झारखंड विधानसभा उप चुनाव: दोनों ही सीटें महागंठबंधन के खाते में

झारखंड विधानसभा की दो सीटों पर हुए उप चुनाव में महागठबंधन ने बाजी मारकर भाजपा के भावी मंसूबे पर पानी फेर दिया है। महागठबंधन के बेरमो से कांग्रेसी उम्मीदवार जयमंगल सिंह और दुमका से झामुमो उम्मीदवार बसंत सोरेन ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के उम्मीदवार को परास्त किया है। 3 नवंबर को हुए चुनाव की गिनती 10 नवंबर को शुरू हुई और शाम तक परिणाम घोषित कर दिए गए।

जहां दुमका सीट हेमंत सोरेन के इस्तीफा देने से खाली हुई थी, वहीं बेरमो सीट पूर्व उप-मुख्यमंत्री और विधायक राजेंद्र प्रसाद सिंह के आकस्मिक निधन से खाली हुई थी। पिछले 2019 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रतिपक्ष के नेता झामुमो के हेमंत सोरेन बरहेट और दुमका दो विधानसभा क्षेत्रों से प्रत्याशी थे और दोनों सीट से जीत दर्ज की थी। बाद में उन्होंने दुमका सीट छोड़ दी। महगठबंधन के तहत दुमका सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा और बेरमो सीट कांग्रेस के हिस्से में आई।

वहीं दुमका में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन को उम्मीदवार बनाया तो भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व मंत्री लुईस मरांडी को अपना उम्मीदवार घोषित किया। बेरमो में कांग्रेस ने स्व. राजेंद्र प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र अनूप सिंह उर्फ जयमंगल सिंह को उम्मीदवार बनाया तथा भाजपा ने पुनः योगेश्वर महतो ‘बाटुल’ को मैदान में उतारा। इन दो दलों के अलावा सीपीआई ने अपना उम्मीदवार जरीडीह अंचल सचिव बैजनाथ महतो को मैदान में उतारा। 2019 के चुनाव में कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद सिंह ने भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल को काफी अंतर से पराजित किया। आफताब आलम मात्र 5,695 मत पर सिमटकर पुन: चौथे नंबर पर रह गए। कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद सिंह को 88,945 46 मत मिले और भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल को 63,773 33 मत मिले। राजेंद्र प्रसाद सिंह ने 25,172 से जीत दर्ज की।।

इस उप चुनाव को लेकर नामांकन के पूर्व जहां कांग्रेस की उम्मीदवारी में केवल दिवंगत राजेंद्र प्रसाद सिंह के पुत्र अनुप सिंह उर्फ जयमंगल सिंह की दावेदारी थी, वहीं भाजपा में उम्मीदवारी की दावेदारी को लेकर एक लंबी लिस्ट थी, जिसमें गिरिडीह से सांसद रह चुके रविंद्र कुमार पांडेय समेत सीसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह के पुत्र मृगांक सिंह का भी नाम शामिल था। काफी ऊहापोह के बाद पार्टी ने अंतत: बाटुल को ही उम्मीदवार बनाया।

दुमका आरक्षित सीट है और इस सीट पर हमेशा से सोरेन परिवार का वर्चस्व रहा है। इस सीट पर भाजपा की हमेशा से ही टेढ़ी नजर रही है। वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन ने जीत हासिल की थी, जबकि दूसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी और तीसरे स्थान पर कांग्रेस के उम्मीदवार रहे थे। वहीं वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी स्टीफन मरांडी ने जीत हासिल की थी, जबकि दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर क्रमशः भारतीय जनता पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार रहे थे।

2014 में भारतीय जनता पार्टी की लुईस मरांडी ने जीत दर्ज की थी, जबकि झामुमो के हेमंत सोरेन दूसरे नंबर पर रहे थे। वहीं झारखंड विकास मोर्चा के प्रत्याशी तीसरे और कांग्रेस के उम्मीदवार चौथे स्थान पर रहे थे। 2019 के चुनाव में झामुमो के हेमंत सोरेन जीते थे। उन्हें 81,007 वोट मिले, जबकि भाजपा की लुइस मरांडी 67,819 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहीं। वहीं जेवीएम की अंजुला मुर्मू को 3,156 और जेडीयू के मार्शल ऋषिराज टुडू को 2,409 वोट से ही संतोष करना पड़ा। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद जेवीएम सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने जेवीएम का भाजपा में विलय कर लिया।

दुमका विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से झामुमो के बसंत सोरेन 80,559 मत पाकर विजयी रहे। उन्होंने भाजपा की लुइस मरांडी को 6,842 वोट से हराया। लुइस मरांडी को 73,717 वोट प्राप्त हुए। वहीं नोटा में 3665 मत पड़े। इस चुनाव में सबसे फजीहत वाली स्थिति झारखंड पीपुल्स पार्टी के सूरज सिंह बेसरा की रही। उन्हें मात्र 467 मत ही मिले।

बताते चलें कि झारखंड में जब अलग राज्य आंदोलन अपनी चरम पर था, तब सूर्य सिंह बेसरा ने आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) का गठन किया था, जिसे अलग राज्य गठन के बाद सुदेश महतो ने हथिया लिया। बेसरा का नाम कभी झारखंड की सियासत में एक तेज—तर्रार नेता के रूप में जाना जाता था। झारखंड अलग राज्य की लड़ाई के दौरान उन्होंने रांची से दिल्ली तक सरकारों की नींदें उड़ा दी थीं। बेसरा 1985 में घाटशिला विधानसभा क्षेत्र से जेएमएम की टिकट पर चुनाव लड़े। 22 जून 1986 को आजसू की स्थापना की, फिर 1990 में दूसरी बार आजसू समर्थित उम्मीदवार के रूप में उसी विधानसभा से चुनाव लड़े तो रिकार्ड वोटों से जीतकर विधायक बने। झारखंड अलग राज्य के लिए उन्होंने छात्रों के साथ मिलकर हड़ताल की। उन्हें जेल भी जाना पड़ा।

