। मैं दोपहर के वक्त ही सुकालु कचलाम के घर गई।

सुकालु का एक छोटा सा घर था। जिसमें एक गाय बंधी हुई थी और महुआ सूख रहा था। घर पर पहुंचने पर उसकी छोटी बहन बाहर आई और उसके बाद उसने अपने भाई को बुलाया।

सुकालु कचलाम का घऱ

सुकालु एक युवा है। इसी साल ग्रेजुएशन पूरी की है। फिलहाल जॉब की तलाश कर रहा है। सुकालु से मैंने पूछा आप क्या करते हैं? उसने बताया इसी साल पढ़ाई पूरी की है, जॉब नहीं मिली तो फिलहाल रोजगार गारंटी योजना में मजदूरी करता हूं।

मैंने सुकालु से पूछा कि आपके गांव के ईसाई लोगों ने आपके खिलाफ शिकायत की है कि आप उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं?

इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “ईसाइयों को काम न देने के पीछे पूरा गांव शामिल है, बस मेरा और बत्ती का नाम शिकायत में क्यों दे दिया मुझे समझ नहीं आया”।

सुकालु बताते हैं कि मनरेगा का काम शुरू होने से पहले गांव में एक मीटिंग कर यह निर्णय लिया गया कि गांव के ईसाइयों से बाकी लोगों का किसी भी तरह का कोई संपर्क नहीं रहेगा। जिस पर सबने हामी भी भरी थी। मैं भी उस मीटिंग में था।

वह सवाल करते हुए कहते हैं कि जब पूरे गांव ने यह निर्णय लिया तो शिकायत मेरे नाम से या अन्य इक्का-दुक्का लोगों के नाम से क्यों की गई।

मैंने उनसे पूछा कि कोई और जॉब क्यों नहीं की, बोले जॉब मिलती ही कहां है? फिलहाल सुबह जाता हूं और दोपहर को काम करके वापस आ जाता हूं। फिलहाल खाना खाकर सोने की तैयारी कर रहा था।

सुकालु कचलाम

सुकालु के घर के आगे ही बत्ती मंडावी का घर था। मैं उनके घर भी गई, उनकी बेटी और पति बाहर निकले मैंने उनसे बत्ती के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह तो घर पर नहीं हैं और न ही उसके पास मोबाइल फोन है।

सरपंच के पास गए लेकिन कोई हल नहीं निकला

हमने इसी गांव में चर्च के पादरी से इस बारे में बात की क्योंकि इन्हीं के चर्च के लोगों को परेशान किया जा रहा है। पादरी कवेराम मंडावी ने हमसे बात करते हुए कहा कि गांव काफी बड़ा है। इसमें लगभग 500 परिवार होंगे, जिसमें 60 से 70 परिवार ईसाई हैं। इन्हीं में से नौ परिवार के लोगों को काम से रोका गया है।

वह कहते हैं कि “जब मुझे इस बात की जानकारी मिली तो मैंने तुरंत इस मामले में गांव की सरपंच से बात की। मैं उसके पास गया और कहा कि गांव के ईसाई लोगों को काम नहीं करने दिया जा रहा है। अगर काम नहीं करने दिया जाएगा तो अपना खर्चा कैसे चलाएंगे?”

इस पर सरपंच ने कहा कि वह गांव के लोगों से बात करके हमें बताएंगी। साथ ही कहा कि किसी के साथ भी धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। दूसरा काम सबके लिए है, इसलिए सब काम करेंगे।

पादरी का आरोप है कि सरपंच के ऐसा कहने के बाद भी उसका न कोई फोन आया न ही लोगों को काम पर लिया गया है।

सरपंच महिला लेकिन निर्णय पुरुषों का

मैंने इस संबंध में गढबेंगाल की सरपंच जगोन्नती मंडावी से मुलाकात की। सरपंच मुझे पंचायत घर के ऑफिस में मिलीं। सरपंच भी इस घटना से वाकिफ थीं। मैंने जब उनसे पूछा कि आपने इस बारे में क्या किया?

