झारखंड सरकार ने हड़ताली मनरेगा कर्मियों को दी धमकी, 48 घंटे में काम पर नहीं लौटे तो रखे जाएंगे दूसरे लोग

हड़ताल कर रहे मनरेगाकर्मियों के दो पदाधिकारियों को बर्खास्त कर दिया गया है। अब सराकर ने उन्हें धमकी भी दी है कि अगर वह काम पर नहीं लौटे तो उनकी जगह किसी और को रख लिया जाएगा।

झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के अवर सचिव ने हड़ताली मनरेगा कर्मियों से 48 घंटे के अंदर अपने काम पर लौटने को कहा है। उन्होंने कहा है कि मनरेगा कर्मी अपने मूल काम पर नहीं लौटे तो बाध्य होकर उनकी संविदा रद्द कर दी जाएगी। उनकी जगह पर स्थानीय और सक्षम व्यक्तियों को नियमानुसार नियोजित कर लिया जाएगा।

उधर, विभागीय अधिकारियों के आदेश पर संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिरुद्ध पांडेय और धनबाद के जिलाध्यक्ष मुकेश राम को बर्खास्त कर दिया गया है। झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ के आह्वान पर मनरेगा कर्मी 27 जुलाई से पांच सूत्री मांगों को लेकर अनिश्चित कालीन राज्यव्यापी हड़ताल पर चले गए थे।

10 अगस्त को राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम से सकारात्मक वार्ता में अधिकांश मांगों पर सहमति बन गई थी। इसके बाद मनरेगाकर्मी हड़ताल को स्थगित करते हुए काम पर लौटने की तैयारी में थे। अब दोनों मनरेगा नेताओं को निलंबित कर दिया गया है।

मनरेगा कर्मी इसे बदले की भावना से ग्रसित कदम मान रहे हैं। उनका आरोप है कि आंदोलन को कुचलने और हड़ताली मनरेगा कर्मियों पर दबाव बनाने के उद्देश्य से, झूठा गबन का आरोप लगाकर संघ के पदाधिकारियों को बर्खास्त किया गया है।

पांच अगस्त को राज्य के शिक्षा सह मद्य निषेध मंत्री जगरनाथ महतो ने झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों को बोकारो जिला स्थित भंडारीदह पर अपने आवास पर बुलाया था। उन्होंने उनकी समस्याओं के निदान का आश्वासन भी दिया था। मंत्री ने कहा था कि मनरेगा कर्मियों की मांगें जायज हैं। मांगों को पूरा करने के लिए सरकार और संघ के बीच वो मध्यस्थता का काम करेंगे।

उस वक्त संघ के प्रदेश अध्यक्ष अनिरुद्ध पांडेय और प्रदेश कमिटी के अन्य पदाधिकारी समेत बोकारो जिला कमेटी के सदस्यों और मंत्री जगरनाथ महतो के बीच अनिश्चितकालीन हड़ताल और पांच सूत्री मांगों पर विस्तृत चर्चा हुई थी। मंत्री ने कहा था कि जल्द ही आपकी वार्ता विभागीय मंत्री से मेरी उपस्थिति में होगी। सरकार आपकी समस्याओं से अवगत है, कोरोना काल के चलते थोड़ा विलंब हो रहा है।

उसके बाद 10 अगस्त को राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम से मनरेगा कर्मियों की वार्ता हुई और अधिकांश मांगों पर सहमति भी बन गई। तभी प्रदेश अध्यक्ष और धनबाद जिला अध्यक्ष की बर्खास्तगी की सूचना विभाग द्वारा निर्गत कर दी गई।

इसके बाद 11 अगस्त को झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग से बैठक करके सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि जब तक बर्खास्तगी का फैसला रद्द नहीं होता है, राज्य भर के मनरेगा कर्मी हड़ताल पर डटे रहेंगे। इसके साथ ही आंदोलन को उग्र करते हुए माननीय मुख्यमंत्री को सामूहिक इस्तीफा सौंपेंगे।

मनरेगा कर्मियों ने मनरेगा कमिश्नर पर आरोप लगाया है कि ये पिछले पांच वर्षों से अपने पद पर बने हुए हैं। वह मनरेगा को मनमाने ढंग से चलाना चाहते हैं। हड़ताल के पहले ही दिन से उन्होंने आंदोलन को कुचलने का काम किया है। ये हमेशा मनरेगा कर्मियों का अहित करना चाहते हैं। इनके कार्यकाल में दर्जनों मनरेगा कर्मी अवसाद और ब्रेन हेमरेज शिकार हुए हैं। कई ने मौत तक को गले लगाया है।

राज्य भर के मनरेगा कर्मियों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि मनरेगा कमिश्नर की उपस्थिति में कोई वार्ता नहीं करेंगे और विभागीय मंत्री एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से ऐसे तानाशाह अधिकारियों को हटाने की मांग करेंगे।

संघ ने निर्णय लिया है कि बर्खास्त साथियों की वापसी होने से पहले राज्य भर का कोई भी मनरेगा कर्मी हड़ताल से वापस नहीं होगा। संघ ने कहा है कि ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम द्वारा वार्ता के दौरान यह भी आश्वासन दिया गया था कि हड़ताल के दौरान जितने पर भी कार्रवाई हुए हैं, उसे वापस लिया जाएगा। किंतु अधिकारियों ने मंत्री जी के बातों को हल्के में लेते हुए अनसुना कर दिया तथा प्रदेश अध्यक्ष की बर्खास्तगी का पत्र निरस्त नहीं किया। मनरेगा कर्मियों ने कहा कि जब तक लिखित रूप से वार्ता नहीं हो जाती है तब तक राज्य भर के मनरेगा कर्मी हड़ताल पर डटे रहेंगे।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
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