योगी शासन में रोहित वेमुला को याद करना भी गुनाह

कल रोहित वेमुला की सातवीं पुण्यतिथि थी। शुरुआती कुछ वर्षों तक देश ने रोहित वेमुला की शहादत को याद रखा, लेकिन समय के साथ ये यादें भी क्षीण पड़ती जा रही हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के कुछ छात्र संगठनों ने रोहित की याद को जिंदा रखा और 17 जनवरी, 2023 के दिन आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के विद्यार्थियों ने इलाहबाद विश्वविद्यालय सहित लखनऊ विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की याद में मार्च और एक सभा रखने का निर्णय लिया था, जिस पर लखनऊ विश्वविद्यालय में वर्तमान सरकार के आनुषांगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने हमला कर दिया। हालांकि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के परिसर में इस प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं घटी है।

आइसा छात्र संगठन के प्रदेश सचिव शिवम चौधरी से फोन पर जनचौक संवाददाता ने बातचीत की। शिवम के मुताबिक आइसा ने रोहित वेमुला की पुण्यतिथि की घोषणा काफी पहले से की हुई थी, और 14 जनवरी से कैंपस के भीतर इस बारे में संगठन के द्वारा छात्र-छात्राओं के बीच में प्रचार-प्रसार किया जा रहा था। लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा प्रॉक्टर कार्यालय की ओर से इस पर आपत्ति दर्ज की गई और 14 जनवरी को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया, जो हमें 16 जनवरी को प्राप्त हुआ। आइसा की लखनऊ ईकाई की संयोजक अंजलि सिंह और सह संयोजक समर के नाम यह नोटिस भेजा गया।

विश्वविद्यालय प्रशासन का तर्क था कि चूंकि शहर में धारा 144 लागू है, लिहाजा विश्वविद्यालय में किसी प्रकार के जुलूस की अनुमति नहीं दी जा सकती है। बीए की छात्रा अंजलि और बीएससी के छात्र समर को प्रेषित नोटिस में कहा गया है कि उनके द्वारा परिसर में बांटे जा रहे पर्चे में लखनऊ विश्वविद्यालय के विरुद्ध भ्रामक एवं आधारहीन आरोप लगाये गये हैं। आपके कृत्य से विश्वविद्यालय की छवि धूमिल हो रही है। प्रो. राकेश द्विवेदी द्वारा भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि इस छात्रों का यह कृत्य न केवल छात्र मर्यादाओं के सर्वथा विपरीत है अपितु विश्वविद्यालय व्यवस्थाओं के भी सर्वथा प्रतिकूल है। इसलिए इनको इस सम्बन्ध में 02 दिन के अन्दर अपना लिखित स्पष्टीकरण प्राक्टर कार्यालय में स्वयं उपस्थित होकर प्रस्तुत करना होगा, अन्यथा इनके विरूद्ध अग्रिम अनुशासनात्मक कार्यवाही की प्रक्रिया प्रारम्भ की जायेगी।

लेकिन छात्र संगठन का तर्क था कि चूंकि विश्विद्यालय के परिसर के भीतर हम जुलूस और सभा करेंगे और किसी बाहरी व्यक्ति को इसमें प्रवेश की इजाजत नहीं दे रहे हैं, लिहाजा धारा 144 का परिसर के भीतर लागू होने का कोई तर्क नहीं बनता है। बहरहाल 17 जनवरी को निर्धारित कार्यक्रम के तहत आइसा ने जुलूस निकाला, जिसे कैंपस में एक सभा में परिणित होना था। परिसर से ही इस सभा के लिए मुख्य वक्ता के तौर पर प्रोफेसर रविकांत आमंत्रित थे।

गौरतलब है कि इस बीच कैंपस में आइसा के इस आह्वान पर अन्य छात्र संगठनों ने भी अपना समर्थन जारी कर दिया था। कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई, समाजवादी छात्र सभा और बाप्सा ने भी कार्यक्रम में अपनी शिरकत के लिए हामी भरी। इस प्रकार यह जुलूस नारों और रोहित वेमुला की शहादत को याद करते हुए सेंट्रल लाइब्रेरी की ओर बढ़ रहे थे, जब सामने से एबीवीपी के सदस्य दल-बल के साथ जवाबी नारे लगाते हुए सामने आ खड़ा हुआ और गेट संख्या 5 से जो मार्च शुरू हुआ था, उसे बाधित कर दिया गया। एबीवीपी के साथ आये लोगों ने नारे लगाते हुए आक्रामक रुख अपनाते हुए कई छात्र- छात्राओं के साथ मारपीट शुरू कर दी, और मार्च में इस्तेमाल किये जा रहे बैनर को फाड़ डाला और डफली छीनने की कोशिश की।

शिवम चौधरी ने आगे स्पष्ट करते हुए बताया कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य दलित और पिछड़े छात्रों के खिलाफ संस्थागत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष को तेज करना था। इसके अलावा कार्यक्रम में नई शिक्षा नीति के माध्यम से निजीकरण के मार्ग को प्रशस्त किये जाने का विरोध और मौलाना मौलाना आजाद राष्ट्रीय फैलोशिप की बहाली की मांग करना रहा है। इस संदर्भ में आइसा की ओर से एक पर्चा भी जारी किया गया था। पर्चे का शीर्षक था रोहित वेमुला से कौन डरता है? इसमें सवाल पूछा गया है कि “शिक्षा संस्थानों में जातिवाद और ब्राह्मणवादी वर्चस्व को आखिर कौन बरकरार रखना चाहता है”?

