केएमसी चुनाव बनेगा टीएमसी के हृदय परिवर्तन का बैरोमीटर

कोलकाता नगर निगम के चुनाव की तैयारी अब शबाब पर है। इधर निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है जिस पर कल सुनवाई हुई। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस का सवाल है कि सिर्फ कोलकाता नगर निगम ही क्यों? बाकी सौ से अधिक नगर पालिका और नगर निगमों में चुनाव क्यों नहीं कराए जाएंगे। दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस कोलकाता नगर निगम के चुनाव से अपनी छवि को बदलना चाहती है। इसलिए उसके नेता क्षमा याचना कर रहे हैं। यानी अब वोट लूट करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

तृणमूल कांग्रेस के सुप्रीमो नंबर दो एवं सांसद अभिषेक बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों के साथ एक बैठक की है। इसमें उन्होंने हिदायत दी है कि किसी को भी मतदान करने से रोका नहीं जाए। अगर कोई उम्मीदवार ऐसा करता है तो उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि तृणमूल कांग्रेस अब अपना विस्तार देश के दूसरे राज्यों में भी कर रही है इसलिए उसकी छवि बदलनी चाहिए। जाहिर है कि यह सवाल आपके जेहन में आ रहा होगा कि तीसरी बार सत्ता में आने वाले दल को अपनी छवि बदलने का ख्याल अचानक कहां से और क्यों आ गया। दरअसल 2015 में कोलकाता नगर निगम के चुनाव में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी और लोगों को मतदान करने से रोका गया था। बम और गोलियों का इस्तेमाल करने में सत्तारूढ़ दल ने कोई किफायत नहीं बरती थी। इस चुनाव के बाद भी तृणमूल कांग्रेस का हृदय परिवर्तन नहीं हुआ था।

वोट लूट करने का सिलसिला 2018 के पंचायत चुनाव में भी बदस्तूर जारी रहा था। करीब 34 फ़ीसदी सीटों पर विरोधी राजनीतिक दल उम्मीदवार ही नहीं दे पाए थे। यहां याद दिला दें कि हाल ही में त्रिपुरा में हुए पालिका चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के 34 फ़ीसदी उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत गए थे। इसके साथ ही 98 फ़ीसदी सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते हैं। बंगाल में भी 2018 के पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शन कुछ ऐसा ही रहा था। अब जाकर 2021 में हृदय परिवर्तन हुआ है। बूथ दखल करने में महारत हासिल करने वाले तृणमूल कांग्रेस के बीरभूम जिला के अध्यक्ष अणुव्रत मंडल ने सबसे पहले कहा कि इस बार के पंचायत चुनाव में किसी को मतदान करने से रोका नहीं जाएगा। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व सांसद प्रोफेसर सौगत राय कहते हैं कि 2018 में जो पाप किया था उसकी सजा 2019 में मिली थी। इस चुनाव में भाजपा को लोकसभा की 18 सीटों पर विजय मिली थी। वे कहते हैं कि अगर कुछ नगरपालिका हमारे हाथ से निकल ही जाएं तो भी कोई फर्क नहीं आता है। कहते हैं कि हमारा लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है।

सवाल उठता है कि क्या वाकई तृणमूल नेताओं का हृदय परिवर्तन हुआ है। पालिका चुनाव को लेकर हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका की सुनवाई में किए गए सवाल और जवाब के आईने में इसे परखते हैं। चीफ जस्टिस ने एडवोकेट जनरल से सवाल किया कि बाकी नगर पालिकाओं के चुनाव कोलकाता नगर निगम के चुनाव के बाद क्यों कराना चाहते हैं। उनका जवाब था कि कोलकाता में 80 फ़ीसदी से अधिक लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज लग चुके हैं। जाहिर है कि यह तर्क बेतुका है। जब विधानसभा के चुनाव मई में कराए गए थे तब कितने लोगों को वैक्सीन के दोनों डोज लग चुके थे। सच तो यह है कि तृणमूल कांग्रेस को लगता है कि कोलकाता नगर निगम के चुनाव परिणाम उनके पक्ष में आएंगे और इस तरह बाकी नगर पालिकाओं के चुनाव में मतदाताओं पर एक मानसिक दबाव बनाया जा सकेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो क्या फिर वोट लूट करने की फितरत वापस आ जाएगी।

