न्याय का मखौल ! आजम खां के जमानत पर 137 दिनों से फैसला रिजर्व है

संविधान निर्माता बाबा साहब भीम राव आंबेडकर ने संविधान बनाते समय यह कभी सोचा भी नहीं होगा कि कभी न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के साथ मिलकर सरकार में बैठे आकाओं को खुश करने के लिए कानून के शासन की अवधारणा की धज्जियां उड़ा देगी और न्याय का मखौल बना देगी, लेकिन आज के वैचारिक माहौल में ऐसा धड़ल्ले से किया जा रहा है। आरोप है कि ऐसा उत्तर प्रदेश में सपा के कद्दावर मुस्लिम नेता आजम खां के मामले में किया जा रहा है । यहाँ तक कि जब यह मामला उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में लाया गया तो उच्चतम न्यायालय को कहना पड़ा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में आदेश सुरक्षित होने के 137 दिन बाद भी फैसला क्यों नहीं हो पाया है? यह न्याय का माखौल उड़ाना है।

मामला उच्च्तम न्यायालय में पहुँचने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत पर आदेश सुरक्षित होने के लगभग चार महीने बाद बीते 29 अप्रैल को राज्य सरकार ने पूरक जवाबी हलफनामा दाखिल कर कुछ और नए तथ्‍य पेश किए, जिसके बाद 5 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में फिर सुनवाई हुई। आजम खां की जमानत के समर्थन में उनके अधिवक्ता इमरान उल्लाह का कहना था कि उनके मुवक्किल के खिलाफ 89 मुकदमे दर्ज हैं। उनमें से 88 में उन्हें जमानत मिल चुकी है।

उच्चतम न्यायालय ने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और रामपुर सीट से विधायक मोहम्मद आजम खां की जमानत पर फैसला न आने के मामले में नाराजगी जताई है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ  ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से पूछा है कि 87 में से 86 मामलों में आजम खां को जमानत मिल चुकी है, सिर्फ एक मामले के लिए इतना लंबा वक्त क्यों लग रहा है?

पीठ ने कहा कि 137 दिन बाद भी फैसला क्यों नहीं हो पाया है? यह न्याय का माखौल उड़ाना है। पीठ ने कहा कि अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले में फैसला नहीं करता तो हमें मजबूरन दखल देना पड़ेगा। पीठ इस मसले में 11 मई को फिर सुनवाई करेगी । आजम खां बीते दो वर्षों से सीतापुर जेल में बंद हैं।

हाईकोर्ट द्वारा जमानत याचिका के निपटारे में अत्यधिक देरी से परेशान जस्टिस नागेश्वर राव ने कहा कि अब फैसला सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है कि हम आपको बताएं। 137 दिन तक कोई आदेश पारित नहीं किया गया है। उन्हें 86 मामलों में जमानत पर रिहा किया गया है। यह एक ही मामला है। यह न्याय का मजाक है। हम अभी इतना ही कह सकते हैं। यदि आवश्यक हुआ तो हम और कहेंगे। इसे बुधवार को आने दें। आइए हम उन्हें 2 दिन का मौका दें।

कई मामलों में आरोपों का सामना कर रहे आजम खां 26 फ़रवरी, 2020 से सीतापुर जेल में बंद हैं। उन्हें ज्यादातर मामलों में जमानत मिल चुकी है। लेकिन, ऐसे तीन मामले हैं जिनमें भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, जालसाजी, सार्वजनिक विश्वास का आपराधिक उल्लंघन, आपराधिक साजिश, आपराधिक मान-हानि, सबूतों से छेड़छाड़ और वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना पैदा करने या बढ़ावा देने के आरोप शामिल हैं जिनमें जमानत मांगी गई है।

आजम खां ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने कार्यवाही को रोकने के लिए सभी उपलब्ध साधनों को अपनाया है। एक विशेष सांसद/विधायक कोर्ट ने यह देखते हुए 27जनवरी 2022 को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी कि उनके द्वारा प्रकाशित कुछ तथ्यों में शांति और सद्भाव को बाधित करने के लिए जनता या समुदाय के सदस्यों को उकसाने की क्षमता है।उनकी जमानत याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष लंबित थी, इसलिए उन्होंने रामपुर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव अभियान में भाग लेने के लिए अंतरिम एक-पक्षीय जमानत की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

आजम खां के वकील कपिल सिब्बल ने पीठ को अवगत कराया कि हाईकोर्ट जमानत अर्जी पर सुनवाई के लिए अनिच्छुक है। हालांकि पीठ ने उन्हें जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया, लेकिन आदेश दिनांक 08 फ़रवरी 2022 के तहत, इसने खान को इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा। पीठ  ने हाईकोर्ट से याचिकाकर्ता की चिंताओं पर विचार करने और मामले को जल्द से जल्द निपटाने के लिए भी कहा।

आदेश में यह नोट किया कि याचिकाकर्ता को संबंधित हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने और आवेदन के शीघ्र निपटान की मांग करने की स्वतंत्रता है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि न्यायालय याचिकाकर्ता की चिंताओं को ध्यान में रखेगा और मामले का शीघ्र निपटारा करेगा।

29 अप्रैल, 2022 को, सिब्बल ने और देरी होने का संदेह करते हुए पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख किया। उन्हें आशंका थी कि यदि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया तो भी आदेश पारित करने में देरी हो सकती है।

