जस्टिस खानविलकर बने लोकपाल, पीएमएलए के संशोधन को ठहराया था सही

न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ भले ही न्यायिक प्रणाली का सबसे खतरनाक हिस्सा हों और विधिक क्षेत्रों में इसकी चाहे जितनी तीखी आलोचना हो, लेकिन अब इस कड़ी में जस्टिस अरुण मिश्र, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण के बाद सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर का नाम भी जुड़ गया है।

जस्टिस खानविलकर को लोकपाल नियुक्त किया गया है। वह कई अहम केस के फैसले का हिस्सा रहे हैं, जिसमें नरेंद्र मोदी को 2002 के गुजरात दंगे में क्लीन चिट देना, पीएमएलए के संशोधन को बरकरार रखना और सेंट्रल विस्टा का रास्ता साफ करने जैसे कुछ अहम फैसले शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर ने भारत के लोकपाल का कार्यभार संभाल लिया है। पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ और लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी की उच्च स्तरीय समिति ने उनकी नियुक्ति पर मुहर लगाई थी। जस्टिस खानविलकर दो साल पहले 29 जुलाई 2022 को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे।

जस्टिस खानविलकर की पीठ ने पीएमएलए के नियमों का सही ठहराया था और प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र को परिभाषित किया था। एजेंसी के किसी भी आरोपी को समन करने, गिरफ्तारी, तलाशी लेने सहित मुकदमे से संबंधी सामान की जब्ती के अधिकार को सही ठहराया था। इसके साथ ही ईडी अधिकारियों के सामने इकबालिया बयान का उपयोग करने के लिए भी व्यापक अधिकार दिए थे।

जस्टिस खानविलकर ने उस पीठ का भी नेतृत्व किया जिसने 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री और निर्णय सुनाते समय देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी थी। उसी मामले में प्रधानमंत्री मोदी को दंगा फसाद और हिंसा में फंसाने के लिए “मनगढ़ंत सबूत” पेश करने के लिए याचिकाकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ पर सवाल भी उठाए थे।

जस्टिस खानविलकर ने उस पीठ का नेतृत्व भी किया था, जिसने कई आपत्तियां उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं और पर्यावरणविदों द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए सेंट्रल विस्टा और नए संसद भवन के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस खानविलकर कई संविधान निर्णयों का हिस्सा थे, जैसे समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करना, सबरीमाला में महिलाओं का प्रवेश, आधार की वैधता आदि।

मई 2016 में खानविलकर सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए और फिर अगले 6 बरस सर्वोच्च न्यायलय में रहने  के बाद 29 जुलाई 2022 को रिटायर हो गए। सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हो जाने के बाद भारत सरकार ने जस्टिस खानविलकर की अगुवाई में एक सिलेक्शन कमिटी का गठन किया जिसको इसी बरस दिए जाने वाले राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के विजेताओं का चयन करना था। अब इसके लगभग एक साल बाद उनकी भारत के लोकपाल के तौर पर नियुक्ति हुई है।

साल 2010 में यूपीए सरकार एफसीआरए यानी फॉरेन कंट्रीब्यूशन्स रेगुलेशन एक्ट लेकर आई थी। 2020 में इसमें कुछ संसोधन किया गया। नोएल हार्पर और जीवन ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट ने इस संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।याचिकाकर्ताओं का कहना था कि संशोधन ने तमाम एनजीओ के लिए विदेशी चंदा हासिल करना और फिर उसका इस्तेमाल काफी मुश्किल कर दिया है। साथ ही, इस संशोधन से एनजीओ के कामकाज पर बुरा असर पड़ने की भी बात कही गई।

जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने एफसीआरए कानून में 2020 के संशोधन को सही माना। जस्टिस खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ ने तब कहा था कि अगर विदेशी फंडिंग मनमाना या फिर अनियंत्रित हुआ तो यह राष्ट्र की संप्रभुता के लिए घातक हो सकता है। कोर्ट ने फॉरेन फंडिंग को रेगुलेट करने को लेकर लाए गए संशोधन पर मुहर लगा दी।

इस फैसले से यह भी तय हुआ कि कोई भी एनजीओ अब से केवल और केवल भारतीय स्टेट बैंक यानी एसबीआई ही के खाते में फंड मंगा सकेंगी। जस्टिस खानविलकर की पीठ ने कहा था कि विदेशी फंडिंग हासिल करना किसी भी संस्थान का ‘पूर्ण अधिकार’ नहीं हो सकता।