गढबेंगाल का पंचायत घर

तो इसका जवाब देते हुए जगोन्नती मंडावी ने कहा, “मेरे लिए सभी बराबर हैं, सरकारी नीतियों का लाभ सबको मिलेगा, मैंने फिलहाल गांव के लोगों से इस बारे में बात की है। इसके लिए सभा भी बुलाई, लोगों को समझाने की कोशिश की। पंचायत सचिव को भी इसके बारे में खबर दी है।”

वह कहती हैं कि “पंचायत भले ही महिला आरक्षित है लेकिन यहां कई बार महिला सरपंच के बिना ही मीटिंग हो जाती है। ऐसे में मैं सिर्फ लोगों से आग्रह कर सकती हूं कि सबको काम करने दिया जाए। वही मैं कर रही हूं। अगर गांव वाले इसका विरोध कर रहे हैं तो मेरे लिए यह मुश्किल है।

इसी तरह नारायणपुर के गरांजी ग्राम पंचायत में भी लोगों को ऐसे ही रोजगार गारंटी योजना से वंचित रखा गया।

शहर से एकदम सटे इस गांव में ईसाई बड़ी संख्या में रहते हैं। जिन्हें अलग-अलग तरीके से काम से निकाला जा रहा है। हमने इस गांव के लोगों से भी मिलने की कोशिश की। दोपहर के वक्त लगभग हर घर में महुआ सूखने के लिए रखा गया था। शांति भी इसी तरह अपने घर में महुआ और इमली सुखा रही थीं। उसकी चार बेटियां और एक छोटा बेटा है।

दोपहर का समय था इसलिए ज्यादातर लोग जंगल तेंदूपत्ता तोड़ने गए थे। शांति से हमने उस दिन की घटना के बारे में जानने की कोशिश की।

शांति और उनकी बेटी मनीषा कुमेटी मिलीं। शांति छत्तीसगढ़ी बोल पा रही थीं और हिंदी समझ पा रही थीं। शांति ने छत्तीसगढ़ी में बताया कि वो और उनकी दो बेटी उनके साथ काम करने गई थीं। लेकिन उन्हें वहां से भगा दिया गया।

शांति अपनी बेटी मनीषा कुमेटी के साथ

गोपाल दुग्गा के साथ अन्य लोगों ने उन्हें वहां काम नहीं करने की हिदायत दी। कहा कि जो लोग चर्च जा रहे हैं उन्हें कोई काम नहीं करने दिया जाएगा। गांव के लोगों को कहना है जो लोग चर्च जा रहे हैं उन्हें गांव के किसी भी काम में शामिल नहीं किया जाएगा।

मनीषा नारायणपुर में ही एक शॉपिंग कॉम्पलेक्स में काम करती हैं, वह भी अपनी मां के साथ मजदूरी करने के लिए गई थीं। मैंने उनसे पूछा जब आप शॉपिंग कॉम्पलेक्स में काम करती हैं तो मजदूरी क्यों करती है? इस पर मनीषा का जवाब था कि “वहां 12 घंटे की शिफ्ट होती है, सुबह 9 बजे से रात नौ बजे तक। छोटा शहर है रात में जल्दी शांति हो जाती है। मुझे रात में आने में डर लगता है, इसलिए मैंने सोचा कि मजदूरी कर लेती हूं। समय से घर आ जाया करूंगी। मनीषा 12वीं तक पढ़ी हैं।

मनीषा ने बताया कि जब मैंने सरपंच से इस बात की शिकायत की, कि मुझे और अन्य ईसाई लोगों को काम नहीं करने दिया जा रहा है तो सरपंच ने उल्टा मुझ पर ही आरोप लगा दिया कि मेरी उम्र कम है और मैंने फर्जी रोजगार कार्ड बनाया है।

