झारखंड की जंग: सीएम रघुबर दास के लिए वाटरलू साबित होगी जमशेदपुर पूर्वी सीट, नीतीश करेंगे सरयू राय का प्रचार

रांची। झारखंड विधानसभा सीटों के लिए पांच चरण में हो रहे चुनावों की सरगर्मी में अगर सबसे उल्लेखनीय कोई सीट है, तो वह है जमशेदपुर पूर्वी सीट। क्योंकि इस सीट पर राज्य के मुख्यमंत्री रघुबर दास की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। या यूं कहें तो भाजपा के केन्द्रीय नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर  है। कारण है झारखंड भाजपा के चाणक्य समझे जाने वाले और भ्रष्टाचारों पर अपनी पैनी नजर रखने व उसका खुलासा करने के लिए चर्चित रघुबर सरकार में मंत्री रहे सरयू राय का इस सीट से चुनावी बिगुल फूंकना।

इस सीट पर दूसरे चरण में 7 दिसंबर को मतदान होना है। बता दें कि भाजपा द्वारा तीसरी सूची के 68 उम्मीदवारों में जब सरयू राय का नाम नहीं आया, तब राय की समझ में आ गया कि उनकी उपेक्षा हो रही है और उन्होंने तुरंत प्रेस कान्फ्रेंस करके जमशेदपुर पूर्वी सीट से भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। वैसे राय जमशेदपुर पश्चिम से वर्तमान विधायक हैं। उन्होंने जमशेदपुर पश्चिम से भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पर्चा दाखिल कर दिया है। दोनों ही सीटों पर 7 दिसंबर को ही मतदान है। 

सरयू राय के कदम से झारखंड भाजपा दो खेमे में बंट चुकी है। एक खेमा जहां सरयू राय के फैसले से खुश है, वहीं दूसरा खेमा राय के इस फैसले को उनका दंभ मान रहा है। पार्टी से नाराज चल रहे लोगों का मानना है कि एक तरफ भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वाले राय की उपेक्षा होती है, वहीं पार्टी के ही ऐसे विधायक को पुन: टिकट दे दिया जाता है, जो अपने ही नंगे बदन का वीडियो बनाकर उसका प्रदर्शन करता है, जो सामाजिक और संवैधानिक स्तर पर अपराध की श्रेणी में आता है। दूसरी तरफ दर्जनों मामलों के आरोपी व तीन मामलों में सजायाफ्ता पार्टी विधायक को फिर से टिकट दे दिया जाता है। वहीं दूसरे दल के आयातित नेताओं को भी टिकट दे दिया जाता है, जिन पर आय से अधिक संपत्ति के मामले और तमाम घोटालों पर सीबीआई की जांच चल रही है।

सरयू राय के इस फैसले को आड़े हाथों लेते हुए दूसरे खेमे के लोगों का मानना है कि राय का यह कदम पूरी तरह से स्वार्थ से प्रेरित है। वे कहते हैं कि 2005 में जब पार्टी ने जमशेदपुर पश्चिम सीट से 1980 से 2000 तक लगातार पांच चुनाव लड़ने वाले मृगेंद्र प्रताप सिंह का टिकट काटकर सरयू राय को उम्मीदवार बनाया था, तब मृगेंद्र प्रताप सिंह को उतनी ही पीड़ा हुई थी, जितनी कि अभी राय को हो रही है। बताते चलें कि झारखंड के पहले वित्तमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता मृगेंद्र प्रताप सिंह का 2005 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने टिकट काट दिया था। पार्टी के इस फैसले से उन्हें बड़ा आघात पहुंचा था।

1995 और 2000 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा के टिकट से लगातार जीतकर आए थे। तब अर्जुन मुंडा राज्य के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रघुबर दास थे। रघुबर दास के ही इशारे पर मृगेंद्र प्रताप सिंह का टिकट काटकर सरयू राय को 2005 में पार्टी ने प्रत्याशी बनाया, राय ने जीत हासिल की। 2009 के चुनाव में वे हार गये। पुन: 2014 का चुनाव जीते। उन्हें रघुबर दास के नेतृत्व में बनी सरकार में मंत्री पद दिया गया।

टिकट कटने के बाद आहत मृगेंद्र प्रताप सिंह को राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने अपनी पार्टी से लड़ने का न्योता दिया और उनका नामांकन भी करवा दिया। मगर वे चुनाव हार गए। इसी बीच वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। उनकी तबियत लगातार बिगड़ती चली गई और अंतत: वह इस दुनिया से चल बसे। यह हादसा उनके परिजनों में आज भी टीस पैदा करता है। उन दिनों किसी राष्ट्रीय दल के किसी स्थापित और बड़े नेता का टिकट कटना बड़ी घटना मानी जाती थी।

