झारखंड: टाटा स्टील ग्रुप की गलियारा परियोजना कहीं आदिवासियों की जमीन हड़पने की योजना तो नहीं

टाटा स्टील फाउंडेशन और टाटा ट्रस्ट के संयुक्त पहल पर झारखंड के कोल्हान क्षेत्र के पूर्वी सिंहभूम जिला अंतर्गत जमशेदपुर सहित सरायकेला-खरसावा जिला और पश्चिम सिंहभूम जिला की परिधि से होते हुए भारत के तटीय ओडिशा के जाजपुर जिले के कलिंगनगर तक लगभग 286 किलोमीटर की औद्योगिक विकास गलियारा परियोजना प्रस्तावित है। दायरे में 72 ग्राम पंचायतों के लगभग 450 गांव आ रहे हैं। 

इस परियोजना के लागू करने के लिए आवश्यक प्रक्रिया शुरू हो गई है। जिसकी वजह से आदिवासियों व मूलवासियों की उनकी मर्जी के खिलाफ विस्थापन का भय सता रहा है। जिससे उनकी आजीविका, उनके पारंपरिक स्वशासन, सामाजिक व्यवस्था, रूढ़ी या प्रथा और अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।

जिसको लेकर एक सामाजिक संगठन झारखंड पुनरुत्थान अभियान इस कथित औद्योगिक विकास गलियारा का विरोध करते हुए कोल्हान प्रमंडल के आयुक्त को एक पत्र लिखा है। जिसमें सूचित किया  कि 9 जून 2023 से बिरसा मुंडा की शहादत दिवस के अवसर पर पदयात्रा शुरू की है। पदयात्रा राज्य के जमशेदपुर के खरबानी, मनपिटा, बिरसा नगर बारीडीह, साकची बिरसा चौक, करनडीह, हाता, राजनगर, चाईबासा, झींकपानी, हाटगम्हरिया, जैतगढ़, ओडिशा के चंपुआ, रिमुली क्योंझर, हरिचंदनपुर, सागरपोटा, टोंका से चैतरी डुबरी के शहीद स्थल वीरभूमि तक करके समापन समारोह आयोजित करने की योजना है। 

विगत 16 मई 2023 को झारखंड पुनरुत्थान की ओर से प. सिंहभूम जिला के सदर अनुमंडल कार्यालय के समक्ष धरना प्रदर्शन किया था और अवसर पर अनुमंडल कार्यालय के माध्यम से टाटा स्टील फाउंडेशन और टाटा ट्रस्ट के संयुक्त विकास गलियारा परियोजना को रोकने के लिए राज्यपाल, झारखंड (रांची) को मांग एक पत्र प्रेषित किया था। अभियान द्वारा आयोजित धरना प्रदर्शन कार्यक्रम के वक्त ही टाटा ट्रस्ट के विकास गलियारा का प्रतिरोध करने के लेकर पदयात्रा शुरू करने की घोषणा थी। झारखंड पुनरूत्थान अभियान मुख्य संयोजक सन्नी सिंकु बताते हैं कि उसी के आलोक में जमशेदपुर से कालिंगनगर के बीच लगभग 300 किलोमीटर की दूरी तक पदयात्रा कार्यक्रम आयोजित किया गया है। 

उक्त विकास गलियारा परियोजना के तहत कथित रूप से कल्याणकारी योजना संचालित करने का संकल्प है और इस योजना के तहत 450 उन गांवों में योजना चलाने के लिए उल्लिखित पांच जिला के उपायुक्त, अंचल अधिकारी और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के साथ बैठक आयोजित करना सुनिश्चित किया जा रहा है। जिन जिला और अंचल से होकर टाटा स्टील के अधिकारियों को टाटा से कलिंगनगर के लिए वोल्वो बस में ले जाया जा रहा है। इसी सड़क को आधार बनाकर विकास गलियारा की परियोजना संचालित करने के लिए ग्राम सभा का आयोजन भी किया जा रहा है। 

जिससे विकास गलियारा की परियोजना से इन क्षेत्रों के आदिवासी मूलवासियों को आशंका है कि टाटा स्टील फाउंडेशन और टाटा ट्रस्ट भविष्य में जमीन अर्जन करने की पृष्ठभूमि पर काम कर रही है। क्योंकि झारखंड के जमशेदपुर ,नोवामुंडी और ओडिशा के जोड़ा, धैतारी, सुखिंदा, कलिंगनगर में जहां टाटा स्टील की माइंस और फैक्ट्रियां हैं। उन क्षेत्रों में आदिवासी मूलवासी का अनैच्छिक विस्थापन किया गया। इनकी आजीविका के सबसे बड़े आधार जमीन के अधिकार से वंचित किया गया है। इतने वर्षों में टाटा स्टील के द्वारा माइंस और फैक्ट्री प्रभावित गांव में स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार तो नहीं हुआ, उल्टा इन क्षेत्रों में जीवन स्तर और बदतर हो गया है। गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वालों की संख्या राष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक है। उसी तरह से राष्ट्रीय स्तर पर इन क्षेत्रों में ही सबसे अधिक कुपोषित बच्चे पाए जाते हैं। 

