ग्राउंड रिपोर्ट: चंदासी कोयला मंडी में हाड़ कंपाती ठंड और धूलकणों के बीच रोटी के लिए जूझते मजदूर

चंदौली। दिन निकलने के बाद भी कोहरे की परते पूरे आसमान से लेकर धरा तक चारों दिशाओं को अपने आगोश में लिए हुए बढ़ती ही जा रही थी। ऊपर से कोयले के उड़ते धूलकणों से समूचा इलाका गहन अंधेरे में डूबा हुआ था। मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अर्ध रात्रि का असर है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था दिन निकल चुका था।

सुबह के तकरीबन 9 बजकर 45 मिनट का समय हो चला था। रामकुबेर अपनी पत्नी के साथ कोयला ढोने में जुटे हुए थे। साथ में दो-चार और कामगार भी उनके साथ कोयला ढोने में लगे थे। सभी कोयले के ढेर से कोयला उठा कर दस चक्का ट्रक पर जल्दी जल्दी लाद रहे थे।

सर पर मोटी सी पगड़ी, (ताकि कोयले का तगाड़ सर पर रखने में तकलीफ़ न हो) पैरों में प्लास्टिक का जूता, बदन पर कोयले से सना हुआ मैला-कुचैला मोटा कमीज इस हाड़ कंप-कंपाती ठंड से राहत पाने के लिए कितना उपयोगी हो सकता है आसानी से समझा जा सकता है। बावजूद इसके सभी पेट और परिवार की खातिर ठंड की परवाह किए बिना कोयला ढोने में लगे हुए थे।

रामकुबेर बिहार के सिवान जिले के रहने वाले हैं। वह अपने कुनबे यानी पत्नी, दो छोटे भाइयों के साथ पिछले बारह साल से चंदासी कोयला मंडी में काम करते हुए आ रहे हैं। उनके इस काम में उनकी पत्नी रजवंती देवी भी भोजन पकाने के बाद शामिल हो जाती हैं, ताकि घर गृहस्थी की गाड़ी को आसानी से खींचा जा सके।

रामकुबेर कहते हैं, “जी तो नहीं करता है इस कड़ाके की हाड़तोड़ ठंड में काम करने का, लेकिन क्या किया जाए पापी पेट का सवाल है। करेंगे नहीं तो खायेंगे कहां से?”

यह कटु सच्चाई उस कोयला मंडी की है, जिसे एशिया की सबसे बड़ी कोयला मंडी होने का तमगा हासिल तो जरूर है, लेकिन जिन मजदूरों के बल पर इसे एशिया की सबसे बड़ी कोयला मंडी कहा जाता है वह ख़ुद यहां दो वक्त की रोटी के लिए ठंड में जद्दोजेहद करते हुए नज़र आते हैं। बुझे हुए चेहरों पर परेशानी के भाव, पेट की आग बुझाने के लिए मौसम की मार, सांसों में घुलते प्रदूषण और बीमार बनाते कोयले के कणों से बेपरवाह मजदूरों का कोई पुरसाहाल हाल नहीं है।

हाड़ कंपाने वाली ठंडी में मजदूर की सुनने वाला कोई नहीं है। कहने को कोयला मंडी में मजदूरों के दो अध्यक्ष हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक इन मजदूरों की व्यथा को कौन पहुंचाए यह यक्ष प्रश्न है। स्थानीय सांसद, विधायक भी इनकी सुध लेने को तैयार नहीं हैं।

दरअसल, बेबसी लाचारी से भरी यह कहानी सिर्फ रामकुबेर की ही नहीं है, बल्कि हर उस मजदूर की है जो चंदासी कोयला मंडी में हाड़ कंपा देने वाली ठंड में पेट और परिवार के लिए जद्दोजेहद कर रहा है। उसके लिए कड़ाके की ठंड हो या तन को झुलसा देने वाली गर्मी सभी एक बराबर है। उनकी मानों आदत सी बन गई है कठिन परिस्थितियों में भी काम करने की।

बिहार के श्रमिकों के दम पर गुलजार है कोयला मंडी

देश के प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटे जनपद चंदौली की चंदासी कोयला मंडी कभी वाराणसी का हिस्सा हुआ करती थी। बाद में वाराणसी से कटकर चंदौली जनपद के रूप में सृजित होने वाले चंदौली जनपद की अधिकांश सीमा बिहार से लगी हुई है। चंदासी कोयला मंडी में सर्वाधिक बिहार के ही रहने वाले श्रमिकों की संख्या देखने में आती है।