मनीषा के घर में एक ईसा मसीह की फोटो लगी हुई थी। उसकी मां ने मुझे बताया कि 21 साल पहले वह बीमार हुई थीं। कई जगह इलाज करवाया लेकिन ठीक नहीं हुई। उन्हें गांव के ही कुछ लोगों ने चर्च जाने का सुझाव दिया। लेकिन उसने सुझाव को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि मैं दूसरे धर्म को नहीं मानूंगी। लेकिन कुछ लोग नहीं माने। अंत में वह गई और ठीक हो गई।

शांति कहती हैं कि “मैं कुबड़ी हो चुकी थी। लेकिन चर्च जाने के बाद मेरी स्थिति ठीक हो गई। यह वाकया 21 साल पहले का है। इसके बाद मेरे चार बच्चे हुए। हम लोग इसी गांव में रह रहे हैं। कभी कोई बात नहीं हुई। लेकिन पिछले एक दो साल से हमें लगातार परेशान किया जा रहा है। समझ नहीं आता कि इतने सालों बाद अपने ही लोग हमारे खिलाफ कैसे हो गए हैं।

अपने घर में शांति

ईसाइयों को परेशान करने का सिलसिला यही नहीं रुका। गरांजी एक बड़ी पंचायत है जहां उच्च विद्यालय भी है। इसी विद्यालय में रामनाथ सलाम रसोईये के तौर पर काम करते थे। लेकिन पिछले साल जैसे ही नारायणपुर में ईसाइयों के खिलाफ माहौल बना उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया।

रामनाथ को पहले नौकरी से निकाल दिया गया था फिर उन्हें कुछ दिनों बाद बुलाया गया और अंत में फरवरी के महीने से स्थाई तौर से निकाल कर किसी दूसरे व्यक्ति को काम पर रख लिया गया। इस विषय पर रामनाथ ने उच्च अधिकारियों समेत राज्य सरकार तक अपनी शिकायत की, लेकिन किसी ने उसकी एक नहीं सुनी।

खबरों की माने तो पिछले कुछ समय से बस्तर संभाग में हिंदूवादी संगठन बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद की पैठ बढ़ी है, जो आदिवासियों को आदिवासियों के खिलाफ लड़ाने का काम कर रहे हैं। जबकि बस्तर के जगदलपुर में 1890 में लाल चर्च बना था। इस चर्च के बनने के 132 साल बाद स्थिति यह है कि यहां धर्मांतरण के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है।

गरांजी गांव के गोपाल दुग्गा विश्व हिंदू परिषद के जिला अध्यक्ष हैं। कलेक्टर को दी गई शिकायत में उनका भी नाम है। हमने उनसे इस पूरी घटना के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि “गांव में सबको काम मिलना है, हमें तो पंयाचत की तरफ से काम कराना है, जो आएगा उसे काम दिया जाएगा।”

कलेक्टर को दी गई शिकायत

ईसाइयों को काम नहीं करने देने के मेरे सवाल पर दुग्गा ने कहा, “मुझे जब यह बात पता चली तो मैंने गांव में एक मीटिंग बुलाकर शिकायतकर्ताओं से बात की और उन्हें काम पर आने के लिए कहा”। लेकिन गांव वालों का कहना है कि उन्हें काम पर नहीं बुलाया गया है।

इस मामले में सामजिक कार्यकर्ता फूल सिंह कचलाम का कहना है कि “अक्टूबर 2022 के बाद से ही नारायणपुर का माहौल बिगड़ा हुआ है। अक्टूबर के महीने में ईसाई महिला को गांव में दफनाने नहीं दिया गया, फिर स्कूल में हमला किया गया, अब लगातार लोगों को काम से रोका जा रहा है, पिछले दो महीने से लगातार गांव में लोगों को काम नहीं दिया जा रहा है। तेंदूपत्ते का सीजन है। लोगों को तेंदूपत्ते से वंचित रखा गया है, गांव में ईसाई परिवारों को पीने का पानी नहीं लेने दिया जा रहा है।”

