झारखंडः नकली डिग्री बनवाने की जगह शिक्षा मंत्री ने लिया 11वीं में दाखिला

हेमंत सरकार के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो आजकल अपनी शिक्षा को लेकर चर्चा में हैं। उन्होंने 11वीं कक्षा में दाखिला लिया है। राज्य गठन के बाद पिछले जितने भी शिक्षा मंत्री हुए हैं, उन सभी की शैक्षणिक योग्यता स्नातक से नीचे नहीं रही है। वह पहले शिक्षा मंत्री हैं, जिनकी शैक्षिक योग्यता महज दसवीं है।

जगरनाथ महतो से पूर्व राज्य में छह शिक्षा मंत्री रहे हैं। इनमें नीरा यादव-पीएचडी, बैद्यनाथ राम-स्नातक, हेमलाल मुर्मू-स्नातक, बंधु तिर्की-स्नातक, प्रदीप यादव-स्नातक एवं चंद्रमोहन प्रसाद-स्नातक प्रोफेशनल रहे हैं।

इनकी शिक्षा को लेकर खासकर विपक्ष ज्यादा आक्रमक रहा है। विपक्षी दलों के इस हमले का परिणाम यह रहा कि जगरनाथ महतो ने अपनी योग्यता बढ़ाने की ठानी और उन्होंने 10 अगस्त को खुद के द्वारा स्थापित देवी महतो स्मारक इंटर महाविद्यालय नावाडीह में इंटर में अपना नामांकन कराया। नामांकन कराने के लिए बतौर शुल्क के रूप में ग्यारह सौ रुपये जमा कर रसीद भी कटाई।

मंत्री जगरनाथ महतो कहते हैं कि मेरे इंटर में नामांकन के बाद शिक्षा के प्रति जनता में अच्छा संदेश जाएगा। राज्य के बच्चों को पढ़ाने की सुदृढ़ व्यवस्था कराने के साथ ही मैं स्वयं भी पढ़ाई करूंगा।

बताते दें कि मंत्री जगरनाथ महतो ने लगभग 28 साल की उम्र में 10वीं पास की थी। इस बाबत वे बताते हैं कि झारखंड आंदोलन के प्रणेता सह झामुमो के संस्थापक एवं अधिवक्ता बिनोद बिहारी महतो के ‘पढ़ो और लड़ो’ के नारे से प्रेरित हो कर हमने वर्ष 1995 में मैट्रिक की परीक्षा देकर द्वितीय श्रेणी से पास किया, लेकिन व्यस्तताओं के कारण आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाए थे, जो उन्हें बेहद सालता रहा।

कहीं यह विरोधियों द्वारा दसवीं पास शिक्षा मंत्री के होने पर कटाक्ष का जवाब तो नहीं है? के जवाब में वे कहते हैं कि विरोधियों का काम ही है विरोध जताना और मीनमेख निकालना। जब वे उत्कृष्ट अंकों से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर आगे की पढ़ाई भी करने लगेंगे, तब विरोधियों को खुद-ब-खुद जवाब मिल जाएगा। वे बताते हैं कि जब मैंने वर्ष 1995 में नेहरू उच्च विद्यालय तेलो में नामांकन कराकर मैट्रिक की परीक्षा दी थी, तब भी लोग चौंके थे। उस दौरान मेरी उम्र 28 वर्ष थी। उन्होंने केवल नौवीं तक की ही पढ़ाई पूरी की थी।

बता दें कि मंत्री जगरनाथ महतो के निजी कॉलेज में नामांकन कराए जाने पर भी सवाल उठाया जा रहा है। कहा जा रहा कि शिक्षा मंत्री एक ओर जहां सरकारी विद्यालय को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले को ही सरकारी नौकरी देने की वकालत करते हैं। वहीं दूसरी तरफ खुद निजी कॉलेज में नामांकन कराकर निजी शैक्षणिक संस्थान में पढ़ाई करने को बढ़ावा दे रहे हैं, जबकि नावाडीह में सरकारी प्लस-टू विद्यालय भूषण उच्च विद्यालय संचालित है। वे उसमें भी नामांकन करा सकते थे, लेकिन उन्होंने खुद के स्थापित निजी महाविद्यालय को ही अपने नामांकन के लिए क्यों चुना?

इस बाबत भाकपा माले के विधायक बिनोद सिंह का नजरिया कुछ अलग है। वो कहते हैं कि मैंने मंत्री को बधाई इसी बात की दी, कि उन्होंने वित्त रहित कालेज में नामांकन कराया है। अत: वे वित्त रहित कालेजों की मुश्किलों को समझते हुए उन्हें वित्त सहित कराने का प्रयास करेंगे। उनकी शिक्षा के सवाल पर बिनोद सिंह कहते हैं कि यह कोई मुद्दा नहीं है। हमारी पुरानी पीढ़ी कम पढ़ी—लिखी रही है, बावजूद उनके अनुभवों का हमें बराबर लाभ मिलता रहा है। यह कोई आधार नहीं है कि जो पढ़ा नहीं है उसे अनुभव नहीं है।

वो आगे कहते हैं कि अगर मंत्री होने के लिए पढ़ाई मानदंड होना चाहिए तो फिर स्वास्थ्य मंत्री किसी डॉक्टर को बनाना पड़ेगा। यानी हर मंत्रालय में डॉक्टर, इंजीनियर, एमबीए वगैरह लोगों की भागीदारी देनी होगी। बता दें कि झारखंड में वित्त रहित शिक्षण संस्थानों की संख्या में इंटर कालेज-170, हाई स्कूल-250, संस्कृत विद्यालय-33 तथा मदरसों की संख्या-36 हैं।

