कोर्ट में विवादित टिप्पणियां -2: ‘स्किन टू स्किन’संपर्क नहीं तो पाक्सो अपराध नहीं कहने वाली जज का डिमोशन

‘स्किन टू स्किन’ संपर्क नहीं होने पर पॉक्सो के तहत अपराध नहीं कहने वाली  बॉम्बे हाईकोर्ट की चौंकाने वाला फैसला सुनाने वाली अस्थायी जज जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला को स्थायी जज नहीं बनाया जायेगा। बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला जिसमें कहा गया था कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पाक्सो) के तहत यौन उत्पीड़न के अपराध के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्कआवश्यक है, उसे भारी सार्वजनिक निंदा का सामना करना पड़ा। इस निर्णय के अनुसार, हाईकोर्ट (नागपुर खंडपीठ) की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि एक नाबालिग लड़की के स्तनों को उसके कपड़ों पर टटोलना पॉक्सो की धारा 8 के तहत यौन उत्पीड़नके अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। यह मानते हुए कि धारा 8 पॉक्सो के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क होना चाहिए, हाईकोर्ट ने माना कि विचाराधीन कृत्य केवल धारा 354 आईपीसी के तहत छेड़छाड़ के अपराध की श्रेणी में आएगा।

जस्टिस गनेडीवाला ने एक अन्य विवादास्पद फैसले में कहा कि नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की ज़िप खोलना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 के तहत यौन हमले की परिभाषा के तहत नहीं आएगा। उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में इन दोनों विवादास्पद फैसलों को पलटते हुए कहा कि पॉक्सो अपराध के लिए त्वचा से त्वचासंपर्क आवश्यक नहीं है, और यह मायने रखता है कि स्पर्श यौन इरादेसे किया गया हो, चाहे वह कपड़ों पर किया गया हो या नहीं।

जस्टिस पुष्पा वी गनेडीवाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सख्त फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस गनेडीवाला को स्थायी जज बनाए जाने के लिए नाम की सिफारिश नहीं करने का फैसला लिया है। उनका कार्यकाल फरवरी 2022 में समाप्त हो रहा है। ऐसे में डिमोशन होकर उनकी नियुक्ति वापस जिला न्यायाधीश के तौर पर हो जाएगी।

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में एडिशनल जज जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला का डिमोशन तय हो गया है। अतिरिक्त न्यायाधीश का उनका कार्यकाल फरवरी 2022 में खत्म हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की तरफ से ना तो उन्हें स्थायी जज बनाने की पुष्टि की गई है। और ना ही अतिरिक्त जज के कार्यकाल को विस्तार देने का निर्णय हुआ है। ऐसे में उनका डिमोशन जिला जज के तौर पर होगा।

चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस यू यू ललित और ए एम खानविलकर के कॉलेजियम ने जस्टिस पुष्पा के कार्यकाल को विस्तार नहीं देने का फैसला किया है। उन्होंने 12 साल की लड़की के साथ यौन अपराध केस में आरोपी को बरी करते हुए कहा था कि बिना स्किन-टू-स्किन संपर्क में आए ब्रेस्ट को छूना पॉक्सो के तहत यौन हमला नहीं माना जाएगा। इस फैसले ने जस्टिस गनेडीवाला को आलोचना के केंद्र में ला दिया था।

विवादित फैसलों की वजह से चर्चा में रहीं जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला का प्रमोशन रोक दिया गया है। तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस पुष्पा को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद वापस ले लिया था। जस्टिस खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ ने भी पुष्पा को स्थायी किए जाने का विरोध किया था।

हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि किसी हरकत को यौन हमला माने जाने के लिए ‘गंदी मंशा से त्वचा से त्वचा (स्किन टू स्किन) का संपर्क होना’ जरूरी है। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है। जस्टिस गनेडीवाला ने एक सेशन्स कोर्ट के फैसले में संशोधन किया, जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी।

जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने इससे पहले भी एक विवादित फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि पॉक्सो एक्ट के तहत पांच साल की बच्ची के हाथ पकड़ना और ट्राउजर की जिप खोलना यौन अपराध नहीं है। अमरावती की रहने वाली जस्टिस पुष्पा ने 2007 में बतौर जिला जज अपने करियर की शुरुआत की थी।

जस्टिस पुष्पा ने दो दिन पहले फैसला देते हुए कहा कि पत्नी से पैसे मांगने को उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने शादी के 9 साल बाद पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी शख्स को रिहा करने का फैसला दिया। आरोपी पर दहेज की लालच में उत्पीड़न का आरोप था।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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