कैका मुठभेड़ को परिजनों ने बताया फर्जी, कहा-गांव में खेती-बाड़ी कर रहा था रितेश

बीजापुर। जिले में सुरक्षा बल और माओवादियों के बीच मुठभेड़ के बाद जवानों पर आरोप-प्रत्यारोप का पुराना नाता रहा है, जब-जब मुठभेड़ हुए हैं, तब-तब जवानों की कार्रवाई को लेकर फर्जी मुठभेड़ और मुठभेड़ के बहाने हत्याओं जैसे आरोप लगते रहे हैं। शुक्रवार की सुबह नैमड़ थाना क्षेत्र के कैका में हुए एक मुठभेड़ में जवानों ने तीन लाख के कथित ईनामी नक्सली को मार गिराने का दावा किया है, घटना स्थल से शव के साथ हथियार और अन्य सामग्री बरामद की बात कही गयी है। मुठभेड़ के कुछ देर बाद ही ग्रामीण और परिजनों ने इस मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए जवानों पर गंभीर आरोप लगा दिए हैं। हालांकि परिजन और ग्रामीण इस चीज को भी मान रहे हैं कि मृतक पूर्व नक्सली रहा है, परंतु वह संगठन छोड़कर घर वापस आ गया था, बावजूद इसके उसे घर से उठाकर ले जाने के बाद कैका की पहाड़ियों के पास उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई और उसे मुठभेड़ का नाम दे दिया गया।

शुक्रवार की सुबह पुलिस जवानों ने सेण्डरा इलाके के नक्सल संगठन के एसीएम रितेश पुनेम को मार गिराने का दावा किया, परंतु इस मामले में कुछ देर बाद ही ग्रामीण और परिजनों ने मीडिया को बताया कि यह मुठभेड़ पूरी तरीके से फर्जी है। पत्रकारों की टीम जब मोसला पहुंची तो वहां इस घटना को लेकर स्वयं को चश्मदीद बताते हुए सन्नू कोरसा, अवलम बुधरी और कोरसा मंगू ने बताया कि सुबह तकरीबन पांच बजे जवानों की टीम गांव पहुंची थी और पूरे मोसला गांव को घेर लिया था। इसी दौरान रितेश पुनेम के साथ-साथ इन तीनों को जवानों ने पकड़ लिया और कुछ देर बाद जवानों ने सन्नू, बुधरी और मंगु को छोड़कर रितेश पुनेम को अपने साथ कैका की ओर ले गए और तकरीबन साढ़े 7 बजे फायरिंग की आवाज सुनाई दी और बाद में पता चला कि मुठभेड़ का नाम देकर जवानों ने रीतेश पुनेम की गोली मारकर हत्या कर दी है।

रितेश के परिजन और ग्रामीण

इस घटना में मारे गए रितेश पुनेम के किकलेर निवासी भाई बिज्जा पुनेम ने बताया कि मृतक रीतेश पुनेम 2007 से नक्सलियों के साथ चला गया था और लगातार तकरीबन 13 सालों तक नक्सल संगठन में रहकर काम कर रहा था, परंतु परिवार के दबाव के चलते उसने संगठन और हथियार को त्याग कर 2021 में घर वापसी कर ली थी और मोसला में वे अपने मामा-मामी, बुधरू हेमला और लखमी हेमला के साथ रहकर उनका पालन पोषण कर रहा था, परंतु कल गांव पहुंचे पुलिस जवानों ने उसे पहले घर से उठाया और बाद में मुठभेड़ का नाम देकर गोली मारकर उसकी हत्या कर दी।

बिज्जा पुनेम का कहना है कि अगर जवानों ने उसे गिरफतार कर लिया था तो नियमतः उसे जेल भेज देना चाहिए था, निहत्थे व्यक्ति की हत्या कर जवानों ने एक बुजुर्ग के सहारे को छीन लिया है और वो अब इस पूरे मामले में न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों और परिजनों के आरोपों पर एसपी कमलोचन कश्यप का कहना है कि नक्सलियों के इशारे पर ग्रामीण जवानों की कार्रवाई पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं, मारे गए नक्सली पर नेशनल पार्क समेत अलग-अलग थाना क्षेत्रों में जवानों पर हमला, लूट, आगजनी और हत्या समेत कई आपराधिक मामले पंजीबद्ध हैं, जिसका रिकॉर्ड पुलिस के पास मौजूद है और वह तीन लाख का ईनामी नक्सली था, जवानों ने उसे समर्पण करने को कहा था, परंतु उस तरफ से फायरिंग के बाद जवानों की जवाबी कार्रवाई में नक्सली मारा गया और एक जवान भी मुठभेड़ में घायल है, इसलिए तमाम आरोप बेबुनियाद और कहानी मनगढंत है।

