नॉर्थ ईस्ट डायरी: बागी उम्मीदवारों को साथ लेकर मणिपुर में जदयू निभा सकती है किंग-मेकर वाली भूमिका

मणिपुर के आगामी विधानसभा चुनावों को दो चरणों में संपन्न किया जाना है, ऐसे में सभी की निगाहें इस बात पर टिकी रहने वाली हैं कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) राज्य विधानसभा में कितनी सीटें हासिल कर पाने में सफल रहती है। इसके साथ ही कांग्रेस के असंतुष्टों को पार्टी में लाने के प्रयास में जिन भाजपा उम्मीदवारों को दरकिनार कर दिया गया है, उसके चलते पार्टी को कितनी सीटों का नुकसान होगा। वैसे भी इस बार भाजपा के भीतर से व्यापक विरोध के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं, और इसके  साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं के सामूहिक इस्तीफे भी हुए हैं।

हालाँकि, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने दावा किया है कि भाजपा 60 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत हासिल करने में सफल रहेगी, लेकिन मणिपुर के मतदाताओं का अप्रत्याशित सरकार चुनने का रिकॉर्ड रहा है, और बिरेन सिंह इस बात से भलीभांति परिचित हैं। 

एक मायने में देखें तो मणिपुर के मतदाताओं का रुझान जान पाना सबसे जटिल बना रहता है। चुनाव विश्लेषण की कोई भी विधि वास्तव में मतदाताओं के मूड को नहीं पकड़ सकती है। धनबल की भी अपनी भूमिका रहती है, केंद्र में कौन सी पार्टी है इसका भी असर रहता है। लेकिन यह देखते हुए कि मणिपुर में मतदाता खुद को किसी पार्टी या उसकी विचारधारा से नहीं, बल्कि उम्मीदवारों के साथ जोड़ कर देखते हैं, ऐसे में वोटों की गिनती होने पर कुछ बड़े आश्चर्यजनक नतीजे सामने आ सकते हैं।

जहां कांग्रेस के द्वारा पंजाब, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से लेकर गोवा तक के विधानसभा चुनावों के लिए अन्य पार्टियों के नेताओं को लुभाने की पूरी कोशिश की जा रही है, वहीं यह देखना अजीबोगरीब है कि पार्टी ने अभी तक मणिपुर में अपनी चुनावी संभावनाओं को फिर से जीवंत बनाने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किये हैं।

मणिपुर विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस सभी 60 सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रही है। इस स्थिति का अधिकतम फायदा उठाने के लिए नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) और जनता दल-यूनाइटेड (JD-U) जैसे अन्य राजनीतिक दलों ने कदम बढ़ाया है।

जनता दल-यूनाइटेड मणिपुर के चुनावी परिदृश्य में मौजूदा मिजाज को देखते हुए अहम पार्टी के रूप में उभर रही है। एक ऐसी पार्टी जिसकी अब तक राज्य में लगभग कोई उपस्थिति नहीं थी। लेकिन यह तेजी से उन लोगों के लिए पसंदीदा पार्टी बनती जा रही है, जिन्हें भाजपा और कांग्रेस  ने टिकट से वंचित कर दिया है।

जद (यू) के कुछ दिलचस्प उम्मीदवारों में ख्वैराकफम लोकेन शामिल हैं, जो 2017 के विधानसभा चुनावों में सगोलबंद निर्वाचन क्षेत्र के लिए भाजपा के उम्मीदवार थे, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री के दामाद आर.के इमो के लिए सीट छोड़नी पड़ी, जो पूर्व में कांग्रेस के साथ थे।

पिछले साल पार्टी से इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के क्षेत्रमयुम बीरेन और हाल ही में अनुशासन के आधार पर कांग्रेस से निकाले गए खुमुच्छम जॉयकिशन भी नीतीश कुमार की पार्टी में शामिल होने वाले प्रमुख नेताओं में से हैं।

मणिपुर में जद (यू) की मौजूदगी न के बराबर रही है। वास्तव में, सोशल मीडिया आउटरीच के इस दौर में, फेसबुक पर जद-यू की मणिपुर इकाई के आधिकारिक पेज के 1,000 से भी कम संख्या में अनुयायी हैं, जबकि इसकी आखिरी पोस्ट सितंबर 2021 में काकचिंग निर्वाचन क्षेत्र में एक इच्छुक उम्मीदवार के स्वागत कार्यक्रम के लिए पोस्ट की गई थी।

अब तक जद (यू) ने 36 उम्मीदवारों की एक सूची जारी की है, जिसमें कुछ बड़े नाम और नए उम्मीदवार शामिल हैं। कांग्रेस ने राज्य में वाम दलों से गठबंधन कर कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में ‘दोस्ताना’ उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का फैसला किया है। उसके बाद कुछ कांग्रेस नेता भाजपा से टिकट की तलाश में थे। जब भाजपा ने भी उनको निराश कर दिया, तो वे जदयू में शामिल हो गए।

जद (यू) के उम्मीदवारों की सूची में कुछ और नामों का जुड़ना तय लग रहा है। यह पार्टी एक ऐसी पार्टी बन गई है जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह खुद को किंगमेकर की भूमिका निभाने के लिए तैयार कर रही है।  अगर भाजपा या किसी दूसरी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है तो जदयू की भूमिका दिलचस्प हो सकती है।

मणिपुर जद (यू) के महासचिव ने दावा किया है कि पार्टी ऐसे किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन करेगी, जो अंततः मणिपुर में नई सरकार बनाएगा। यह बयान राज्य के बाहर के राजनीतिक प्रेक्षकों के लिए आश्चर्य की बात हो सकती है लेकिन मणिपुर में यह खेल ऐसे ही चलता रहा है।

2012 के मणिपुर विधानसभा चुनाव में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस ने सात सीटें जीतकर धूम मचा दी थी, लेकिन उसके सभी विधायक कांग्रेस या भाजपा में शामिल हो गए।

निवर्तमान मणिपुर विधानसभा में पार्टी के एकमात्र विधायक, टी रॉबिन्ड्रो ने पार्टी के उम्मीदवारों की सूची के साथ आने से कुछ दिन पहले ही भाजपा में जाने की घोषणा कर दी थी। जद-यू को भाजपा की बी-टीम कहा जा रहा है। जद-यू क्या भूमिका निभाएगी? लेकिन सारा दारोमदार इस बात पर निर्भर करेगा कि मणिपुर में चुनाव के बाद के घटनाक्रम में भूमिका निभाने के लिए उसके कितने उम्मीदवार अपना चुनाव जीत पाने में सक्षम रहते हैं।

(दिनकर कुमार ‘द सेंटिनेल’ के संपादक रहे हैं।)

दिनकर कुमार
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