मणिपुर: हिंसा भड़कने के पहले से ही सरकार के निशाने पर थे कुकी

नई दिल्ली। साल 2023 में मणिपुर ने बहुत कुछ देखा। दो समुदायों के बीच हुए संघर्ष और हिंसा में 200 से अधिक लोग मारे गए और लगभग 60,000 लोग बेघर हो गए।

हालांकि हिंसा 3 मई को भड़की थी लेकिन उससे पहले फरवरी माह में चुराचांदपुर और कांगपोकपी के पहाड़ी जिलों में उस समय तनाव फैल गया जब राज्य सरकार ने आरक्षित वन क्षेत्रों से कुकी समुदाय के लोगों को हटाने की कोशिश की।

फरवरी माह के अंत में राज्य सरकार ने आरक्षित वन इलाकों पर अतिक्रमण करने को लेकर चुराचांदपुर जिले में कुछ कुकी घरों को ध्वस्त कर दिया था, जिसका कुकी-ज़ो समुदाय के सदस्यों ने विरोध किया था।

मार्च में कांगपोकपी जिले में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं। प्रदर्शनकारी “आरक्षित वनों, संरक्षित वनों और वन्यजीव अभयारण्य के नाम पर आदिवासी जमीन के अतिक्रमण” के खिलाफ रैली निकाल रहे थे।

झड़पों के बाद राज्य कैबिनेट ने दो कुकी संगठनों कुकी नेशनल आर्मी और ज़ोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी के साथ त्रिपक्षीय सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) बातचीत से यह कहते हुए हाथ खींच लिया कि “राज्य सरकार वन संसाधनों की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों पर कोई समझौता नहीं करेगी।”

इस फैसले से सरकार और कुकी-जो समुदाय के बीच का तनाव और बढ़ गया। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के खिलाफ जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन किए गए। खासतौर पर अप्रैल माह में चुराचांदपुर जिले में हुए विरोध-प्रदर्शन ने हिंसक रुप ले लिया।

नवगठित चुराचांदपुर जिला स्थित इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने ग्रामीणों को जंगलों से बेदखल करने के विरोध में 28 अप्रैल को आठ घंटे के बंद का आह्वान किया।

तनाव फैलने पर मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) की ओर से 3 मई को पहाड़ी जिलों में एक ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था।

मणिपुर हाई कोर्ट ने एक आदेश पारित कर राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मैतेई समुदाय को एसटी श्रेणी में शामिल करने के लिए केंद्र से सिफारिश करे। राज्य में मैतेई समुदाय की आबादी लगभग 53 प्रतिशत है और वे राज्य के घाटी क्षेत्रों में रहते हैं, जो इसके कुल क्षेत्रफल का लगभग नौ प्रतिशत है।

हालांकि रैली नागा-बहुल पहाड़ी जिलों में शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गई। चुराचंदपुर जिला मुख्यालय शहर में 15 हजार से अधिक प्रदर्शनकारी एक सार्वजनिक मैदान में इकट्ठा हुए थे जहां एक गैर-आदिवासी ड्राइवर के साथ मारपीट की गई। जिसके बाद हालात और बिगड़ गए।

बाद में दिन में हजारों की संख्या में लोगों ने चुराचांदपुर और बिष्णुपुर जिलों के तोरबुंग और कांगवई के गैर-आदिवासी गांवों पर हमला कर दिया। उसी रात तेंगनौपाल जिले के सीमावर्ती शहर मोरेह में भी कई घरों में आग लगा दी गई।

राज्य सरकार ने “शांति और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए” मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को तुरंत निलंबित कर दिया। 5 मई से ब्रॉडबैंड सेवाएं भी बंद कर दी गईं। इंफाल घाटी में कुकी इलाकों और संपत्तियों पर जवाब में क्रूर हमले किए गए। भीड़ ने इम्फाल पूर्वी जिले के खाबेइसोई में 7वें मणिपुर राइफल्स परिसर पर हमला कर दिया और सैकड़ों हथियार लूट लिए।