कैका मुठभेड़ में मृत नक्सली के अंतिम संस्कार का विरोध

शनिवार को मारे गए नक्सली का शव पोस्टमार्टम के बाद गंगालूर मार्ग पर स्थित किकलेर गांव उसके परिजनों के घर पहुंचा। इस दौरान पुलिस की मौजूदगी में शव को दफनाने का परिजनों समेत सोनी सोरी ने पुरजोर विरोध किया। ग्रामीण शव को लेकर ही किकलेर चौक पर बैठ गए और उन्होंने पुलिस का विरोध करना शुरू कर दिया। तनाव बढ़ता देख शव को परिजनों की इच्छानुसार घर ले जाया गया। जहां रिश्तेदारों के पहुंचने के बाद रविवार को अंतिम संस्कार की बात कही गई।

सोनी का कहना था कि परिजन और गांव वाले ही तय करेंगे कि रविवार को शव का अंतिम संस्कार करेंगे या शव को सड़क पर रखकर किसी तरह का विरोध का विचार ग्रामीण कर रहे हैं, फिलहाल उन्हें इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन घटना को लेकर संदेह जरूर है। परिजनों और कुछ चश्मदीदों ने जैसा बताया है, इससे तो प्रतीत होता है कि मुठभेड़ फर्जी है। मृतक रितेश पूर्व में नक्सली था, लेकिन वह संगठन छोड़कर बीते तेरह महीने से गांव आकर रह रहा था। उसके शरीर पर गोलियों के निशान भी इस ओर इंगित करते हैं कि उसे काफी नजदीक से गोली लगी है। वे इस मामले को लेकर सड़क से लेकर न्यायालय तक लड़ाई लड़ेंगी ताकि बस्तर में फर्जी मुठभेड़ों के नाम पर खून-खराबा बंद हो।

सोनी सोरी ग्रामीणों के साथ

इधर किकलेर पहुंचे जनता कांग्रेस के जिला अध्यक्ष विजय झाड़ी का कहना था कि प्रथम दृष्टया उन्हें भी यह मुठभेड़ फर्जी लग रही है। घटना के संबंध में मीडिया में आई खबरें और परिजनों एवं प्रत्यक्षदर्शियों के कथनानुसार यह मुठभेड़ फर्जी प्रतीत हो रही है। उनका कहना था कि कल रितेश पुनेम का शव किकलेर स्थित उसके परिजन के घर लाया गया था। इस दौरान पुलिस की तरफ से कफन-दफन की तैयारी भी की गई थी। चूंकि आदिवासी समाज में शव के कफन-दफन को लेकर कुछ नियम, रीति रिवाज भी हैं, तो मेरा मानना है कि पुलिस की तरफ से शव दफन को लेकर इस तरह की जल्दबाजी उचित नहीं थी।

ग्रामीण और परिजन

रही बात मुठभेड़ की तो प्रत्यक्षदर्शियों एवं परिजनों से मेरी चर्चा भी हुई, जिसमें उनका कहना था कि रितेश नक्सल संगठन से अवश्य जुड़ा था, लेकिन बीते डेढ़ साल से वह अपने गांव आकर अपने मामा-मामी के साथ रह रहा था। वह संगठन छोड़ चुका था और खेती बाड़ी कर अपना गुजारा कर रहा था। ऐेसे में एक निहत्थे आदिवासी को पकड़कर गोली मारने के आरोप जिस तरह से परिजन और कुछ प्रत्यक्षदर्शी लगा रहे हैं, कहीं ना कहीं पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठते हैं। इसलिए आदिवासी हितों को ध्यान में रखते हुए जनता कांग्रेस प्रदेश की सरकार, न्याय व्यवस्था से मांग करती है कि कैका मुठभेड़ की निष्पक्ष जांच हो, जिससे सच्चाई जनता के सामने आ सके।

(मोसला से लौटकर गणेश मिश्रा की रिपोर्ट।)

Janchowk
Published by
Janchowk