अनुसंधानकर्ता, वन उत्पादकता संस्थान रांची, के स्वयंविद् कहते हैं कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती, यह सराहनीय है कि इस उम्र में भी मंत्री जगरनाथ महतो अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करना चाहते हैं। यह भी प्रशंसनीय है कि उन्होंने कोई भी नकली शैक्षिक प्रमाण पत्र नहीं बनाया है, जैसा कि कुछ अन्य राजनेताओं ने किया है, लेकिन ऐसे मामलों में कुछ सवाल उठते हैं।

उन्होंने कहा कि सवाल यह नहीं है कि झारखंड के पिछले शिक्षा मंत्री कम से कम स्नातक थे। पहला सवाल यह उठता है कि किसी भी विभाग का नीति—निर्माता आमतौर पर मंत्रालय के सचिव होते हैं। जिस मंत्री को उस क्षेत्र का ज्ञान नहीं होता है, वे सचिव पर निर्भर रहते हैं, फलत: किसी भी तरह की गड़बडी की जिम्मेदारी उनके सिर पर हो जाती है, क्योंकि उसके लिए उनके हस्ताक्षर और अनुमोदन आवश्यक हैं।

दूसरी बात, हालांकि हमारे संविधान में यह कहा गया है कि चुनावों में शैक्षणिक योग्यता मायने नहीं रखती, क्योंकि ऐसे कई राजनेता आए हैं, जिनकी किसी भी क्षेत्र में बहुत अच्छी पकड़ रही है। ऐसे ही एक राजनेता थे, कामरेड महेंद्र सिंह, जो अकेले विपक्ष हुआ करते थे। मेरे विचार में भारत के संविधान के सार को ध्यान में रखते हुए, मंत्री नियुक्त करने से पहले मंत्रालय के प्रारंभिक ज्ञान को कम से कम जांचने के लिए एक स्क्रीनिंग टेस्ट होना चाहिए।

धनबाद के अधिवक्ता और समाजसेवी विजय कुमार झा कहते हैं कि मंत्री जी का फिर से आगे की पढ़ाई करना सराहनीय है। जहां तक 10वीं तक की शिक्षा वाले को शिक्षा मंत्री बनाए जाने का सवाल है तो मंत्री जगरनाथ महतो को जनता ने लोकतांत्रिक तरीके से चुना है, तो फिर उन्हें मंत्री बनाना जनता का सम्मान करने जैसा है। देश की जनता के मिजाज पर कोई सवाल नहीं होना चाहिए। यही जनता देश के मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन द्वारा चुनाव में की गई पारदर्शिता को लेकर सराहना करते नहीं थकती थी, फिर इसी जनता ने उनकी जमानत भी जब्त करवा दी।

झा कहते हैं कि शिक्षा की बात करें तो के कामराज या कुमारास्वामी कामराज जो अंगुठा छाप होते हुए भी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और ‘कांग्रेस पार्टी’ के अध्यक्ष बने। उन्होंने साठ के दशक में ‘कांग्रेस संगठन’ में सुधार के लिए ‘कामराज योजना’ प्रस्तुत की।

भाजपा के पूर्व विधायक योगेश्वर महतो बाटुल भी जगरनाथ महतो की शैक्षणिक योग्यता पर कोई टिप्पणी नहीं करते। उन्होंने कहा कि अनुभव और शिक्षा अलग अलग चीजें हैं। जगरनाथ महतो भले ही 10वीं पास हैं, लेकिन उनके पास सामाजिक समझ काफी अच्छी है।

झारखंड राज्य वित्त रहित शिक्षा संयुक्त संघर्ष मोर्चा के प्रदेश प्रवक्ता भोला प्रसाद दत्ता कहते हैं कि जगरनाथ महतो के शिक्षा मंत्री बनने से वित्त रहित शिक्षकों में एक आशा जगी है कि वे हम वित्त रहित शिक्षकों की पीड़ा को समझते हुए हमें उचित स्थान दिलाएंगे। वे बताते हैं कि हमें जो पैसे मिलते हैं वे सरकार द्वारा निधारित न्युनतम दैनिक मजदूरी के आधे भी नहीं हैं।

बताते चलें कि जगरनाथ महतो इकलौते मंत्री नहीं, जो केवल 10वीं पास हैं। झारखंड में आठ मंत्री हैं, जो करीब-करीब इसी कैटगरी में आते हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक, स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता, ट्रांसपोर्ट मंत्री चंपई सोरेन, समाज कल्याण मंत्री जोबा मांझी और श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए दिए हलफनामे में अपनी शैक्षणिक योग्यता 10वीं पास ही बताई है। वहीं, बाकी के तीन 12वीं पास हैं।

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव में चुने गए विधायकों में से दो ने आठवीं, 10 ने 10वीं और 16 ने 12वीं पास करने की बात बताई थी। बाकी के विधायकों ने ग्रेजुएशन या उससे बाद की पढ़ाई का जिक्र किया था।

बताना जरूरी होगा कि जगरनाथ महतो काफी गरीब परिवार से आए हैं। वे खुद स्वीकार करते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण पिताजी के लिए इनके सहित अन्य पांच भाई-बहनों को पढ़ाना संभव नहीं था। प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई शुरू की, जो 10वी पास करने से पहले ही रुक गई। वैसे 80 से 90 के दशक में संथाल आदिवासी और कुर्मी महतो बहुल क्षेत्रों में अलग झारखंड राज्य का आंदोलन काफी परवान पर था। इस आंदोलन में संथाल आदिवासी और कुर्मी महतो के युवाओं में अलग राज्य का एक जुनून सवार था, जिसके कारण कई युवा, पढ़ाई से विमुख होकर इस आंदोलन का हिस्सा बनते गए।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
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