कलिंगनगर में जिस प्रकार से अपनी जमीन की रक्षा करने के लिए आंदोलित आदिवासियों पर 2 जनवरी 2006 को गोली चलाकर 13 लोगों की हत्या की गई। यह बहुत ही भयावह घटना रही है। टाटा स्टील लिमिटेड की स्थापना के काल में जिस प्रकार जमशेदपुर में 75 हजार से अधिक स्थाई कर्मचारियों को नौकरियों पर रखा गया था, अब उनकी संख्या 13 हजार से भी कम हो गयी है। लेकिन टाटा स्टील के मुनाफे में कोई कमी नहीं हुई। दूसरी तरफ अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बढ़ावा देने की दिशा में सरकार और कंपनी आगे बढ़ रही हैं। ऐसी स्थिति में मानव श्रम की दरकार कम से कमतर हो जाएगी। इन तमाम परिस्थितियों के कारण आदिवासियों के सामने आजीविका के लिए जमीन खोने का भय सता रहा है। उक्त विकास गलियारा के तहत उन क्षेत्रों में ही कल्याण का काम करने के लिए परियोजना तैयार करना, जिस रास्ते टाटा से कलिंगनगर के लिए टाटा के अधिकारी सफर करते हैं, यह सवाल खड़ा करता है कि कंपनी को विकास गलियारा के तहत कल्याणकारी कार्यक्रम चलाना ही हो तो टाटा स्टील लिमिटेड के माइंस और फैक्ट्री के क्षेत्रों में क्यों नहीं?

यदि विकास गलियारा का उद्देश्य, सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, बौद्धिक क्षमता का विकास है तो कंपनी के प्रभावित क्षेत्रों में ही जमीन दाता की स्थिति सबसे बदतर क्यों? 

सिंकू कहते हैं कि इसलिए ‘झारखंड पुनरुत्थान अभियान’, ओडिशा के इन आदिवासी बहुल क्षेत्रों में यानी पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में सम्मिलन विकास के पक्षधर नहीं है। आदिवासियों के लिए एकीकरण की विकास की अवधारणा के पक्षधर हैं। साथ ही सरकार द्वारा आदिवासी हितों के लिए बनाई गई पेसा कानून, वन अधिकार अधिनियम, भूमि अधिग्रहण पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन अधिनियम, जनजातीय मंत्रालय के तहत आदिवासियों की जमीन को अर्जन करने के खिलाफ विधिक एवं संवैधानिक अधिकारों के साथ हेर-फेर कर कॉरपोरेट हित में अधिक काम करते हुए दिखाई देता है। इन सारे अधिकारों के प्रति जनता को जागरूक करने और संगठित करने के उद्देश्य से झारखंड पुनरूत्थान अभियान पदयात्रा का कार्यक्रम चला रही है।

झारखंड में हो रहे इन तमाम घटनाक्रम पर यह बताना जरूरी हो जाता है कि नीदरलैंड से प्रकाशित एनएल टाइम्स के हवाले से 9 जून को आई एक रिपोर्ट के मुताबिक क्रिमिनल लाॅयर बेनेडिक्ट फिक ने कहा है कि पर्यावरण मानकों को नहीं मानने और प्रदूषण फैलाने वाली कंपनियों के निदेशकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करना होगा। 

रिपोर्ट के मुताबिक वकील बेनेडिक्ट ने इस बावत नीदरलैंड के आईमाउदन स्थित टाटा स्टील के सीईओ हंस वैन डेन बर्ग पर पहला मुकदमा दर्ज किया है। क्योंकि उनका मानना है कि टाटा स्टील नीदरलैंड की सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली कम्पनी है। रिपोर्ट में बेनेडिक्ट का कहना है कि टाटा स्टील के सीईओ के खिलाफ कार्रवाई प्रदूषण फैलाने वाली अन्य कम्पनियों के लिए एक सबक साबित होगा। उनको आशा है कि साल के अंत तक इस पर फैसला होने की उम्मीद है।

बेनेडिक्ट बताती हैं कि वहां को निवासी बहुत तनाव में है, सरकारी उदासीनता के कारण वे बहुत निराश हैं और अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर डरे हुए हैं। रिपोर्ट बताती है कि वहां रहने वाले कुछ लोगों को कैंसर हो गया है, अस्थमा से पीड़ित कई बच्चे शामिल हैं। उनके माता-पिता को डर है कि सीसा से होने वाले प्रदूषण उनके बच्चों के मस्तिष्क विकास पर प्रभाव डालेगा।

उन्होंने बताया कि टाटा स्टील के आस-पास खेल के मैदान है जिसको रोज़ाना कारखाना द्वारा साफ़ करना पड़ता है। क्योंकि प्रदूषण इतना गहरा है कि आस-पास मैदान में कंपनी से निकलने वाली गंदगी जो काली वर्षा की तरह होती है। इसका सामना बच्चों को  करना पड़ता है, जो बच्चों के फेफड़ों और अन्य अंगों तक पहुंच रही है।

बेनेडिक्ट फिक को लगता है कि हंस वैन डेन बर्ग के खिलाफ़ आपराधिक आरोप बिल्कुल उचित है। वे कहती है कि कोई भी रोगजनक प्रदूषण फैलाना अपराध की श्रेणी में आता है।

पिछले 5 फरवरी 2021 को एनएल टाइम्स में छपी खबर के अनुसार बेनेडिक्ट फिक ने टाटा स्टील से निकलने वाले खतरनाक कचड़ों के खिलाफ मुकदमा करने की बात कही थी। उसने कहा था कि टाटा स्टील पर्यावरण मानकों के अनुसार काम नहीं कर रहा है।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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