झारखंडः मेले पर अचानक पुलिस लाठीचार्ज से उग्र हुए ग्रामीण, दोनों तरफ से कई घायल

23 अप्रैल 2021 को झारखंड के सराइकेला खरसावां के दलमा पहाड़ के तराई क्षेत्र समनपुर पंचायत के अंतर्गत बामनी ग्राम में भोक्ता परब के तहत चड़क पूजा मेले में उस वक्त ग्रामीणों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हो गई जब मेला के तीसरे दिन भोक्ता परब का अनुष्ठान के बाद मेला समाप्ति की ओर था। झड़प के बीच ग्रामीणों व पुलिस के जवानों को चोटे आई हैं।

कोविड-19 के मद्देनजर राज्य सरकार द्वारा पूरे झारखंड में 22 अप्रैल से 29 अप्रैल 2021 तक स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह के रूप में मनाने की घोषणा की गई, जिसके तहत राज्य में दफा 144 लगाई गई है। ऐसे में 22 अप्रैल को ही इस मेले पर बैन लगाना चाहिए था, तो शायद ऐसी स्थिती नहीं बनती।

हर साल की तरह इस साल भी बामनी ग्राम सभा के लोग परंपरागत तौर से चले आ रहे तीन दिवसीय सांस्कृतिक अनुष्ठान भोक्ता परब मना रहे थे। 21 अप्रैल से चला आ रहा भोगता परब का 23 अप्रैल को आखिरी दिन था। कुछ ही देर में भोक्ता परब का अनुष्ठान समाप्त होने वाला था कि अचानक पुलिस प्रशासन मेला स्थल पर पहुंचा और ग्रामीणों के साथ-साथ पुजारी/लाया और बुजुर्गों पर लाठीचार्ज शुरू कर दिया। 

पुलिस द्वारा हुए हमले के प्रतिरोध में ग्रामीणों ने भी पुलिस पर हमला कर दिया, जिसके बाद पुलिस को भागना पड़ा। घटना बाद पुलिस प्रशासन ने नौ ग्रामीणों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है और 41 अज्ञात ग्रामीणों के ऊपर मुकदमा दर्ज कर दिया है। गिरफ्तार किए गए ग्रामीणों में ताराशंकर पातर (28), उज्ज्वल कुमार नाग (25), अभिजीत सिंह पातर (19), साची महतो (48), शुभेंदु महतो (21), प्रियरंजन महतो (40), गुरुपद मार्डी (18), मंटू सिंह (21) व देवाशीष सिंह मानकी (50) को जेल भेजा है।

अन्य 31 नामजद आरोपी आजसू नेता हरेलाल महतो के अलावा 41 अज्ञात की गिरफ्तारी के लिए पुलिस छापेमारी कर रही है। आरोपियों के खिलाफ उपद्रव करने, सरकारी काम में बाधा डालने, एटेंप टु मर्डर, धक्का मुक्की करने, सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने, निषेधाज्ञा का उल्लंघन के अलावा आपदा प्रबंधन अधिनियम व महामारी अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया है। हरेलाल व गांव के सभी पुरुष महतो फरार हैं। घटना के बाद आस पास के लोगों का मानान है कि पुलिस के खौफ से गांव के सभी पुरुष गांव से भाग कर जंगलों में भटक रहे हैं।

प्रशासन द्वारा इस ग्राम में 144 भी लगाया गया है। सूत्रों के मुताबिक गिरफ्तार किए ग्रामीणों में से कुछ को गंभीर चोट भी लगी है। प्रशासन के हमले के द्वारा या फिर कस्टडी के उपरांत, जिनका अभी इलाज चल रहा है। इस घटना के बाद से बामनी गांव के साथ-साथ आसपास के सभी गांव में अशांति और प्रशासन के खिलाफ आक्रोश का माहौल भी देखा जा रहा है।

घटना के बाद 24 और 25 अप्रैल को बगल के गांव चालियामा ग्राम सभा में इस घटना को लेकर आसपास की ग्राम सभा के प्रतिनिधि और ‘दलमा आंचलिक सुरक्षा समिति/सेंदरा समिति’ के प्रतिनिधियों की एक बैठक भी की गयी, जिसमें कहा गया कि गांव में पूर्ण शांति के लिए उच्च अधिकारियों से बातचीत की जाएगी।