मौजूदा समय में तकरीबन चार हजार श्रमिक यहां कोयला कारोबार में पसीना बहाते हुए दिख जायेंगे। पूर्व में यह संख्या इससे भी दोगुनी रही है, लेकिन देश में लाकडाऊन लगने के बाद घर को लौटने वाले अधिकांश मजदूरों ने बाद में महानगरों की ओर रुख कर लिया तो कुछ लोगों ने दूसरे कामों को चुन लिया।

चंदौली जनपद से लगने वाली बिहार सीमा के निकटवर्ती जिलों के आलावा बड़ी संख्या में यूपी के पूर्वांचल के भी मजदूर कोयला मंडी में रोटी की खातिर पसीना बहाते हैं। इनमें सबसे ज्यादा बिहार राज्य के ही श्रमिक हैं।

स्थानीय पत्रकार अशोक कुमार जायसवाल बताते हैं कि “श्रमिकों के दम-खम पर यहां करोड़ों का कोयला कारोबार होता है, फिर भी यहां का मजदूर फटेहाल बना हुआ है। अपवाद स्वरूप छोड़ दिया जाए तो अधिकांशतः मजदूर बदहाली के दौर से गुजरते हुए किसी प्रकार जीवन यापन कर रहे हैं। जिनकी दीन दशा की सुधि कोई भी लेने नहीं आता है।”

नुमाइंदे भी बने हुए हैं उदासीन

चंदासी कोयला मंडी से पूर्वांचल सहित कानपुर, कन्नौज, उरई, जालौन, फतेहपुर, कौशांबी, प्रयागराज, बांदा, एटा, उन्नाव इत्यादि पश्चिम के जिलों में भी कोयले की आपूर्ति की जाती है। ईट भट्ठा से लेकर अन्य कल कारखानों के लिए चंदासी कोयला मंडी से कोयले की खेप भेजी जाती है।

करोड़ों के कारोबार से गुलजार रहने वाली कोयला मंडी में सुविधाओं की बात करें तो बदहाली के सिवाय कुछ भी नज़र नहीं आता है। कोयला मंडी में काम करने वाले श्रमिक कोयले के उड़ते धूलकणों से बीमार पड़ रहें हैं। धूलकणों से बचाव के लिए निरंतर पानी का छिड़काव व सड़कों पर झाड़ू लगाने का प्रावधान है लेकिन इसके अभाव में मजदूर विभिन्न बीमारियों की गिरफ्त में आ जा रहे हैं।

स्वास्थ्य विभाग की माने तो कोयले के धूलकणों से कई बीमारियों को बढ़ावा मिलता है। इनमें स्वांस रोग से लगाकर टीबी रोग की संभावना बढ़ जाती है। धूल के कण हवा के जरिए स्वांस के रास्ते से होते हुए फेफड़े को प्रभावित करतें हैं।

ठंड से बचाव के नहीं हैं इंतजाम, श्रमिकों ने किया प्रदर्शन

चंदासी कोयला मंडी में काम करने वाले मजदूर अपनी गरीबी और बेबशी पर आंसू बहा रहे हैं। कोयला मंडी में काम करने वाले सिकन्दर सिंह, रामनरेश प्रसाद, जय प्रसाद, गोपाल कहते हैं, “कोयला मंडी में काम करने वाले लोगों की जिला प्रशासन भी खोज खबर नहीं ले रहा है। मौजूदा समय में पड़ रही कड़ाके की ठंड में जान पर खेलकर मजदूर कोयला लोडिंग कर रहे हैं। जहां न तो समुचित अलाव की व्यवस्था की गई है और ना ही कोई छांव की।”

वो कहते हैं कि “खुले आसमान के नीचे कोयला लोडिंग होने से मजदूर मौसम के थपेड़ों को सहते आ रहे हैं। जिला प्रशासन यदि नहीं चेता तो ठंड से कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है।”

मंगलवार, 16 जनवरी 2024 को चंदासी कोयला मंडी में लेबर कोल उद्योग मजदूर संघ के अध्यक्ष केशर सिंह कुशवाहा की अध्यक्षता में मजदूरों ने आंदोलन कर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अपनी व्यथा-कथा सुनाई।

इस दौरान कोयला मंडी अध्यक्ष और जिला प्रशासन को निशाने पर लेते हुए मजदूरों ने कहा कि मजदूरों के दम-खम पर लग्जरी वाहनों में दौड़ने वाले कोयला कारोबारी और कोयला मंडी के अधिकारी भी मजदूरों के हितों की अनदेखी करते हुए आ रहे हैं।

