झारखंडः लॉकडाउन से उपजी आर्थिक तंगी से हर रोज औसतन सात लोग कर रहे हैं खुदकुशी

1 अक्टूबर 2020, कोडरमा जिले के डोमचांच महथाडीह निवासी मन्नू साव (24 वर्ष) का शव सुबह सीएम हाईस्कूल के मैदान से सटे एक पेड़ से झूलता मिला। एक सप्ताह पूर्व भी डोमचांच बाजार रोड में ही एक युवक ने अपनी ही दुकान में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। 29 सितंबर को जमशेदपुर के मुसाबनी निवासी भाजपा नेता दशरथ सिंह ने अपने घर में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वे भारतीय जनता युवा मोरचा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य भी रहे हैं। दशरथ सिंह खुद कंस्ट्रक्शन कंपनी चलाते थे, जो जय माता दी कंस्ट्रक्शन के नाम से थी। जानकारी के अनुसार वे काफी दिनों से भारी कर्ज में डूबे हुए थे और लॉकडाउन के दौरान काफी ज्यादा घाटा हुआ था।

7 सितंबर को जिले के धनसार थाना क्षेत्र के चंदमारी में पति-पत्नी दोनों ने आत्महत्या कर ली। पत्नी रीना ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली, जबकि पति अमरजीत ने जहर खाकर जान दे दी। आत्महत्या का कारण आर्थिक तंगी बताई गई है। 8 सितंबर को बोकारो जिले के वास्तु विहार फेज-1 में एक महिला ने आर्थिक तंगी के कारण पैदा घरेलू विवाद में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। 9 सितंबर को रांची जिला अंतर्गत ओरमांझी थाना के कुच्चू गांव के सतेंद्र महतो ने अपने दो बेटे ऋतिक और ऋषि के साथ कुंए में कूदकर जान दे दी। कारण, आर्थिक तंगी की वजह पत्नी से झगड़ा होता रहता था। जून 2020 में जामताड़ा में 24 घंटे के भीतर चार लोगों ने आत्महत्या कर ली थी।

12 अगस्त 2020 की रात को रांची में न्यूज एजेंसी पीटीआई के ब्यूरो चीफ पीवी रामानुजम ने अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वह पिछले 4-5 दिनों से तनाव में थे। 6 और 7 अगस्त 2020 को रांची में चार लोगों ने आत्महत्या कर ली, जिसमें दो की उम्र 20 साल से नीचे थी। शेष दो 45 साल के आसपास की उम्र के थे। एक छात्रा ने ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल नहीं मिलने के कारण आत्महत्या कर ली।

उक्त घटनाएं एक झलक भर हैं। सच तो यह है कि कोरोना संक्रमण के नाम पर किए गए लॉकडाउन और उसके बाद संक्रमण के भय से सिकुड़ते मानवीय रिश्तों के बीच बढ़ती आर्थिक तंगहाली से झारखंड समेत पूरे देश में आत्महत्या के मामले काफी बढ़े हैं। विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार झारखंड में कोरोना काल में हर महीने लगभग 200 लोग आत्महत्या कर रहे हैं। इसमें 32 प्रतिशत लोग  बेरोजगारी और आर्थिक तंगहाली से उपजे मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या कर रहे हैं।

झारखंड में जहां कोरोना से मौत का आंकड़ा 650 से पार चला गया है, वहीं कोरोना संक्रमितों की संख्या 65 हजार के पार हो गई है। दूसरी तरफ जैसे-जैसे संक्रमण और मौतें बढ़ती जा रही हैं, वैसे-वैसे कोरोना का खौफ भी लोगों में बढ़ता जा रहा है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना काल के पिछले चार महीने अप्रैल, मई, जून और जुलाई में झारखंड में 788 लोगों ने आत्महत्या कर ली है। मार्च में कोरोना ने दायरा बढ़ाना शुरू किया तो लॉकडाउन में इससे सिर्फ सात मौतें ही हुई थीं, पर इस दौरान 387 लागों ने आत्महत्या कर ली। वहीं जून और जुलाई में अनलॉक में थोड़ी छूट मिली, पर तब तक लॉकडाउन के अवसाद ने पारिवारिक कलह, डिप्रेशन, आर्थिक तंगी इतनी बढ़ा दी कि इस दो महीने में लगभग 401 लोगों ने आत्महत्या कर ली।