अपने पर्चे में आइसा ने रोहित वेमुला की सातवीं बरसी पर उन्हें याद करते हुए कहा है की आज से 7 साल पहले देश ने एक बेहद प्रतिभाशाली दलित विद्वान को खो दिया, एक ऐसा युवा जिसके भीतर असीम संभावनाएं और स्वप्न थे, जबकि आज उसकी मौत के लिए जिम्मेदार लोग सत्ता का आनंद उठा रहे हैं। रोहित वेमुला आज और भविष्य में भी हमारे संघर्षों और आंदोलनों में जिंदा रहने वाले हैं और दलितों के खिलाफ जारी ब्राह्मणवादी आतंक के खिलाफ उनके द्वारा शुरू किये गए संघर्ष को हम जारी रखेंगे।

पिछले कई वर्षों से जहां एक तरफ रोजगार के अवसर लगातार खत्म होते जा रहे हैं, वहीं विश्वविद्यालय परिसरों के भीतर लोकतांत्रिक स्पेस लगातार सिकुड़ता जा रहा है, और शिक्षा के भगवाकरण की प्रक्रिया के अबाध गति से आगे बढ़ाये जाने की वजह से लखनऊ विश्वविद्यालय विभिन्न विषयों में प्रवेश के लिए वित्तीय बोझ छात्रों के ऊपर असामान्य रूप से कई गुना बढ़ा दिया गया है। नई शिक्षा नीति 2020 के बारे में विशेष उल्लेख करते हुए पर्चे में इसके विभिन्न पहलुओं से आलोचना की गई थी, और इसके खिलाफ अनवरत संघर्ष का संकल्प लिया गया था।

शायद यही वह वजह रही जिसके चलते लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन और सत्तारूढ़ सरकार के आनुषंगिक छात्र संगठन एबीवीपी के लिए यह नागवार गुजरा, जिसकी परिणति कल के मुठभेड़ में नजर आई।

अपनी प्रेस विज्ञप्ति में आइसा ने लिखा है कि “एबीवीपी के गुंडों के द्वारा हमारे संगठन के साथी निखिल, अंजलि व समर के साथ मारपीट की गई। महिला साथियों के साथ गाली-गलौच कर दुर्व्यवहार किया गया। एबीवीपी के गुंडों ने मार्च का बैनर, पोस्टर भी फाड़ दिया तथा बाबासाहेब आंबेडकर को अर्पित की जाने वाली फूल-मालाएं भी छीन लीं। विश्वविद्यालय परिसर में मौजूद पुलिस एवं प्रोक्टोरियल टीम का मूकदर्शक बने रहकर कोई कार्यवाही नहीं करना भी बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। विवि प्रशासन का यह असंवेदनशील रवैया अकादमिक संस्थानों में गहरे व्याप्त जातिवादी आग्रहों की पोल खोलता है तथा ब्राह्मणवादी सोच को उजागर करता है।”

विज्ञप्ति में आगे कहा गया है कि “आइसा इस हमले और विश्वविद्यालय प्रशासन के इस हमले में परोक्ष सहयोग की कड़ी निंदा करता है इसके साथ ही इस हमले के विरुद्ध व्यापक स्तर पर राजनीतिक कार्यवाही के लिए देश भर के विश्वविद्यालयों में मौजूद प्रगतिशील जाति-विरोधी संगठनों से अपील करता है।”

आगे की योजना पर संगठन के प्रदेश सचिव शिवम का कहना था की इस बारे में इलाहबाद विश्वविद्यालय और दिल्ली में जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संगठनों की और से प्रतिवाद मार्च, कैंडल मार्च और बयान जारी किये गए हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय में मौजूद अन्य समानधर्मी छात्र संगठनों के साथ आइसा की योजना है कि इस मामले पर विश्वविद्यालय के सभी छात्र-छात्राओं और शिक्षकों के जनमत को तैयार किया जाए और परिसर के भीतर अलोकतांत्रिक, भगवा आतंक से न सिर्फ छात्रों और शिक्षकों को निजात दिलाई जाये, बल्कि प्रशासन को भी उसकी नैतिक जिम्मेदारी और कर्तव्यबोध का अहसास कराना होगा, और इसके लिए व्यापक समूह को गोलबंद करने की हमारी योजना है। इसके लिए जल्द ही समानधर्मी संगठनों के साथ आइसा बैठक कर फैसला लेने जा रही है।

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