समस्याओं को किया जा रहा नजरंदाज

चंदासी मंडी में मौजूदा दौर में तकरीबन चार हजार से ज्यादा मजदूर काम करते हैं। मुखिया मेठ, डोम मेठ, मनू मेठ, महेश, गजानन्द, माधव, दीपक इत्यादि मजदूर एक स्वर में कहते हैं कि “प्रत्येक वर्ष मजदूरों को कंबल और दवाओं का फ्री में वितरण किया जाता था, किंतु इस वर्ष ठंड अपने चरम पर है, लेकिन अभी तक मजदूरों को कुछ भी नसीब नहीं हो पाया है।”

मजदूरों की माने तो ठंड में उनके लिरए मजदूरी करना बहुत बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। मजदूरों का कहना है कि कोयला मंडी अध्यक्ष एवं जिला प्रशासन के लोग चाहें तो उनकी समस्याओं का समाधान हो सकता है, किंतु मजदूरों को नजरंदाज कर सभी अपनी झोली भरने में जुटे हैं।

उपेक्षा और बदहाली की दास्तान सुनाते हुए कोयला मंडी के मजदूरों का कहना है कि “ऐसा भी नहीं है कि उनकी समस्या किसी को दिखलाई नहीं देती है। सभी को दिखाई देती है, बावजूद इसके सभी नजरंदाज कर जाते हैं।

चेतावनी भरे लहजे में मजदूर कहते हैं “यदि उनकी समस्याओं का समय रहते समाधान नहीं किया गया तो वह आन्दोलन को बाध्य होंगे और जिसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी कोल मंडी अध्यक्ष और जिला प्रशासन की होगी।”

दिखावा साबित हो रही है मुफ्त क्लिनिक

“जिला प्रशासन इस ठंड में कम से कम लकड़ियां गिरवा दे तो हम लोगों को बहुत राहत मिल जाएगी।” यह कहना है उन मजदूरों का, जो इस कड़ाके की ठंड में पेट की आग बुझाने के लिए दिन रात काम करने में जुटे हुए हैं।

मजदूरों की माने तो जबसे चंदासी कोयला मंडी में दो-दो संगठन बने हैं तभी से उन लोगों की समस्याएं भी बढ़ गई हैं। उन्हें दो संगठनों के बीच पीसते हुए अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

मंडी में दिखावे के लिए मुफ्त क्लिनिक तो जरूर खोला गया है, किंतु उसमें न तो कोई डॉक्टर बैठते हैं न ही कोई दवा मिलती है। जो सिर्फ दिखावा साबित हो कर रह गया है। कोयला मंडी के मजदूर किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मुफ्त क्लिनिक की बजाय निजी चिकित्सालय की शरण लेने को विवश होते हैं।

स्वयंसेवी संस्थाओं ने भी किया निराश

जिले भर में घूम-घूम कर ठंड के दिनों में कम्बल और दवा वितरण का दिखावा कर फोटो खिंचवाने वाले उन स्वयंभू संगठनों और उनसे जुड़े लोगों के प्रति भी मजदूर खफा दिखाई देते हैं। मजदूरों की माने तो ऐसे लोग कोयला मंडी में कब दिखलाई देंगे। वह उनकी राह ताकते हैं पर ऐसे लोगों को कोयला मंडी में आते नहीं देखा गया है। ना ही ऐसे लोगों को हम (मजदूर) दिखाई पड़ते हैं कि कैसे हमलोग (मजदूर) दिन-रात गुजार रहे हैं।

कोयला मंडी के मजदूरों की समस्याओं के बाबत कोयला मंडी के अध्यक्ष धर्मराज यादव बड़े ही साफगोई से कहते हैं कि हमारे संज्ञान में मजदूरों की समस्याओं से संबंधित जानकारी आई है। हम लेबर मेठ से बात करके जहां तक संभव होगा उनकी मदद करेंगे। रहा सवाल मजदूरों को फ्री दवा और कम्बल वितरण का तो वह (मजदूर) जिस डिपो में मजदूरी करते हैं उनके डिपो होल्डर की जिम्मेदारी बनती है कि वह उनकी समस्या को दूर करे।

उन्होंने कहा कि हम भी प्रयास करके कोई न कोई व्यवस्था करेंगे, ताकि मजदूरों को ठंड से राहत मिल जाए। दूसरी ओर कोयला मजदूर संघ के अध्यक्ष केशर मेठ कहते हैं कि मजदूरों की उपेक्षा क्षम्य नहीं है। जरूरत पड़ी तो मजदूरों के हक अधिकार को लेकर आंदोलन की राह पकड़नी पड़ेगी।

(चंदौली के कोयला मंडी चंदासी से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

संतोष देव गिरी
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संतोष देव गिरी