2009 में माओवादियों के खिलाफ पुलिस को सहयोग करने के लिए तत्कालिन डीएसपी के नेतृत्व और उनके संरक्षण में ‘दलमा आंचलिक सुरक्षा समिति’ का गठन किया गया था। मकसद था क्षेत्र से माओवाद को समाप्त करने में पुलिस का सहयोग करना और मुखबिरी करके नक्सलियों को पकड़वाना, जिसमें दलमा तराई क्षेत्र के युवा ‘सेंदरा समिति’ में शामिल हुए। सेंदरा का मतलब होता है जंगली जानवर जब आदमखोर हो जाता है तो उसे गांव के लोग घेरकर मार देते हैं। ‘सेंदरा समिति’ का मकसद बना नक्सलियों को घेरकर मरना, जिसमें पुलिस का पूरा सहयोग होता था।

अब गांव वाले सवाल उठा रहे हैं कि हमलोग प्रशासन को 2009 से लेकर अब तक सहयोग करते आ रहे हैं, उसी प्रशासन ने आज हम ग्रामीणों के साथ ऐसा व्यवहार किया कि ग्रामीणों को जंगलों में भटकना पड़ रहा है, जो काफी चिंतनीय और दुखद है।

क्षेत्र के लोग कहते हैं कि अनुष्ठान तीन दिन का था। दो दिन खूब अच्छे और शांति से गुजरे। अनुष्ठान का तीसरा दिन था और कुछ ही देर में समाप्त होने को था, ऐसे में अचानक पुलिस द्वारा स्थल पर लाठियां बरसाना समझ में नहीं आया। वे ग्रामीणों को बातचीत से भी समझा सकते थे, किंतु प्रशासन ने ऐसा नहीं किया। यह क्षेत्र नक्सली प्रभावित क्षेत्र है। हम ग्रामीण प्रशासन का खूब सहयोग करते हैं, किंतु अब प्रशासन के ऊपर से हमारा भरोसा उठ गया है। कुछ लोग कहते हैं कि ग्रामीणों से अगर गलती हुई है तो उससे पहले प्रशासन ने गलती की है। प्रशासन को अज्ञात लोगों के ऊपर जो मुकदमा दर्ज किया है उसे खारिज करना होगा और गिरफ्तार ग्रामीणों को रिहा करना होगा एवं प्रशासन को ग्राम में आकर ग्रामीणों से शांति की अपील करनी होगी, अन्यथा पूरे क्षेत्र में अशांति और बढ़ सकती है।

लोग बताते हैं कि इस क्षेत्र में दो स्वास्थ्य केंद्र हैं। एक में ताला लगा हुआ है दूसरे में सीआरपीएफ का ठिकाना बना हुआ है, फिर भी हम प्रशासन का सहयोग करते हैं। जबकि अभी इस महामारी में इस स्वास्थ्य केंद्र का सही उपयोग होना चाहिए था, ताकि इस महामारी में स्वास्थ्य चिकित्सा का लाभ ग्रामीणों को मिल पाए।

क्षेत्र के प्रमुख और सेंदरा समिति के अध्यक्ष अशित सिंह पातर कहते हैं, ‘दलमा आंचलिक सुरक्षा समिति’ माओवादियों के खिलाफ एक सशक्त संगठन है, जो पुलिस के ही सहयोग से चलता है। समिति का मकसद है क्षेत्र से माओवाद को खत्म करना और हमलोग इसमें सफल हैं। हम लोग 2009 से माओवादियों के खिलाफ पुलिस का सहयोग करते आ रहे हैं, इस कारण माओवादी दलमा में अपना पैर नहीं जमा पाए।

इस सहयोग का एहसान पुलिस ऐसे चुकाएगी, ऐसी आशा नहीं थी। अशित पातर अपना हाथ दिखाते हुए कहते हैं कि मुझे खींचकर जबरन पुलिस गाड़ी में बिठाया गया। मुझे डंडे से पीटा गया, बाद में थाने से छोड़ा गया। मैं पुलिस की इस कार्यवाई की पूरजोर निंदा करता हूं।

नीमडीह प्रमुख अशित सिंह पातर का भतीजा ताराशंकर सिंह पातर उर्फ बुलबुल ने जुर्म स्वीकार किया है। ताराशंकर ने कहा- 22 अप्रैल को आजसू के केंद्रीय सचिव हरेलाल महतो ने बामनी में मेले का उद्घाटन किया था। हरेलाल के समर्थन के कारण ही मेला लगा था। पुलिस ने मुख्य आरोपी हरेलाल को बनाया है जो फरार है।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

विशद कुमार
Published by
विशद कुमार