बता दें कि 2 सितंबर 2020 को जारी एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार झारखंड में 2019 में 1646 लोगों ने आत्महत्या की, जबकि 2018 में 1317 लोगों ने आत्महत्या की थी। 2019 में जहां एक माह में राज्य में 137 लोग आत्महत्या कर रहे थे, वहीं कोरोना के चार माह में हर माह 197 लोग खुदकशी कर चुके हैं। मतलब आत्महत्या करने वालों की संख्या लगभग डेढ़ गुना हो गई है। वहीं जहां 2019 में 16 प्रतिशत लोग आर्थिक तंगहाली में आत्महत्या कर रहे थे, उनकी संख्या अब 32 प्रतिशत हो गई है। राज्य में आत्महत्या का औसत दर 4.4 प्रतिशत से बढ़कर अब सात फीसदी हो गई है।

आत्महत्या का राष्ट्रीय औसत एक लाख आबादी पर 10.4 है। 2019 में झारखंड में 1646 लोगों ने आत्महत्या की। यह 2018 के मुकाबले 20 फीसदी ज्यादा है। बताते चलें कि धनबाद में पिछले चार महीने में 113 लोगों ने आत्महत्या की, वहीं जमशेदपुर और रांची में क्रमश: 97 और 81 लोगों ने खुदकुशी कर ली। इन तीनों शहरों को मिलाकर लॉकडाउन में 100 और अनलॉक में 191 लोगों ने अपनी जान दी है।

आंकड़ों के अनुसार झारखंड में आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह कोरोना काल में आर्थिक परेशानी रही है। आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक तंगी के कारण धनबाद में 49 फीसदी, जमशेदपुर में 25.42 फीसदी और रांची में लगभग 10 फीसदी आत्महत्याएं हुई हैं, जबकि पारिवारिक कलह से हुई आत्महत्याओं में रांची 40 फीसदी, जमशेदपुर 16.94 फीसदी और धनबाद 19 फीसदी रहा है। लॉकडाउन के दौरान जमशेदपुर में 23.42 फीसदी, रांची में 19 फीसदी और धनबाद में लगभग 10 फीसदी लोगों ने अपनी जान तनाव और अवसाद के कारण दी है।

मौजूदा हालात में अवसाद बड़ी समस्या बन गई है। कोरोना काल और लॉकडाउन के दौरान विभिन्न कारणों से बड़ी संख्या में लोग अवसाद ग्रस्त हो रहे हैं। इस दौरान आत्महत्या के आंकड़े भी सामान्य दिनों के मुकाबले बढ़ रहे हैं। झारखंड में हर साल औसतन 1500 लोग आत्महत्या करते हैं, जबकि वर्तमान समय में मात्र छह माह में ही यहां आत्महत्या करने वालों की संख्या एक हजार के पार पहुंच गई है। मतलब हर रोज औसतन सात लोग आत्महत्या कर रहे हैं।

कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण एक ओर लोगों में संक्रमण से जान गंवाने की दुश्चिंता बढ़ी है, तो दूसरी ओर लोगों में नौकरी जाने और रोजी-रोजगार छिन जाने से आर्थिक संकट का खतरा गहराने लगा है। ऐसे में कमजोर इच्छा शक्ति और दिलो दिमाग वाले लोग अवसादग्रस्त हो हताशा में आत्महत्या करने को बाध्य हो रहे हैं। इसमें युवाओं और महिलाओं की संख्या अधिक है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
Published by
विशद कुमार