फूल सिंह के अनुसार “इन सबके पीछे विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के लोग शामिल हैं। ये लोग गांव में जाकर लोगों को भड़काने का काम कर रहे हैं। गांवों में लंबे समय से ईसाई रह रहे हैं पहले कभी ऐसा नहीं हुआ, लेकिन पिछले दो सालों से गांव में समाज के प्रति नफरत भरकर आदिवासियों को आदिवासियों से लड़ाया जा रहा है। यह सारी चीजें आरएसएस द्वारा पीछे से की जा रही हैं।”

उनका कहना है कि “भाजपा के जिला अध्यक्ष रूपसाय सलाम की जब जेल से वापसी होती है तो कोई भी आदिवासी या मूलनिवासी इनके सामने नहीं दिख रहा था। सोशल मीडिया पर आई फोटो से साफ जाहिर है कि आदिवासी इनके साथ नहीं हैं।

ग्रुप के माध्यम से हिंदुत्व को बढ़ावा

आपको बता दें कि बस्तर में भाजपा और राइट विंग के संगठन दशकों से आदिवासियों को हिंदू बनाने और घर वापसी जैसी मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। साल 2012 में भाजपा की सरकार के दौरान प्रदेश में भाजपा और दक्षिणपंथी संगठन (राइट विंग) के सहयोग से जनजातीय गौरव मंच के नाम से शुरू किया गया एक ग्रुप “आदिवासी हिंदू होते हैं” के विचार को फैलाने का काम कर रहा है।

साल 2018 से पहले भाजपा की सरकार थी इसलिए सभी काम बिना शोर शराबे का होते रहे। लेकिन कांग्रेस की सरकार आने के बाद से ही बस्तर में ईसाइयों पर हो रहे अत्याचार मीडिया की सुर्खियां बन गये। कुछ ईसाई मिशनरियों की मानें तो पिछले दो साल यानि कि 2021 से प्रदेश में ईसाइयों पर अत्याचार बढ़ा है। इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। देखना है इसका असर चुनाव पर कितना पड़ता है।

बस्तर से अलग करके साल 2007 में नारायणपुर जिला बना था, साल 2011 की जनगणना के अनुसार जिले में 139,820 लोग रहते हैं। जिसमें 0.43% लोग ईसाई हैं।

हिंदूवादी संगठन आदिवासियों को आपस में लड़ा रहे हैं

आदिवासी ईसाइयों पर लगातार हो रहे हमलों के बारे में नारायणपुर के कलेक्टर अजीत वसंत ने हमसे बात करते हुए कहा, “जिले में एक दो जगह ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसकी जानकारी मुझे मिली थी, जिस पर एक्शन लिया गया। संबंधित लोगों को इस विषय पर बताया है, फिलहाल अभी इस मामले में और कोई शिकायत नहीं आई है”।

कलेक्टर अजीत वसंत

ईसाइयों के प्रति बढ़ती हिंसा के बीच नारायणपुर के विधायक चंदन कश्यप से मैंने बात की तो उन्होंने बताया कि “मुझे इस बात की जानकारी देर से मिली थी। इसके बाद मैं एक गांव गया लेकिन वहां मुझे लोग नहीं मिले। वह कहते हैं कि “हिंदू संगठनों द्वारा आदिवासियों को आदिवासियों के साथ लड़ाया जा रहा है। इस साल छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है इसलिए धर्मांतरण को एक बड़ा मुद्दा बनाना चाह रही है। जबकि जनता हमारे काम से खुश है।”

विधायक चंदन कश्यप के अनुसार “प्रदेश में भाजपा के कार्यकाल के दौरान सबसे ज्यादा चर्च बनाए गए और आज उन्हीं ईसाइयों को परेशान किया जा रहा है।”

(बस्तर से पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट)

पूनम मसीह
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