जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष पर नामजद एफआईआर, ज्ञात हमलावर ‘संघी गुंडे’ घूम रहे हैं खुलेआम

नई दिल्ली। जेएनयू में प्राध्यापकों और छात्र-छात्राओं पर कातिलाना हमला करने वाले नकाबपोशों की सच्चाई दिन-प्रतिदिन सामने आ रही है। तीन दिन के अंदर जो तथ्य सामने आए हैं, उससे यह साफ हो चुका है कि यह सब सरकार के इशारे और कुलपति एम. जगदेश कुमार के संरक्षण में एबीवीपी के गुंडों ने अंजाम दिया था। और इस घटना की सच्चाई सामने न आए इसके लिए पुलिस और मीडिया ने भी मनगढ़ंत कहानी और तस्वीर पेश किया। लेकिन सच सामने आ ही गया।

इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन,पुलिस,मुख्यधारा की मीडिया सरकार के इशारे पर काम कर रही है। दिल्ली पुलिस ने हमलावरों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य होने के बावजूद अज्ञात के नाम मुकदमा दर्ज किया है। जबकि छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष समेत 19 लोगों पर नामजद केस दर्ज किया गया है। आइशी घोष गुंडों के हमले में घायल हो गयी थीं। इसके बावजूद पुलिस ने एक पीड़ित पर नामजद एफआईआर दर्ज किया और हमलावरों की पहचान उजागर होने के बावजूद उनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं शुरू की गयी है।

दिल्ली पुलिस के इस कदम की आलोचना भी शुरू हो गयी है। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असददुद्दीन ओवैसी ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि हत्या की कोशिश करने वालों की बजाय उस लड़की के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गयी जो हिंसा में घायल हुई। उन्होंने कहा कि सबसे पहले तो उन्हें इस बात की जांच करनी चाहिए कि कैसे हमलावरों को कैंपस में घुसने की इजाजत दी गयी। दूसरा कुलपति ने क्या किया। तीसरा यहां तक कि पुलिस ने गुंडों को सुरक्षित रास्ता प्रदान किया।

कांग्रेस ने एफआईआर को अपमानजनक करार दिया है। पार्टी के ट्विटर हैंडल पर कहा गया है कि हमले को 40 घंटे बीत गए हैं। लेकिन अभी तक एक भी शख्स की गिरफ्तारी दिल्ली पुलिस नहीं कर पायी है। जबकि हर चीज के पुख्ता प्रमाण हैं। क्या अमित शाह के मातहत पुलिस इतनी अक्षम है। इसकी बजाय उन्होंने एक पीड़िता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। यह अपमानजनक है।

आइषी के खिलाफ यह एफआईआर शनिवार को सर्वर रुम में हुई घटना के मसले पर की गयी है। जिसमें उन पर तोड़फोड़ का आरोप लगाया गया है। एफआईआर जेएनयू प्रशासन की शिकायत पर दर्ज की गयी है। बीजेपी की कर्नाटक इकाई ने छात्रसंघ अध्यक्ष समेत उनके दूसरे साथियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर का स्वागत किया है।

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