सूर्य सिंह बेसरा का राजनीतिक कद और उनके जुझारूपन का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि एकीकृत बिहार में जब अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन चल रहा था तब आजसू के तत्कालीन महासचिव सूर्य सिंह बेसरा ने एक अप्रत्याशित और ऐतिहासिक कदम उठाया था। वे घाटशिला से विधायक चुने गए थे। बिहार विधानसभा में उन्होंने कहा था कि झारखंड अलग राज्य के लिए विधायक अपने पद से इस्तीफा दे दें।

अपनी बात को सच साबित करने के लिए बेसरा ने विधायक के पद से इस्तीफा दे दिया और अपने सारे प्रमाण पत्र को जला दिया। झारखंड के अलग राज्य गठन के बाद वे धीरे-धीरे झारखंड की राजनीति में हाशिए पर चले गए। इसके बावजूद उन्होंने राजनीतिक रूप से अपनी सक्रियता बनाए रखने की भरसक कोशिश की। वे झारखंड पीपुल्स पार्टी के बैनर तले चुनाव में कई बार अपनी किस्मत भी आजमा चुके हैं। परंतु वे सफल नहीं हो सके। दुमका उपचुनाव में अपनी बचीखुची साख भी गवां दी।

बेरमो विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी कुमार जयमंगल (अनूप सिंह) विजयी रहे। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल को 14225 मतों से पराजित किया। योगेश्वर महतो बाटुल को 79797 मत प्राप्त हुए। इस चुनाव में सबसे उल्लेखीय यह रहा कि तीन बार विधायक और एक बार मंत्री रह चुके लाल चंद महतो मात्र 4281 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे। जनता पार्टी, जनता दल, भाजपा, जदयू का सफर कर चुके लाल चंद महतो इस बार बीएसपी के प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में थे।

वहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बैद्यनाथ महतो को कुल मत 2643 मिले। उनका यह पहला चुनाव था। बैद्यनाथ महतो को मजदूर वोट पर भरोसा था जो सफल नहीं हो पाया। इस उप चुनाव में जहां दुमका सीट सोरेन परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ा था, वहीं बेरमो का क्षेत्र कोल फील्ड पर वर्चस्व को लेकर ज्यादा  महत्वपूर्ण था। यही वजह थी कि भाजपा के उम्मीदवार के नाम की घोषणा में देरी हुई। भले ही भाजपा के योगेश्वर महतो बाटुल से दो बार विधायक रह चुके हैं, बावजूद इसके इस उप चुनाव में उन्हें इस बार पार्टी टिकट देने के मूड में नहीं थी। यही वजह थी कि उम्मीदवारी को लेकर कई लोग कतार में खड़े थे। अगर पार्टी ने उन्हें टिकट दिया तो उसका श्रेय आजसू पार्टी को जाता है।

सूत्रों पर भरोसा करें तो आजसू पार्टी आला कमान ने भाजपा आला कमान को भरोसा दिया था कि वे इस सीट को हर हाल में निकाल लेंगे। इस भरोसे की वजह यह थी कि बाटुल के बहाने आजसू को बेरमो कोयलांचल पर अपना वर्चस्व जमाना था। जो सफल नहीं हो सका। इसका खामियाजा अब योगेश्वर महतो बाटुल को उठाना पड़ सकता है। शायद अब अगले चुनाव में भाजपा बाटुल को अपना उम्मीदवार न बनाए। तब गठबंधन धर्म का हवाला देकर आजसू इस सीट से अपनी दावेदारी करे। एक तरह से आजसू के दोनों हाथ में लड्डू आ गए हैं। जीत के बाद कोल ब्लाक पर कब्जा करना आसान हो जाता, और जब बाटुल की हार हुई है तो अगले चुनाव में दावेदारी बनेगी।

बेरमो विधानसभा क्षेत्र गिरीडीह संसदीय क्षेत्र में है और गिरीडीह संसदीय क्षेत्र से आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी सांसद हैं। बावजूद वे बेरमो कोयलांचल पर अपना वर्चस्व नहीं बना पा रहे हैं। चंद्रप्रकाश चौधरी झारखंड अलग राज्य गठन के बाद से पिछले 2014 के विधानसभा चुनाव तक रामगढ़ से विधायक रहे हैं। बीच की एक सरकार को छोड़ दिया जाए तो वे सभी सरकारों में मंत्री रह चुके हैं। उनकी तुलना केंद्रीय राजनेता दिवंगत रामविलास पासवान से की जाती रही है।

पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर गिरीडीह संसदीय क्षेत्र से चुनाव में वे गिरीडीह के सांसद तो बन गए, लेकिन वर्षों से कब्जे वाला विधानसभा क्षेत्र रामगढ़ हाथ से निकल गया। 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी पत्नी को उतारा मगर वह इस सीट को नहीं बचा सकीं। रामगढ़ भी कोयला वाला क्षेत्र है। अब गिरीडीह से सांसद होने के बाद भी बेरमो पर इनका वर्चस्व नहीं बन पा रहा है। बाटुल एक आसरा थे, मगर उनकी हार ने इनकी उम्मीदों पर फिलहाल पानी फेर दिया है। अब आगे की इनकी रणनीति क्या होगी देखना है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
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