मृगेंद्र प्रताप सिंह।

मृगेंद्र प्रताप सिंह झारखंड के पहले वित्त मंत्री बनने का उन्हें गौरव प्राप्त था ही, छह महीने तक उन्होंने विधानसभा के अध्यक्ष पद की भी कुर्सी संभाली थी। अध्यक्ष पद से इंदर सिंह नामधारी के इस्तीफा देने के बाद उन्हें इस पद रक बैठाया गया था। बतौर अध्यक्ष उन्होंने झारखंड विधानसभा के तीन विधायकों की दसवीं अनुसूची का उल्लंघन करने का दोषी मानते हुए सदस्यता खारिज कर दी थी।

 भाजपा की दलीय निष्ठा से जुड़े मृगेंद्र प्रताप सिंह जब तक वित्त मंत्री रहे विवाद से दूर रहे। वह बहुत ज्यादा शिक्षित नहीं थे, बावजूद इसके साहित्य लेखन में उनकी विशेष रुचि थी। कविताओं की रचना के माध्यम से वह अपने मनोभाव को व्यक्त करते थे। मृगेंद्र प्रताप सिंह के पुत्र अभय सिंह को जमशेदपुर में जब संगठन का पद दिया जा रहा था, तब उन्होंने मना करवा दिया था। उन्होंने कहा था कि जब पिता संगठन और सरकार में पद पर हैं तब बेटे को संगठन में लाने का कोई औचित्य नहीं है? इस तरह उन्होंने अपने उसूल की मिसाल कायम की थी। राजनीति में वह वंशवाद के विरोधी थे। झारखंड में मूल्यों की राजनीति करने वालों में मृगेंद्र प्रताप सिंह आज भी श्रद्धा के साथ याद किए जाते हैं।

सरयू राय की बात करें तो उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा के शासन काल में हुए कई घोटालों का पर्दाफाश किया है। मधु कोड़ा के शासन काल में स्वास्थ्य मंत्री रहे भानु प्रताप पर 130 करोड़ के दवा घोटाला का आरोप लगा था, जिसके पर्दाफाश में सरयू राय की भी अहम भूमिका रही थी। इस मामले पर ईडी और सीबीआई ने आरोप पत्र दायर कर दिया है। केस ट्रायल पर है।

जिस पशुपालन घोटाले में लालू प्रसाद अभी जेल में हैं, जिन्हें भाजपा का राजनीतिक रोड़ा समझा जाता है। सरयू राय वही शख्स हैं जिन्होंने पशुपालन घोटाले को पहली बार वर्ष 1994 में उठाया था।

सरयू राय की उपेक्षा के मामले में बीजेपी और झारखंड की राजनीति को नजदीक से देखने वाले लोगों का मानना है कि शायद सरयू राय का मौजूदा सरकार से रार लेना उनके लिए भारी पड़ा है।

क्योंकि सरयू राय बतौर कैबिनेट मंत्री सरकार से नाराज चल रहे थे। फरवरी के बाद से ही वह कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हो रहे थे। इसके अलावा सीएम के विभाग के साथ-साथ दूसरे विभागों की गड़बड़ियों को सरयू राय मीडिया के जरिए सार्वजनिक करते रहे थे।

तत्कालीन सीएस राजबाला वर्मा के कार्यकाल की कई गड़बड़ियों को सरयू राय ने उजागर किया था।

भाजपा के सिटिंग विधायकों में केवल सरयू राय ही नहीं हैं जिनका टिकट कटा है। राज्य के और दस विधायकों का भी टिकट कटा है, जिसमें बोरियो से ताला मरांडी, सिमरिया से गणेश गंझू, चतरा से जयप्रकाश भोक्ता, सिंदरी से फूलचंद मंडल, झरिया से संजीव सिंह, घाटशिला से लक्ष्मण टुड्डू, गुमला से शिवशंकर उरांव, सिमडेगा से विमला प्रधान, मनिका से हरिकृष्ण सिंह और छतरपुर से राधाकृष्ण किशोर शामिल हैं। जो इस चुनाव में भाजपा के गले का कांटा बनने वाला है।

सरयू राय के पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, शॉटगन शत्रुघ्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा भी शामिल होंगें।

सूत्रों पर भरोसा करें तो नीतीश कुमार जमशेदपुर में कम से कम तीन सभाएं करेंगे। इसके अतिरिक्त उनके रोड शो करने की बात भी की जा रही है। बिहार जदयू की बड़ी टीम जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र में कैंप करेगी। इतना ही नहीं जदयू ने इस सीट से प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला किया है। माला पहन कर गाजे-बाजे के साथ नामांकन करने आये जमशेदपुर पूर्वी व जमशेदपुर पश्चिमी के जदयू के दोनों प्रत्याशी  उपायुक्त कार्यालय से लौट गये। इसका मतलब साफ है कि सरयू राय को जदयू का पूर्ण समर्थन मिल गया है।

सरयू राय की बिहार के सीएम और जदयू चीफ नीतीश कुमार से काफी नजदीकी रही है, दोनों पुराने साथी रहे हैं।

इसका मतलब इस बार खेल मजेदार होगा। वैसे पूरे झारखंड की नजर जमशेदपुर पूर्वी पर है।

(रांची से जनचौक संवाददाता विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
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