मुस्लिम विरोधी हिंसा भड़काते भारत के हिंदू त्योहार, दोषियों को सजा दे सरकार: ह्यूमन राइट्स वॉच

इस साल मुसलमानों के पवित्र माह रमजान में पड़ने वाले भारत में हिंदू त्योहार रामनवमी के जुलूस के दौरान उस समय हिंसा भड़क उठी जब मुस्लिम इलाकों से गुजरते इसमें शामिल हिंदुओं ने हथियार लहराए और मुस्लिम विरोधी नारे लगाए।

30 और 31 मार्च को कई राज्यों में साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं। खबरों के मुताबिक, बिहार में भीड़ ने एक ऐतिहासिक मदरसे में तोड़फोड़ की और उसमें आग लगा दी। इन झड़पों में एक हिंदू किशोर की मौत हो गई। देश भर में 100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है और दर्जनों घायल हुए हैं।

सत्तारूढ़ हिंदू बहुसंख्यकवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मतदाताओं को गोलबंद करने के लिए भारत के हिंदू त्योहारों का तेजी से इस्तेमाल कर रही है, जिससे हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। राजनीतिक संरक्षण की भावना से लैस ऐसी भीड़ बेख़ौफ़ होकर कार्रवाई करती है। विपक्ष शासित पश्चिम बंगाल में हिंसा के बाद प्रशासन द्वारा एक दर्जन से अधिक भाजपा सदस्यों और समर्थकों की गिरफ़्तारी पर भाजपा ने पुलिस पर पक्षपात और “एकतरफा कार्रवाई” का आरोप लगाया।

बीती घटनाओं से पता चलता है कि आमतौर पर मुसलमान ही सरकारी तंत्र द्वारा गलत तरीके से निशाना बनाए जाते हैं। पिछले अप्रैल में, धार्मिक जुलूस निकाल रहे हिन्दुओं द्वारा मस्जिदों के बाहर आपत्तिजनक नारे लगाने से सांप्रदायिक झड़पें हुईं थीं। इस तरह के उकसावे को रोकने या इन घटनाओं की जांच करने की कोशिश करने के बजाय, मध्य प्रदेश और गुजरात की भाजपा सरकारों ने मुसलमानों की संपत्तियों को फ़ौरन ध्वस्त कर दिया।

अक्टूबर में, एक अन्य हिंदू त्योहार के दौरान, मध्य प्रदेश पुलिस ने सांप्रदायिक झड़पों पर कार्रवाई करते हुए पत्थर फेंकने के आरोपी तीन मुसलमानों के घरों को ध्वस्त कर दिया। गुजरात में पुलिस ने मुस्लिमों की सार्वजनिक रूप से लाठियों से पिटाई की।

हर स्तर पर भाजपा सरकारों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले भेदभावपूर्ण कानूनों और नीतियों को अपनाया है और इसके नेता एवं सहयोगी हिंसा के लिए उकसाने समेत लगातार अल्पसंख्यक विरोधी टिप्पणी करते हैं।

वैश्विक स्तर के संगठन इस्लामिक सहयोगी संगठन (ओआईसी) ने ताज़ा घटनाओं को “भारत में बढ़ते इस्लामोफ़ोबिया और मुस्लिम समुदाय को सुनियोजित तरीके से निशाना बनाए जाने की स्पष्ट अभिव्यक्ति” कहा है। भारत के विदेश मंत्रालय ने ओआईसी के बयान को “उनकी सांप्रदायिक मानसिकता और भारत विरोधी एजेंडे का एक और उदाहरण” बताया।

भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए अपनी लोकतांत्रिक उपलब्धियों का प्रचार-प्रसार करना चाहता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 की अध्यक्षता, जो कि बारी-बारी से इसके सदस्य देशों को प्राप्त होती है, को अपनी सरकार की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के अवसर के रूप में चुना है। लेकिन अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और नागरिक समाज का दमन सत्तावादी शासन की विशिष्टताओं को प्रकट करता है।

भारत को अगर सही मायनों में विश्व का नेता बनना है, तो मानवाधिकारों के हनन को ख़त्म करना उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

(मीनाक्षी गांगुली, ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक हैं)

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