इससे पहले 5 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में शत्रु संपत्ति के मामले में आजम खां की जमानत को लेकर 3 घंटे तक बहस हुई। दोपहर बाद 3.50 से शाम 6.42 तक चली बहस में दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की अदालत ने फैसला सुरक्षित कर लिया। रामपुर के अजीमनगर थाने में आजम खांन पर फर्जी वक्फ बनाने व शत्रु संपत्ति पर अवैध कब्जा कर बाउंड्रीवॉल खड़ी करने के आरोप में मामला दर्ज है ।

दरअसल 4 दिसंबर 2021 को इस मामले में सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया था। फिर 5 मई 2022 को सुनवाई के बाद भी अदालत ने आजम खां की जमानत पर फैसला सुरक्षित रखा। आजम खां की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत याचिका पर आदेश सुरक्षित करने के बाद लंबे अरसे से फैसला नहीं सुनाया है। इस पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई की तारीख मुकर्रर की थी ।

इस मामले में बीते 29 अप्रैल को राज्य सरकार ने पूरक जवाबी हलफनामा दाखिल कर कुछ और नए तथ्‍य पेश किए, जिसके बाद 5 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में फिर सुनवाई हुई । आजम खां की जमानत के समर्थन में उनके अधिवक्ता इमरान उल्लाह का कहना था कि उनके मुवक्किल के खिलाफ 89 मुकदमे दर्ज हैं। उनमें से 88 में उन्हें जमानत मिल चुकी है। यह मुकदमा भी अन्य की तरह राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण दर्ज कराया गया है।

आजम खां के वकील ने हाईकोर्ट में दलील दी कि रामपुर के जिलाधिकारी ने 18 जुलाई 2006 को 1700 रुपये प्रति एकड़ की दर पर 84 बीघा शत्रु संपत्ति का पट्टा मौलाना जौहर अली ट्रस्ट को किया था । वर्ष 2014 में कस्टोडियन ने पट्टा रद्द करते हुए जमीन बीएसएफ को दे दी । उन्होंने कहा कि 350 एकड़ जमीन पर बने जौहर विश्वविद्यालय की काफी जमीन सेलडीड से खरीदी गई है। कुछ जमीन सरकार ने पट्टे पर दी है। विवादित जमीन पर निर्माण नहीं है। वर्ष 2019 में 13 हेक्टेयर जमीन को शत्रु संपत्ति का बताते हुए विवाद खड़ा किया गया है ।

मोहम्मद आजम खां की जमानत का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी व शिकायतकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद फरमान अहमद नकवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से कहा कि आजम खां ही इस मामले के मुख्य अभियुक्त हैं, क्योंकि जो भी फर्जीवाड़ा किया गया, उसके बेनिफिशयरी आजम खां ही हैं। उन्होंने कहा कि आजम खां बेनिफिशयरी हैं और उन्होंने सब कुछ अपने लिए किया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2003 में आजम खां ने कैबिनेट मंत्री के पद का गलत इस्तेमाल करते हुए इमामुद्दीन कुरैशी की जमीन हड़पने के लिए वक्फ एक्ट के सारे प्रावधान ताक पर रख दिए। मामले के सह अभियुक्त व वक्फ बोर्ड में उस समय कार्यरत अधिकारी गुलाम सैयदन ने अपने हलफनामे में आजम खां की करतूत का खुलासा किया है।

गुलाम सैयदन ने अपने हलफनामे में कहा है कि 18 नवंबर, 2003 को वह लखनऊ में इंदिरा भवन स्थित अपने कार्यालय पहुंचे तो तत्कालीन कैबिनेट मंत्री आजम खां ने उन्हें विधान भवन स्थित अपने चैंबर में बुलाया। अपने चैंबर के अंदर वाले कक्ष में आजम खां ने गुलाम सैयदन को चप्पल से मारा व धमकाया । फिर एक आदमी को साथ भेजकर इंदिरा भवन स्थित ऑफिस से 2 रजिस्टर जबरन मंगवाए। अपने चैंबर में उस रजिस्टर पर निब और स्याही वाली कलम से फर्जी इंद्रराज कराया। मसूद खान नामक शख्स ने उस इंद्रराज की इबारत लिखी और बाद में उससे जबरन दस्तखत कराए गए ।

दरअसल 4 दिसंबर 2021 को हाईकोर्ट ने इस मामले में बहस पूरी होने के बाद जजमेंट रिजर्व कर लिया था, लेकिन करीब 4 महीने तक इस मामले में फैसला ना आने के बाद यूपी की योगी सरकार ने हाईकोर्ट में अर्जेंसी एप्लीकेशन और सप्लीमेंट्री दाखिल की। सरकार ने कोर्ट से मांग की कि इस मामले में कुछ नए तथ्य सामने आए हैं जिन्हें वह कोर्ट में पेश करना चाहती है। कोर्ट ने राज्य सरकार की अर्जी स्वीकार करने के बाद इस मामले में दोबारा सुनवाई शुरू की। 4 मई और 5 मई (दो दिन) तक चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है । आजम खान के वकील ने कहा है कि राज्य सरकार कोर्ट में कुछ नए तथ्य नहीं पेश कर पाई बल्कि उन्हीं मामलों को कोर्ट में दोबारा उठाया गया जो मामले पहले से चार्जशीट में शामिल थे ।

आजम खान के वकीलों ने कोर्ट में बताया कि वर्ष 2014 में जमीन बीएसएफ को दे दी गई थी और इस मामले में केस हुआ था। इस मामले में कोर्ट में स्टे है। 2015 में शिया वक्फ बोर्ड ने भी इस जमीन पर दावा किया। इस मामले में भी हाईकोर्ट से स्टे है। जबकि राज्य सरकार इसे शत्रु संपत्ति बताते हुए सरकार को कस्टोडियन बता रही है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
Published by
जेपी सिंह