पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट से कुछ सीखें हमारे सुप्रीम जज साहबान

कुछ खबरें ऐसी भी आती हैं, जो आपका उत्साह बढ़ाती हैं, प्रेरणा देती हैं। अगर दूसरे देश की खबर हो तो दिल में हूक उठती है कि काश हमारे देश भारत में ऐसा ही हो। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को जो हुआ, उसने मेरे जैसे तमाम लोगों के दिल में वहां के जजों की इज्जत बढ़ा दी है। पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के जज साहबान जिस मानक को छू चुके हैं, उसके पड़ोसी मुल्क भारत में यहां की अदालतों को उस स्तर तक पहुंचने में वर्षों लगेंगे। इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा गांधी की सत्ता को चुनौती देने वाले जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा के बाद कोई ऐसा जज भारत में सामने नहीं आया जिसने सत्ता को चुनौती दी हो। इसके बनिस्बत पाकिस्तान की अदालतों के बारे में तमाम सूचनाएं सामने आती रहती है। पाकिस्तान के पूर्व चीफ जस्टिस इफ्तिखार चौधरी ने जनरल परवेज मुशर्रफ को जिस तरह कटघरे में खड़ा किया था, उसे कौन भूल सकता है।

क्या हुआ अब पाकिस्तान में

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले रहीम यार खान कस्बे में भीड़ द्वारा हमला किए गए हिंदू मंदिर की सुरक्षा में नाकाम रहने के लिए पंजाब पुलिस को शुक्रवार (6 अगस्त 2021) को फटकार लगाई और दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी के साथ-साथ मंदिर फिर से बनाने का आदेश दिया।

बुधवार को, पाकिस्तान के भोंग कस्बे में सैकड़ों लोगों ने मंदिर में तोड़फोड़ की थी और सुक्कुर-मुल्तान मोटरवे (एम -5) को अवरुद्ध कर दिया था। दरअसल, लोग इस बात पर नाराज थे कि जिस नौ साल के हिन्दू लड़के ने एक मदरसे में कथित तौर पर पेशाब कर दिया था, उसे स्थानीय अदालत ने जमानत दे दी थी। पाकिस्तान हिंदू परिषद के संरक्षक डॉ. रमेश कुमार ने यह मामला उठाया था लेकिन पाकिस्तान के चीफ जस्टिस (सीजेपी) गुलजार अहमद ने गुरुवार को इस घटना का खुद संज्ञान लिया।

आला अफसरों को तलब किया

सीजेपी गुलजार अहमद ने पंजाब (पाकिस्तान) के मुख्य सचिव और पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) इनाम गनी को घटना की रिपोर्ट के साथ अदालत में पेश होने के लिए तलब किया था। चीफ जस्टिस ने उन्हें कोर्ट में देखते ही टिप्पणी की कि मंदिर पर हमला किया गया। प्रशासन और पुलिस क्या कर रही थी ?

गनी ने जवाब दिया कि सहायक आयुक्त और सहायक पुलिस अधीक्षक घटनास्थल पर मौजूद थे। गनी ने कहा, “प्रशासन की प्राथमिकता मंदिर के आसपास के 70 हिंदू घरों की सुरक्षा करना है।” उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि प्रथम सूचना रिपोर्ट में आतंकवाद की धाराएं जोड़ी गई हैं।

इस पर चीफ जस्टिस पाकिस्तान ने यदि पुलिस कमिश्नर, डीसी और डीपीओ जिम्मेदारी नहीं निभा सकते हैं, तो उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि “पुलिस ने तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं किया।”

यह बताए जाने पर कि मामले में अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, इसी बेंच के जस्टिस काजी अमीन ने कहा: “पुलिस अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रही। अब अगर गिरफ्तारी भी होती है, तो पुलिस संदिग्धों को जमानतपर रिहा करेगी और पक्षों में सुलह कराने की कोशिश करेगी”।

चीफ जस्टिस की कीमती टिप्पणी पढ़िए

चीफ जस्टिस ने कहा, “तीन दिन बीत चुके हैं (घटना के बाद से) और एक भी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया गया है, यानी पुलिस इस घटना को लेकर गंभीर नहीं थी। अगर पुलिस बल प्रोफेशनल होती तो मामला अब तक सुलझ चुका होता।” चीफ जस्टिस गुलजार अहमद पाकिस्तान ने टिप्पणी की, “एक हिंदू मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था। सोचें कि उन्होंने क्या महसूस किया होगा। कल्पना कीजिए कि मुसलमानों की प्रतिक्रिया क्या होती, अगर एक मस्जिद को ध्वस्त कर दिया जाता।”

अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल सोहेल महमूद ने बेंच को सूचित किया कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने घटना का संज्ञान लिया है। सीजेपी ने कहा कि प्रधानमंत्री को अपना काम जारी रखना चाहिए लेकिन अदालत मामले के कानूनी पहलुओं पर गौर करेगी। अदालत ने कहा कि ऐसी हरकत करने वाले अपराधी बड़े पैमाने पर समस्याएँ पैदा कर सकते हैं।

अदालत ने कहा कि बड़े पैमाने पर अपराधी हिंदू समुदाय के लिए समस्या पैदा कर सकते हैं। अदालत ने पाकिस्तान सरकार से आश्वासन मांगा कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

अदालत ने रहीम यार खान आयुक्त के प्रदर्शन पर भी असंतोष व्यक्त किया और एक सप्ताह के भीतर आईजीपी और मुख्य सचिव से प्रगति रिपोर्ट मांगी। मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को होगी।

गोगोई भी याद आते हैं

इसके बरक्स हमारे यहां रंजन गोगोई जैसे लोग भारत के चीफ जस्टिस रहे हैं, जिनकी कलम से निकले फैसले आज भी विवादास्पद बने हुए हैं। अयोध्या पर रंजन गोगोई का फैसला जिन्दगी भर उनका पीछा करता रहेगा। न्यायपालिका के इतिहास में यह फैसला विवादास्पद बन चुका है, जिसकी चर्चा विदेशों में खूब हुई। इसी तरह भारत में अल्पसंख्यकों और कश्मीर के तमाम मुद्दों पर आए अदालती फैसले बहस के घेरे में रहे हैं। 

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

यूसुफ किरमानी
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