बिहार: सुखाड़ के बावजूद बाढ़ से डूबते कोसी के गांव

पटना। बिहार में मोटे-तौर पर सूखे के हालात हैं। आधा अगस्त बीत गया, पर किसी दिन भरपूर वर्षा नहीं हुई। वर्षा में कमी कहीं पचास प्रतिशत है तो कहीं साठ प्रतिशत। पर हिमालय के शिखरों पर हुई वर्षा की वजह से कोसी समेत नेपाल की ओर से आने वाली नदियों में पानी भरा है। कोसी में तो एक दिन चार लाख क्यूसेक से अधिक पानी आ गया, बराज को बचाने के लिए उसके सभी 56 फाटक खोलने पड़े। तटबंधों के भीतर बसे गांवों में भीषण बाढ़ आ गई। लोगों को भागकर तटबंधों पर शरण लेनी पड़ी।

कोसी तटबंधों के बीच में बसे गांवों के लिए बाढ़ हर साल आने वाली आपदा है। इस महीने थोड़ी बड़ी बाढ़ आ गई है। इससे अफरा-तफरी का माहौल है। सुपौल जिला के आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बाढ़ के पानी में दर्जनों गांव पूरी तरह डूब गए हैं। बाढ़ का पानी तेजी से नए इलाकों में फैल रहा है। लोगों को ऊंचे स्थान पर जाने के लिए कहा गया है।

जल संसाधन मंत्री संजय झा ने ट्वीटर पर कहा है कि कोसी बराज से 14 अगस्त की रात में चार लाख 62 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया। इतनी बड़ी मात्रा में पानी का आना अप्रत्याशित था। इससे तटबंध के बीच में बसे गांवों में थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन स्थिति पर प्रशासन की नजर है। विभागीय अधिकारी और इंजीनियर तटबंधों की लगातार निगरानी कर रहे हैं।

कोसी नदी का जलग्रहण क्षेत्र हिमालय के ऊंचे शिखरों तक फैला है। समूचे हिमालय क्षेत्र में भारी वर्षा हुई है। इसलिए कोसी में ज्यादा पानी आया है। 14 अगस्त को करीब पौने पांच लाख क्यूसेक पानी का प्रवाह होने के बाद प्रवाह कम हुआ पर अगले चार-पांच दिनों तक तीन लाख क्यूसेक पानी बहता रहा। उसके बाद प्रवाह दो लाख क्यूसेक से कम बना हुआ है।

कोसी नवनिर्माण मंच के संयोजक महेन्द्र यादव ने कहा कि कोसी तटबंधों के बीच बसे गांववालों को बचाने के लिए प्रशासन को फौरन हस्तक्षेप करने की जरूरत है। सरकारी नावों की व्यवस्था करना सबसे जरूरी है ताकि बाढ़ व कटाव में फंसे लोग सुरक्षित स्थानों पर जा सकें। तटबंधों पर पहुंचे लोगों के बीच राहत सामग्री बांटने की जरूरत है। कोसी तटबंधों के बीच करीब 320 गांव बसे हैं, जिनमें दस लाख से अधिक लोग रहते हैं।

पहाड़ पर भारी वर्षा होने से कोसी ही नहीं, बागमती, कमला बलान, लालबकेया, बुढ़ी गंडक और गंडक नदी में भी काफी पानी आया है। गंडक बराज से भी तीन लाख क्यूसेक का प्रवाह हुआ है। यही नहीं, उत्तर बिहार की तकरीबन सभी नदियां जो नेपाल से आती हैं, खतरे के निशान से ऊपर प्रवाहित हो रही हैं। इससे आसपास के गांवों में बाढ़ जैसे हालात हैं।

हालांकि इस वर्ष बिहार बाढ़ से नहीं सुखाड़ से पीड़ित है। बरसात के आरंभिक महीनों जून व जुलाई में बहुत कम वर्षा हुई। धान की रोपनी नहीं हो सकी। जुलाई के आखिर में वर्षा होने से रोपनी शुरू तो हुई, पर फसल काफी पिछड़ गई है। अगस्त में वर्षा कम ही हो रही है। इससे धान की फसल को सूखने से बचाने की चुनौती सामने है।

वर्षा का वितरण बहुत ही असामान्य रहा है। कई जगहों पर छोटे से इलाके में भारी वर्षा भी हुई है जिससे निचले इलाके में पानी भर गया है। पूर्वी चंपारण के कुछ जगह, पश्चिम चंपारण के बगहा, भागलपुर, पूर्णिया, अररिया, किशनगंज, कटिहार, सहरसा, शिवहर और सुपौल जिलों में ऐसी घटनाएं हुई हैं। आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, वर्षा का पानी कई जगहों पर गांवों में इकट्ठा हो गया है। राजमार्गों पर दो-तीन फीट पानी बहने की घटनाएं हुई हैं।

भारी वर्षा से पूर्णिया में सरकारी मेडिकल कॉलेज के कुछ वार्डों समेत कई इलाकों में पानी जमा हो गया है। मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल के टीकाकरण केन्द्र में पानी चला गया है, अगर कुछ दिन पानी जमा रह गया तो केन्द्र की महंगी मशीनों के खराब हो जाने की आशंका उत्पन्न हो गई है।

मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में एक जून से आठ जून के बीच कुल 343.4 मिली मीटर वर्षा हुई है जो औसत वर्षापात का 39 प्रतिशत है। इस सप्ताह वर्षापात में करीब 45 प्रतिशत की कमी रहने का अनुमान है। अगले सप्ताह वर्षा होने का अनुमान है। अब अगर जोरदार वर्षा होती है तो अगली फसल में भी कठिनाई आएगी क्योंकि खेत गीले रह जाएंगे।

(अमरनाथ झा वरिष्ठ पत्रकार है और पटना में रहते हैं।)

अमरनाथ झा
Published by
अमरनाथ झा