लॉकडाउन में महंगाई से पिसती आम आदमी की जिन्दगी

पश्चिम बंगाल में लॉकडाउन लगे हुए लगभग एक महीने से ज्यादा हो गया है। इस दौरान धीरे-धीरे करके लॉकडाउन में ढील दी जा रही है। अभी तक कई तरह की ढील दी गई है। जैसे राशन दुकान, सब्जी और मांस की दुकान खोलने की अनुमति तो पहले दिन दी दे गई थी बशर्ते इसके लिए कुछ नियम निर्धारित कर दिये गए गये हैं। समय के साथ धीरे-धीरे करके कई तरह की ढील दी जा रही है। जिसमें आईटी कंपनियों को विभिन्न शिफ्ट में कम संख्या के सात खोलने की अनुमति भी शामिल है।

खबर लिखे जानें तक राज्य में 14 लाख कोरोना के मामले सामने आये हैं। जिसमें से 13,42,400 एक्टिव केस और 16,034 लोगों की मौत होने के आकड़े हैं। पिछले 13 दिनों में 1,93,577 कोरोना के केस सामने आए हैं। इन सबके बीच राज्य में पूरा परिवहन तंत्र ही लगभग बंद है। जिसके कारण राज्य में कई लोगों को परेशानी हो रही है। जनता किसी भी जरुरी काम से जाने के लिए अतिरिक्त पैसे देने को मजबूर है। अब ऐसे में गरीब लोग करें तो करें क्या?

परिवहन के तौर पर कुछ सरकारी बसें और ऑटो रिक्शा का संचालन कर रहे हैं। इसके अलावा निजी कंपनियों के ओला, उबर की टैक्सी और निजी टैक्सी का संचालन हो रहा है। महामारी के दौरान अधिकतर लोग महंगे किराये का वाहन करने में असमर्थ हैं। गरीब लोग जो मिनी बस में 10 रुपए देकर सफर कर रहे थे। अब उन्हें  10 रूपये की जगह 30 रुपए तक देना पड़ा है। इससे साफ है कि कोरोना की आड़ में आम जनता त्राहिमाम है।

अभी कुछ दिन पहले की बात मैं आसनसोल से कोलकाता के लिये आई। इस दौरान एक ऑटो वाला और एक प्राइवेट टैक्सी से पाला पड़ा। हमेशा लोगों से गुलजार रहने वाला हावड़ा स्टेशन की रौनक ही खत्म हो गई है। दौड़ने वाली टांगे अब धीरे-धीरे से आगे बढ़ रही हैं। किसी को आगे नहीं निकलना है। स्टेशन से बाहर निकलते ही आपको सिर्फ टैक्सी वाले ही नजर आएंगे। बसें तो चल नहीं रही हैं। एकाध जो बसें चल रही हैं वह जनता के लिए नाकाफी है। मैं स्टेशन से जैसे ही बाहर निकली। टैक्सी वाले लोगों की इंतजार में बस यही पूछते कहां जाना है। मेरे पास भी एक टैक्सी वाले ने आकर पूछा मैडम कहां जाना है। मैंने अपने गंतव्य स्थान के बारे में बताया, जैसे ही मैंने बताया उसने तुरंत 500 रुपए भाड़ा बताया। ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए। भैय्या इतना भाड़ा तो नहीं है अभी तो कुछ दिन पहले ही आये थे तो 220 रूपये किराया था। टैक्सी वाला भी बड़ी हैरानी से कहता है मैडम वो दिन गए। ओला करके भी देख लीजिए उसमें भी इतना ही भाड़ा है। सच में मैंने जैसे ही ओला का ऐप खोला उसका हाल भी कुछ ऐसा ही था। सच में भाड़ा उतना ही था, जितना टैक्सी वाला कह रहा था।

बड़ी मुश्किल से टैक्सी वाले ने एक और सवारी को खोजा और उसके बाद कम भाड़े पर मुझे लेकर गंतव्य स्थान पर पहुंचाया। टैक्सी पर बैठते ही मैंने ड्राइवर से पहला सवाल यही पूछा इतना भाड़ा क्यों? उसने छूटते ही कहा मैडम पेट्रोल 100 रुपए लीटर हो गया। आपको जहां से मैं बैठाकर ला रहा हूं। वहां पॉर्किंग का बिल देना होता है। रास्ते में पुलिस वाले मिलते हैं उनको भी देना पड़ता है। मुश्किल 10 से 12 ट्रेनें स्टेशन पर आ रही हैं। उसमें में भी सभी सवारी तो मुझे नहीं मिलेगी न। तो ऐसे में मेरे पास एक ही विकल्प बचता है कि मैं आपसे पैसे लूं, क्योंकि मैं अपने घर से तो पैसे लगाऊंगा नहीं।

ऐसे में सोचने वाली बात है, राज्य में सबसे सस्ता परिवहन बसें बंद हैं। टैक्सी, ऑटो वाले अपने-अपने हिसाब से मनमाना भाड़ा ले रहे हैं। जिसका सीधा असर आम जनता पर पड़ रहा है। इस बारे में अन्य ऑटो चालक गुरमुख सिंह का कहना है कि राज्य सरकार ने सिर्फ 10 बजे तक ही बाहर जाने की अनुमति दी है। जिन लोगों को बहुत जरुरी काम है वही बाहर निकल रहे हैं। जिसका परिणाम है कि किसी दिन तो एक ही सवारी मिलती है। पेट्रोल 100 और डीजल 90 रुपए का हो गया है। कई बार एक अकेले पैसेंजर को लेकर जाना होता है। अब ऑटो वाले भी इसमें क्या करें। हमलोगों के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। सरकार ने तो लॉकडाउन लगाकर अपना पल्ला जनता से झाड़ लिया है। लेकिन आम लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं। अपने घर परिवार से पल्ला नहीं न झाड़ सकते हैं। रोटी और बुनियादी जरूरत के लिए मजबूरन में ही बढ़ी हुई महंगाई के साथ है।  

(आसनसोल से पूनम मसीह की रिपोर्ट।)

पूनम मसीह
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पूनम मसीह