अब एक और पहलू पर इस हृदय परिवर्तन को परखते हैं। त्रिपुरा में नगर पालिकाओं के चुनाव सेंट्रल फोर्स की मौजूदगी में कराया जाए यह मांग करते हुए तृणमूल कांग्रेस के नेता सुप्रीम कोर्ट तक गए थे। बंगाल में भी बाकी राजनीतिक दलों के नेता सेंट्रल फोर्स की मौजूदगी में चुनाव कराए जाने की मांग कर रहे हैं पर चुनाव आयुक्त इससे सहमत नहीं हैं। चुनाव आयुक्त कोलकाता और बंगाल पुलिस के सहारे ही चुनाव कराए जाने पर आमादा हैं। सवाल उठता है कि जब आपने निष्पक्ष चुनाव कराए जाने का मन बना लिया है तब चुनाव के दौरान सेंट्रल फोर्स रहे या सेना इससे क्या फर्क पड़ता है। जाहिर है कि कहीं ना कहीं खोट है। लिहाजा दूसरी कसौटी पर भी हृदय परिवर्तन खरा साबित नहीं हो पा रहा है।

बंगाल में सभी राजनीतिक दल मांग कर रहे हैं कि अगर कोलकाता नगर निगम का चुनाव होता भी है तो चुनाव परिणाम की घोषणा नहीं की जाए। सभी नगर पालिकाओं का चुनाव कराए जाने के बाद एक साथ मतगणना हो और परिणाम की घोषणा की जाए। इससे मतदाताओं पर चुनाव परिणाम का प्रभाव नहीं पड़ेगा। यही परंपरा भी है, सभी चुनाव कराए जाने के बाद एक साथ ही मतगणना की जाती है। पर राज्य के चुनाव आयुक्त ने कोलकाता नगर निगम के चुनाव के साथ ही मतगणना की तारीख की भी घोषणा कर दी है। जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक एक बार चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद अदालत उसमें दखल नहीं दे सकती है। पर बाकी नगर पालिका का चुनाव कराए जाने के साथ ही मतगणना का सवाल भी हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में है। सेंट्रल फोर्स की तैनाती का सवाल भी हाई कोर्ट में है।

हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद ही तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के इस हृदय परिवर्तन को सही मायने में परखा जा सकेगा। अगर हाई कोर्ट परिणाम की घोषणा करने पर रोक लगाता है और सेंट्रल फोर्स की मॉनिटरिंग में चुनाव कराए जाने का आदेश देता है तो क्या तृणमूल कांग्रेस के नेता इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाएंगे। अगर अपील करते हैं तो मानना पड़ेगा कि कहीं न कहीं खोट है और हृदय परिवर्तन एक ढकोसला भर है। यहां याद दिला दें कि 2013 के पंचायत चुनाव में भी सेंट्रल फोर्स एक मुद्दा बना हुआ था। तत्कालीन चुनाव आयुक्त मीरा पांडे सेंट्रल फोर्स तैनात करना चाहती थीं पर राज्य सरकार इसके  खिलाफ थी। उन्होंने हाईकोर्ट में रिट दायर की तो फैसला उनके पक्ष में आया। इसके खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी सेंट्रल फोर्स तैनात किए जाने का आदेश दिया था। अब क्या एक बार फिर सेंट्रल फोर्स मुद्दा बनेगा और राज्य सरकार फिर सुप्रीम कोर्ट जाएगी। इस बाबत राज्य सरकार का फैसला ही बताएगा कि हृदय परिवर्तन असली है या नकली।

(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जेके सिंह की रिपोर्ट।)

जेके सिंह
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