नीतीश के गले की फाँस बन गए हैं प्रवासी मजदूर

प्रवासी मजदूरों की वापसी के मामले में नीतीश सरकार फंस गई है। पहले लॉकडाउन की निर्देशावली का हवाला देते हुए वह इस मामले को केंन्द्र सरकार पर निर्भर बताती रही। प्रधानमंत्री से वीडियो कांफ्रेंसिंग में भी यह मामला उठाया। अब जब केन्द्र सरकार को दूसरे राज्यों में फंसे लोगों को वापस लाने की इजाजत दे दी, तब इतने लोगों को लाने का साधन नहीं होने का रोना रोने लगी। फिर केन्द्र ने रेल मंत्रालय के साथ तालमेल बैठाकर विशेष ट्रेन चलाने की इजाजत दे दी है, तब राज्य सरकार के सामने समस्या है कि जो लोग आएंगे, उन्हें रखा कहां जाएगा और एकांतवास की समय सीमा पूरा होने के बाद उन्हें रोजगार कहां दिया जाएगा।

और सबसे बड़ी बात यह कि इन सबका खर्च कहां से आएगा। राज्य सरकार ने अभी तक कोरोना-बचाव के कार्यों के लिए केन्द्र सरकार से विशेष अनुदान की मांग नहीं की है, न ही अपने खर्च में बचत करने की कोई उपयुक्त योजना ही तैयार कर सकी है। अब जब झारखंड सरकार की पहल पर प्रवासी मजदूरों को लेकर विशेष ट्रेन पहुंच गई है तब बिहार सरकार के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। 

कोरोना संकट की ताजा स्थिति की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने प्रखंड स्तर पर एकांतवास-केन्द्र (क्वारंटाइन सेंटर) बनाने का निर्देश ज़रूर दिया है। यह भी कहा है कि वहां गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं सुनिश्चित किए जाएं। पर इसका खर्च कहां से आएगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा है। पहले जब पैदल और दूसरे साधनों से दूसरे राज्यों से लोग आए थे, तब पंचायत स्तर पर एकांतवास केन्द्र बनाने का निर्देश तो दे दिया गया, पर उसकी व्यवस्था के बारे में कुछ नहीं बताया गया।

वह तो अपनी जिम्मेवारी समझने वाले मुखिया और पंचायत सचिवों की पहल पर कुछ जगहों पर स्थानीय स्तर पर जन-सहयोग से व्यवस्था चली। बाद में सरकार ने पांचवें वित्त आयोग के अनुदान में से एक हिस्सा कोरोना संक्रमण से बचाव के इन कार्यों में खर्च करने की अनुमति पंचायतों को दी गई। हालांकि इस बारे में स्पष्ट आदेश के अभाव में कई जगहों पर पंचायत सचिव रकम की निकासी में हिचकते रहे। अब पंचायतों के एकांतवास केन्द्रों की क्षमता और सुविधा को बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं। 

इस बीच बाहर फंसे मजदूरों, छात्रों और तीर्थयात्रियों को वापस लाने के लिए 19 वरीय अधिकारियों को नोडल पदाधिकारी नियुक्त किया गया है। वे संबंधित राज्यों में जाकर वहां फंसे लोगों के बारे में जानकारी लेंगे। पूरी सूचना आपदा प्रबंधन विभाग को देंगे और फिर विभाग उनकी वापसी की व्यवस्था करेगा। संबंधित राज्य से निकलने के पहले संबंधित व्यक्ति के स्वास्थ्य की जांच की जिम्मेवारी उस राज्य की होगी। स्वस्थ्य होने पर ही उन्हें वापस अपने राज्य में आने की इजाजत मिलेगी। 

लेकिन यह काम मजदूरों के रहने-खाने में हो रही कठिनाइयों को दूर करने में भी कर सकती थी। पर राज्य सरकार ने कुछ हेल्प लाइन जारी कर दिए और संकट में होने पर उस नंबर पर संपर्क करने के लिए कह दिया गया।                 

इन हेल्प सेंटरों में पहले तो फोन ही नहीं लगता था। इसकी खबर जब टीवी चैनलों पर आई तो हेल्प लाइन के नंबरों की संख्या बढ़ाई गई। पर हेल्पलाइन के प्रभारी केवल यह बताते रहे कि कितने लोगों ने सहायता मांगी। कितने लोगों को सहायता पहुंचाई गई और उनकी समस्या दूर की गई, यह नहीं बताया गया। 

बहरहाल, प्रवासी मजदूरों को वापस आने पर रोजगार देने का निर्देश देने की खानापूर्ति भी कर दी गई है। कहा गया कि निश्चय योजना के अंतर्गत उन्हें रोजगार देने की व्यवस्था की जाए। पर इन योजनाओं पर पहले से काम चल रहा है, पहले से मजदूर निर्धारित हैं। फिर नवागत मजदूरों को कैसे काम दिया जा सकेगा, यह समझ में नहीं आने वाला मसला है। इतना ही नहीं, इन कामों पर होने वाले खर्च की व्यवस्था कैसे होगी, इस बारे में सरकारी अमला अभी तक तो पूरी तरह चुप है। साफ है कि सरकार ने इस बारे में अभी कुछ सोचा नहीं है। संभव है पड़ोसी राज्यों की देखा देखी भविष्य में बिहार सरकार भी कुछ करे।

(पटना से वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ की रिपोर्ट।) 

अमरनाथ झा
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