3 मई की रात को चुराचांदपुर और मोरेह सीमावर्ती शहर में मैतेई समुदाय को निशाना बनाया गया। सैकड़ों घर जमींदोज हो गए। अधिकारियों ने कुछ घंटों बाद सभी नौ प्रभावित जिलों में पूरी तरह से कर्फ्यू लगा दिया।

इसके बाद हिंसा और आगजनी की छिटपुट घटनाएं हुईं। इंफाल पश्चिम जिले के नागमपाल इलाके में भीड़ ने भाजपा विधायक वुंगज़ागिन वाल्टे और उनके ड्राइवर पर हिंसक हमला किया। हिंसा में घायल ड्राइवर को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया और वाल्टे को इलाज के लिए दिल्ली ले जाया गया।

धीरे-धीरे हिंसा इम्फाल और चुराचांदपुर से इम्फाल घाटी के चारो तरफ फैल गई। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर धुंआधार गोलीबारी की और घात लगाकर हमला किया।

इसी बीच शांति बहाली के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, शीर्ष केंद्रीय अधिकारियों के साथ 29 मई को चार दिवसीय दौरे पर मणिपुर पहुंचे। जून के आखिरी हफ्ते में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी राज्य का दौरा किया था।

अगस्त के पहले सप्ताह में आईटीएलएफ ने कूकी-ज़ो समुदाय के 35 सदस्यों के शवों को दफनाने की घोषणा की जिसके बाद तनाव फिर से भड़क गया। इंफाल घाटी से हजारों लोग इकट्ठा होने लगे लेकिन सेना के जवानों ने उन्हें रोक दिया।

हालात में सुधार होने के बाद 3 दिसंबर को राज्य के ज्यादातर इलाकों में मोबाइल इंटरनेट सेवा बहाल कर दी गई। लावारिस शवों के निपटान के लिए सुप्रीम कोर्ट के दबाव में, सरकार ने दिसंबर के तीसरे सप्ताह में इम्फाल में जेएनआईएमएस और आरआईएमएस के मुर्दाघरों में पड़े 64 शवों को अंतिम संस्कार के लिए चुराचांदपुर और कांगपोकपी जिलों में भेज दिया।

15 दिसंबर को कांगपोकपी जिले के फैजंग गांव में ऐसे 19 शवों को दफनाने की व्यवस्था की गई थी। 20 दिसंबर को जातीय हिंसा में मारे गए 87 कुकी-ज़ो के शवों को चुराचांदपुर जिला मुख्यालय में दफनाया गया था।

राज्य में सात महीने से अधिक समय तक चली हिंसा के कारण परिवहन और संचार नेटवर्क तो बाधित हुआ ही साथ ही व्यवसायों, स्कूलों, कॉलेजों और दूसरे संस्थानों पर भी बुरा असर पड़ा। राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार माने जाना वाला कृषि क्षेत्र भी हिंसा का साइड इफेक्ट झेल रहा है।

इम्फाल घाटी के कारोबारियों का कहना है कि हिंसा के शुरुआती दिनों में राज्य के दोनों राष्ट्रीय राजमार्गों पर कुकी-जो संगठनों ने जो नाकेबंदी की थी उससे वो राज्य के बाहर से खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुएं नहीं ला पाए। हालांकि जुलाई तक केंद्रीय सुरक्षा बलों ने सुरक्षा प्रदान करना शुरू कर दिया था जिसके बाद माल ट्रकों का आना-जाना शुरु हो गया था।

पहाड़ों के किसान और व्यापारी डर के कारण इम्फाल घाटी में नहीं आते थे। खासतौर पर वो कुकी-बहुल इलाकों में कदम भी नहीं रखते थे। मोरे शहर के जरिये राज्य और म्यांमार के बीच फलता-फूलता व्यापार भी उस समय रुक गया जब सैकड़ों मैतेई सीमावर्ती शहर से भाग गए और इंफाल घाटी के लोग व्यापार के लिए पड़ोसी देश नहीं जा सके।

(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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