ढाई लाख रुपये भाड़ा देकर मज़दूर पहुँचे अपने घर

नई दिल्ली। ढाई लाख रुपये खर्च कर मज़दूर अपने घर पहुँचे। यह घटना पुणे की है। यूपी के सोनभद्र ज़िले के क़रीब 75 मज़दूर वहाँ काम करते थे और लॉकडाउन के शुरू होने के साथ ही वे अपने घर वापसी के प्रयास में जुट गए थे। लेकिन उनको कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। ट्रेन चलाने की केंद्र सरकार की घोषणा के बाद घर लौटने की नई उम्मीद जगी। उनका कहना है कि ट्रेन का टिकट पाने और उसके ज़रिये घर लौटने के लिए उन लोगों ने दिन-रात एक कर दिया। तमाम प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत से लेकर दफ़्तरों तक में उन लोगों ने संपर्क किया लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला।

उनका कहना है कि वे लगातार नोडल अधिकारियों से बातचीत करने की कोशिश किए। कभी नोडल अधिकारी का मोबाइल स्विच्ड ऑफ हो जाता था तो कभी वह फ़ोन नहीं उठाता था। उन्होंने हर तरीक़े से प्रशासनिक मदद लेने की कोशिश की। लेकिन वे नाकाम रहे। फिर इन लोगों ने यूपी सरकार से बात करने की कोशिश की। इसके तहत इन लोगों ने जनसुनवाई पोर्टल पर रजिस्टर किया। जिसके बाद डीएम का फ़ोन आया। लेकिन वह भी किसी तरह की मदद करने में नाकाम रहे।

तब थक हार कर उन लोगों ने एक ट्रक वाले से बात की। और उसने हर आदमी के लिहाज़ से तीन हज़ार रुपये की माँग की। इससे संबंधित सामने आए वीडियो में मज़दूर यह साफ-साफ कहते दिखते हैं कि उनके पास पैसे नहीं थे लिहाज़ा उन्हें पैसे घर से मंगाने पड़े। यह अजीब विडंबना है कि जो मज़दूर कुछ कमाने गए थे और उन्हें कमा कर रूपये घर भेजने थे। उन्हें उलटे अपने घरों से पैसा मंगाना पड़ा। और फिर इस हिसाब से 75 मज़दूरों को लेकर ट्रक सोनभद्र के लिए रवाना हो गयी। अब अगर एक ट्रक में 75 मज़दूर होंगे तो सोशल-फिजिकल डिस्टेंसिंग का क्या हाल होगा इसको समझा जा सकता है। लेकिन भूख की मार कोरोना से भी ज्यादा भारी पड़ रही थी। लिहाज़ा सभी मज़दूरों को अपनी जान जोखिम में डालकर शहरों से अपने घरों की ओर भागना पड़ा।

जगह-जगह मज़दूर इसी तरह से अपने साधनों से या फिर पैदल घरों की ओर लौटने के लिए मजबूर हो रहे हैं। न तो सरकार उनको कहीं पूछ रही है और न ही समाज का कोई हिस्सा सड़कों पर चलते इन मज़दूरों का सहारा बना है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि देश के लिए बेगाने बन चुके इन मज़दूरों ने ही शहरों के मयार खड़े किए हैं। सड़क, बहुमंज़िला इमारतें, पाँच सितारा होटल और फ़ैक्टरियाँ अगर सभी खड़ी हैं और चलती हैं तो वह मज़दूरों के ही खून-पसीने से। लेकिन संकट के इस मौक़े पर सभी ने उनको बेगाना बना दिया।

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