उत्तराखंड जल-जीवन मिशन: जल तो नहीं मिला, जीवन भी हो गया संकटग्रस्त

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऋषिकेश में 29 सितम्बर 2020 को नमामि गंगे की परियोजनाओं के उद्घाटन के समय जिस ‘‘जल जीवन मिशन’’ योजना के मामले में उत्तराखण्ड को देश में सबसे आगे और केन्द्र सरकार से भी एक कदम आगे बता कर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की पीठ ठोकी थी वही जल जीवन योजना भाजपा सरकार का पिछले पांच सालों में सबसे बड़ा संकट और उत्तराखण्ड के लाखों पेयजल अभावग्रस्त लोगों के साथ सबसे क्रूर मजाक बन गया है।

प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में कहा था कि, ‘‘यहां उत्तराखंड में तो त्रिवेंद जी और उनकी टीम ने एक कदम आगे बढ़ते हुए सिर्फ 1 रुपए में पानी का कनेक्शन देने का बीड़ा उठाया है। मुझे खुशी है कि उत्तराखंड सरकार ने साल 2022 तक ही राज्य के हर घर तक जल पहुंचाने का लक्ष्य रखा है।…ये उत्तराखंड सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाता है, कमिटमेंट को दिखाता है।’’

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की गयी झूठी तारीफ की पोल स्वयं जल शक्ति मंत्रालय की जल जीवन मिशन की वेबसाइट खोल रही है। जिसमें कहा गया है कि जनवरी 2022 तक उत्तराखण्ड के कुल 15,18,115 ग्रामीण घरों में से 7,74,143 घरों में नल लगे हैं। इसमें से 1,30,325 घरों में मिशन शुरू होने से पहले ही नल लग गये थे। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 15 अगस्त 2019 को इस योजना के लागू होने के बाद राज्य में केवल 6,43,818 घरों को पानी के नये कनेक्शन दिये गये हैं भले ही उन कनेक्शनों में पानी की प्रतीक्षा है। मंत्रालय की बेवसाइट के अनुसार केन्द्र सरकार ने इस मिशन के लिये उत्तराखण्ड को कुल 1443.80 करोड़ का आवंटन किया है, जिसमें से अब तक 721.90 करोड़ की राशि राज्य को जारी हो चुकी है।

इस राशि में से राज्य सरकार 281.26 करोड़ खर्च कर चुकी है और 440.64 करोड़ खर्च किये जाने बाकी हैं। उत्तराखण्ड सरकार ने वाहवाही लुटाने के लिये सबसे पहले 2020 तक हर घर को पानी का नल लगाने का लक्ष्य रखा था। फिर यह लक्ष्य 2022 हुआ और अब इसे खिसका कर 2024 कर दिया गया। अगर यही रफ्तार जलजीवन मिशन की रही तो 2026 तक भी लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। नल लगाने का लक्ष्य भले ही पूरा हो जाय मगर नलों पर पानी पहुंचाने के लक्ष्य का भविष्य कोई नहीं जानता।

वास्तव में खाना पूरी करने के लिये उत्तराखण्ड सरकार ने मिशन के तहत 6 लाख से अधिक ग्रामीण घरों में कनेक्शन देकर नल तो लगा दिये मगर आज तक पानी नहीं दिया। देते भी कहां से? अगर पानी हो तभी तो दे सकेंगे। नये कनेक्शन देने के लिये पानी के अतिरिक्त स्रोत ढूंढ कर और नयी पाइप लाइनें बिछाने के बजाय गांवों के सार्वजनिक स्टैण्ड पोस्टों के लिये पहले से ही एक या डेढ़ इंच की पाइप लाइन से आ रहे पानी को गांव के सारे घरों में बांट दिया। पहाड़ी गांव ढलानों पर बसे होते हैं।

अगर एक गांव के कुछ मकान समुद्रतल से 3 हजार मीटर की ऊंचाई बर बने हैं तो उसी गांव के बाकी मकान 3500 मीटर की ऊंचाई पर भी होते हैं। इसलिये ग्रेविटी से चलने वाला पानी सीधे सबसे नीचे के मकानों तक तो पहंच जाता है, मगर ऊपर की बस्ती के लोग पानी के लिये तरसते रहते हैं। सरकार की इस अदूरदर्शी योजना ने गांव में पानी के लिये झगड़े बढ़ा दिये हैं।

जल जीवन मिशन की ही एक ऐजेंसी स्वजल प्रोजेक्ट की वेबसाइट के अनुसार प्रदेश की लगभग 2900 बस्तियां परम्परागत स्रोतों पर निर्भर हैं, जबकि 9400 बस्तियों में आंशिक रूप से पाइप लाइन की अस्थाई व्यवस्था की गयी है। उत्तराखण्ड सरकार ने अपने नम्बर बढ़ाने के लिये ऐसी बस्तियों में भी बिना पानी के घरों में सूखे नल लगा दिये। जलजीवन मिशन की सबसे बड़ी एजेंसी पेयजल निगम में इंजीनियर की जगह एक पीसीएस अफसर को एमडी बनाया गया है जिनका मोबाइल बंद रहता है।

पर्यावरणविद् पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ‘‘मैती’’ का कहना है कि जल जीवन मिशन का उद्देश्य तो बहुत अच्छा है मगर इसका लाभ तभी होगा जब सचमुच ही घर तक पानी पहुंच पायेगा। वास्तविकता यह है कि गावों में लोगों को पानी के कनेक्शन तो दे दिये लेकिन उन घरों तक पानी पहुंचाने के लिये स्रोत तक नहीं ढूंढे गये। ‘‘मैती’’ का कहना है कि वह चमोली गढ़वाल में अपने गांव के निकट आदिबदरी क्षेत्र के कुछ गावों में गये तो लोगों ने उनसे कहा कि उनके घरों में नल तो लग गये मगर उन नलों में अब तक पानी नहीं पहुंचा।

सरकारी मशीनरी ने न तो पानी के स्रोत ढूंढे और ना ही नयी पाइप लाइन बिछाई और बिना पानी के ही कनेक्शन दे दिये। पानी के पुराने स्रोत भी जंगलों के कटने से सूख रहे हैं। पद्मभूषण अनिल प्रकाश जोशी का कहना था कि घर-घर नल पहुंचाना तो अच्छी बात है, लेकिन उन नलों पर पानी भी तो होना चाहिये। जैसे गांव में बिजली के पोल लग जाते हैं। लेकिन उन पोलों का तब तक कोई लाभ नहीं जब तक उन पर बिजली के तार और तारों में बिजली नहीं होती।

चमोली जिले के घाट ब्लाक के तल्ला मोख के सामाजिक कार्यकर्ता दामोदर तिवारी के अनुसार गांव में पहले थोड़ा बहुत पानी सार्वजनिक नल पर आ जाता था लेकिन जब से कनेक्शन लगे तब से पानी तो नहीं आता मगर पानी का बिल अवश्य आ रहा है। चमोली जिले के पोखरी ब्लाक के डूंगर गांव के पूर्व प्रधान का कहना है कि जिनके घरों में पहले से ही कनेक्शन हैं मिशन वाले दोबारा घरों में जबरन कनेक्शन लगा रहे हैं। वे पानी का पुराना कनेक्शन काटने की धमकी दे रहे हैं इसलिये कुछ लोगों ने मजबूरन अपनी गोशालाओं में पानी के कनेक्शन लगवा दिये।

(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत की रिपोर्ट।)

जयसिंह रावत
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