22 बरस पहले 28 फरवरी को गुजरात दंगों के दौरान अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में कत्लेआम मचा। उस दिन जो 69 लोग मारे गए, उसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद  एहसान जाफरी भी थे। दंगों और इन हत्याओं की जांच को लेकर एक एसआईटी (विशेष जांच दल) गठित हुई। एसआईटी ने अपनी जांच के बाद 63 आरोपियों को (जिनमें तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी का भी नाम था) क्लिन चिट दे दिया।

एसआईटी की रिपोर्ट और जांच बंद करने के खिलाफ एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने अलग-अलग अदालतों का दरवाजा खटखटाया। जाकिया जाफरी को आपत्ति थी कि इस केस की जांच सही से नहीं हुई और जांच बंद भी नहीं की जानी चाहिए। साल 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ जाकिया की शिकायती अर्जी खारिज कर दी।

फिर जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई। ‘जकिया अहसान जाफरी बनाम गुजरात सरकार’ मामले की सुप्रीम कोर्ट में मैराथन सुनवाई न्यायमूर्ति खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने की और जून 2022 में गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

यूथनेसिया (इच्छा मृत्यु) विवादित विषय है, इससे संबंधित कई मामले सुप्रीम कोर्ट में गए। पर साल 2018 में ‘कॉमन कॉज बनाम भारत सरकार’ केस में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मौलिक अधिकार माना था। संविधान के अनुच्चेद 21 के तहत सुप्रीम कोर्ट की जिस पीठ ने ये फैसला दिया, ए. एम. खानविलकर भी उसका हिस्सा थे। इस ऐतिहासिक फैसले में जस्टिस दीपक मिश्र, जस्टिस ए. के. सिकरी, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण ने यूथनेसिया के लिए कुछ गाइडलाइन जारी की। हालांकि, यह असाध्य यानी न ठीक होने वाली बीमारियों के लिए ही थी। इस फैसले ने ‘लिविंग विल’ बनाने को मंजूरी दे दी।

कोर्ट के फैसले से पहले तक ये गैरकानूनी था। बाद में, 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले गाइडलाइंस में कुछ बदलाव किया जिससे इच्छा मृत्यु के अधिकार को और आसान बनाया जा सके।

हाल के बरसों में पीएमएलए यानी प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट पर बहुत विवाद रहा है। मनी लॉन्ड्रिंग पर नकेल कसने के मकसद से लाए गए इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई और पिटिशनर्स ने दलील दी कि पीएमएलए कानून के तहत ईडी आर्थिक अपराधों की जांच करते समय जो प्रक्रिया अपना रहा है, वह संवैधानिक तौर पर दुरुस्त नहीं है।

जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने पीएमएल कानून के प्रावधानों को बरकरार रखा और संवैधानिक रूप से इस कानून पर मुहर लगा दी। हालांकि इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दायर हुई है और कोर्ट ने कहा है कि वह इस कानून के दो पहलू पर फिर से विचार करेगी।

आतंकी फंडिंग मामले में आरोपी जहूर अहमद शाह वटाली की जांच एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी कर रही थी। इसी बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने वटाली को जमानत दे दी। एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई। जस्टिस खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया और जहूर वटाली को जमानत देने को सही नहीं माना।

राष्ट्रपति ने जस्टिस खानविलकर के साथ लोकपाल के अन्य न्यायिक सदस्य के रूप में जस्टिस लिंगप्पा नारायण स्वामी, जस्टिस संजय यादव और जस्टिस ऋतुराज अवस्थी की भी नियुक्ति की है। जस्टिस अवस्थी विधि आयोग के अध्यक्ष भी हैं। इनके अलावा गैर न्यायिक सदस्यों में सुशील चंद्रा, पंकज कुमार और अजय तिर्की शामिल हैं।

सर्वोच्च अदालत के पूर्व न्यायधीश पिनाकी चंद्र घोष का लोकपाल अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद मई 2022 ही से ये पद खाली था। झारखंड के पूर्व चीफ जस्टिस प्रदीप कुमार मोहंती कार्यवाहक अध्यक्ष के तौर पर अब तक लोकपाल का कामकाज देख रहे थे लेकिन अब आगे इस महत्त्वपूर्ण संस्थान की जिम्मेवारी ए. एम. खानविलकर के पास होगी।

लोकपाल के पास केंद्र सरकार पर प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों, संसद सदस्यों, केंद्र सरकार के समूह ए अधिकारियों सहित अपने सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने और उनसे जुड़े मामलों की जांच करने का अधिकार क्षेत्र है। लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 में पारित किया गया। अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, चेयरपर्सन और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा चयन समिति की सिफारिशें प्राप्त करने के बाद की जाएगी।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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