कांग्रेस महाधिवेशन: क्या कांग्रेस सामाजिक न्याय को अपना प्रमुख एजेंडा बनाने जा रही है?

कांग्रेस पार्टी ने रायपुर में हुए अपने 85वें महाधिवेशन में सामाजिक न्याय से जुड़े निम्न महत्पूर्ण फैसले लिए

  • एससी-एसटी, ओबीसी, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए पार्टी के सांगठनिक ढांचे में नीचे से ऊपर तक 50 प्रतिशत आरक्षण।
  • जाति आधारित जनगणना कराने की मांग। कांग्रेस अध्यक्ष ने जोर देकर कहा कि सामाजिक सशक्तीकरण के लिए सामाजिक न्याय अनिवार्य।
  • उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों की नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान।
  • एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक छात्रों को संरक्षण प्रदान करने के हेतु रोहित वेमुला एक्ट।
  • एससी, एसटी और ओबीसी को निजी क्षेत्र (संगठित) की नौकरियों में समान प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए अलग से मंत्रालय का गठन।

आज की तारीख में एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों की सबसे बड़ी मांग जाति आधारित जनगणना है। नरेंद्र मोदी की सरकार जाति आधारित जनगणना कराने से साफ इंकार कर चुकी है। कांग्रेस ने अपने महाधिवेशन में इस मांग को पुरजोर तरीके से उठाया है।

नरेंद्र मोदी सरकार की इस बात के लिए आलोचना की गई कि वह जाति आधारित जनगणना कराने से भाग रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने संबोधन में इसे कांग्रेस के प्रमुख मुद्दे के रूप में पेश किया। सामाजिक न्याय के समर्थक संगठन और पार्टियां लगातार जाति आधारित जनगणना की मांग कर रही हैं और उसके लिए सड़कों पर संघर्षरत हैं।

वहीं बिहार की महागठबंधन सरकार ने राज्य स्तर पर जाति आधारित जनगणना शुरू भी कर दिया है, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है। उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा भी जाति आधारित जनगणना के पक्ष में अभियान चला रही है। कांग्रेस पार्टी इस मांग के साथ पहली बार इतने मुखर तरीके से खड़ी हुई दिख रही है।

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पहले भी जाति आधारित जनगणना की मांग का समर्थन किया था, लेकिन पहली बार पार्टी में इस मुद्दे पर आम सहमति देखने को मिल रही है और पार्टी ने पुरजोर तरीके से इस मुद्दे को उठाने का फैसला लिया।

शिक्षा संस्थानों में जाति के आधार पर एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों का उत्पीड़न और उनके साथ भेदभाव की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। इसी तरह के जाति आधारित उत्पीड़न के चलते रोहित वेमुला को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा। तभी से रोहित वेमुला एक्ट की मांग की जा रही थी।

इस एक्ट की कितनी जरूरत है, इसे उच्च शिक्षा संस्थानों के आंकड़ों से समझा जा सकता है। दिसंबर 2021 में केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में बताया था कि 2014 से 2021 के बीच आईआईटी, आईआईएम और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुल 122 छात्रों ने आत्महत्याएं कीं, जिनमें 24 अनुसूचित जाति के, 3 अनुसूचित जनजाति के, 41 अन्य पिछड़ी जातियों के और 3 अल्पसंख्यक वर्ग से थे। इन कमजोर वर्गों की कुल संख्या 71(58%) थी। कांग्रेस पार्टी ने महाधिवेशन के प्रस्तावों में रोहित वेमुला एक्ट की मांग को भी शामिल किया है।

उच्च न्यायपालिका में एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की मांग लंबे अर्से से होती रही है। न्यायाधीश के रूप में उच्च न्यायपालिका में कुछ जातियों का वर्चस्व सर्वविदित है। 2018-2022 के बीच यानी चार सालों में उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति का जो आंकड़ा सामने आया है, वह बताता है कि इन चार सालों में 79 प्रतिशत जज ऊंची जातियों से नियुक्त किए गए।

स्पष्ट है कि देश के 25 हाईकोर्टों में जो जज बैठे हैं, उनमें 100 में 79 जज ऊंची जातियों से ताल्लुक रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट में ऊंची जातियों के जजों का यह प्रतिशत इससे भी अधिक है।

कांग्रेस पार्टी ने उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में आरक्षण की बात कर एससी, एसटी और ओबीसी की आकांक्षाओं के साथ खड़ा होने का फैसला लिया है।

यहां पर गौरतलब है कि 1990 के बाद से भारत में सरकारी क्षेत्र निरंतर सिकुड़ता जा रहा है और वहां नौकरियां भी कम होती जा रही हैं। निजी क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है। निजी क्षेत्र का संगठित हिस्सा बेहतर तनख्वाहों और सेवा शर्तों वाली नौकरियां सृजित कर रहा है।

निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग एससी, एसटी और ओबीसी समूह लंबे समय से कर रहे हैं। कांग्रेस ने अपने इस महाधिवेशन में सीधे तौर पर निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रस्ताव तो नहीं पास किया, लेकिन निजी क्षेत्र में इन तबकों को समान प्रतिनिधित्व के लिए अलग से मंत्रालय बनाने की बात ज़रूर की है। 

कांग्रेस के सांगठनिक ढांचे के भीतर वंचित तबकों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने की दिशा में एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत पद आरक्षित करना एक महत्वपूर्ण सांगठनिक कदम साबित हो सकता है। कांग्रेस ने इस तरह की मंशा उदयपुर (राजस्थान) के चिंतन शिविर ( 13 से 15 मई 2022) में भी जाहिर की थी, लेकिन इसकी कोई आधिकारिक घोषणा तब नहीं हुई थी। इस महाधिवेशन में इसके लिए कांग्रेस के संविधान में संशोधन किया गया है।

कांग्रेस के अन्य नेताओं पर  मल्लिकार्जुन खड़गे को वरीयता देकर और उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर इस दिशा में वह पहले ही एक महत्वपूर्ण कदम उठा चुकी है।

पिछले दो दशकों में भारतीय समाज और राजनीति में हुए परिवर्तन इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि भारत में सामाजिक न्याय के प्रश्नों को पुरजोर तरीके से उठाए बिना और एससी, एसटी और ओबीसी तबकों को हर स्तर पर समुचित प्रतिनिधित्व दिए बिना किसी भी पार्टी के लिए भारत में राजनीतिक सफलता हासिल करना मुश्किल है।

कांग्रेस थोड़े देर से ही सही इस दिशा में निर्णायक कदम उठाते हुए इस महाधिवेशन में दिखी। इन कदमों को देखकर लगता है कि कांग्रेस सामाजिक न्याय को अपना प्रमुख एजेंडा बनाने जा रही है।

( कुमुद प्रसाद जनचौक में कॉपी एडिटर हैं।)

कुमुद प्रसाद
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