सब्जी व फल उत्पादक किसानों को फसल क्षति का मुआवजा दे सरकार: माले

पटना। भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि लॉक डाउन के कारण सब्जी व फल उत्पादक किसान बर्बाद हो गए हैं। हालत यह है कि टमाटर, भिंडी 2 रुपए किलो सहित अन्य साग-सब्जी भी उन्हें कौड़ी के मोल बेचनी पड़ रही है। तरबूज, लालमी आदि फल भी कोई खरीदने वाला नहीं है। कर्ज लेकर फसल उगाने वाले किसानों की तो और भी बुरी हालत है। लागत और मुनाफा की बात तो छोड़ ही दें, सब्जी तोड़ने तक की मजदूरी नहीं निकल पा रही है। सरकार से हम मांग करते हैं कि सभी सब्जी-फल उत्पादक किसानों को फसल क्षति का मुआयना करके तत्काल मुआवजा प्रदान किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि बिहार सरकार के तमाम दावों के विपरीत गेहूं खरीद की हालत भी बुरी है। सरकारी रेट (1975 रू प्रति क्विंटल) पर कहीं भी गेहूं की खरीद नहीं हो रही है। व्यापारी किसानों को लूटने में लगे हुए हैं। मकई का न्यूनतम समर्थन मूल्य (1850) पर खरीद की घोषणा के बावजूद कहीं क्रय केंद्र नहीं खुला है। सरकार ने इस बार दाल और चना खरीदने की भी घोषणा की थी, लेकिन अभी तक कहीं आरंभ नहीं हो सका है। निजी व्यापारी छोटा मसूर 7000 रू तो चना 6500 रू प्रति क्विंटल खरीद रहे हैं, वहीं सरकार ने इसकी कीमत महज 5100 रू प्रति क्विंटल तय की है। ऐसी स्थिति में कोई किसान आखिर क्यों अपना दलहन सरकार को बेचने जाएगा? जाहिर है कि इसमें सरकारी खरीद प्रणाली को खत्म करने की ही मंशा झलकती है। 

लॉकडाउन के कारण किसानों के साथ-साथ दैनिक मजदूरों की भी स्थिति लगातार खराब हो रही है। काम व रोजगार के अभाव के कारण एक बड़ी आबादी भुखमरी के कगार पर आ खड़ी हुई है। हम सरकार से मांग करते हैं कि मनरेगा में काम का सृजन किया जाए और 50 कार्यदिवस के बराबर मजदूरी दी जाए। भोजपुर में विगत 39 दिनों के दौरान 39 करोड़ रू की निकासी मनरेगा मद में हुई है, लेकिन कहीं भी काम नजर नहीं आता है। इसके पीछे संभवतः बड़ा भ्रष्टाचार छुपा हुआ है। 24 मई को भोजपुर सहित पूरे बिहार में मनरेगा में काम के सवाल पर पंचायत के रोजगार सेवक को सामूहिक आवेदन दिया जाएगा।

बिहार सराकर द्वारा चलाई जा रही सामुदायिक किचन योजना दिखलाने को कुछ और हकीकत में कुछ और है। बेगूसराय में मुख्यमंत्री के वर्चुअल निरीक्षण के दौरान अधिकारियों ने किचन हॉल की खूब साज-सज्जा की, शारीरिक दूरी का ख्याल रखा व अच्छे भोजन की व्यवस्था की। अगले दिन वहां से सर्वथा अलग तस्वीर आई। बैठने तक की जगह किचन में नहीं थी और न ही किसी प्रकार की शारीरिक दूरी का पालन हो रहा था। भोजन की क्वालिटी भी निम्न प्रकार की पाई गई। भाकपा-माले ने कहा है कि मुख्यमंत्री को इस पर संज्ञान लेना चाहिए, चल रहे सामुदायिक किचन में बेहतर भोजन की व्यवस्था की गारंटी करनी चाहिए तथा पूरे राज्य को गुमराह करने वाले अधिकारियों पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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